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 पुरानी परंपरा ने सिखाया जल संचयन

जल को जीवन और भविष्य का पर्याय माना जाता है. रांची जिले का अंगाडा प्रखंड का पिपरिया खेड़ा गांव के ग्रामीण इस बात को बहुत अच्छे से समझते हैं. यहीं वजह है जिसके वजह से पहाड़ से निकलने वाले जल को भी ग्रामीण सालों तक संरक्षित करके रखते हैं. पिपरिया खेड़ा गांव पूरी तरह से पहाड़ों से घिरा हुआ है. गांव में चापानल और बोरिंग की सुविधा मौजूद नहीं है. ऐसे में जलसंकट इस गांव की बड़ी समस्या बन सकता था. लेकिन, ग्रामीणों की सूझबूझ और सामूहिक प्रयास की वजह से क्षेत्र में पानी की कोई दिक्कत नहीं है.

जल संचायन की परंपरा
गांव के ग्रामीण पिपरिया खेड़ा स्थित पहाड़ से निकलने वाले जल का संचयन करते है. तकनीक की मदद से पानी का गांव और खेतों में इस्तेमाल किया जाता है. मेहनत का ही परिणाम है कि खेतों और जंगलों में हरियाली देखने को मिलती है. पिपरिया खेड़ा स्थित पहाड़ से निकलने वाला जल शुद्ध और शीतल होता है. ग्रामीण इसे फिल्टर वाला या फिर फ्रिज वाला पानी भी कहते हैं. जिसे पीने से बीमारी होने का खतरा नहीं होता है. ग्रामीण बेहिचक इस जल का इस्तेमाल पीने के लिए भी करते हैं.

पानी बचाने की अपील
वहीं पहाड़ों का पानी गांव, घर और खेतों तक पहुंचने से सबसे ज्यादा खुशी महिलाओं में है. क्योंकि महिलाओं को पानी के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ता. जिससे उनके बाकी कार्य भी प्रभावित नहीं होते है. जल संचयन के प्रति जागरूक महिलाएं शहर के लोगों से भी आग्रह करती हैं कि वे पानी को बचाएं ताकि उनका भविष्य सुरक्षित रहे. पिपरिया खेड़ा के ग्रामीणों ने निश्चित रूप से जल संचयन का बेहतर उदाहरण पेश किया है. सालों से चली आ रही पानी इकठ्ठा करने की इनकी परंपरा दूसरों के लिए प्रेरणा बन गई है. वहीं, आने वाले वर्षो में जीवन के सामने जल की समस्या विकराल ना हो, इस वजह से जल संचयन करना बेहद जरूरी हो गया है.

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