Jharkhand Board Class 9TH History Notes | आधुनिक विश्व में चरवाहे :
JAC Board Solution For Class 9TH (Social Science) History Chapter 5
1. बुग्याल का क्या अर्थ है?
उत्तर― बुग्यल ऊँचे पर्वतो में 12000 फुट की ऊंचाई पर स्थित चारागाह है।
उदाहरण के लिए पूर्वी गढ़वाल के बुग्याल। यहाँ प्रायः भेड़ चराई जाती
हैं।
2. बुग्याल के प्रमुख लक्षणों को लिखें।
उत्तर― (क) बुग्याल सर्दियों में बर्फ से ढके रहते हैं तथा अप्रैल के बाद वहाँ
जीवन दिखाई देता है।
(ख) अप्रैल के बाद सारे पर्वतीय क्षेत्र में पास ही घास दिखाई देती है।
(ग) मानसून आने पर ये चारागाह वनस्मति से ढंक जाते हैं तथा जंगली
फूलों की चादर फैल जाती है।
3. चलवासी चरवाहे कौन है?
उत्तर― चलवासी वे लोग हैं जो एक स्थान पर नहीं ठहरते अर्थात् एक स्थान से
दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। भारत के कई भागों में चलवासी चरवाहे
हैं और जो अपनी भेड़ तथा बकरियों के साथ घूमते रहते हैं।
4. जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश-उत्तरांचल के पाँच चलवासी चरवाहों
के नाम लिखें।
उत्तर― (क) गुज्जर बक्करवाल, (ग) गद्दी गड़रिये, (ग) भेटिया,
(घ) शेरपा,(ङ) किन्नौरी।
5. पाँच भौगोलिक भागों के नाम लिखें जहाँ चरवाही कार्य होता है।
उत्तर― (क) पर्वत, (ख) पठार, (ग) मैदान, (घ) मरुस्थल, (ङ) वन।
6. बंजारे कौन थे?
उत्तर― बंजारे चरवाहों का प्रसिद्ध कबीला माना जाता है जो देश के एक
लम्बे-चौड़े भाग जैसे-उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश और
महाराष्ट्र आदि में आम तौर पर पाए जाते थे।
7. घुमंतू किसे कहते हैं?
उत्तर― वे लोग जो अपने निर्वाह के लिये एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते रहते
हैं उन्हें घुमंतू कहा जाता है।
8. एक ऐसे समुदाय का नाम लें जिनके सदस्य आज भी बड़ी मात्रा में
भेड़, बकरियाँ पालने का काम करते हैं।
उत्तर― जम्मू और कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय।
9. गद्दी कौन हैं?
उत्तर― हिमाचल प्रदेश में जो लोग अपने रेवड़ों के साथ पहाड़ों में ऊपर-नीचे घूमते
रहते हैं उन्हें गद्दी चरवाहे कहते हैं।
10. गुज्जर मण्डप किसे कहते हैं?
उत्तर― गुजर चरवाहों के कार्यस्थल को गुज्जर मंडप कहा जाता है जहाँ वे रहते
हैं और दूध एवं घी बेचने का काम करते हैं।
11. भाबर किसे कहा जाता है?
उत्तर― गढ़वाल और कुमाऊँ में निचली पहाड़ियों में शुष्क वनों के क्षेत्रों को भाबर
कहा जाता है।
12. धार क्या होते हैं?
उत्तर― ऊँचे पर्वतों में स्थित चरागाहों को 'धार' कहा जाता है।
13. महाराष्ट्र के एक चरगाह कबीले का नाम लिखें।
उत्तर― धनगर।
14. कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश के तीन चरवाहा कबीलों के नाम लिखें।
उत्तर― गोल्ला, कुरूमा और कुरया आदि।
15. पहाड़ी चरवाहों गतिविधियों को कौन-सा त्रातु चक्र प्रभावित करता
है?
उत्तर― सर्दी-गर्मी।
16. राजस्थान के एक चरवाहा कबीले का नाम लिखें।
उत्तर― राइका।
17. चरवाहा कबीलों के मुख्य व्यवसाय क्या होते हैं?
उत्तर― चरवाहो, व्यापार और कृषि।
18. अफ्रीका के कुछ चरवाहा-कबीलों के नाम लिखें।
उत्तर― (क) बेदुईन्स. (ख) बरबेर्स,
(ग) मासाई.
(घ) सोमाली
(ङ) बोरान,
(च) तुकाना
19. मासाई कौन हैं?
उत्तर― मासाई अफ्रीका का सबसे पुराना चरवाहा कबीला है जो दूध और मांस
पर अपना निर्वाह करता है।
20. सूखा चरवाहों को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर― सूखा चरवाहों का जानी दुश्मन होता है क्योंकि सूखा पड़ने पर उनके पशु
मरने लगते हैं और वे स्वयं अर्श से फर्श तक आ जाते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. परती भूमि नियमावली से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा?
उत्तर― परती भूमि नियमावली― औपनिवशिक अधिकारियों को सभी गैर-कृषि
भूमि अनुपजाऊ लगी। इन पर न तो कृषि की जाती थी और न ही कोई आय होती
थी। यह बेकार बंजर या परती भूमि थी। 19वीं शताब्दी के मध्य बंजर भूमि के
कानून बनाये गए। इन कानूनों के अंतर्गत बंजर भूमि को ले लिया गया तथा उसे
कुछ चुने लोगों को दे दिया गया। इनमें से कुछ गांव के मुखिया थें इनमें से कुछ
भागों में वास्तव में चरागाह भूमि थी। परिणाम यह हुआ कि चरागाह भूमि की कमी
हो गई।
2. वन अधिनियम से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा?
उत्तर― वन अधिनियम― उपनिवेशी शासन के समय बहुत से अधिनियम बनाये
गए। इन कानूनों के द्वारा कुछ वन जो यहुमूल्य व्यापारिक लकड़ी उत्पन्न करते
थे जैसे देवदार या साल, उनको आरक्षित कर दिया गया। इन पर कोई चराई का
काम नहीं किया गया। दूसरे वनों को वर्गीकृत किया गया। इनमें जानवरों को चराने
के कुछ अधिकार दे दिए गए। उपनिवेशी अधिकारी विश्वास करते थे कि चराई
से पौधों की जड़े समाप्त हो जाती हैं।
3. अपराधी जनजाति अधिनियत से चरवाहों के जीवन पर क्या असर
पड़ा?
उत्तर―अपराधी जनजाति अधिनियम―1871 में उपनिवेशी सरकार ने अपराधी
जनजाति कानून पास किया। इस कानून के द्वारा दस्तकारों, व्यापारियों, चरवाहें की
कुछ जातियों की अपराधी जाति में वर्गीकृत किया। उनको जन्म और प्रकृति से ही
अपराधी बताया गया। एक बार यह कानून लागू होने से ये जातियाँ विशेष वर्गीकृत
बस्तियों में रहनी लगी। बिना आज्ञा के उन्हें दूसरे स्थानों पर जाने की आज्ञा नहीं
थी। गाँव की पुलिस भी उन पर लगातार नजर रखती थी। ब्रिटिश अधिकारी उन
पर (चलवासी लोगों पर) संदेह करते थें उपनिवेशी सरकार एक स्थायी जनसंख्या
पर शासन करने की इच्छुक थी।
4. चराई कर अधिनियम से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा?
उत्तर― उपनिवेशी सरकार अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रत्येक संभव संसाधन पर
अपनी नजर रखती थी। इसलिए भूमि पर, नहर के जल पर, नमक पर यहाँ तक
कि जानवरों पर भी कर लगाया गया। चरवाहों को प्रत्येक जानवर पर जिसे वे
चरागाह में चराते थे कर देना पड़ता था। भारत में अधिकतर चरागाहों पर उन्नीसवीं
शताब्दी के मध्य तक कर लगा दिया गया था। प्रति जानवर दर कर बढ़ता गया
तथा कर एकत्र करने की प्रक्रिया तेज होती गई।
1850 और 1880 के दशकों के मध्य कर इकट्ठा करने का अधिकार
नीलाम होने लगा। ये ठेकेदार अधिक से अधिक कर इक्ट्ठा करने लगे तथा अपने
लिए भी लाभ कमाने लगे।
1880 के बाद सरकार चरवाहों से प्रत्यक्ष रूप से कर वसूल करने लगी।
प्रत्येक चरवाहे को एक पास दिया गया। प्रत्येक चरगाह पट्टी में प्रवेश करते समय
चरवाहे को पास दिखाकर उसका कर चुकाना पड़ता था। मवेशियों की संख्या तथा
चुकाए जानेवाला कर पास पर अंकित होता था।
5. किन क्षेत्रों में बंजारे पाये जाते हैं? सामान्यतः वे क्या करते हैं?
उत्तर― बंजारे उत्तर–प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र
के गाँवों में पाये जाते हैं। वे अपने जानवरों के लिए अच्छे चरगाहों की तलाश में
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं तथा हल चलाने वाले जानवरों व अन्य वस्तुओं
को ग्रामीणों को बेचते हैं जिससे अपने लिए चारा और अनाज ले सकें।
वर्णन करें।
6. महाराष्ट्र के धंगर चरवाहा-समुदाय के जीवन के मुख्य लक्षणों का
वर्णन करें।
उत्तर― (क) धंगर चरवाहे महाराष्ट्र के प्रमुख चरवाहा समुदाय हैं। बीसवीं
शताब्दी के प्रारंभ में इनकी संख्या 4,67,000 थी।
(ख) बहुत से धंगर गड़रिये हैं। ये कुछ कम्बल बनाते हैं और कुछ चमड़े
का काम करते हैं।
(ग) ये लोग महाराष्ट्र के मध्य पठार पर मानसून के समय रहते हैं। यहाँ
कम वर्षा होती है।
(घ) मानसून में यह क्षेत्र घास चरने का क्षेत्र बन जाता है।
(ङ) अक्टूबर तक धंगर अपने बाजरे की फसल को काट लेते हैं और
पश्चिम की ओर चल पड़ते हैं। एक महीने में ये लोग कोंकण प्रदेश में पहुँचे हैं।
यहाँ कोंकण के किसान उनका स्वागत करते हैं।
(च) खरीफ की फसल कटने के बाद खेत दूसरी फसल के लिए तैयार
किए जाते हैं।
(छ) धंगर भेड़ों और बकरियों के झुंड खेतों को खाद उपलव्य करातें
हैं तथा फसल के डंठलों को खाते हैं कोंकण के किसान धंगारों को चावल की
आपूर्ति करते हैं, जो मध्य पठार में कम पैदा होता है, जहाँ धंगर रहते हैं।
(ज) मानसून के आरंभ होने पर ये लोग अपने शुष्क पठार की ओर
चलते हैं क्योंकि भेड़ें मानसून दशाएँ सहन नहीं कर सकतीं।
7. राइका कहाँ रहते हैं? उनकी आर्थिक स्थिति और विशेषताएँ लिखें।
उत्तर― राइका राजस्थान के मरुस्थल में रहते हैं–
राइका की आर्थिक स्थिति और विशेषताएँ–
(क) राजस्थान में वर्षा कम होती है इसलिए राइका कृषि रना कठिन
समझते हैं। कोई फसल पैदा नहीं हो पाती। इसलिए ये लोग मिश्रित कार्य करते हैं।
(ख) मानसून के समय बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर राइका
अपने घरों में ही रहते हैं जहाँ चरागाह उपलव्य होते हैं।
(ग) अक्टूबर में जब चरागाह भूमि शुष्क हो जाती है, राइका चारागाह
की खोज में बाहर निकलते हैं।
(घ) राइका का एक समूह मारू कहलाता है जो ऊँट पालता है तथा
दूसरा समूह भेड़ और बकरी चराता है।
(ङ) इस प्रकार राइका का जीवन चरवाहे का जीवन है।
(च) राइकों को अपने आने-जाने के समय की गणना करनी पड़ती है
कि किस समय कहाँ के लिए निकलना है तथा कब कहाँ से वापसी करना है।
वे रास्तों में किसानों से मैत्री करते चलते हैं जिससे उन्हें चराई के लिए खेत मिल
पाते हैं तथा इसके एवज में खेतों को खाद उपलब्ध हो जाती है।
(छ) राइकों का मिश्रित समूह भिन्न कार्य करता है जैसे व्यापार, कृषि
आदि।
8. कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश के चलवासी चरवाहों की प्रमुख विशेषताओं
की व्याख्या करें।
उत्तर― (क) कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मध्य पठार घास और पत्थरों से ढंका
रहता है, जहाँ मवेशी बकरियों तथा भेड़ों का आवास है।
(ख) गोल्ला जानवर चराते हैं और कुरुमा व कुरुबा भेड़-बकरियाँ चराते
हैं व कंबल बुनते हैं।
(ग) इन दोनों प्रदेशों की चलवासी जातियाँ वनों में रहती हैं व छोटी कृषि
पट्टियों को जोतती हैं तथा छोटे-छोटे व्यापार में संलग्न रहती हैं।
(घ) जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तरांचल के पहाड़ी क्षेत्रों की
तरह यहाँ ठंड और वर्षा नहीं होती। यह एक शुष्क क्षेत्र है। शुष्क ऋतु में यहाँ
के चलवासी तटीय क्षेत्रों को पलायन कर पाते हैं।
(ङ) तटीय प्रदेश में भी केवल भैंसे मानसून में अच्छी रहती हैं। दूसरे
जानवर शुष्क क्षेत्रों को स्थानान्तर कर दिए जाते हैं।
9. हिमाचल प्रदेश के गद्दी गड़रियों के जीवन का वर्णन करें।
उत्तर― जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल की भाँति हिमाचल प्रदेश के गद्दी
गड़रियों का भी जीवन ऋतु-प्रवास के चक्कर में बंधा हुआ है, अर्थात् गर्मियों में
वे ऊँचे पहाड़ों की और प्रस्थान करते हैं और सर्दियों में नीचे की ओर. (अर्थात्
हिमालय की निचली पहाड़ियों या शिवालिक की पहाड़ियों की ओर) प्रस्थान करते
हैं।
अप्रैल के महीने में वे उत्तर की और अपनी यात्रा शुरू कर देते हैं और
कुछ समय वे लाहौल और स्पीति में ठहरते हैं और जब ऊँचे पहाड़ों की बर्फ पिघलने
लगती है और पर्वतीय मार्ग खुल जाते हैं तो वे ऊँचे पर्वतों की ओर चल देते हैं।
सितम्बर के महीने में जब ऊंचे पहाड़ों पर फिर बर्फ गिरने लग जाती है
तो ये गद्दी गड़ेरिये नीचे की ओर लौटना शुरू कर देते हैं। कुछ समय वे लाहौल
और स्पीति के गाँवों में व्यतीत करते हैं। यहाँ वे ग्रीष्म ऋतु की फसलें (जैसे-
चावल आदि) काटते हैं और शरद ऋतु की फसलों (जैसे- गेहूँ, जौ, चना आदि)
बोते हैं। तत्श्चात् वे अपनी भेड़-बकरियों के साथ आगे नीचे शिवालिक की
पहाड़ियों की ओर चले जाते हैं और अप्रैल के शुरू तक वहीं अपने पशुओ को
चराते फिरते हैं। इस प्रकार हिमाचल प्रदेश के इन गद्दी लोगों का जीवन
ऋतु-आवास से प्रेरित रहता है। अप्रैल में ऊँचे और सितम्बर में नीचे आने का उनका
दौरा चलता रहता है और यही इनके जीवन-चक्र की मुख्य विशेषता है।
10. पहाड़ों पर विचरने वाले चरवाहे और दक्षिण के चरवाहों में क्या अंतर
होता है?
उत्तर― दोनों को ऋतु परिवर्तन के चक्र के अनुसार अपनी चरवाहा कार्यवाइयों को
बदलना पड़ता है, परन्तु उनकी इन कार्यवाइयों में काफी अंतर होता है। वनों में घूमने
वाले चरवाहों को, जैसे- जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल और हिमाचल प्रदेश
के गद्दी चरवाहें को सर्दी-गर्मी से अपनी गतिविधियों में परिवर्तन लाना पड़ता है
वहीं दक्षिण के चरवाहों को बरसात और सूखे मौसम से प्रभावित होकर अपनी
गतिविधियों को निश्चित करना होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना
पड़ता है? इस निरंतर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ है?
उत्तर― घुमंतू समुदायों को अपने पशुओं को कठोर जलवायु से बचाने के लिए
तथा चरागाह की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पड़ता है।
कुछ चलवासी चरवाहे मिलकर भिन कार्य करते हैं। जैसे-कृषि, व्यापार
और चराई।
आवागमन से पर्यावरण को लाभ―
(क) जानवरों को नई घास चरने के लिए मिलती है।
(ख) बंजारे लोग व्यापार का काम करते हैं वे हल खींचने वाले जानवर
जैसे बैल को बेचते हैं।
(ग) ये जातियाँ किसानों से संपर्क स्थापित करती हैं जिससे खेतों में
चराई हो सके तथा पशुओं के मल-मूत्र से मिट्टी को खाद भी मिल जाए।
(घ) पर्यावरण विद्वान तथा अर्थशास्त्री भी यह मानने लगे हैं कि
चलवासी जीवन भी जीवन का एक रूप है जो कुछ पर्वतीय और शुष्क क्षेत्रों के
लिए उपयुक्त है।
(ङ) उपनिवेशीकरण तथा अन्य कई कारण चरागाहों की कमी को
बताते हैं। उदाहरण के लिए चरगाह भूमि पर कृषि की जाने लगी है। चरागार क्षेत्र
कम हो गया है।
(च) चलवासी से प्राकृतिक वनस्पति को उगने का समय मिलता
है। प्रतबंध से एक ही चरागाहा लगातार प्रयोग में आता है इसलिए उसके गुणों में
गिरावट आ जाती है। इसेस चारे की उपलब्धता में भी गिरावट आ जाती है।
2. मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छिन गए? कारण बताएँ?
उत्तर― अकेले अफ्रीका में संसार के चरवाहों की अधिक से अधिक संख्या रहती
है। इन चरवाहा समूहों में वहाँ के मसाई कबीले का नाम भी आता है जो मोटे तौर
पर पूर्वी अफ्रीका के निवासी हैं। वे दक्षिण कीनिया से लेकर उत्तरी तंजानिया तक
के एक लम्बे-चौड़े भाग में रहते हैं। धीरे-धीरे इन लोगों से पशु चराने के अधिकार
निरन्तर छिनते चले गए। ऐसा होने के मुख्य कारण इस प्रकार हैं―
(क) यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियाँ, विशेषकर अंग्रेजों और जर्मन
निवासियों, की बन्दरबाट के कारण मसाई दो शीक्तयों में बँट कर रह गये। कीनिया
पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया जबकि तंजानिया जर्मनी को उपनिवेश बनकर
रह गया। इस बांट से लोगों को अपने बहुत से भागों से हाथ धोना पड़ा।
(ख) श्वेत जातियों के कीनिया और तंजानिया में आते ही अच्छे स्थानों
को पाने की उनमें होड़-सी लग गई। अच्छी भूमियाँ सब साम्राज्यवादी लोगों ने छीन
लीं, बाकी बंजर और बेकार भूमियाँ मासाई लोगों के लिए छोड़ दी गई। इस प्रकार
मासाई लोगों के अच्छे चरागाह उनके हाथ से निकल गए।
(ग) कीनिया में अंग्रेजों ने मासाई लोगों को दक्षिणी भागों की ओर
धकेल दिया जबकि तंजानिया में जर्मन लोगों ने उन्हें उत्तरी तंजानिया की ओर धकेल
दिया। अब वे अपने घर में ही बेगाने बनकर रह गए. अपनी चरागाहों से वंचित
और अपनी जन्म भूमि से दूर।
(घ) हर साम्राज्यवादी देश की भाँति अंग्रेजी और जर्मन लोग हर ऐसी
भूमि को बेकार मानते थे जहाँ से उन्हें कोई आय न होती हो और कोई भूमिकर
प्राप्त न होता हो। इसलिए 19वीं शताब्दी के अंत में उन्होंने बहुत से ऐसी बेकार
भूमि स्थानीय किसानों में बांट दी ताकि वे वहाँ पर खेती करें। फिर क्यों मासाई
लोगों की चरागाहों पर भी इन स्थानीय किसानों ने कब्जा कर लिया और वे हाथ
मलते ही रह गए।
(ङ) कुछ चरागाहों को आरक्षित वनों में बदल लिया गया और कितने
आश्चर्य की बात है कि मासाई लोगों को ही इन आरक्षित स्थानों में घुसने की मनाही
कर दी गई। अब ऐसे आरक्षित स्थानों से वे न लकड़ी काट सकते थे और न ही
अपने पशुओं को उनमें चरा सकते थे। जो कल चरगाहों के मालिक थे वे अब
परदेशी बनकर रह गए।
3. आधुनिक विश्व में भारत और पूर्वी अफ्रीकी घरवाहा समुदायों के
जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो
परिवर्तनों के बारे मे लिखें जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों
के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर― दोनों भारत और पूर्वी अफ्रीका के प्रदेश काफी समय तक (18वीं शताब्दी
के मध्य से 20वीं शताब्दी के मध्य तक) यूरोपीय उपनिवेशवादियों के अधिकार
में रहे। इनमें से तो बहुत भारतीय चरवाहों और अफ्रीकी पशुपालकों पर एक जैसे
कानून लादने से जो परिवर्तन देखने को मिले उनमें समानता होना तो स्वाभाविक
ही थी।
ऐसे दो परिवर्तनों का ब्योरा नीचे दिया जाता है जिनमें काफी समानताएँ पाई
जाती है―
(क) चराने वाली भूमि का नुकसान : भारत में चरागाह-भूमियाँ कुछ
विशेष लोगों को सौंप दी गई ताकि वे उन्हें कृषि-भूमि में बदल लें अधिकतर ये
ऐसी भूमियाँ थीं जिनपर चरवाहे लोग अपने पशुओं को चराते थे। इस परिवर्तन का
अर्ध था चरागाहों का हा जो अपने साथ चरवाहों के लिए अनेक समस्याएँ ले आया।
इसी प्रकार मासाई लोग की चरागार भूमियाँ न केवल श्वेत
यूरोपियों द्वार हड़प ली गई बल्कि उनमें से बहुत सी स्थानी किसानों के हवाले कर
दी गई ताकि उन्हें वे कृषि-भूमि में बदलने के कारण चरागहों की संख्या में कमी
आई।
(ख) वनों का आरक्षण : दोनों भारत और अफ्रीका में वन क्षेत्रों को
आरक्षित में बदल दिया गया और वहां के निवासियों को वहां से निकाल दिया गया।
अब ये चरवाहें न इन वनों में घुस सकते थे न वहाँ अपना पशु चरा सकते थे और
न ही वे वहाँ से लकड़ी काट सकते थे। अधिकतर ये आरक्षित वन वही स्थान थे
जो चारवाह जातियों के लिये चरागाहों का काम देते थे। इस प्रकार वनों के आरक्षण
से चरागहों के क्षेत्र में निरन्तर कमी आती गई।
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