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   Jharkhand Board Class 9TH Sanskrit Notes | सोमप्रभम्  

   JAC Board Solution For Class 9TH Sanskrit Chapter 3


संकेत―(ततः प्रविशति...........मृता पितुर्गृहे..........?) पृ०१७)
शब्दार्थ : करतलाभ्याम् = दोनों हथेलियों से, चक्षुषी = दोनों आँखों को,
मार्जयन्ती = मलती हुई, जागरिता = जग गई. त्वरस्व- जल्दी करो, परिहीयते = देर
हो रही है, गन्तव्य : = जाना चाहिए, शब्दापयामि = मैं आवाज देता/देती हूँ, कियतः
कालात् = कितने समय से (बहुत देर से), सकरुणम् = दयापूर्वक, निशम्य = देखकर,
श्वश्रू: = सास, कटुवचनैः = कठोर वचनों से, आक्षिपति = ताना देती है,
परिक्रमति = घूमती है, साटोपम् = गर्वपूर्वक, कोपम् = क्रोध, निरूपयन्ती = प्रकट
करती हुई, विडम्बयन्ती = उपेक्षा करती हुई, काकिण = कौड़ी, कदर्थयसि = निन्दा
करतो हो, श्वसुर : = ससुर, मर्मघातिभिः = मर्मभेदी।
      हिन्दी अनुवाद―(तब हथेलियों से आँखें मसलती हुई पाँच वर्ष की बालिका
सोमप्रभा प्रवेश करती है।)
विमला―अरे जग गई। तो जल्दी करो। विद्यालय जाने के लिए देर हो रही है।
सोमप्रभा―माँ। आज विद्यालय नहीं जाऊँगी।
विमला―(हाथ से सोमप्रभा को पकड़कर) अरे। यह क्या कह रही हो तुम?
विद्यालय तो प्रतिदिन हो जाना चाहिए।
                                  (सोमप्रभा चली जाती है)
सास―हे विमला ! अरो दुष्टा । कहाँ मर गई? कितनी देर से मैं तुम्हें आवाज
दे रही हूँ?
विमला―(दुःखी होकर स्वगत कथन) यह मेरी सास हमेशा कटुवचनों से मुझे
ताना देती है। (ऊँची आवाज में) माता जी! मैं अभी आती हूँ। क्या करना है?
(घूमती है)।
             (तब गर्वपूर्वक क्रोध प्रदर्शित करती हुई सास प्रवेश करती है।)
बिमला―माता जी! क्या आज्ञा है?
सास―(उपेक्षा करती हुई) क्या आज्ञा है ? क्या अब भी महादेवी की सुबह
नहीं हुई?
विमला―प्रातः काल के कार्य सम्पन्न कर रही हूँ।
सास―प्रातः काल के कार्य सम्पन्न कर रही हो तुम? अभी तक भी चाय की
कोई व्यवस्था ही नहीं है। क्या तुम्हारा पिता आकर चाय बनाएगा? जिसने एक
कौड़ी भी नहीं दी?
    विमला―मेरे पिता की निन्दा क्यों करती हो माता जी ? जो कुछ भी कहना है
मुझ से ही कहो।
          सास―(भौंहें चढ़ाकर तथा भुजा पटककर) (अय् हय्) सुनो इस दुष्टा का
नीच उत्तर । यदि तुम्हें तुम्हारा पिता इतना प्रिय है तो वहीं जाकर पिता के घर में क्यों
न मर गई........?
            संकेत―(वमला-स तु मां ........... विमलां कर्षतः)
शब्दार्थ : नेतुम् = ले जाने के लिए, विगते = पिछले, वेतनस्य = वेतन का,
अर्जयित्वा = कमाकर, पणकान् = पैसे, निष्ठीवनं करोमि = मैं थूकती हूँ,
यौतकराशिम = दहेज की राशि, नृशंसता = निर्दयता, लोलुपता = लालच, त्रोटिटानि =
तोड़ डाले, भाजनानि = पात्र, भणितम् = कहा, राक्षसाः = राक्षस, दौरात्म्यम् = दृष्टता,
दुर्भमायाः = दुष्टों को, दुष्कृत्यम् = बुरे काम, सहिंस्रभावम् = हिंसाभाव के साथ,
सक्रौयम् = क्रूरता के साथ, निभालयन्ती = देखते हुए, जिघांसया = मारने की इच्छा
से, प्रघर्षयतः = खींचते हैं, कर्षत : = बलपूर्वक ले जाते हैं।
             हिन्दी अनुवाद―विमला–वह मुझे लेने पिछले श्रावण मास में आए थे। अपने
ही..............
            सास―अरी दुष्टा। वेतन का गर्व रखती है। तीन-चार पैसे कमा कर लाती
है–इसलिए अत्यन्त गर्वित हो? तुम्हारे पैसे पर थूकती हूँ मैं । क्या सोचती हो, तुम
धन कमाकर लाती हो ? क्या तुम्हारा धन है वह ? तुम्हारे पिता ने जितनी दहेज की
राशि देने की प्रतिज्ञा की थी उसमें से आधा ही दिया है।
विमला―ओह आपकी कठोरता । ओह आपकी लालच.........!
सास―अरे! तुम्हारा इतना साहस । तुम मेरी निन्दा कर रही हो । तुम मुझे आँखें
दिखा रही हो।
                                    (ससुर प्रवेश करके)
ससुर―क्या हुआ? यह क्या लड़ाई-झगड़ा है। सुबह से हो? प्रातः काल की
चाय भी अभी तक नहीं मिली है............,
सास―चाय पीने की तो बात ही क्या? इस दुष्टों ने चाय के पात्र ही तोड़
दिए। मैंने कुछ भी नहीं कहा, फिर भी मुझ पर आक्षेप लगा रही है-हम कठोर है,
लालची हैं, राक्षस हैं।
ससुर―यह सब कहा इसने?
विमला―पिताजी। मैंने ये नहीं कहा।
सास―देखो, इस दुष्टा की दुष्टता ! क्या-क्या दुष्कर्म यह नहीं करती ? सामने
ही जवाब देती है, मेरे सामने जीभ चलाती है।
ससुर―(क्रोध सहित) अरे इसका दुस्साहस ।
(सास और ससुर उसे नहीं देखते, दोनों क्रूरतापूर्वक तथा हिंसाभाव से विमला
को देखते हुए उसके पास जाते हैं। सोमप्रभा प्रवेश करके यह देखती है।)
विमला―हे माता जी । हे पिताजी ! मैंने कुछ भी अपराध नहीं किया, मैं सत्य
की सौंगध लेती हूँ। आप मुझे ऐसे क्यों देख रहे हैं ? नहीं, नहीं, आप मुझे नहीं मार
सकते हैं............।
        (दोनों मारने की इच्छा, बलपूर्वक विमला को पकड़कर खींचते हैं।)
सोमप्रभा―(भयपूर्वक अत्यन्त धीमी आवाज में) माँ-माँ..........
      (सास-ससुर उसे बिना देखे विमला को जबरदस्ती खींचते हैं।)
संकेत―श्वश्रूः-नयत एनां ....... त्वया मे ।
शब्दार्थ : नयत = ले जाओ, महानसम् = रसोईघर, ज्वलतु = जल जाए,
प्रधावन्ती = भागती हुई, निष्क्रामति = बाहर निकल जाती है, आत्मत्राणाय = अपनी
रक्षा के लिए, सप्राणप्रणम् = पूरी ताकत से, प्रयतते = प्रयल करती है। गीयते =
गाना गाया जाता है, नेपथ्ये = पर्दे के पीछे, प्रवर्धते = बढ़ रही है, हिंस्रता = हिंसा का
भाव, घातकैः = हिंसकों के द्वारा, चीत्कारः = चिल्लाना, पुरुषनिरीक्षकेण सह = पुलिस
निरीक्षक के साथ, उपसृत्य = पास आकर, मुञ्चत = छोड़ दो, खलै : = दुष्टों
द्वारा, अत्याहितम् = अहित किया, स्नुषा = पुत्रवधू, रुग्णा = बीमा
साध्वी = सती- साध्वी, उपचराम : = हम उपचार कर रहे हैं, निर्दिशन् = संरक्षक
करते हुए, निरीक्षक : = निरीक्षक, निवेदितम् = बता दिया, मुञ्जतः = छोड़ देते
उपसृत्य = समीप जाकर, उपनहो = दो जूते, त्रुटिती = टूट गए, पुस्तकमञ्जूषा = पुस्तक
की पेटी, निष्कासितवती = निकाल दिया, उक्तमासीत् = कहा था, अविलम्बम् =बिना
विलम्ब के, उपन्नम् = ठीक-ठाक, पितामहः = दादा, पितामही = दादी, मारयत: = मार
रहे हैं, धावं धावम् = भाग भागकर, स्थानकम् = थाना, सवाष्पम् = आँसुओं के
साथ, सगद्गदम् = प्रसन्नतापूर्वक, आलिङ्ग्य = आलिंगन करके, त्राता = रक्षा की
गई।
        हिन्दी अनुवाद―सास–इसे रसाईघर में ले चलो। इसे वहीं जला देते हैं।
(सोमप्रभा सहसा भागती हुई निकल जाती है। विमला अपनी रक्षा के लिए
भरसक प्रयत्न करती है, परदे के पीछे गाना गाया जा रहा है।)
क्षणे क्षणे प्रवर्धते धनाय हिंस्रता खलै―
विलोम्यतेऽतिनिर्दयं च जन्तुभिर्मनुष्यता ।
विभाजितं जगद्विधा निहन्यते च घातकै―
रतीव दैन्यमागतास्ति साधुता मनुष्यता ॥
हिन्दी अनुवाद―प्रतिक्षण धन के लिए हिंसाभाव बढ़ रहा है तथा दृष्टों के द्धारा
अत्यन्त निर्दयतापूर्वक मनुष्यता लुप्त की जा रही है। घातक (आक्रामक) संसार का
विभाजन तथा विनाश कर रहे हैं जबकि सज्जनता एवं मानवता अत्यन्त दीनता को
प्राप्त कर रही है
(विमला का जोर से चिल्लाना। पुलिसाधिकारी के साथ सोमप्रभा प्रवेश
करती है।)
पुलिसनिरीक्षक―(पास आकर) अरे ! यह क्या हो रहा है, क्या चल रहा है
यहाँ ? इसे छोड़ दो।
सास―(घबराहट के साथ) हे महानुभाव । कुछ अहित नहीं हो रहा। यह
हमारी सती-साध्वी वधू बीमार है। इसका इलाज कर रहे हैं।
निरीक्षक―उपचार किया जा रहा है। मैं उपचार करूंगा तुम दोनों का । मैं सब
जानता हूँ। (सोमप्रभा की ओर संकेत करके) इस बालिका ने सब कुछ बता दिया ।
(सास और ससुर विमला को छोड़ देते हैं।)
विमला―(कष्टपूर्वक सोमप्रभा के पास जाकर) पुत्री ! तुम........तुम यहाँ
कैसे............
सोमप्रभा―माता जी! मेरे जूते टूटे हुए हैं, पुस्तकों की पेटी टूटी हुई है–मुझे
अध्यापिका ने कक्षा से निकाल दिया । तुमने कहा था-विद्यालय से घर बिना विलम्ब
किए (शीघ्र) आना चाहिए । इसलिए मैं घर आ गई (रोती है)।
विमला―मत रो पुत्री। सब कुछ ठीक हो जाएगा
सोमप्रभा―यहाँ आकर मैंने देखा कि दादा-दादी तुम्हें मार रहे हैं। इसलिए मैं
भाग भागकर पुलिस स्टेशन गई। पुलिस निरीक्षक से मैंने कहा.......…..
विमला―(आँसुओं सहित तथा प्रसन्नतापूर्वक सोमप्रथा का आलिंगन करके)
तुमने मुझे बचा लिया। तुमने घोर संकट से मुझे बचा लिया है। तुमने मेरा उपकार
किया है।

                                  अभ्यासः

1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत―
(क) अध्यापिका सोमप्रभा कक्षायाः किमर्थं निष्कासितवती ?
उत्तर―सोमप्रभायाः उपानही त्रुटितौ, पुस्तकमजूपा च त्रुटिता-अतः अध्यापिका
तां कक्षायाः निष्कासितवती।

(ख) विद्यालयात् गृहम् आगत्य सा (सोमप्रभा) किम् अपश्यत् ?
उत्तर―विद्यालयात् गृहम् आगत्य सा अपश्यत् यत् पितामहः पितामही च तस्याः
मातरं मारयतः स्म।

(ग) विमलायाः श्वसुर : श्वभूः च तां कुत्र किमर्थञ्च नयतः ?
उत्तर―विमलायाः श्वसुरः श्वश्रू च तां दग्धुं महानसं नयतः स्म ।

(घ) सोमप्रभा कथं मातुः त्राणम् अकरोत् ?
उत्तर―सोमप्रभा स्थानकं गत्वा पुरुषनिरीक्षकाय सर्व निवेदितवती, सः आगत्य
सोमप्रभाम् अरक्षत् ।

() सोमप्रभा आयुः कति वर्षाणि आसीत् ।
उत्तर―सोमप्रभायाः आयुः पञ्चवर्षः आसीत् ।

(च) अस्मिन् नाटके पुरुषनिरीक्षकस्य (आरक्षिणः) कर्तव्यपरायणता
वर्णिताऽस्ति भ्रष्टाचारपरायणता वा?
उत्तर―अस्मिन् नाटके पुरुषनिरीक्षकस्य (आरक्षिणः) कर्तव्यपरायाणता वर्णिताऽस्ति ।

2. निम्नलिखितस्य श्लोकस्य आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत-
क्षणे-क्षणे प्रवर्धते धनाय हिनता खलै―
विलोप्यतेऽतिनिर्दयं च जन्तुभिर्मनुष्यता।
विभाजितं जगद्विधा निहन्यते च घातकै―
रतीव दैन्यमागतास्ति साधुता मनुष्यता ॥
उत्तर―भाव–इस श्लोक में धनप्राप्ति के लाभ के बढ़ने के दुष्परिणामों का
वर्णन किया गया है । धनप्राप्ति के लोभ में एक-दूसरे के प्रति हिंसाभाव बढ़ रहा है,
संसार का विभाजन हो रहा है जबकि सज्जनता आदि भावों का लोप होता जा रहा है।

3. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं पाठात् चित्वा लिखित―
उत्तर―(i) पुत्रवधू    = स्नुषा
(ii) पदत्राणे            = उपानहौ
(iii) पाकशालाम्     = महानसम्
(iv) शीघ्रं कुरु         = त्वरस्त
(v) पात्राणि            = भाजनानि
(vi) इन्तुम् इच्छा     = जिघांसा

(ख) संधि कुरुत―
(i) कलह+आडम्बरः = कलहाडम्बरः
(ii) प्रचलति + अत्र = प्रचलत्यत्र
(iii) न+अस्ति = नास्ति
(iv) प्रति+एव = प्रत्येव
(v) मया+ एतत् = मयैतत्
(vi) तत्र+एव = तत्रैव

4. उदारणमनुसृत्य प्रकृतिप्रत्यसंयोगं कुरुत―
यथा― आ+ गम् + ल्यप् = आगत्य
सम् + पूज् + ल्यप् = सम्पूज्य
उत्तर―(क) अभि + गम् + ल्यप् = अधिगम्य
(ख) वि+ हा+ ल्यप् = विहाय
(ग) निर+ गम् + ल्यप् = निर्गम्य
(घ) वि+ हस् + ल्यप् = विहस्य
() प्र+ क्लृप् (कृ) + ल्यप् : = प्रकृप्य
(च) सम् + बुध् + ल्यप् = सम्बुध्य

5. अधोलिखितेषु पदेषु उपसर्गपदं चिनुत―
उत्तर―(क) परिहीयते = परि
(ख) सज्जातः = सम्
(ग) अधिक्षिपति = अधि
(घ) प्रत्युत्तरम् = प्रति+ उत्।
(ङ) प्रवर्धते = प्र
(च) विलोप्यते = वि
(छ) उपचरामः = उप
(ज) उद्धृतवती = उत्

6. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत―
(क) अद्य विद्यालयं न गमिष्यामि ।
उत्तर―किं त्वम् अद्य विद्यालयं गमिष्यसि ?

(ख) अनया दृष्टया चायभाजानि त्रोटितानि ।
उत्तर―कया चायभाजनानि नोटितानि?

(ग) विमला आत्मत्राणाय प्रयतते ।
उत्तर―विमला किमर्थं प्रयतते?

(घ) त्वम् सङ्कटात् माम् उद्धृतवती।
उत्तर―त्वं कस्मात् माम् उद्धृतवती ?

(ङ) त्वम् वेतनस्य गर्वम् उद्वहसि ।
उत्तर―त्वं कस्य गर्वम् उद्वहसि ?

7. घटनाक्रमानुसारं वाक्यानि पुनः लिखत―
(क) सोमप्रभा आरक्षिणः समीपम् आगच्छत् ।
(ख) विमलायाः श्वश्रूः तां कटुवचनैः आक्षिपति ।
(ग) सा आत्मत्राणाय प्रयतं करोति ।
(घ) विमलायाः श्वभूः श्वसुरः च तां ज्वालयितुं महानसं नयतः ।
(ङ) पुरुषनिरीक्षकः सोमप्रभया सह आगच्छति तस्याः त्राणं करोति ।
उत्तर―(क) विमलायाः श्वश्रूः तां कटुवचनैः आक्षिपति ।
(ख) विमलायाः श्यः श्वसुरः च तां ज्वालयितुं महानसं नयतः ।
(ग) सा आत्मत्राणाय प्रयलं करोति ।
(घ) सोमप्रभा आरक्षिणः समीपम् अगच्छत् ।
(ङ) पुरुषनिरीक्षकः सोमप्रभया सह आगच्छति तस्याः त्राणां करोति ।

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