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   Jharkhand Board Class 9TH Sanskrit Notes | स्वर्णकाकः  

 JAC Board Solution For Class 9TH Sanskrit Chapter 2


संकेत–पुरा कास्मिंश्चिद् ............. भवनमाससाद।
शब्दार्थ : निर्धना = गरीब, न्यवसत् = रहती थी, दुहिता = पुत्री, विनम्र,
मनोहरा = सुन्दर, आकर्षक, स्थाल्याम् = थाली में, तण्डुलान् = चावलों को,
आदिदेश = आज्ञा दी, खगेभ्यः = पक्षियों से, किञ्चित्कालादनन्तरम् = थोड़ी देर के
बाद, विचित्रः = अनोखा, उपाजगाम = पास आया, समुड्डीय = उड़कर, एतादृशः
= ऐसा, स्वर्णपक्ष : = सोने के पंख वाला, रजतंचञ्चु = चाँदी की चोंच वाला,
स्वर्णकाकः = सोने का कौआ, खादन्तम् = खाता हुआ। हसन्तम् = हँसता हुआ,
विलोक्य = देखकर, रोदितुम् = रोना, आरब्धा = आरम्भ कर दिया, निवारयन्ती = रोकती
हुई, प्रार्थयत् = प्रार्थना की, मा भक्षय = मत खाओ, मदीया = मेरी, मा शुचः = दुःख
मत करो, प्राग् = पहले, सूर्योदयात् = सूर्योदय से, बहिः = बाहर, प्रोवाच = कहा,
पिप्लवृक्षः = पीपल का पेड़, प्रहर्षिता = प्रसन्न, निद्रामपि न लेभे = नींद भी नहीं
आई, उपस्थिता = पहुँच गई, आश्चर्यचकिता = हैरान, आश्चर्यचकित, सजाता = हो
गई, स्वर्णमयः = सोने का, प्रासादः = महल, प्रबुद्धः = जगा, स्वर्णगवाक्षात् = सोने
की खिड़की से, हहो वाले ! = हे बालिका ! सोपानम् = सीढ़ी, आससाद = पहुँची।
हिन्दी अनुवाद―प्राचीन समय में किसी गांव में एक निर्धन वृद्ध स्त्री रहती
थी। उसकी एक बहुत विनम्र तथा सुन्दर पुत्री थी। एक बार उसकी माता ने थाली
में चावल रखकर अपनी पुत्री से कहा-सूर्य की धूप में चावलों की पक्षियों से रक्षा
करो। कुछ समय के बाद एक अनोखा कौआ उड़कर उसके पास आ गया।
    सोने के पंख तथा चाँदी की चाँच वाला ऐसा सोने का कौआ उसने पहले नही
देखा था । उस पक्षी को चावल खाते हुए हंसते हुए देखकर बालिका रोने लगी। उसे
रोकती हुई वह प्रार्थना करने लगी-चावल मत खाओ, मेरी माता बहुत गरीब है। सोने
के पंख वाला कौआ बोला-दुःखी मत हो। तुम सूर्योदय से पहले गाँव के बाहर
पीपल के वृक्ष के पीछे आना । मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूँगा। प्रसन्न बालिका
को नींद भी नहीं आई।
         वह सूर्योदय से पहले ही वहाँ पहुंच गई। वृक्ष के ऊपर देखकर वह हैरान हो
गई कि वहाँ सोने का महल है। वह कौआ सोकर जागा तो उसने सोने की खिड़की
से कहा-अरी बालिके! तुम आ गई। ठहरो, मैं तम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ।
बताओ सोने की, चाँदी की अथवा ताँबे की सीढ़ी में से कौन-सी उतारूँ? लड़की
ने कहा मैं निर्धन माता की बेटी हूँ, मैं ताँबे की सीढ़ी से ही आऊँगी । किन्तु वह
सोने की सीढ़ी से महल में पहुँची।
                    संकेत-चिरकालं..................च सजाता।
शब्दार्थ : चित्रिविचित्रवस्तूनि = विभिन रंगों की वस्तुएँ, सन्जितानि = तैयार
सजी हुई, दृष्टवा = देखकर, विस्मयं = हैरान हो गई, प्राह = कहा, श्रान्ताम = थकी
हुई, लघु प्रातराशम् = हल्का नाश्ता, ब्याजहार = बोली, पर्यवेषितम् = परोसा
एताहक = ऐसा, स्वादु = स्वादिष्ट, अद्यावधि = आज तक, न खादितवती = नही
खाया, बूते = कहने लगा, सर्वदा = हमेशा, एकाकिनी = अकेली, कक्षाभ्यन्तरात् = कमरे
से, तिम्रः मञ्जूषाः = तीन बक्से, निस्सार्य = बाहर लाकर, यथेच्छम् = इच्छानुसार,
लघुतमाम् = सबसे छोटी, प्रगृह्य = लेकर, इयदेव = इतना ही है, समुद्घाटिता = खोला
महार्हाणि = बहुमूल्य, हीरकाणि = हीरों को, धनिका = धनी, तदिनात् = उस दिन
से, सञ्जाता = बन गई।
         हिन्दी अनुवाद―महल में विभिन्न रंगों से सजी हुई वस्तुओं को बहुत समय
(देर) तक देखकर वह हैरान हो गई। थकी हुई उस बालिका को देखकर कौए ने
कहा-पहले थोड़ा नाश्ता कर लो-बताओ तुम सोने की थाली में भोजन करोगी, चाँदी
की थाली में या फिर ताँबे की थाली में? बालिका ने कहा-मैं निर्धन ताँबे की थाली
में ही भोजन करूंगी। वह बालिका ने ऐसा स्वादिष्ट भोजन आज तक नहीं खाया
था। कौआ कहने लगा-हे बालिके! मैं चाहता हूँ कि तुम सदा यहीं रहो किन्तु
तुम्हारी माता अकेली है, अतः तुम शीघ्र अपने घर जाओ।
        ऐसा कहकर कमरे में से तीन सन्दूक निकालकर कौआ उससे बोला-हे
बालिके । इच्छानुसार एक सन्दूक ले लो। सबसे छोटी सन्दूक लेकर बालिका ने
कहा-इतना ही है-मेरे चावलों का मूल्य । घर आकर उसने सन्दूक खोली । उसमें
बहुमूल्य हीरों को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई तथा उस दिन से वह धनी बन गई।
                    संकेत-तस्मिन्नेव ग्रामे...............पर्यत्यजत् ।
शब्दार्थ : अपरा = दूसरी, अन्य, लुब्धा = लालची, ईर्ष्यया = ईर्ष्या
से, रहस्यम् = रहस्य, अभिज्ञातवती = जान लिया, स्वर्णपक्षः = सोने के पंखों वाला,
भक्षयन् = खाते हुए, अकारयत् = बुलाया, निर्भसंयन्ती = निन्दा करती हुई, भो
नीचकाक! = हे नीच कौए। उत्तारयामि = मैं उतारता हूँ नीचे, गर्वितया = घमण्ड
से, प्रायच्छत् = दिया, प्रतिनिवृत्तिकाले = वापिस लौटते समय, तत्पुरः = भयंक्ङर
विलोकितः = देखा गया, पर्यत्यजत् = त्याग दिया।
            हिन्दी अनुवाद―उसी गाँव में एक अन्य लालची वृद्ध स्त्री रहती थी। उसकी
भी एक पुत्री थी। ईष्या से उसने उस स्वर्ण कौए का रहस्य जान लिया। सूर्य की
धूप में चावल रखकर उसने भी अपनी पुत्री को उनकी रक्षा का काम सौंप दिया।
उसी प्रकार सोने के पंख वाले कौए ने चावल खाते हुए उसे वहीं बुलाया। प्रात: वहाँ
जाकर कौए को निन्दा करते हुए उसने कहा-हे नीच कौए। मैं आ गई हूँ, मुझे
चावलों का मूल्य दो। कौए ने कहा मैं तुम्हारे लिए सीदी नीचे उतारता हूँ, तो बताओ
सोने की, चाँदी की या ताँबे की कौन-सी उतारूँ? घमण्डी बालिका ने कहा मैं सोने
की सीढ़ी से आऊँगी, किन्तु स्वर्णिम कौए ने उसको ताँबे की सीढ़ी ही दी। उसने
भोजन भी उसे ताम्रपात्र में ही कराया।
         लौटते समय स्वर्णिम कौए ने कमरे के अन्दर से तीन पेटियाँ उसके सामने
रखीं। उस लोभी लड़की ने सबसे बड़ी पेटी ले ली। घर आकर उत्सुकतावश जैसे
ही उसने उस पेटी को खोला उसमें भयंकर काला साँप देखा । लालची लड़की को
लालच का फल मिल गया। उसके बाद उसने लोभ त्याग दिया।

                                           अभ्यासः

1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत―
(क) निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता कीदृशी आसीत् ?
उत्तर―निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता विनम्रा मनोदशा आसीत् ।

(ख) बालिकया पूर्व किं न दृष्टम् आसीत् ?
उत्तर―बालिकया पर्व स्वर्णकाकः न दृष्टः आसीत् ।

(ग) रुदन्ती बालिका काकः कथम् आश्वासयत् ?
उत्तर―'मा शुचः, अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि'-इति कथयित्वा रुदन्ती
बालिका काकः आश्वासयत् ।

(घ) बालिका किं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता?
उत्तर―स्वर्णमयं प्रासादं दृष्ट्वा बालिका आश्चर्यचकित जाता।

(ङ) बालिका केन सोपानेन स्वर्णभवनम् आससाद ?
उत्तर―बालिका स्वर्णसोपानेन स्वर्णभवनम् आससाद ।

(च) सा ताम्रस्थाली चयनाय किं ददाति ?
उत्तर―'अहं निर्धना ताम्रस्थाल्यामेन भोजनं करिष्यामि'-ताम्रस्थली चयनाय सा
इदं तर्कं ददाति।

(छ) गर्विता बालिका कीदृशं सोपानम् अचायत् कीदृशं च प्राप्नोत् ?
उत्तर―गर्विता बालिका स्वर्णमयं सोपानम् अचायत् परं सा ताम्रमयं सोपानमेव
प्राप्नोत् ।

2. अधोलिखितानां शब्दानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत―
उत्तर―(i) पाश्चात्      = पूर्वम्
(ii) हसितुम्              = रोदितुम्
(iii) अधः                 = उपरि
(iv) श्वेतः                 = कृष्णः
(v) सूर्यास्त              = सूर्योदयः
(vi) सुप्तः                = प्रबुद्धः

(ख) सन्धि कुरुद―
उत्तर― (i)         नि+अवसत्         =    न्यवसत्
(ii) सूर्य + उदय:  = सूर्योदयः
(iii) वृक्षस्य+ उपरि = वृक्षस्योपरि
(iv) हि+अकारयत्  =  ह्यकारयत्
(v) च+एकाकिनी   = चैकाकिनी
(vi) इति + उक्त्वा  = इत्युक्त्वा
(vii) प्रति + अवदत् = प्रत्युवदत्
(viii) प्र+उक्तम् = प्रोक्तम्
(ix) तत्र+एव = अत्रैव
(x) तत्र+उपस्थिता = तत्रोपस्थिता
(xi) यथा + इच्छम् = यथेच्छम्

3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्नानिर्माणं कुरुत―
(क) ग्रामे निर्धना स्त्री अवसत् ।
उत्तर―ग्रामे का अवसत् ?

(ख) स्वर्णकार्क निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत् ।
उत्तर―कं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत् ?

(ग) सूर्योदयात पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता ।
उत्तर―कस्मात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता?

(घ) बालिका निर्धनमातः दुहिता आसीत् ।
उत्तर―बालिका कस्याः दुहिता आसीत् ?

(ङ) लुब्धा वृद्धा स्वर्णकाकस्य रहस्यमभिज्ञातवती ।
उत्तर―लुब्धा वृद्धा कस्य रहस्यमभिज्ञातवती?

4. प्रकृति-प्रत्यय-संयोगं कुरुत―
उत्तर― (क) हस् + शत् = हसन्।
(ख) भक्ष् + शत् = भक्षयन् ।
(ग) वि + लोकृ + ल्यप् = विलोक्य ।
(घ) नि+क्षिप् + ल्यप = निक्षिप्य ।
(ङ) आ + गम् + ल्यप् = आगम्य ।
(च) दृश् + कत्वा = दृष्ट्वा ।
(छ) शी + क्त्वा = शायित्वा।
(ज) वृद्ध + टाप = वृद्धा।
(झ) सुत + ताट् = सुता।
(ज) जघु+तमप् = लघुतम् ।

5. प्रकृति-प्रत्यय-विभार्ग कुरुत―
उत्तर―
                             धातु/शब्द               प्रत्यय
(क) हसन्तम्      =    हस् धातु                 शतृ।
(ख) रोदितुम्      =    रुद् धातु                तुमुन ।
(ग) वृद्धा           =    वृद्ध शब्द               टाप् ।
(घ) भक्षयन्       =    भक्षु धातु               शतृ।
(ङ) दृष्ट्वा         =    दृश                       क्त्वा।
(च) विलोक्य      =    वि+लोकृ धातु + ल्यप् ।
(छ) निक्षिप्य       =    नि+क्षिप् धातु + ल्यप् ।
(ज) आगत्य       =    आ + गम् धातु + ल्यप् ।
(झ) शयित्वा       =    शी धातु + क्त्वा ।
(ज) सुता            =    सत शब्द +टाप्।
(ट) लघुतमम्       =    लघु शब्द + तमप् प्रत्यय ।

6. अधोलिखितानि कथनानि कः/का, कं काम् च कथयति―
कथकानि                                          क:/का                कं/काम्
(क) पूर्वं प्रातराश: क्रियाताम्।               स्वर्णकाकः।          विनम्रां बालिकाम्
(ख) सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष      प्रथमा माता         प्रथमां बालिकाम्
(ग) तण्डुलान् मा भक्षय                       प्रथमा              बालिकास्वर्णकाकम्
(घ) अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि      स्वर्णकाकः            प्रथमां बालिकाम्
(ङ) भो नीचकाक! अहमागता, मह्य     द्वितीया              बालिकास्वर्णकाकम्
तण्डुलमूल्यं प्रय्च्छ

7. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकगतेषु पदेषु पञ्चमीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा
रिक्तस्थानानि पूरयत―
यथां―मूषकः विलाद् बहिः निर्गच्छति । (बिल)
उत्तर―(क) जनः ग्रामाद् बहिः आगच्छति । (ग्राम)
(ख) नद्यः पर्वताद् निस्सरन्ति । (पर्वत)
(ग) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति । (वृक्ष)
(घ) बालकः सिंहात् बिभेति । (सिंह)
(ङ) ईश्वरः क्लेशात् त्रायते । (क्लेश)
(च) प्रभुः भक्तं पापत् निवारयति । (पाप)

                                            ◆◆

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