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    Jharkhand Board Class 9TH History Notes | पहनावे का सामाजिक इतिहास :  

    JAC Board Solution For Class 9TH (Social Science) History Chapter 8


1. लोगों की पहचान की परिभाषा दें।
उत्तर― समाज के कुछ नियम होते हैं जिनके अनुसार व्यक्ति, महिला तथा बच्चे
अपने वस्त्र पहनते हैं अथवा सामाजिक वर्ग अथवा समूह अपने को प्रस्तुत
करते हैं। यही लोगों की पहचान है। ड्रेस नियम के आधार पर ही अपने
आपको दिखाना चाहते हैं तथा दूसरों को देखना चाहते हैं। इन्हीं नियमों ने
हमारे विचार बनायें।

2. किन परिवर्तनों ने अंग्रेजों को अपनी परम्परागत पोशाक में परिवर्तन
करने को उकसाया?
उत्तर― निम्नांकित परिवर्तनों ने अंग्रेजों को अपनी परम्परागत पोशाक में परिवर्तन
को उकसाया।
(क) नया सामान और नई तकनीक।
(ख) दो विश्वयुद्धों का प्रभाव।
(ग) महिलाओं के काम करने की नई परिस्थितियाँ।

3. 18वीं शताब्दी से पहले यूरोप में लोगों के कपड़े किन मापदण्डों को
लेकर तय किये जाते थे?
उत्तर― 18वीं शताब्दी से पहले यूरोप मे पहनावें की शैलियाँ सामाजिक हैसियत
से तय होती थीं पोशाक से ही पता चल जाता था कि आप किस वर्ग के
हैं, मर्द हैं या औरत।

4. सौ कुलौत्स का क्या अर्थ है?
उत्तर― यह फ्रांसीसी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है बिना घुटने वाले।
जैकोबिन क्लब के सदस्यों ने यह नाम अपना लिया ताकि वे अपने-आपको
कुलीन वर्ग से अलग रख सकें जो घुटने तक वस्त्र पहनते थे।

5. फ्रांसीसी लोगों के तीन लोकप्रिय रंग कौन-से थे?
उत्तर― नीला, सफेद और लाल जो कि फ्रांसीसी तिरंगे के रंग थे।

6. कॉर्सेट से क्या तात्पर्य है?
उत्तर― यह गाउन के नीचे शरीर को कसने वाली पोशाक थी जो फ्रांसीसी
महिलाएँ इसलिए पहनती थीं ताकि चे पतली कमर वाली नजर आयें।

7. 19वीं शताब्दी में अंग्रेज महिलाओं ने तंग वस्त्र (जैसे कॉर्सेट) पहनने
का क्यों विरोध किया?
उत्तर― क्योंक वे जान गई थीं कि तंग वस्त्र पहनने से युवतियों में कैसी-कैसी
बीमारियाँ और विरूपताएँ आ जाती हैं।

8. लम्बे स्कर्ट (घाघरा, लहँगा आदि) के विरुद्ध क्यों आंदोलन चला?
उत्तर―क्योंकि यह कहा जाने लगा कि इससे एक तो काम करना कठिन हो जाता
है और दूसरे ऐसे लम्बे कपड़े अपने साथ फर्श का कूड़ा बटोरते हुए चले
जाते हैं।

9. कब इंग्लैंड में लम्बे और शरीर को कस कर रखने वालो वस्त्रों का
पहनावा छोड़ दिया गया?
उत्तर― 1870 के दशक में।

10. कौन-से भारतीय लोग थे जिन्होंने सबसे पहले पश्चिम ढंग के कपड़ों
को अपनाया?
उत्तर― पारसियों ने क्योंकि वे ही सबसे पहले अंग्रेजों से घुल-मिल गए थे।

11. कुछ भारतीयों ने पश्चिमी और भारतीय ढंग की पोशाक की आपसी
उलझन को कैसे हल किया?
उत्तर― उन्होंने दफ्तर जाते समय तो पश्चिमी कपड़े पहनना शुरू कर दिया परन्तु
घर में आकर उन्होंने भारतीय कपड़े पहनना शुरू रखा।

12. किन दो पोशाकों ने भारतीयों और अंग्रेजों में मतभेद और उलझने पैदा
कर दीं?
उत्तर― पहले तो सिर पर पहनने वाली पगड़ी और टोप ने उलझन पैदा कर दी और
दूसरे जूतों के प्रयोग ने।

13. पगड़ी और हैट के प्रयोग ने कैसी गलतफहमी पैदा की?
उत्तर―अंग्रेज के लिये हैट केवल सिर को गर्म से बचाने का साधन था। परन्तु
भारतीयों के लिए पगड़ी धूप से सिर को बचाने के साथ-साथ सम्मान का
भी प्रतीक थी। किसी बड़े का आदर करने के लिए अंग्रेज हैट उतार देते
थे परन्तु भारतीय कभी भी पगड़ी को नहीं उतारते थे। इसलिए अंग्रेजों ने
भारतीयों को जब पगड़ी उतारने के लिये विवश किया तो उलझन पैदा हो
गई ऐसी गलतफहमी सांस्कृतिक भिन्नता के कारण पैदा हुई।

14. जूतों को लेकर मतभेद क्यों हुआ?
उत्तर― 1830 से पहले अंग्रेज यदि किसी भारतीय राजा के दरबार में जाते थे तो
वे जूते उतार कर जाते थे। परन्तु जब वे स्वयं शासक बन गए तो उन्होंने
भारतीयों को भी ऐसा करने को कहा, पर भारतीयों ने ऐसा करने से इंकार
कर दिया। उनका कहना था कि जूते उतारने या न उतारने से किसी का
सम्मान या अपमान नहीं होता।

15. किस भारतीय ने सत्र न्यायाधीश की अदालत में जूते उतारने से इंकार
कर दिया?
उत्तर― मनोकजी कोवासजी एंटी ने जो स्वयं सूरत की अदालत में असेसर या
लगान आंकने वाले एक अधिकारी थे।

16. स्वदेशी आंदोलन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर― यह आंदोलन जो भारत में 1905 ई० में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध शुरू
हुआ स्वदेशी आंदोलन कहलाता है। इस अदिोलन द्वारा भारतीयों ने विदेशी
माल का बहिष्कार करना और अपने देश के बने हुए माल, विशेषकर
अपने देश में बनी खादी का प्रयोग करना शुरू कर दिया।

17. किस व्यक्ति ने कपड़े (खादी) का प्रयोग ब्रिटिश राज के खिलाफ
प्रतीकात्मक लड़ाई के रूप में किया?
उत्तर― महात्मा गाँधी ने।

18. महात्मा गाँधी ने एक छोटी धोती और एक चादर का प्रयोग करना क्यों
शुरू किया?
उत्तर― उनका कहना था कि भारतीय गरीब किसान एक धोती और एक चादर
से अधिक नहीं पहन सकता इसलिए वे भी इसी वेशभूषा में रहेंगे।

19. फ्रांस की क्रांति (1789 ई०) से पहले फ्रांस के कुलीन घरानों की
औरतें किस प्रकार की वस्त्र पहनती थीं?
उत्तर― वे बड़े भव्य और विस्तृत प्रकार के कपड़े पहनती थीं, सिर पर शानदार
फैलट, फीतों और किनारियों से सुज्जित पोशाक और गाऊन के भीतर
कॉस्ट ताकि उनकी कमर सीमित और पतली नजर आए।

20. फ्रांस की क्रांति (1789 ) से पहले फ्रांस के कुलीन घराने के पुरुषों
की कैसी पोशाक हुआ करती थी?
उत्तर― फ्रांस की क्रांति (1789) से पहले फ्रांस के कुलीन घराने के पुरुष सैनिकों
वाला ओवरकोट, घुटन्ना, रेशमी स्टॉकिंग और ऊँची एड़ी वाले जूते पहनते
थे।

21. विभिन्न वर्गों और तबकों के लोग अलग-अलग तरह के कपड़े क्यों
पहनते हैं?
उत्तर― विभिन्न वर्गों और तबकों के लोग अलग-अलग तरह के कपड़े पहनते हैं
क्योंकि इनसे उनकी पहचान बनती है, इनके द्वारा वे अपने-आपको
परिभाषित करते हैं और इन्हीं से सुन्दरता, शर्म व मर्यादा की कसौटियाँ
बनती हैं।

22. किन परिवर्तनों ने यह सम्भव बनाया कि ब्रिटेन वाले अपनी परम्परागत
पोशाक में तबदीली कर सकें?
उत्तर― निम्नांकित परिवर्तनों ने यह सम्भव बनाया कि ब्रिटेन वाले अपनी परम्परागत
पोशाक में तब्दीली कर सकें–
(क) नया सामान और नई तकनीक
(ख) दो विश्वयुद्धों का प्रभाव
(ग) महिलाओं की काम करने की नई परिस्थितियाँ

23. विश्व युद्ध में महिलाओं की पोशाक पर कैसे प्रभाव पड़ा?
उत्तर― विश्व युद्धों (1914-1918 और 1939-1945) के समय अनेक
महिलाओं को कारखानों में काम करना पड़ा जहाँ दोनों लम्बे, ढीले-ढाले
और तंग कपड़े काम में रुकावट डालते थे इसलिए ऐसे वस्त्रों को त्याग
कर महिलाओं ने ऐसे वस्त्र पहनने शुरू कर दिये जो सादा, आरामदेह दोनों
होते थे और उन्हें चुस्त रख सकते थे।

                                  लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. फ्रांस के सम्प्चुअरी कानून क्या थे? इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर― लगभग 1294 से लेकर 1789 ई० तक फ्रांस के लोगों से ऐसी आशा
की जाती थी कि वे पोशाक के विषय में प्रचलित विशेष कानूनों का पालन करें,
जिन्हें सम्प्चुअरी कानून कहा जाता था। मध्यकाल में फ्रांस के लोगों का जीवन
काफी नियंत्रित था और वैसे ही उनके कपड़े। न केवल यह निश्चित था कि
किस-किस प्रकार के कपड़ने पहनने हैं, वरन यह भी निश्चित था कि उन्हें बनाने
में किस प्रकार की सामग्री का प्रयास करना चाहिए।
            वास्तव में इन सम्प्चुअरी कानूनों का उद्देश्य था समाज के निचले तबके
के लोगों के व्यवहार पर नियंत्रण रखना। इन कानूनों द्वारा उन्हें विशेष प्रकार के
कपड़े पहनने, विशेष प्रकार के व्यंजन खाने, विशेष प्रकार के पेय (मुख्यतः शराब)
पीने तथा विशेष प्रकार के इलाकों में जाकर शिकार खेलने की मनाही थी। केवल
शाही खानदान और कुलीन वर्ग के लोग ही एमाइन फर, रेशम मखमल या जरी
के बने कपड़े पहन सकते थे। कुलीनों से जुड़े कपड़ों का प्रयोग करने की
जनसाधारण पर पाबंदी थी।

2. आधुनिक युग में पोशाक नियमों पर महिलाओं की प्रतिक्रिया संक्षेप
में लिखें।
उत्तर― आधुनिक युग में पोशाक नियमों पर महिलाओं की प्रतिक्रिया-
(क) अमेरिका में इंग्लैंड की महिलाओं की प्रतिक्रिया देखने को मिली
जो उसी तरह की थी जैसे श्वेत विस्थापित पूर्वी तट के लोगों में थी। महिलाओं
के वस्त्रों की आलोचना की गई। लंबे स्कर्ट धूल को साफ करते थे जो बीमारी
का कारण थी।

(ख) अमेरिका की महिलाओं ने लंबे स्कर्ट की आलोचना की। यह
महिलाओं को काम करने में बाधा पहुँचाती थी। ये बातें उनके सामाजिक, आर्थिक
सुरक्षा के विपरीत थी।

(ग) अमेरिका की महिलाओं को विश्वास था कि पोशाक में सुधार
निश्चित तौर पर महिलाओं की स्थिति बदल देंगे और महिला काम कर सकती हैं
तथा धन कमा सकती हैं।

(घ) 1870 के दशकों तक राष्ट्रीय महिला एसोसिएशन ने पोशाक
सुधार के लिए आंदोलन किया। उनकी दलील थी कि-
(i) पोशाक सादा हो,
(ii) स्कर्ट छोटी हो और
(i) अंगिया से मुक्ति मिले।
अटलांटिक के दोनों ओर पोशाक सुधार के लिए आंदोलन हुआ था।

3. यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दो
अंतर बताएँ।
उत्तर―(क) यूरोप में यहाँ तक कि फ्रांसीसी क्रांति के बाद भी गरीब लोग धनी
लोगों के समान वस्त्र नहीं पहन सकते थे और न ही भोजन कर सकते थे।
        भारत में सामाजिक स्तर, आय, प्रादेशिकवाद, जाति, परंपराएँ आदि
शक्तिशाली रहें जहाँ पोशाक-संहिता का संबंध था।

(ख) यूरोपीय देशों में पहनावे के फैशन ने पुरुषों और महिलाओं के अंतर
पर व्यापक बल दिया। विक्टोरियन इंग्लैंड में महिलाएं बचपन से ही कर्तव्यपरायण
और आज्ञाकारी होती थीं। आदर्श महिला वह होती है जो कष्ट सहन कर सबके
जबकि पुरुषों से गंभीर, मजबूत, स्वतंत्रता और आक्रामक होने की आशा की जाती
है।
               पहनावे का पश्चिमी ढंग कुछ लोगों में आकर्षक सिद्ध हुआ, विशेषकर
जिन्होंने धर्म के रूप में ईसाई धर्म को अपना लिया। यहाँ भी महिलाओं की अपेक्षा
पुरुष नये इस स्टज्ञइल से अधिक प्रभावित हुए।
        रूढ़िवादी भारतीय पुरुष तथा महिलाएँ, हिंदू तथा मुसलमान अपने पहनावे
में परिवर्तन नहीं करना चाहते थे। वे अपनी पहचान नहीं खोना चाहते थे।

4. विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि "महात्मा गांधी राजद्रोही मिडिल टेम्पल
वकील" से ज्यादा कुछ नहीं हैं और अधनंगे फकीर का दिखावा कर रहे हैं।
चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गांधी की पोशाक की
प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर― महात्मा गांधी ने वस्त्र संबंधी कई प्रयोग किये। यथा- कमीज के साथ
धोती या पायजामा, लंदन के पश्चिमी सूट, डर्बन में लुंगी-कुर्ता, काठियाबाड़ी
वेश-भूषा आदि। 1921 ई० उन्होंने धोती धारण की जिसे उन्होंने आजीवन पहना।
1931 ई० में गोलमेज कॉन्फ्रेंस में भी वे बिना कुर्ते की केवल छोटी धोती पहन
कर गये थे। गांधीजी की ये पोशाक परिवर्तन भारतीय गरीब जनता का पोशाक
के प्रतीक थे। आगे चलकर यह राष्ट्र भक्ति का पर्याय बन गया। गांधीजी के इन
पोशाक-प्रयोगों का भारत की राजनीति पर व्यापक प्रभाव पड़ा। इससे चिढ़कर
चर्चिल ने गांधीजी के खिलाफ इस प्रकार की टिप्पणी की।

5. "महिलाओं की पोशाक में परिवर्तन दो विश्व युद्धों का परिणाम है।"
इस कथन का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर― (क) पहले विश्व युद्ध में वस्त्र छोटे होते गए। 1917 तक 7 लाख
महिलाएँ हथियारों के कारखानों में नौकरी करती थीं वे काम करने की पोशाक
पहनती थीं ब्लाउज तथा पायजामा। बाद में खाकी कोट तथा टोपी पहनी जाने लगी।

(ख) युद्ध के समय महिलाओं के कपड़ों के चमकीले रंग उड़ जाते थे।
फिर हल्क रंग पहने जाने लगे। इस तरह महिलाओं के वस्त्र सादा और हल्के बन
गए, स्कर्ट छोटी हो गई।

6. समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गाँधीजी का सपना भारतीय जनता
के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा?
उत्तर― महात्मा गाँधी का स्वप्न था कि देशवासी खादी पहनें। उन्होंने महसूस किया
कि खादी वर्ग-भेद, धार्मिक भेदों को कम करेगी। लेकिन क्या उनके कदम पर
चलना सबके लिए संभव था! यहाँ कुछ उदाहरण हैं जो महात्मा गाँधी के खादी
के स्वप्न के विषय में प्रतिक्रिया दिखाते हैं-
(क) राष्ट्रवादी जैसे मोतीलाल नेहरू ने अपने महंगे वस्त्र छोड़ दिए जो
पश्चिमी पहचान के थे और भारतीय धोती-कुर्ता को अपनाया।

(ख) कुछ दलित नेताओं ने महात्मा गाँधी का अनुसरण नहीं किया।
इसमें संदह नहीं कि बहुत से दलित नेताओं ने पश्चिमी ढंग को अपनाया। उदाहरण
के लिए डॉ० भीमराव अम्बेडकर ने पश्चिमी वसा (सूट) कभी भी नहीं छोड़े।

(ग) कुछ लोगों ने खादी कभी भी नहीं पहनी क्योंकि यह महंगी थी।
एक महाराष्ट्र की महिला ने महात्मा गाँधी को लिखा कि हम गरीब लोग खादी
जो इतनी महंगी है को कैसे अपना सकते हैं।

(घ) सरोजिनी नायडू और कमला नेहरू जैसे राष्ट्रवादी महिलाओं ने भी
हाथ से बुने मोटे कपड़े के स्थान पर रंगीन और डिजाइनदार कपड़ों का प्रयोग जारी
रखा।


                                        दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावे के
क्या कारण थे?
उत्तर― अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों
के कारण-18वीं शताब्दी से पहले यूरोप के अधिकतर लोग क्षेत्रीय वेशभूषा धारण
करते थे और उनके कपड़ों का रंग-रूप अनेक इलाके में उपलब्ध कपड़े की किस्म
और कीमत से प्रायः तय होता था। पहनावे की शैलियाँ भी स्थानीय समाज के लोगों
की सामाजिक हैसियत से होती थीं परन्तु 18वीं शताब्दी में उनके कारणों से
पोशाक की सामग्री और शैलियों में निरन्तर परिवर्तन आता चला गया। इस बदलाव
के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार थे।

                     (क) इस बदलाव का पहला कारण था विश्व में उपनिवेशवाद का
विस्तार और यूरोपीय शक्तियों द्वारा विश्व के अनेक देशों पर अधिकार करना। नए
स्थानों और नए लोगों से मिलने के कारण दोनों जीतने वाले और बस्तियों के लोगों
की पोशाक में बदलाव आना स्वाभविक ही है।

          (ख) दूसरा कारण जनवादियों क्रांतियों की सफलता के कारण प्रजातंत्रीय
विचारधारा का विकास था। जिसने ऊंच-नीच का भेदभाव मिटा दिया। अब न कोई
लार्ड था। न कोई उसका दास, अब सब बराबर थे। इस प्रकार पोशाक पर लगे
सभी प्रकार के अंकुश स्वयं समाप्त होते चले गए। हर एक देश में एक राष्ट्रीय
पहनावा लोकप्रिय होने लगा।

             (ग) औद्योगिक क्रांति के कारण नए-नए रंगों और डिजाइनों के कपड़े
तैयार होने लगे जिसके कारण दोनों पोशाक की शैलियाँ और सामग्री में निरन्तर
परिवर्तन आता चला गया।

2. उन्नीसवीं सदी के भारत में औरतें परंपरागत कपड़े क्यों पहनती थीं?
जबकि पुरुष पश्चिमी कपड़ने पहनने लगे थे? इससे समाज में औरतों की
स्थिति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर― इस बात में कोई संदेह नहीं कि 19वीं सदी के भरत में औरतें परम्परागत
कपड़े पहनती रही जबकि पुरूष पश्चिमी कपड़ने पहनने लगे थे। इस अंतर के कुछ
मुख्य कारण इस प्रकार थे―
(क) 19वीं सदी में, अधिकतर औरतें घर की चारदीवारी तक ही सुरक्षित
थीं इसलिए वे अपनी परंपरागत पोशक ही घर में पहनती रहीं।

(ख) जात-पात के बंधनों ने भी उन्हें अपनी पोशाक को बदलने से रोका।

(ग) भारतीय महिलाओं को प्रायः किसी दफ्तर में नहीं जाना होता था
इसीलिये दो प्रकार के कपड़ने बनवाने की उन्होने कोई आवश्यकता महसूस नहीं
की। चाहे उनके पुरुषों को दफ्तर के लिये अलग और घर के लिये अलग कपड़े
बनवा रखे थे।

(ङ) भारतीय महिलाएँ अपनी नि:स्वार्थ सेवा और कुर्बानी के लिए प्रसिद्ध
हैं इसलिए उन्होंने दो प्रकार की पोशाकों पर व्यय करना उचित नहीं समझा जो
अवश्य ही उनके घरेलू बजट को उलट देता।
      महिलाओं के मुकाबले पुरुष अवश्य पचिमी कपड़ने पहनने लगे थे। अंग्रेज
तब तक भारत के स्वामी बन चुके थे। इसलिए भारतीयों ने उन्हें प्रसन करने के
लिये पश्चिमी काड़ने पहनने शुरू कर दिये कुछ के यूरोपीय से व्यापारिक सम्बन्ध
थे। जिन्हें बेहतर बनाए रखने के लिये उनके जैसे वस्त्र पहनना आवश्यक हो गया।
पारसी लोग पहले भारतीय थे जिन्होंने सबसे पहले पश्चिमी ढंग के कपड़े पहनना
शुरू कर दिया क्योंकि उनके अनुसार नए कपड़े आधुनिकता और प्रगति के प्रतीक
थे। कुछ लोग जो ईसाई बन गए थे उन्होंने भी सहर्ष पश्चिमी कपड़े अपना लिए।
कुछ लोग ने पचिमी वेशभूषा से पैदा होने वाली उलझन को अपने ही ढंग से हल
कर लिया। उन्होंने दो प्रकार के कपड़े तैयार करवा लिये, दफ्तर जाते समय पश्चिमी
ढंग के कपड़े और घर के लिए भारतीय ढंग के कपड़े।

3. भारतीय वेशभूषा पर अंग्रेजों की क्या प्रतिक्रिया हुई? और हिंदुस्तानियों
का अंग्रेजी रवैये के प्रति क्या रुख रहा?
उत्तर― अलग-अलग संस्कृतियों में किसी भी परिधान के अक्सर भिन्न-भिन्न अर्थ
लगाए जाते हैं। इससे कई मौकों पर गलतफहमी पैदा होती है, टकराव होते हैं।
पहनावे में ब्रिटिश राज के दौरान आए बदलाव इसी टकराव का नतीजा थे।
          जरा पगड़ी और टोप (हैट) को ही लें। जब शुरू-शुरू में यूरोपीय व्यापारी
भारत आने लगे तो उनकी पहचान 'हैटवालों' की थी जबकि हिंदुस्तानियों की
'पग्गड़वालों' की। सिरपर धारण की जाने वाली ये दो चीजें केवल देखने में भिन्न
थीं, बल्कि उनके मायने भी जुदा-जुदा थे। भारत में पगड़ी, धूप व गर्मी से तो बचाव
करती ही थी, सम्मान का प्रतीक भी थी जसे जब चाहे उतारा नहीं जा सकता था।
पश्चिमी रिवाज तो यह था कि जिन्हें आदर देना हो सिर्फ उनके सामने हैट उतारा
जजाए। इसे सांस्कृतिक भिन्नता से गलहफहमी पैदा हुई। ब्रिटिश अफसर जब
हिंदुस्तानियों से मिलते और पगड़ी उतारते न पाते तो अपमानित महसूस करते। दूसरी
तरफ बहुतेरे हिंदुस्तानी अपनी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अस्मिता को जताने के लिए
जान-बूझकर पगड़ी पहनते।
        इसी तरह का टकराव जूतों को लेकर हुआ। उन्नीसवीं सदी की शुरूआत
में रिवाज था कि फिरंगी अफसर भारतीय शिष्टाचार का पालन करते हुए देसी
राजाओं व नवाबों के दरबार में जूते उतारकर जाएंगे। कुछेक अंग्रेजी अधिकारी
भारतीय वेशभूषा भी धारण करते थे। लेकिन 1830 में, सरकारी समारोहों पर उन्हें
हिंदुस्तानी लिबास पहनकर जाने से मना कर दिया गया, ताकि गोरे मालिकों की
सांस्कृतिक नाक ऊँची बनी रहे।

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