Jharkhand Board Class 9TH Sanskrit Notes | प्रत्यभिज्ञानम्
JAC Board Solution For Class 9TH Sanskrit Chapter 7
1. संकेत-भटः―जयतु...........तिरस् क्रियते।
शब्दार्थः―अपूर्वः = अद्भुतः, बहिः = बताओ, अश्रद्धेयम् = अविश्वसनीय,
सौभद्रः = अभिमन्यु, ग्रहणं गतः = बन्दी बना लिया गया है, कथम् = कैसे, असाद्य
= प्राप्त करके, बाहुभ्याम् = हाथों द्वारा, अवतरितः = उतार लिया गया, निरशङ्कम्
= बिना हिचक के, भुजैकनियन्त्रितोः = एक हाथ से पकड़ा हुआ, बलाधिकेन =
अधिक बलशाली होकर, न पीडितः अस्मि = मुझे पीड़ित नहीं किया, विभाति =
ऐसा प्रतीत होता है, हरः = महादेव ने, अपवार्य = एक ओर को, अभिभाषण =
बात करने की, कौतूहलम् = उत्सुकता, वाचालंयतु = बोलने को प्रेरित करें, वाढम्
= अच्छा, ठीक है, रुष्यति = चिढ़ता है, क्रूद्ध होता है, अभिभाषय = बात करने को
प्रेरित करो, अभिभाष्यन्ते = पुकारे जाते हैं, नाभाभिः = नाम लेकर, शत्रुवशम् =
शत्रुओं के वश में, तिरिस्क्रियते = अपमान किया जाता है, उपेक्षा की जाती है।
हिन्दी अनुवादः
भट : महाराज की जय हो।
राजा : तुम्हारी प्रसन्नता अद्भुत-सी लग रही है, बताओ किस कारण इतने
प्रसन्न हो?
भट : अविश्वसनीय प्रिय प्राप्त हो गया है, अभिमन्यु पकड़ लिया गया है।
राजा : अब वह किस प्रकार पकड़ लिया गया है ?
भट : रथ पर पहुंचकर निशङ्क भाव से हाथों द्वारा उतार लिया गया है।
(प्रकट रूप से) इस ओर, इस ओर से कुमार ।
अभिमन्यु : अरे यह कौन ? जिसने एक हाथ से पकड़ कर अधिक बलशाली
होकर भी मुझे पीड़ित नहीं किया।
बृहन्नला : कुमार इधर चलें।
अभिमन्यु : अरे ! यह दूसरा कौन है, ऐसा लग रहा है जैसे महादेव ने उमा
का वेष ग्रहण किया हो।
वृहन्नला : आर्य ! मुझे इससे बात करने की बहुत उत्सुकता हो रही है। आप
इसे बोलने के लिए प्रेरित करें।
भीमसेन : (एक ओर को) अच्छा (प्रकट रूप से) अभिमन्यु ।
अभिमन्यु : अभिमन्यु ?
भीमसेन : यह मुझसे चिढ़ता है, तुम्ही इसे बात करने के लिए प्रेरित करो।
बृहनला : अभिमन्यु ।
अभिमन्यु : क्या मेरा नाम अभिमन्यु है ? अरे ! क्या यहाँ विराटनगर में क्षत्रिय
कुमारों को नीच लोग भी नाम लेकर पुकारते हैं, अथवा मैं शत्रुओं के अधीन हो गया,
इसलिए अपमानित किया जा रहा है मुझे।
अभ्यासः
संकेत : बृहन्नला-अमिमन्यो ! सुखामास्ते........केनायं गृहीतः ?
शब्दार्थ : पितृव्यः = चाचा, पितृवत् = पिता की तरह, आक्रम्य = अधिकार
दिखाकर, स्वीगतां कथाम = माता के बारे में प्रश्न, कुशली = सकुशल, तत्रभवन्तम्
= आदरणीय को, अथ किम् अथ किम् = हां, निश्चित रूप से, परस्परम् =
एक-दूसरे को, अवलोकयतः = (दोनों) देखते हैं, सावजम् = तिरस्कार के साथ,
मातुलम् = माम, जनार्दनम् = श्रीकृष्ण को, उद्दिश्य = याद करके, तरुणस्य = युवक
के, कृतास्वस्य = धनुर्विद्या में निपुण से, आत्मस्तवम् = आत्म प्रशंसा, मदृते = मेरे
सिवाय, वाक्यशौण्डीर्यम् = वाणी की वीरता, पदातिना = पैदल, त्वर्यताम् = शीघ्र
बुलाइए, उपसर्पतु = समीप आएं. एहोहि = आओ, आओ न, अभिवादयसि प्रणाम
नहीं करते, उत्सिक्तः = घमंडी, दर्पप्रशमनम् = घमंड का नाश ।
हिन्दी अर्थ
बृहन्नला : अभिमन्यु ! तुम्हारी माता सकुशल हैं ?
अभिमन्यु : क्या, क्या? क्या आप मेरे पिता या चाचा हैं ? आप क्यों मुझ पर
पिता के समान अधिकार दिखाकर माता के सम्बन्ध में प्रश्न कर रहे हैं?
बृहन्नला : अभिमन्यु । देवकीपुत्र केशव कुशल हैं ?
अभिमन्यु : क्या आदरणीय कृष्ण को भी नाम से.........? और क्या,
और क्या ! (कुशल है) दोनों एक-दूसरे की ओर देखते हैं)
अभिमन्यु : ये मेरे ऊपर अज्ञानी की तरह क्यों हँस रहे हैं?
बृहन्नला : क्या कुछ ऐसा ही नहीं है ? पिता पार्थ तथा मामा श्रीकृष्ण वाला
युवक युद्ध में निपुण होकर भी युद्ध में परास्त हो जाता है।
अभिमन्यु : स्वच्छन्द प्रलाप करना बन्द करो। हमारे कुल में आत्म प्रशंसा
करना अनुचित है। युद्ध क्षेत्र में मेरे वाणों से मारे हुए सैनिकों के शरीरों को देखिए,
(बाणों पर) मेरे अतिरिक्त दूसरा नाम नहीं होगा।
बृहनला : अरे वाणी की ऐसी वीरता ! फिर उन्होंने तुम्हें पैदल ही क्यों पकड़
लिया?
अभिमन्यु : अशस्त्र (शस्त्रहीन) होकर मेरे सामने आए। पिता अर्जुन को याद
करके मैं उन्हें कैसे मारता? मुझ जैसे लोग शस्त्रहीन पर प्रहार नहीं करते । अतः इस
शस्त्रहीन ने मुझे धोखा देकर पकड़ लिया।
राजा : तुम उस अभिमन्यु को शीघ्र बुला लाओ।
बृहन्नला : कुमार इधर आएँ। यह महाराज हैं। आप समीप जाएँ।
अभिमन्यु : आह । किसके महाराज?
राजा : आओ, आओ पुत्र ! तुम मुझे प्रणाम क्यों नहीं करते ? (मन में)
अरे! यह क्षत्रियकुमार बहुत घमंडी है। मैं इसका घमंड शान्त करता हूँ।
(प्रकट रूप से) तो इसे किसने पकड़ा?
संकेत : भीमसेन-महाराज ! मया.............तम् आलिङ्गन्ति ।
शब्दार्थ : इत्याभिधीयताम् = ऐसा कहिए. भुजौ = दोनों भुजाएँ, प्रहरणम् =
अस्त्र, योकायित्वा = बाँधकर, असह्यम् = असाध्य, अतदर्हताम् = असमर्थता, क्षेपेण
= निन्दापूर्ण वचनों से, रमे = मैं आनन्दित होता हूँ, अपराद्धः = अपराधी, अनुग्राह्य
= कृपा करने योग्य, निग्रहः = बन्धन, योधपुरुषाः = योद्धा, पूज्यतमस्य = सबसे
अधिक पूज्य, तूणीर = तरकश, भग्नाः = परास्त किए गए, व्यपनयतु = दूर करें,
क्षिप्ताः = आक्षेप युक्त होने पर, दिष्ट्या = सौभाग्य से, गोग्रहणम् = गायों का
अपहरण, रचन्तम् = सुखान्त, आलिङ्गन्ति = आलिंगन करते हैं।
हिन्दी अनुवादः
भीमसेन : महाराज ! मैंने।
अभिमन्यु : 'शस्वहीन होकर पकड़ा'–ऐसा कहिए।
भीमसेन : शान्त हो जाइए । धनुष तो दुर्बलों के द्वारा उठाया जाता है। मेरी तो
भुजाएँ ही शस्त्र हैं।
अभिमन्यु : नहीं। क्या आप हमारे मध्यम तात हैं, जो उनके समान वचन बोल
रहे हैं।
भगवान् : पुर। यह मध्यम तात कौन है?
अभिमन्यु : सुनिए-जिसने अपनी भुजाओं से जरासन्ध का कण्ठवरोध करके
कृष्ण के लिए तो असाध्य कार्य था, उसको साध्य बना दिया था।
राजा : तुम्हारे निन्दापूर्ण वचनों से मैं चिढ़ता नहीं हूँ। तुम्हारे चिढ़ने से मुझे
आनन्द प्राप्त होता है। तुम यहाँ क्यों खड़े हो, जाओ यहाँ से यदि मैं ऐसा कहूँ तो
क्या मैं अपराधी नहीं होऊँगा?
अभिमन्यु : यदि आप मुझ पर कृपा करना चाहते हैं तो―
मेरे पैर बाँधकर मुझे उचित दण्ड दीजिए । मैं हाथों से पकड़कर लाया गया हूँ।
मेरे मध्यम तात भीम मुझे हाथों से ही छुड़वाकर ले जाएँगे।
(तब उत्तर का प्रवेश)
उत्तर : भगवन् । मैं प्रणाम करता हूँ।
राजा : दीर्घायु हो पुत्र । क्या युद्ध में वीरता दिखाने वाले वीरों का सत्कार कर
दिया गया है?
उत्तर : अब सबसे अधिक पूज्य की पूजा कीजिए।
राजा : किसकी पूजा पुत्र?
उत्तर : यहीं मौजूद अर्जुन की।
राजा : क्या अर्जुन यहाँ आए हैं?
उत्तर : और क्या ? पूज्य अर्जुन ने―
श्मशान से अपना धनुष तथा अक्षय तरकश लेकर भीष्म आदि राजाओं को
परास्त कर दिया तथा हम लोगों की रक्षा की।
राजा : ऐसी बात है।
उत्तर : आप अपना सन्देह दूर करें। धनुर्विद्या में प्रवीण अर्जुन यही हैं।
बृहन्नला : यदि मैं अर्जुन हूँ तो यह भीमसेन है और यह राजा युधिष्ठिर हैं।
अभिमन्यु : ये मेरे पूज्य पितागण हैं, इसलिए.......
मेरे निन्दापूर्ण वचनों से यह क्रुद्ध नहीं होते और हँसते हुए मुझे चिढ़ाते हैं।
गौ-अपहरण की यह घटना सौभाग्य से सुखांत हुई है। इसी के कारण मुझे अपने
सभी पिताओं के दर्शन हो गए।
(ऐसा कहकर क्रम से सबको प्रणाम करता है और सब उसका आलिंगन
करते हैं।
अभ्यासः
1. अधोलिखिताना प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत―
(क) भटः कस्य ग्रहणम् अकरोत् ?
उत्तर―भटः सौभद्रस्य ग्रहणम् अकरोत् ।
(ख) अभिमन्युः कथं गृहीतः आसीत् ?
उत्तर―अशस्त्रः वञ्चयित्वा गृहीतः ।
(ग) भमीसेनेन यूहन्नलया च पृष्ठः अभिमन्युः किमर्थम् उत्तरं न ददाति ?
उत्तर―भीमसेनेन बृहन्नलया च पृष्टः अभिमन्युः उत्तरं न ददाति यतः सः
अपहरणेन क्षुब्धः आसीत् ।
(घ) अभिमन्युः स्वग्रहणे किमर्थे वञ्चितः इव अनुभवति ?
उत्तर―अभिमन्यु स्वग्रहणे वञ्चितः इव अनुभवति यतः सः अशस्वः वञ्चयित्वा
गृहीतः।
(3) कस्मात् कारणात् अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते ?
उत्तर―अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते यतः अनेनैव तस्य पितर: दर्शिताः ।
प्रश्न 2. अधोलिखितवाक्येषु प्रकटितभावं चिनुत-
(क) भोः को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न
पीडितः अस्मि । (विस्मयः, भयम्, जिज्ञासा)
उत्तर―विस्मयः।
(ख) कथं कथं ! अभिमन्यु महम् । (आत्मप्रशंसा, स्वाभिमानः, देन्यम्)
उत्तर―स्वाभिमानः।
(ग) कथं मां पितृवदाक्रम्य स्वीगतां कथा पृच्छसे? (लज्जा, क्रोधः,
प्रसन्नता)
उत्तर―क्रोधः।
(घ) धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते मम तु भुजौ एव प्रहरणम् । (अन्धविश्वासः,
शौर्यम्, उत्साहः)
उत्तर―शौयम्।
(ङ) याहुभ्यामाहृतं भमः बाहुभ्यामेव नेष्यति । (आत्मविश्वासः, निराशा,
वाक्यसंयमः)
उत्तर―हर्ष।
प्रश्न-3. सन्धि कुरुत―
(क) खलु + एषः = खल्वेषः।
(ख) बल + अधिकेन + अपि = बलाधिकेनापि।
(ग) विभाति + उमावेषम = विभात्युमावेषम् ।
(घ) वाचालयतु + एनम् = वाचालयत्वेनम् ।
(ङ) रुष्यति + एष = रुष्यत्येष ।
(च) त्वमेव + एनम् = त्वमेवैनम् ।
(छ) यातु + इति = यात्विति ।
(ज) धनञ्जयाय + इति = धनञ्जयायेति ।
प्रश्न-4. अधोलिखितानि वचनानि कः के प्रति कथयति―
यथा कः कं प्रति
आर्य, अभिभाशणकौतूहल मे महत् । बृहन्नला भीमसेनम्
उत्तर―
(क) कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते ? अभिमन्युः बृहन्नलाम्
(ख) अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम् । अभिमन्युः भीमसेनम्
(ग) पूज्यतमस्य क्रियता पूजा। उत्तर: राजानम्
(घ) पुत्र ! कोऽयं मध्यमो नाम । भगवान् अभिमन्यम्
(ङ) शान्तं पापम् ! धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते। भीमसेनः अभिमन्युम्
प्रश्न-5. अधोलिखितानि स्थूलानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि―
(क) वाचालयतुं एनम आर्यः ।
उत्तर―अभिमन्यवे।
(ख) किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः ।
उत्तर―भीमाय।
(ग) कथं न माम अभिवादयसि ।
उत्तर―राज्ञे।
(घ) मम तु भुजौ एव प्रहरणम् ।
उत्तर―भीमसेनाय ।
(ङ) अपूर्व इव ते हों यूहि केन विस्मितः ?
उत्तर―भटाय।
प्रश्न-6.श्लोकानाम् अपूर्णः अन्वयः अधोदत्तः । पाठमाधृत्य रिक्तस्थानानि
पूरयत―
उत्तर―(क) पार्थ पितरम् मातुलं जनार्दनं च उद्दिश्च कृतास्वस्य तरुणस्य
युद्धपराजयः युक्तः।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं कर्म कृत्वा
(भीमेन) कृष्णः अतदर्हतां नीतः।
(ग) रुष्यता भवता रमे । ते क्षेपेण न रुष्यामि, किम् उक्त्वा अहं नापराद्धः, कथं
(भवान्) तिष्ठति, यातु इति ।
(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः क्रियताम् । बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्)
भीम: बाहुभ्याम् एव नेष्यति ।
प्रश्न-7.(क) अधोलिखितेभ्यः पदेभ्यः उपसर्गान् विचित्य लिखत―
उत्तर पदानि उपसर्ग
यथा-आसाद्य आ
(i) अवतारितः = अव
(ii) विभाति = वि
(iii) अभिभाषय = अभि
(iv) उद्भूताः = उत्
(v) तिरास्क्रियते = तिरस्
(vi) प्रहरन्ति = प्र
(vii) उपसर्पतु = उप
(viii) परिरक्षिताः = परि
(ix) प्रणमति = प्र
(ख) उदाहरणमनुसृत्व कोष्ठकदत्तपदेषु पञ्चमीविभक्तिं प्रयुज्य वाक्यानि
पूरयत । यथा–श्मशानाद धनुरादाय अर्जुनः आगतः । (श्मशान)
उत्तर―
(i) पाठान् पठित्वा सः विद्यालयात् आगतः । (विद्यालय)
(ii) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति । (वृक्ष)
(iii) गङ्गा हिमालयात् निर्गच्छति । (हिमालय)
(iv) क्षमा आपणात् फलानि आनयति । (आपणम्)
(v) स्मृतिनाशात् बुद्धिनाशे भवति । (स्मृतिनाश)
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