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   Jharkhand Board Class 9TH Sanskrit Notes | जटायोः शोर्यम्  

   JAC Board Solution For Class 9TH Sanskrit Chapter 10


1. सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता।
वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायतलोचना ॥
शब्दार्थ:―विलपन्ती = विलाप करती हुई, सुदुःखिता = अत्यन्त दुःखी,
वनस्पतिगत् = विशाल वृक्ष पर स्थित, गृधम् = जटायु को, गृद्ध को, ददर्श = देखा,
आयतलोचना = विशाल नेत्रों वाली सीता ने।
हिन्दी अनुवाद―तब करुण वाणी में विलाप करती हुई, अत्यन्त दुःखी तथा
विशाल नेत्रों वाली सीता ने विशाल वृक्ष पर स्थित जटायु को देखा।

2. जटायो पश्ण्य मामार्य हियमाणामनाधवत् ।
अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा ।
शब्दार्थ―जटायो = हे जटायु !, हियमाणाम् = ले जाई जाती हुई, अनाथवत्
= अनाथ की तरह, राक्षसेन्द्रेण = राक्षसों के राजा इन्द्र के द्वारा, पापकर्मणा = दुष्कर्म
करने वाले।
          हिन्दी अर्थ― हे आर्य जटायु ! दुष्कर्म करने वाले इस राक्षसराज रावण के द्वारा
अनाथ की तरह ले जाई जाती हुई मुझे देखो।

3. तं शब्दमषसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः ।।
शब्दार्थ―अवसुप्तः = सोए हुए, शुश्रुवे = सुना, ददर्श = देखा, निरीक्ष्य =
देखकर, क्षिप्रम् = जल्दी, शीघ्र ही, वैदेहीम् = सीता को ।

        हिन्दी अर्थ―तब सोए हुए उस जटायु ने वह शब्द सुना तथा रावण को देखकर
शीघ्र ही उसने सीता को देखा।

4. ततः पर्वतशृङ्गमस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः ।
वनस्पतिगतः श्रीमाव्याजहार शुमा गिरम् ।।
शब्दार्थ―पर्वतशृङ्गभः = पर्वत के शिखर के समान आभा वाला, तीक्ष्णतुण्डः
= तीक्ष्ण चोंच वाला, श्रीमान् = शोभायुक्त, खगोत्तमः = उत्तम पक्षी, वनस्पतिगतः
= वृक्ष पर स्थित, व्याजहार = बोला, गिरम् = वाणी, शब्द ।
        हिन्दी अनुवाद―तब पर्वत शिखर के समान कान्ति वाले, तीक्ष्ण चोंच वाले,
वृक्ष पर स्थित शोभायुक्त तथा श्रेष्ठ पक्षी उस जटायु ने सुन्दर वाणी में इस प्रकार
कहा।

5.निवर्तय मति नीचां परदाराभिमर्शनात् ।
न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत् ॥
      शब्दार्थ―निर्वतय = हटा लो, मतिम् = बुद्धि को, नीचाम् = नीच, अनुचित,
परदाराभिमर्शनात् = पराई स्त्री के दोष से, समाचरेत = आचरण करना चाहिए,
धीरः = बुद्धिमान मनुष्य, परः = अन्य लोग, विगर्हयेत् = निन्दा करे।
        हिन्दी अनुवाद : पराई स्त्री स्पर्श दोष से अपनी नीच बुद्धि (विचारधारा) को
तुम हटा लो। बुद्धिमान मनुष्य को ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए जिससे अन्य
लोग उसकी निन्दा करें।

6. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेही मे गमिष्यसि ॥
शब्दार्थ―युवा = युवक, धन्वी = धनुधारी, सरथः = सारथी, कवची =
कवचधारी, शरी = वाण को लिए हुए, आदाय = लेकर, वैदेही = सीता को, कुशली
= कुशलतापूर्वक, गमिष्यासि = तुम जाओगे।
      हिन्दी अनुवाद : मैं तो वृद्ध हूँ लेकिन तुम युवक हो, रथ सहित हो, कवचधारी
तथा बाण धारण किए हो, फिर भी तुम सीता को लेकर कुशलतापूर्वक (सुरक्षित)
यहाँ से नहीं जा सकोगे।

7. तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां महाबलः ।
धकार बहुधा गात्रे वणान्यतगसत्तमः ।
शब्दार्थ― तीक्ष्णानखभ्याम् = तेज नाखूनों से, चरणाभ्याम् = दोनों पैरों से
महाबलः = अत्यन्त बलशाली, चकार = कर दिए, गात्र = शरीर पर, बणान् =
घाव, पजगसतमः = उत्तम पक्षी
      हिन्दी अनुवाद : तब उस उत्तम एवं अत्यन्त शक्तिशाली पक्षी ने अपने तीक्ष्ण
नाखूनों तथा दोनों पैरो से रावण के शरीर पर अनेक प्रकार के प्रहारों से घाव कर
दिए।

8. ततोऽस्य सशरं मुक्तामणिविभूषितम् ।
चरणाभ्यां महातेजा बभजास्य महद्धनुः ।
शब्दार्थ― चापम् = धनुष, यशरम् = बाण-सहित, मुक्तापणिविभूषितम् =
मुक्तामणि से विभूषित, महातेजा = अत्यन्त तेजस्वी, चरणाभ्याम् = दोनों पैरों स,
बभञ्ज = तोड़ दिया, महद्धनुः = विशाल धनुष को।
            हिन्दी अनुवाद : तब अत्यन्त तेजस्वी उस जटायु ने मुक्तामणि से विभूषित 
तथा बाण सहित उसके चाप और विशाल धनुष को अपने दोनों पैरों से तोड़ दिया।

9. स भग्नधन्या विरथो हताश्वो हतसारथिः ।
अङ्ग्रेनादाय वैदेही पपात भूवि रावणः ।।
शब्दार्थ― भग्नधन्या = टुटे हुए धनुष वाला, विरथः = रथवहीन, हताश्वः =
जिसके घोड़े मारे जा चुके थे, हतसारथः = जिसका सारथि मारा जा चुका था,
अङ्कन = गोद में, आदाय = लेकर, पपात = गिर पड़ा, भुवि = पृथ्वी पर।
    हिन्दी अनुवाद : तब रथहीन वह रावण जिसका धनुष टूट गया था तथा घोड़े 
एवं सारथी मारे जा चुके थे, सीता जी को गोद में लेकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।

10. सपरिष्वज्य वैदेही वामेनाङ्केन रावणः ।
तनाभिजघानाशु जटायुं क्रोधमूर्छितः ।।
शब्दार्थ―वामेनाङ्केन = बाई गोद में, तलेन = तलवार की धार से, अभिजघान
= आघात किया, आशु = शीघ्र, क्रोधमूर्छितः = अत्यन्त क्रुद्ध ।
      हिन्दी अर्थ : तब अत्यन्त बुद्ध उस रावण ने सीता को बाई गोद में धारण 
करके तलवार की मूठ से शीघ्र ही जटायु पर खतरनाक आघात किया।

11. जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः ।
वामयादून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः ॥
शब्दार्थ―अतिक्रम्य = आगे बढ़कर, तुण्डेन = चोंच से, वामयाहून् = बाई ओर
की भुजाओं को, व्यपाहरत् = नष्ट कर दिया, अरिन्दमः = शत्रुओं का विनाशक ।
      हिन्दी अनुवाद : तब उस पक्षीराज जटायु ने शत्रुनाशी अपनी चोंच झपट कर
आघात किया और रावण की बाँयी दशों भुजाओं को नष्ट कर लिया ?

                                          अभ्यासः

प्रश्न-1. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत―
(क) "जटायो ! पश्य" इति का वदति ?
उत्तर―"जटायो ! पश्य" इति सीता वदति ।

(ख) जटायुः रावणं किं कथयति ?
उत्तर―जटायु रावणम् अकथयत्-"परदारभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय । चीरः
तत् न समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत् ।"

(ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्तुम् उद्यतः अभवत् ?
उत्तर―क्रोधवशात् रावणः वामेनाथेन वैदेहीं संपरिष्वज्य तलेन आशु जटायुम्
अभिजधान।

(घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभञ्ज ।
उत्तर―पतगेश्वरः रावणस्य मुक्तामणिविभूषितं सशरं चापं बभज्ज ।

(ङ) हताश्वो हतसारथिः रावणः कुत्र अपतत् ?
उत्तर―हताश्वो हतसारथिः रावणः भुवि अपतत् ।

(ङ) हताश्वो हतसारथिः रावणः कुत्र अपतत् ?
उत्तर―हताश्वो हतसारथिः रावणः भुवि अपतत् ।

प्रश्न-2. उदाहरणमनुसृत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत―
यथा–गुण + णिनि = गुणिन् (गुणी)
दान + णिनि = दानिन् (दानी)
उत्तर―(क) कवच + णिनि = कावचिन् (कवची)
(ख) शर + णिनि = शरिन् (शरी)
(ग) कुशल + णिनि = धनिन् (धनी)
(घ) धन + णिनि = धनिन् (धनी)
(ङ) दण्ड + णिनि = दण्डिन् (दण्डी)

प्रश्न-3. रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि
तानि पृथक्-पृथक् कृत्वा लिखत―
युवा, सशरः, वृद्ध, हताश्वः, महाबलः, तपगसत्तमः, भग्नधन्या, महागधः,
खगधिपः, क्रोधमूर्छितः, पतगेश्वरः, सरथः, कवची, शरी।
यथा― रावण:                 जटायु
युवा                              वृद्धः
उत्तर―(क) सशरः           (क) महाबलः
(ख) हताश्वः                   (ख) पतगसत्तमः
(ग) भानधन्या                 (ग) महागृध्रः
(घ) क्रोधमूर्च्छितः             (घ) खगाधिपः
(ङ) सरथः                       (ङ) पतगेश्वरः
(च) कवची
(छ) शरी

प्रश्न-4. सन्धि/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
यथा―च + आदाय = चादाय
उत्तर―(क) हत + अश्वः = हताश्व:
(ख) तुण्डेन + अस्य = तुण्डेनास्य
(ग) बभज+अस्य = बभज्जास्य
(घ) अङ्केन + आदाय = अनादाय
(ङ) खग + अधिपः = खगाधिपः

प्रश्न-5. 'क' स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः 'ख' स्तम्भे लिखिताः ।
तान् यथा-समयोजयत―
'क' स्तम्भः                   'ख'स्तम्भः
(क) कवची                  (1) अपतत्
(ख) आशु                    (2) पक्षिश्रेष्ठः
(ग) बिरथः                   (3) पृथिव्याम्
(घ) पपात                    (4) कवचधारी
(ङ) भुवि                      (5) शीघ्रम्
(च) पतग:सत्तमः            (6) रथविहीनः
उत्तर―(क) कवची          (1) कवचधारी
(ख) आशु                     (2) शीघ्रम
(ग) बिरधः                    (3) रथविहीनः
(घ) पपात                     (4) अपतत्
(ङ) भुवि                       (5) पृथिव्याम्
(च) पतसत्तम्                 (6) पक्षिश्रेष्ठः

प्रश्न-6. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा
यथासमक्षं लिखत―
मन्दम्, पुण्यकर्मण, हसन्ती, अनार्य, अनतिक्रम्य, प्रदाय, देवेन्द्रेण, प्रशंसेत्
दक्षिणेन, युवा।
उत्तर―पदानि               विलोमशब्दाः
(क) विलपन्ती              हसन्ती
(ख) आर्य                    अनार्य
(ग) राक्षसेन्द्रेण             देवेन्द्रण
(घ) पापकर्मणा            पुण्यकर्मणा
(ङ) क्षिप्रम्                  मन्दम्
(च) विगर्हयेत              प्रशंसेत्
(छ) वृद्धः                    युवा
(ज) आदाय                 प्रदाय
(झ) वामेन                   दक्षिणेन
(ज) अतिक्रम्य              अनतिक्रम्य

प्रश्न-7.(क) अधोलिखितानि विशेषणपदानि प्रयुज्य संस्कृतवाक्यानि रचयत-
उत्तर―(i) शुभाम् = जटायु रावणं शुभां गिरम् व्याजहार ।
(ii) हतसारथिः = हतसारथिः रावणः भुवि अपतत् ।
(iii) कवची = रावणः कवची आसीत् ।
(iv) खगाधिपः = खगाधिपः जटायुः रावणस्य गात्रे व्रणान् अकरोत् ।
(v) वामेन = रावणः वामेन अङ्केन वैदेहीम् अधारयत् ।

(ख) उदाहरणमनुसृत्य समस्यपदं रचयत―
उत्तर―यथा–त्रयाणां लोकानां समाहारः = त्रिलोकी।
(i) पञ्चानां वटानां समाहारः = पञ्चवटी।
(ii) सप्तानां पदानां समाहारः = सप्तपदी।
(iii) अष्टानां भुजानां समाहारः = अष्टभुजी ।
(iv) चतुर्णा मुखानां समाहारः = चतुर्मुखी ।

                                                    ◆◆

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