Jharkhand Board Class 9TH History Notes | यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
JAC Board Solution For Class 9TH (Social Science) History Chapter 2
1. खानाबदोशीवाद से क्या समझते हैं?
उत्तर― जीवन व्यतीत करने की एक शैली जिसके अंतर्गत लोग एक स्थान पर
स्थायी रूप से नहीं रहते बल्कि अपनी रोजी कमाने के लिए एक क्षेत्र से
दूसरे क्षेत्र की ओर घूमते ही रहते हैं।
2. लेनिन के अप्रैल की तीन माँगे क्या थी?
उत्तर―लेनिन के अप्रैल की तीन माँगे-
(क) युद्ध को बंद किया जाए।
(ख) भूमि किसानों को हस्तांतरित की जाए।
(ग) बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो।
3. उदारवादी कौन थे?
उत्तर― काँग्रेस के नेता जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के आरम्भिक दौर में 1885
ई० से लेक 1905 ई० तक काँग्रेस की बागडोर सम्भाले रखी उन्हें
उदारवादी कहा जाता है। ऐसे कुछ नेताओं में दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह
मेहता, सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, एम० जी० रानाडे आदि के
नाम विशेषकर उल्लेखनीय हैं।
4. निर्वासन किसे कहते हैं?
उत्तर― बलपूर्वक किसी भी व्यक्ति को उसी के देश से बाहर निकालना या भेजना
निर्वासन कहलाता है।
5. भारत के किन्हीं दो प्रमुख सामाजिक, धार्मिक सुधारकों के नाम लिखें,
जिनका फ्रांस की क्रांति पर प्रभाव पड़ा था तथा जो इसकी महत्ता के
विषय में बातचीत करते थे।
उत्तर― (क) राजा राममोहन राय, (ख) डिरोजियो
6. रूस की क्रांति की तत्कालिक उपलब्धियाँ क्या थीं?
उत्तर― (क) नया समाजवादी ढाँचा रूसी क्रांति ने रूस में नये समाजवादी
ढंग के समान की स्थापना के कार्य को शुरू किया।
(ख) रूस को मजबूत किया ― रूसी क्रांति ने रूस को बहुत मजबूत
देश बनाया था। वह शीघ्र ही विश्व की एक बड़ी शक्ति बनकर उभरा।
7. किन शक्तियों को केन्द्रीय शक्तियाँ कहा जाता है?
उत्तर― जर्मनी, आस्ट्रिया और तुर्की को केन्द्रीय शक्तियाँ कहा जाता है।
8. जार निकोलस द्वितीय से गैर-रूसी अप्रसन्न क्यों थे?
उत्तर― जार निकोलस द्वितीय द्वारा गैर-रूसी लोगों पर रूसी भाषा थोपी गई। उसने
उनकी संस्कृति को समाप्त करने की कोशिश की थी।
9. रूसी घुड़सवार सेना ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से क्यों इंकार
कर दिया?
उत्तर― क्योंकि वह रूस के जार निकोलस द्वितीय के अन्यायपूर्ण कार्यों से तंग
आ चुके थे।
10. रूसी शासक जार निकोलस द्वितीय ने कब त्यागपत्र दिया?
उत्तर―2 मार्च 1917 ई० को।
11. मार्फा वासीलेवा कौन थी?
उचर― वह एक बहादुर महिला-कारीगर थी जिसने अकेले में एक बड़ी हड़ताल
का आयोजन किया।
12. लेनिन कौन था?
उत्तर― वह रूस में बोल्शविक पार्टी का नेता था।
13. क्रांति के उपरान्त (1905) रूस के जार निकोलस द्वितीय ने जो तीन
सुधार किये, उनका वर्णन करें।
उत्तर― (क) स्वतंत्रतापूर्वक बोलने की स्वतन्त्रता दे दी गई।
(ख) प्रेस की स्वतंत्रता।
(ग) संगठन (संघ) बनाने की स्वतंत्रता।
14. ड्यूमा क्या है?
उत्तर― ड्यूमा- यह एक निर्वाचन द्वारा गठित रूसी संसद थी। इसका निर्माण जार
ने 1905 की क्रांति के दौरान करने की अनुमति दी थी।
15. कुलक से क्या समझते हैं?
उत्तर― रूस में जो किसान अच्छी हालत में थे उनके लिए यह नाम (अर्थात्
कुलक) प्रयोग में लाया जाता था। स्टालिन के कालांश के दौरान आधुनिक
खेतों के विकास हेतु तथा उन्हें उद्योगों की भांति मशीनों से कमाने के लिए
यह आवश्यक समझा गया कि पूरे रूस में कुलक (Kulaks) को समाप्त
कर दिया जाये।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. सोवियतों की उन तीन मांगों को लिखें जिनकी वजह से जार का पतन
हुआ था।
उत्तर― (क) देश में शांति स्थापित की जानी चाहिए तथा देश में हर वास्तविक
काश्तकार को ही जमीन दी जाए।
(ख) देश के सभी उद्योग पूर्णतया मजदूरों के नियंत्रण में हों।
(ग) गैर-रूसी समुदायों को समान स्तर दिया जाए तथा संपूर्ण शक्तियाँ
केवल सोवियतों के हाथों में ही दी जानी चाहिए।
2. कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो (साम्यवादी घोषणा-पत्र) नामक दस्तावेज
क्रांतिकारी क्यों था?
उत्तर― साम्यवादी घोषणा-पत्र का समाजवादी आंदोलन पर बड़ा भारी प्रभाव पड़ा
था। सन् 1840 ई० में कम्युनिस्ट घोषणा पत्र को कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक
एंगेल्स ने लिखा था। उनके विचारों से दासता, सामन्तवाद और पूँजीवाद सब ए
समान है। उनका जोर मजदूरों के हितों की ओर अधिक था न कि मिल मालिकों
के हितों की ओर। वे व्यक्ति के काम के अनुसार उसे विशेषाधिकार देने के पक्ष
मे थे, न कि जन्म या वंशानुगत के अनुसार विशेषाधिकार देने के पक्ष में।
3. उग्रवादियो (गरमपंथी) की विचारधारा क्या थी?
उत्तर― उग्रवादियों की विचारधाराएँ―
(क) यूरोप में लोगों का वह समूह जो अपने देश में एक ऐसी सरकार
स्थापित करने के लिए हर कदम उठाने के लिए तैयरा था जो लोगों
को बहुमत पर अवलम्बित हो।
(ख) इस समूह के कुछ लोग महिलाओं को मताधिकार दिए जाने के
समर्थक भी थे।
(ग) ये चरमपंथी बड़े-बड़े भूमि स्वामियों एवं धनी कारखाना मालिकों
को निषेधाकिार दिए जाने के घोर विरोधी थे।
(घ) उग्रपंथी निजी संपत्ति को बनाये रखने के विरोधी नहीं थे लेकिन वे
कुछ ही लोगों के हाथों में सम्पदा के केन्द्रियकरण के घोर विरोधी
थे।
4. 1905 की क्रांति के बाद रूस के जार निकोलस द्वितीय द्वारा आरम्भ
किए गए दो सुधारों का वर्णन करें।
उत्तर― रूस का जार निकोलस द्वितीय पक्का तानाशाह था। परन्तु जब रूस में
1905 ई० की क्रांति हुई तो वह सुधार करने के लिए तैयार हो गया।
(क) उसने लोगों को स्वतंत्रता से अपने विचार अभिव्यक्त करने और संघ
बनाने की स्वतंत्रता दे दी और प्रेस से भी अंकुश हटा लिये।
(ख) वह यह भी मान गया कि कानून लोगों की चुनी हुई संस्था द्वारा
बनाए जायेंगे, जिसे ड्यूमा कहा जाता था।
5. बोल्शेविक कौन थे?
उत्तर― यह रूस के औद्योगिक मजदूरों की एक राजनीतिक पार्टी थी जिसका नेता
लेनिन था। इस पार्टी के साथ औद्योगिक मजदूरों का अधिक भाग था इसलिए इसे
बहुसंख्यक गुट या बोल्शेविक गुट कहा जाता है। यह गुट क्रांतिकारी विचारधारा
में विश्वास रखता था। उनका विचार था कि जिस देश में न तो संसद हो और
न ही नागरिकों को कोई जनतांत्रिक अधिकार दिए गए हों वहाँ शांतिमय ढंग से
कोई परिवर्तन नहीं लाये जा सकते। यह पार्टी ही अंत में 1917 ई० में रूस में एक
सफल क्रांति लाने में कामयाब हुई।
6. रूस में केरेन्सकी सरकार क्यों अलोकप्रिय हो गई थी?
उत्तर―(क) वह जनता की नब्ज को महसूस करने में विफल रहा।
(ख) लोग शान्ति चाहते थे लेकिन वह युद्ध जारी रखना चाहता था।
(ग) गैर-रूसी जनता ने उसकी सरकार के अधीन समान स्तर पाना
चाहा जिसे देने में वह हिचकिचा रहा था याद रहे इस विषय में बोल्शेविक दल
की नीतियाँ पूर्णतया स्पष्ट एवं लोकप्रिय थीं।
7. रूस के इतिहास में कौन-सी घटना "यूनी रविवार" के नाम से जानी
जाती है?
अथवा, "लाल रविवार' अथवा 'खूनी रविवार' के विषय में आप
क्या जानते हैं?
उत्तर― सन् 1905 में रूसी क्रांतिकारी आदोलन जोर पकड़ रहा था। 7 जनवरी
(रविवार) 1905 में मजदूरों का एक समूहजार की याचिका देने के लिए जा
रहा था। मजदूरों के इस समूह पर सेंट पीटर्सबर्ग ने निकट गोलियाँ चलाई गई जिससे
हजारों मजदूर (स्त्रियाँ, पुरुष व बच्चे) घटना स्थल पर ही मारे गये और इससे
भी अधिक घायल हो गये। यही घटना रूस के इतिहास में 'खुनी रविवार' या 'लाल
रविवार' के नाम से जानी जाती है।
8. मेनशेविक पार्टी के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर― यह रूस के औद्योगिक मदजूरों का एक अन्य राजनीतिक दल था जो
परिवर्तन लाने के लिये शान्तिमय ढंग अपनाने के पक्ष मे था न कि क्रांतिकारी ढंग
अपनाने के पक्ष में। इस दल के साथ औद्योगिक मजदूरों की कम गिनती थी।
इसलिए इस दल को अल्पसंख्यक दल या मेनशेविक गुट कहा जाता था। यह दल
यूरोप के विशेषकर फ्रांस और जर्मनी के राजनीतिक दलों की भाँति चुनाव में भाग
लेकर विधान मण्डल या संसद आदि का निर्माण करना चाहता था। परंतु इस दल
को कोई विशेष सफलता प्राप्त न हुई क्योंकि रूस का जार संवैधानिक ढंग पर
चलने वाला न था।
9. फरवरी क्रांति में रूस की जनता की चार मुख्य माँगें क्या थीं?
उत्तर― फरवरी क्रांति में रूस की जनता की चार मुख्य माँगे थीं―
(क) शान्ति अर्थात् प्रथम विश्वयुद्ध से रूस अलग हो जाए।
(ख) जोतने वालों को ही जमीन दी जाए। चर्च, पादरियों, सामन्तों से
भूमि छीन ली जाए।
(ग) उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण।
(घ) गैर-रूसी जातियों को समानता का दर्जा।
10. अक्टूबर क्रांति फरवरी क्रांति से कैसे भिन्न है? इसके क्या परिणाम
निकले?
उत्तर― यह क्रांति का दूसरा दौर था। यह क्रांति नवम्बर मास मे हुई परन्तु उसे
अक्टूबर क्रांति का नाम दिया जाता है क्योंकि प्राचीन रूसी कैलेण्डर अंतर्राष्ट्रीय
कैलेंडर से आठ दिन पीछे था। फरवरी क्रांति के पश्चात् रूस की राजसत्ता कैरेंस्की
नामक नेता ने संभाली परंतु वह लोगों की इच्छाएँ पूरी न कर सका, उद्योगों पर
मजदूरों का अधिकार स्थापित न कर सका, किसानों को भूमि न दिला सका
इसलिए नवम्बर 1917 ई० को रूस में दुबारा क्रांति हुई। अस्थायी सरकार को भंग
कर दिया गया। कैरेस्की देश छोड़कर भाग गया और शासन की बागडोर लेनिन
के हाथ में आ गई।
11. कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का क्या महत्व था?
उत्तर― कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के शीघ्र ही प्रश्चात्
1919 ई० में की गई। इस संस्था ने साम्यवाद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित
करने का प्रयल किया। इसके प्रभावधीन अनेक देशों में साम्यवादी संगठनों की
स्थापना हुई और विश्व के अनेक प्रजातंत्रीय देशों ने राजनीतिक समानता के
साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक समानता लाने का भी प्रयल किया। द्वितीय
विश्वयुद्ध के प्रारम्भ होते ही सारा संसार युद्ध के भयंकर वातावरण में उलझ गया
और इस प्रकार 1943 ई० में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल को भंग का दिया गया।
12. रूस की 1917 की क्रांति को वो राजनैतिक कारण बताएँ।
उत्तर― रूस की 1917 की क्रांति के दो राजनीतिक कारण-
(क) 1905 ई० की क्रांति―सन् 1905 की रूसी क्रांति को 1917 की क्रांति
की जननी कहा जाता है। 22 जनवरी, 1905 को मास्को में एक मांग पत्र को
लेकर मजदूरों व कृषकों द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से एक जुलूस निकाला जा रहा था
कि जार की सेना ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चला दी। फलस्वरूप 1000 लोग
मारे गये, हजारों लोग घायल हुए और 60 हजार लोगों को बंदी बनाकर जेल में
डाल दिया गया। जगह-जगह हड़तालें तथा दंगे हुए। जार ने दमन के द्वारा क्रांति
दबा दी किन्तु क्रांति की ज्वाला अन्दर ही अन्दर सुलगती रही और 1917 में एक
महान क्रांति के रूप में प्रकट हुई।
(ख) जार का अत्याचारी शासन― जार एक निरंकुश शासक था। वह
साम्राज्यवादी नीति में विश्वास रखता था। निरन्तर युद्धों के कारण रूस आर्थिक
संकट में फंस गया था। लोगों को जार का शासन असहनीय होता जा रहा था।
वह लोगों पर तरह-तरह के अत्याचार करता था। अतः अत्याचारी शासन ने भी
1917 की क्रांति को लाने में सहायता की।
13. लेनिन के अनुसार, रूसी क्रांति को सफल बनाने के लिए कौन-सी दो
परिस्थितियाँ आवश्यक थीं?
उत्तर― लेनिन के अनुसार रूसी क्रांति को सफल बनाने के लिए निम्नांकित दो
परिस्थितियाँ आवश्यक थी-
(क) तानाशाही समाप्त होनी चाहिए जिसका अर्थ है कि रूस के जार
को हटाना होगा अन्यथा वह रूस की क्राति के मार्ग में अनेक अड़चने पैदा करेगा।
(ख) रूस को प्रथम विश्वयुद्ध से अलग हो जाना चाहिए क्योंकि शांति
स्थापित किये बिना कुछ प्राप्त होने वाला नहीं। क्रांति के लाभ तो युद्ध के वातावरण
में कभी भी प्राप्त नहीं हो सकते।
14. रूस की अक्टूबर 1917 की क्रांति में बोल्शेविक बल ने किस प्रकार
योगदान दिया था?
उत्तर― बोल्शेविक पार्टी ने युद्ध (प्रथम विश्व युद्ध) को समाप्त करने के लिए
स्पष्टतया अपनी नीतियाँ रखीं, भूमि का किसानों को हस्तान्तरण तथा यह नारा आगे
बढ़ाया कि "सभी शक्तियाँ सोवियतों को"। गैर-रूसी नागरिकों के मामले पर
बोल्शेविक ही केवल मात्र ऐसी पार्टी थी जिसकी नीतियाँ पूर्णतया स्पष्ट थीं।
लेनिन ने लोगों को इस अधिकार की घोषणा की कि आत्मनिर्णय का
अधिकार, उन सभी को भी जो रूसी साम्राज्य के अधीन (उपनिवेश के रूप में)
हैं।
15. 1917 की क्रांति से पूर्व ऐसा क्यों कहा जाता था कि रूस पुरानी
दुनिया में रह रहा था?
उत्तर― रूस पर अभी भी सामन्तवादी कुलीन वर्गों द्वारा शासन किया जाता था
और नये उदित हो रहे मध्यम वर्ग रूस के शासन में कोई भूमिका नहीं थी।
जार का शासन निरंकुश तथा स्वेछाचारी था। जार अभी भी राजाओं के
दैविक शक्ति सिद्धांत में विश्वास रखता था।
16. किसानों की हीन दशा 1917 ई० की रूसी क्रांति के लिए कहाँ तक
उत्तरदायी थी?
अथवा, 1917 की रूसी क्रांति से पहले रूस में कृषकों की दशा का
वर्णन करें।
उत्तर― 1861 ई० से पहले रूस में सामन्त प्रथा थी। तब किसान भूमिदास के रूप
में जमीनों को जोतते-बोते थे परंतु वे भूमि की उपज का अधिकांश भाग सामन्तों
को विशेषकर रूस के शासक, जिसको जार कहते थे, को दे देते थे। इन पर करों
का भी बड़ा बोझ था। यद्यपि 1861 ई० में सामन्त-प्रथा समाप्त कर दी गई फिर
भी रूस के किसानों की दशा बहुत खराब रही क्योंकि उनके पास छोटे-छोटे खेत
थे जिन पर पुराने तरीकों से खेती की जाती थी। उन पर ऋणों का बोझ रहता था
तथा खेती की दशा सुधारने के लिए उनके पास धन नहीं था। इस कारण किसानों
को, जो देश की जनसंख्या के 75% थे, दो समय भोजन भी नहीं मिल पाता था।
इस प्रकार कसानों की हीन दशा तथा भूमि के लिए उनकी भूख 1917 ई० की
क्रांति का एक प्रबल (सामाजिक) कारण सिद्ध हुई।
17. रूस के इतिहास में 9 जनवरी, 1905 का क्या महत्त्व था?
उत्तर― (क) 9 जनवरी, 1905 रूस की 1917 की क्रांति का पूर्वाभ्यास बन
गया।
(ख) इस दिन हजारों शान्तिपूर्ण कार्यकर्ता (श्रमिक) मारे गये तथा रूस
की सेनाओं के द्वारा इतने ही बुरी तरह घायल कर दिये गये, जबकि
वे उसे (जार को) एक माँग-पत्र देने जा रहे थे।
(ग) इससे सेना तथा नैसेना सहित संपूर्ण रूस में हलचल पैदा हो गई।
इसने लोगों को क्रांति के लिए तैयार किया।
18. रूस में 1905 में क्रांतिकारी उथल-पुथल क्यों पैदा हुई थी? क्रांतिकारियों
की क्या माँगे थीं?
उत्तर― आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बहुत बढ़ गई थीं और वास्तविक वेतनों में
20 प्रतिशत तक की गिरावट आई थी। प्युतिलोव आयरन वर्क्स से अनेक श्रमिकों
को निकाल दिया गया था। इसीलिए मजूदर स्त्रियाँ, पुरुष तथा बच्चे शांतिपूर्ण ढंग
से एक जुलूस के रूप में जार को ज्ञापन देने जा रहे थे। फादर गैपॉन इनके नेता
थे। परंतु विंटरपैलेस पहुँचने के पूर्व ही पुलिस द्वारा उन पर गोलियां बरसाई गईं,
जिससे 100 से अधिक मजदूर मारे गए व 300 से अधिक घायल हुए। रूस में
1905 ई० की क्रांतिकारी उथल-पुथल इसी कारण से हुई।
क्रांतिकारियों की माँगे थीं– केवल आठ घंटे काम, वेतनों में वृद्धि तथा
कार्य स्थितियों में सुधार।
19. बोल्शेविक पार्टी का 1917 की रूस की क्रांति लाने में क्या हाथ है?
उत्तर― अक्टूबर 1917 में रूस की क्रांति लोने में बोल्शेविक पार्टी की महत्वपूर्ण
भूमिका रही-
(क) लेनिन द्वारा अंतरिम सरकार का भंग किया जाना– फरवरी
1917 ई० में रूस में जो क्रांति हुई उसके परिणामस्वरूप वहाँ राजुमार कैरेंस्की
के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार को स्थापना की गई। परन्तु यह सरकार लोगों
की इच्छाओं को पूरी न कर सकी इसलिए इसने शीघ्र ही लोगों का सहयोग खो
दिया। इस अवसर पर लेनिन ने बोल्शेविक पार्टी का पुनर्गठन किया। क्रांति का रूप
कैरेस्की की सरकार की ओर किया और उसे जबरदस्ती भंग कर दिया गया।
राजकुमार कैरस्की भाग खड़ा हुआ और इस प्रकार सरकार की बागडोर
बोल्शेविक पार्टी के हाथ में आ गई। इस प्रकार अक्टूबर 1917 की क्रांति सफल
हुई।
(ख) किसानों और मजदूरों के हाथ में नेतृतव सौंपना― बोल्शेविक
पार्टी ने सत्ता मजदूरों और किसानों के हाथ में सौंप दी। उन्होंने जमींदारों की संपत्ति
और भूमियों को छीन लिया और कइयों की हत्या कर दी। तब मजदूरों और किसानों
के संघों ने गाँवों और नगरों के स्थापित प्रशासन को संभाल लिया।
20. फरवरी क्रांति से क्या तात्पर्य है? इसे ऐसा क्यों कहा जाता है?
उत्तर― फरवरी क्रांति- यह क्रांति रूसी पंचांग के अनुसार 27 फरवरी, 1917
को हई। अतः इसे 'फरवरी क्रांति' के नाम से जाना जाता है। रूस के तत्कालीन
शासक जार निकोलस द्वितीय बिना किसी तैयारी के मित्र राष्ट्रों के साथ प्रथम
विश्व युद्ध में भाग लिया परन्तु बिना हथियारों, वर्दी, रसद तथा कुशल नेतृत्व के
रूसी सेना की पराजय ही नहीं हुई, बल्कि भारी संख्या में रूसी सैनिक भी मारे
गये। देश में भोजन की कमी हो गई। अतः देश में अशान्ति तथा अराजकता फैल
गई। जनता 'रोटी' और कुशासन का अंत चाहती थी। जार को सिंहासन छोड़ने पर
मजबूर किया गया और राजकुमार करेस्की के नेतृत्व में अस्थायी सरकार की
स्थापना की गई।
21. 'अक्टूबर क्रांति' का क्या अभिप्राय है?
उत्तर― अक्टूबर क्रांति- यह क्रांति का दूसरा दौर था। पुराने रूसी कैलेण्डर के
अनुसार यह क्रांति 25 अक्टूबर से प्रारम्भ हुई। फरवरी क्रांति के बाद रूस की
राजसत्ता करेन्सकी ने संभाली थी, परन्तु वह जनता की इच्छाएँ एवं आवश्यकताएँ
पूरी न कर सका। वह उद्योगों पर मजदूरों का अधिकार स्थापित न कर सका,
किसानों को भूमि न दिला सका, अत: अक्टूबर में पुनः क्रांति हुई। अस्थायी सरकार
को भंग कर दिया गया। केरेन्सकी देश छोड़कर भाग गया और शासन की बागडोर
लेनिन के हाथ में आ गई।
22. स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम क्या था? वर्णन करें।
उत्तर― स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम―
(क) सभी किसानों को सामूहिक खेतों में काम करने का आदेश कर
दिया।
(ख) ज्यादातर जमीन और साजो-समान सामूहिक खेतों के स्वामित्व में
सौंप दिए गए।
(ग) सामूहिकीकरण के बावजूद उत्पादन में नाटकीय वृद्धि नहीं हुई
बल्कि 1930-1933 की खराब फसल के बाद तो सोवियत ।
इतिहास का सबसे बड़ा अकाल पड़ा जिसमें 40 लाख से ज्यादा
लोग मारे गए।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1905 से पहले
कैसे थे?
उत्तर― 1905 ई० से पहले रूस की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा
बड़ी शोचनीय थी इसलिए वहाँ 1905 ई० में महान क्रांति हुई जो 1905 की रूसी
क्रांति के नाम से प्रसिद्ध है।
रूस में जार का शासन न केवल अव्यवस्थित ही था वरन् अत्याचारी भी
था। जार निकोलस द्वितीय (1894-1917) एक ढ़ोंगी संत रासपुटिन के प्रभाव
में आकर प्रतिक्रियावादी हो गया था ओर लोगों पर अत्याचार करने लगा था।
किसानों और मजदूरों की स्थिति दिन-प्रतिदिन शोचनीय होती जा रही थी। चारों ओर
अकाल ने अपना दामन फैला रखा था और भूख के कारण बहुत से लोग
कीड़े-मकोड़ों की तरह मर रहे थे। स्थिति बड़ी उत्तेजक थी। उधर पश्चिमी देशों
की प्रजातंत्रीय प्रथाओं से प्रभावित होकर रूस के नागरिक भी अपने देश के
उत्तरदायी सरकार चाहते थे परन्तु निरंकुशता के नशे में मदमस्त जार लोग की
उचित मांगों को भी सुनने को कहाँ तैयार था? परिणाम यह हुआ कि देखते ही
देखते जो शांतिप्रिय सेना थे वे भी क्रांतिकारी बन गये।
रूस में औद्योगिक क्रांति के आगमन से वहाँ मजदूरों की अनेक संस्थाएँ
अस्तित्व में आयीं क्योंकि रूस में मजदूरों और कारीगरों की अवस्था पहले ही बड़ी
दयनीय थी इसलिए विभिन्न मजदूर संस्थाएँ मार्क्स की समाजवादी विचारधारा की
ओर आकर्षित हुई। परिणामस्वरूप 1883 ई० में मजदूरों ने रशियन सोशल
डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। 1903 ई० में यह दल दो भागों में विभक्त हो
गया। एक को मेनशेविक गुट और दूसरे को बोल्शेविक गुट का नाम दिया गया।
मेनशेविक दल जो अल्पसंख्यक गुट था, फ्रांस और जर्मनी की भाँति ऐसा दल
चाहता था जो शांतिमय ढंग से परिवर्तन लाये और चुनावों में भाग लेकर संसदीय
प्रणाली द्वारा कार्य करें। इसके विपरीत दूसरा गुट बोल्शेविक गुट था जो बहुमत
में था। उस दल के नेता इस विचार के थे कि जि देश में न कोई संसद रही हो
और न ही नागरिकों के पास जनतांत्रिक अधिकार रहे हों वहाँ संसदीय प्रणाली द्वारा
परिवर्तन लाना असम्भव है। परिवर्तन तो क्रांति द्वारा ही लाये जा सकते हैं, इसलिए
इस दल के नेता संगठित होकर क्रांति के लिए काम करने में विश्वास रखते थे।
शीघ्र ही लेनिन इस दल का नेता बन गया जो मार्क्स के बाद समाजवादी आंदोलन
का महानतम विचार माना जाता है।
1905 ई० में जब जापान जैसे छोटे से देश ने रूस को युद्ध-क्षेत्र में पराजित
कर दिया तो जनवरी 1905 ई० को रूस में एक क्रांति उठ खड़ी हुई। इसमें मजदूरों
के प्रतिनिधियों की परिषदों में जिन्हें साधारणतया सोवियत कहा जाता है, महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई। कई स्थानों पर सेना और नौ-सेना ने क्रांतिकारियों का साथ दिया।
इस क्रांति से डरकर जार थोड़ा झुका और अनेक रियायतें देने के लिए तैयार हो
गया।
2. 1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के
मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी?
उत्तर― 1917 से पहले रूस में कामकाजी जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों से
अनेक दृष्टियों से भिन्न थी–
(क) कृषकों की हीन दशा― रूस क किसानों की दशा अन्य यूरोपीय
देशों से भिन्न थी वे अपने खेतों को कई बार इकट्ठा करके अपने मीर (चक)
में सामूहिक खेती कर लेते थे। प्रत्येक कम्यून को व्यक्तिगत आवश्यकता के
अनुसार बाँट भी लिया जाता था। सन् 1861 में सामन्तवादी प्रथा समाप्त होने पर
भी किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। उनकी दशा दयनीय ही बनी रहीं
क्योंकि उनके छोटे-छोटे और अलग-अलग खेत थे, उनकी सिंचाई के साधन अच्छे
नहीं थे, उनका खेती करने का ढंग पुराना था, वैज्ञानिक रीति से खेती नहीं करते
उनके पास अच्छे कृषि-यंत्र नहीं थे। करों का उन पर भारी बोझ था। उन्हें दो
समय का भोजन भी नहीं मिलता था, अतः किसानों को हीन दशा क्रांति का एक
मुख्य कारण बनी।
(ख) श्रमिकों की हीन दशा- रूस में मध्यम वर्ग न होने के कारण
औद्योगिक क्रांति काफी देर से हुई। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में औद्योगिक
क्रांति का प्रारम्भ हुआ। इसके पश्चात् उसकी बड़ी तेजी से विकास हुआ किन्तु
निवेश के लिए पूँजी विदेशों से आई। विदेशी पूँजीपति अधिक लाभ कमाना चाहते
थे। उन्होंने मजदूरों की दशा पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। पूँजीपति लोग मजदूरों
को कम से कम वेतन देकर अधिक से अधिक काम लेते थे तथा उनसे बुरा
व्यवहार करते थे। उन्हें राजनैतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे. अतः उनमें असंतोष
बढ़ता जा रहा था। अतः हम कह सकते हैं कि मजदूरों की हीन दशा भी रूसी
क्रांति में सहायक सिद्ध हुई। वस्तुतः रूस के उद्योग कुछ क्षेत्रों में स्थापित किए
गए थे। रूस का प्रमुख औद्योगिक केन्द्र पीटर्सबर्ग और मास्को था। कारीगर
अधिकांश उत्पादन स्वयं ले लेते थे। लेकिन बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ क्राफ्ट वर्कशॉप
के साथ-साथ चलती थीं रूस में 1890 तक अन्य किसी भी प्रमुख यूरोपीय देश
की तुलना में कुल मजदूरों की संख्या बहुत कम थी। 1900 तक अनेक क्षेत्रों में
शिल्पकारों तथा औद्योगिक मजदूरों की संख्या लगभग बरागर हो गई थी। रूसी
मजदूरों की दशा सुधारने के लिए विदेशी पूँजीपतियों ने कोई रुचि नहीं ली।
3. 1917 में जार का शासन क्यों खत्म हो गया?
उत्तर― रूस में जारशाही का धाराशायी होना- छोटी-छोटी घटनाएँ अक्सर ही
क्रांति को भड़का देती हैं। रूसी क्रांति की शुरूआत के लिए एसी ही एक छोटी
घटना थी। रोटी खरीदने के प्रयास कर रही मजदूर औरतों का एक प्रदर्शन। फिर
मजदूरों की एक आम हड्ताल हुई जिसमें सैनिक और अन्य लोग भी शामिल हो
गए। 12 मार्च 1917 को राजधनी सेंट पीसबर्ग (बाद में इसका नाम पेत्रोग्राद
पड़ा और फिर इसका लेनिनग्राद पड़ा। सोवियत संघ के पतन के बाद पुनः इसका
नाम सेंट पीसबर्ग हो गया है) क्रांतिकारियों के हाथों में आ गई। क्रांतिकारियों ने
जल्द ही मास्कों पर भी कब्जा कर लिया। जार शासन छोड़ कर भाग या और
15 मार्च को पहली अस्थायी सरकार बनी।
जार के पतन की इस घटना को फरवरी की क्रांति कहा जाता है क्योंकि
पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार यह 27 फरवी 1917 को घटित हुई थी मगर जार
का पतन क्रांति का आरम्भ-मात्र था।
जनता की सबसे महत्वपूर्ण चार माँगें थीं-शाति, जमीन की मिलकियत
जोतने वाले को, कारखानों पर मजदूरों का नियंत्रण और गैर-रूसी जातियों को
सामनता का दर्जा। अस्थायी सरकार का प्रधान केरेन्सकी नामक एक व्यक्ति था।
वह इनमें से किसी भी माँग को पूरा नहीं कर सका और जनता का समर्थन खो
बैठी। लेनिन फरवरी की क्रांति में स्विट्जरलैंड में निर्वासन का जीवन बिता रहे थे,
वे अप्रैल में वापस लौट आए। उनके नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने युद्ध समाप्त करने,
किसानों की जमीन देने तथा "सारे अधिकार सोवियतों को देने" की स्पष्ट नीतियाँ
सामने रखीं गैर-रूसी जातियों के सवाल पर केवल बोल्शेविक पार्टी ही ऐसी थी
जिसके पास एक स्पष्ट नीति थी।
करेन्सकी सरकार को अलोकप्रियता के कारण 7 नवम्बर 1917 को
उसका पतन उस समय हो गया जबकि उसका मुख्यालय विंटर पैलेस पर नाविकों
के एक दल ने कब्जा कर लिाय। 1905 की क्रांति में एक महत्वपूर्ण भूमिका
निभाने वाले लियोन प्रात्सकी मई 1917 में रूस लौट आए थे। पेत्रपाद सोवियत
के प्रमुख के रूप में नवम्बर के विद्रोह का वह एक प्रमुख नेता था। उसी दिन
सोवियतों की अखिल-रूसी कांग्रेस की बैठक हुई और उसने राजनीतिक सत्ता
अपने हाथों में ले ली। 17 नवम्बर को होने वाली इस घटना को अक्टूबर की क्रांति
कहा जाता है क्योंकि उस दिन पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 25 अक्टूबर की
तारीख थी।
अक्टूबर की क्रांति लगभग पूरी तरह शांतिपूर्ण थी। क्रांति के दिन पेत्रोग्राद
में दो व्यक्ति मारे गए। मगर यह नया राज्य जल्द ही गृह-युद्ध में फँस गया।
सत्ताच्युत जार की सेना के कुछ अधिकारियों ने सोवियत राजसत्ता के खिलाफ
सशस्त्र विद्रोह छेड़ दिया। इंग्लैंड, फ्रांस, जापान, अमरीका और अन्य देशों की
सेनाएँ भी उनके पक्ष में आ गई। यह युद्ध 1920 तक चला। इस समय तक नए
राज्य की "लालसेना" (रैड आर्मी) जार के पुराने साम्राज्य के लगभग सभी भागों
पर अपना नियंत्रण स्थापित कर चुकी थी। यह लाल सेना बुरी तरह साधनहीन थी
और इसमें अधिकाशतः मजदूर और किसान थे फिर भी उसने अपने से बेहतर
साधनों से लैस और बेहतर प्रशिक्षण-प्राप्त सेनाओं पर विजयी पाई। इस प्रकार जार
का शासन खत्म हो गया।
4. फरवरी क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर― फरवरी क्रांति की प्रमुख घटनाएँ–
(क) फरवरी माह में रूसी मजदूरों ने खाद्यान्न अभाव को बुरी तरह
महसूस किया गया।
(ख) नेवा नदी के दक्षिणी किनारे स्थित एक फैक्टरी में तालाबंदी 22
फरवरी 1917 को हुई।
(ग) 23 फरवरी, 1917 को नेवा नदी के पैक्टरी मजदूरों की सहानुभूति
में पचास फैक्टरी के मजदरों ने हड़ताल कर दी।
(घ) रविवार 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा के सदस्यों को
निष्कासित कर दिया। देश भर में लोगों ने जार के इस कार्य का घोर विरोध किया।
(ङ) 26 फरवरी, 1917 को प्रदर्शनकारी और अधिक शक्ति से नेवा
नदी के बायें किनारे की गलियों में प्रदर्शन करने हेतु निकल पड़ें।
(च) 27 फरवरी, 1917 को हड़तालियों तथा प्रदर्शनकारियों ने पुलिस
मुख्यालय में तोड़-फोड़ कर दी। गलियाँ लोगों से भड़ गई। गलियों में लोग गला
फाड़-फाड़ कर रोटी, मजदूरी, काम के प्लंटों एवं लोकतंत्र के पक्ष में नारे लगा
रहे थे।
(छ) 28 फरवरी, 1917 को एक प्रतिनिधि मण्डल जार से मिलने
गया। सेना के कमाण्डरों ने जार को सलाह दी कि वह गद्दी छोड़ दे। उसने उसकी
सलाह को मान लिया।
(ज) 2 मार्च, 1917 को मिलिट्री कमाण्डरों ने अपने-अपने पदों से
त्यागपत्र दे दिया। सोवियत नेताओं एवं ड्यूमा नेताओं ने देश को चलाने के लिए
एक तदर्थ सरकार बनाई।
फरवरी 1917 की क्रांति के प्रभाव
(क) लेनिन ने रूस की नई सरकार के सामने निम्नांकित माँगें रखीं-
(i) युद्ध को बन्द कर दिया जाए।
(ii) भूमि काश्तकारों को दे दी जाए।
(iii) बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए।
उपर्युक्त उल्लेखित लेनिन के तीन मांगों को लेनिन की अप्रैल थिसिस कहा
जाता है।
(ख) गर्मी के दिनों में मजदूरों का आंदोलन फैल गया। औद्योगिक क्षेत्रों
में कमेटियाँ गठित की गई जो उद्योगपतियों से सवाल करने लगी कि वे किस तरह
से अपने-अपने कारखानों को चला रहे थे।
(ग) बड़ी संख्या में श्रम संगठनों का रूस में गठन हुआ।
(घ) सेना ने सिपाहियों को कमेटियाँ गठित कर दी गई।
(ङ) जून 1917 में लगभग 500 सोवियतों ने अपने प्रतिनिधि सोवियतों
की आल रसियन काँग्रेस में भेजे।
5. अक्टूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर― अक्टूबर क्रांति की प्रमुख घटनाएँ―
(क) अस्थायी सरकार एवं बोल्शेविकों में जैसे ही टकराव एवं संघर्ष
बढ़ा, तो लेनिन को डर हो गया कि अस्थायी सरकार कहीं तानाशाही की स्थापना
न कर दे।
(ख) सितम्बर 1917 में लेनिन ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने के
विषय में बातचीत करनी शुरू कर दी थी। सेना, सोवियतों एवं कारखानों में जो
बोल्शेविकों के समर्थक थे उन्हें साथ-साथ लाया गया।
(ग) 16 अक्टूबर 1917 को लेनिन ने पैट्रोगाड सोवियत तथा बोल्शेविक
पार्टी को सहमत कर लिया कि समाजवादी शक्ति को हथिया लें। लेनिन के नेतृत्व
में एक सैनिक क्रांतिकारी कमेटी को सोवियतों के द्वारा नियुक्त किया गया। घटना
की तारीख को गुप्त रखा गया।
(घ) 24 अक्टूबर को विप्लव शुरू हो गया। समस्या की बू आते ही
प्रधानमंत्री करेन्सकी ने शहर छोड़ दिया और सेना को बुला लिया। प्रात:काल में
ही अस्थायी सरकार के प्रति जो सेना वफादार थी उसने बोल्शेविक अखबारों की
दो इमारतों पर कब्जा कर लिया। सरकार समर्थक सेनाओं को टेलीफोन एवं
टेलीग्राफ कार्यालयों पर नियंत्रण करने तथा विन्टर पैलेस की रक्षा के लिए भेज
दिया गया।
(ङ) अन्य शहरों में भी विद्रोह हुए। विशेषकर मास्को में बड़ी भारी
लड़ाई हुई लेकिन दिसम्बर तक बोल्शेविकों ने मास्को-पैट्रोगाड क्षेत्र पर अपना
नियंत्रण स्थापित कर लिया।
अक्टूबर 1917 की क्रांति का प्रभाव
(क) चूँकि बोल्शेविक निजी सम्पत्ति के बिल्कुल खिलाफ थे इसलिए
नवम्बर 1917 तक सभी उद्योग एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इसका अर्थ
था इनका स्वामित्व एवं प्रबन्ध सरकार ने अपने हाथों में ले लिया।
(ख) भूमि को सामाजिक सम्पत्ति घोषित कर दिया गया और किसानों
को अनुमति दे दी गयी कि वे कुलीनों की भूमि हथिया लें।
(घ) परिवार की जरूरतों के अनुसार बड़े घरानों की भूमि को छोड़कर
बोल्शेविकों ने शेष को जबरदस्ती छीन लिया।
(ङ) श्रम संघों को दल के नियंत्रण में रखा गया।
(च) नवम्बर 1917 में बोल्शेविकों ने संविधान सभा के लिए चुनाव
कराये लेकिन वे बहुमत का समर्थन प्राप्त करने में विफल रहे।
(छ) मार्च 1918 में बोल्शेविकों ने अपने राजनीतिक विरोधियों के
प्रबल विरोध के बावजूद ब्रेस्ट लिटोवक्सो में शान्ति-संधि कर ली।
6. जार निकोलस द्वितीय के निरंकुश शासन प्रकृति का वर्णन करें जिसने
रूस को क्रांति के कगार पर ला दिया।
अथवा, जार निकोलस रूसी क्रांति के लिये किस हद तक जिम्मेदार
थे, उसका वर्णन करें।
उत्तर― 1970 ई० में रूस में एक क्रांति हुई जो इतिहास में अक्टूबर क्रांति के नाम
से भी प्रसिद्ध है। यह क्रांति विशेषकर राजनैतिक कारणों का यह रूस के जार
निकोलस द्वितीय के निरंकुश शासन का परिणाम थी।
रूस का जार, विशेषर निकोलस द्वितीय बिल्कुल उद्दण्ड और निरंकुश
शासक था। 1905 की क्रांति दबाने के पश्चात जार निकोलनस द्वितीय की
निरंकुशता बढ़ती ही गयी। उसने गुप्तचर विभाग का कार्य बहुत तेज कर दिया।
जिनका क्रांति से जरा-सा भी संबंध समझा गया उनको या तो मार दिया गया या
बंदी बना लिया गया या देश-निकाला दे दिया गया। जार अपनी सुन्दर रानी जरीना
के प्रभाव में था जबकि रानी जरीना पर रासपुटीन नामक ढोंगी सन्त का प्रभाव
था। यह ढोंगी सन्त दमन की नीति का बड़ा पक्षपाती था। कहते हैं कि यह एक
गुण्डा था जो कि चोरी के अपराध में पकड़ा गया था। बाद में उसने साधु का
वेष धारण कर लिया था। एक बार जब रानी और उसका इकलौता पुत्र बीमार
पड़े तो उसने यह कहा कि अपनी चमत्कारिक शक्ति से उनको ठीक कर देगा।
ठीक हो जाने पर रानी उसको बहुत मानने लगी। इतिहासकार रासपुटीन को 'होल
डैविल' के नाम से पुकारते हैं।
1905 ई० की क्रांति के कारण जार ने यह वायदा किया था कि वह रूस
में ड्यूमा अर्थात् पार्लियामेंट का निर्माण करेगा परन्तु बाद में निरंकुशता के कारण
उसने केवल ढाई महीने में ही उसे भंग कर दिया।
इसके अतिरिक्त जार ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर रखा था जसमें
भाँति-भाँति के लोग रहते थे जो सदा उसके लिए कोई न कोई समस्या खड़ी किए
रहते थे। इसके अतिरिक्त जार की साम्राज्यवादी नीति भी देश के लिए भयंकर सिद्ध
हुई क्योंकि निरन्तर युद्धों के कारण इतना धन व्यर्थ में गया कि देश में एक प्रकार
का आर्थिक संकट-सा आ गया और सारी जनता जार के विरुद्ध हो गई।
7. प्रथम विश्वयुद्ध में रूस के भाग लेने से उत्पन्न परिस्थितियाँ किस
प्रकार रूसी तानाशाही में गिरावट का कारण बनीं?
अधवा, प्रथम विश्वयुद्ध ने 1917 ई० की रूस की क्रांति लाने में क्या
प्रभाव डाला?
उत्तर― यूरोप में 1914 ई० से पहले दो शक्ति गुट स्थापित हो चुके थे। एक में
इंग्लैंड फ्रांस और रूस तथा दूसरे में जर्मनी, ऑस्ट्रिया और इटली थे। प्रथम
विश्वयुद्ध शुरू होने पर रूस बिना किसी पूर्व तैयार के अपने गुट का साथ देने
के लिए युद्ध में शामिल हो गया। पहले ही देश में धन, अस्त्रों-शस्त्रों तथा सेना
की कमी थी अतएव जबरदस्ती किसानों को भर्ती करके बड़ी संख्या में युद्ध के
मैदान में भेज दिया गया। लड़ने के साधनों, अस्त्र-शस्त्रों तथा रसद की कमी से
ये अनाड़ी युद्ध में बुरी तरह मारे गये। अनुमानतः छ: लाख सैनिक मारे गये, पाँच
लाख घायल हुए तथा बीस लाख कैदी बना लिये गयें जो लोग मारे गये, घायल
हुए या कैदी बने, उनके परिवारों एवं पड़ोसियों ने सरकार के प्रति विद्रोह का प्रबल
भावनाएँ पनपने लगीं।
अब लोग ऐसी सरकार को कभी सहन नहीं कर सकते थे। जब 7 मार्च,
1917 ई० को विद्रोह शुरू हुआ तो विद्रोहियों की संख्या निरन्तर बढ़ती चली गई
क्योंकि लोगों को पता चल चुका था कि जार के पास अब इतने सैनिक नहीं है
कि वह अपना निरंकुशवादी शासन बनाये रख सकें। यदि प्रथम विश्वयुद्ध में जार
भाग न लेता और रूसी सेना उसमें नष्ट न हुई होती तो वह अपने सैनिक बल पर
लोगों के विद्रोह को आसानी से कुचल डालता। इस प्रकार जार द्वारा प्रथम
विश्वयुद्ध में भाग लेना उसके लिये बड़ी विनाशकारी सिद्ध हुआ।
8. उन घटनाओं का वर्णन करें जो 1905 की क्रांति के लिए उत्तरदायी
थीं। इस क्रांतिकारी के दो महत्त्वपूर्ण प्रभावों का उल्लेख करे।
उत्तर― (क) 1904-1905 में रूस एवं जापान में युद्ध हुआ। युद्ध में रूस
जापान द्वारा पराजित कर दिया गया था। रूसी लोगों ने जार का जोरदार विरोध
करना शुरू कर दिया। उनका विश्वास था कि रूस की पराजय (जापान जैसे छोटे
देश के हाथों) इसलिए हुई क्योंकि जार युद्ध को ठीक ढंग से जारी रखने में विफल
रहा।
(ख) रविवार, 9 जनवरी, 1905 के दिन हजारों मजदूर पूर्णतया
शान्तिपूर्वक अपनी पलियों तथा बच्चों के साथ जार के महल की ओर अपने क्रोध
को प्रकट करने तथा उसे एक याचिका देने के लिए बढ़ रहे थे। जब श्रमिक विन्टर
पैलेस की ओर जार के पास जा रहे थे कि उन पर जार के अंगरक्षकों एवं सेना
ने गोली चला दी। एक हजार से अधिक लोग मारे गये तथा कई हजार लोग बुरी
तरह घायल हो गये।
इस घटना के फलस्वरूप 1905 में क्रांति हुई। यद्यपि इस क्रांति
को कुचल दिया गया था लेकिन "खूनी रविवार" की घटना के फलस्वरूप सम्पूर्ण
रूप में अप्रत्याशित तोड़-फोड़ एवं उपद्रव हुए। यहाँ तक कि इस क्रांति में सेना
तथा नौ सेना के कुछ दस्तों ने भी भाग लिया।
क्रांति का प्रभाव–
(क) जार ने इस क्रांति के बाद नागरिकों को कुछ अधिकार दे दिये।
वे अब मजदूर संघ बना सकते थे तथा उन्हें भाषण देने की स्वतंत्रता दे दी गई।
ड्यूमा का सत्र बुलाया गया।
(ख) 1905 की क्रान्ति के बाद रूस में एक नये ढंग का संगठन, जिसे
सोवियत नाम से जाना गया, गठित हुआ। इसने फरवरी तथा अक्टूबर 1917 की
दोनों क्रांतियों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
9. रूस की क्रांति के अंतर्राष्ट्रीय परिणामों की विवेचना करें।
अथवा, विश्व पर 1917 की रूसी क्रांति के क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर― 1917 की रूसी क्रांति के परिणाम–
(क) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी आंदोलन― रूसी क्रांति का
प्रभाव विश्वव्यापी था। 'मनुष्यों तथा नागरिकों के अधिकारों की घोषणा' में
शामिल सिद्धांतों की तरह मार्क्स के विचारों को भी व्यापक पैमाने पर लागू करने
की बातें कही गई। रूस ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मार्क्स के समाजवादी विाचरों का
प्रचार शुरू कर दिया, जिससे अन्य देशों में भी समाजवादी क्रांतियाँ हो सकी।
(ख) आर्थिक नियोजन― रूस में आर्थिक नियोजन प्रणाली बहुत सफल
हुई जिससे विश्व के कई राष्ट्रों ने अपने विकास के लिए भी आर्थिक नियोजन
प्रणाली को अपनाना शुरू किया।
(ग) श्रम की महत्ता बढ़ी : रूस में क्रांति के बाद हर व्यक्ति के लिए
काम करना अनिवार्य कर दिया गया। इससे श्रम को विश्व में एक नयी मर्यादा
मिली।
(घ) उपनिवेशों में स्वतंत्रता आंदोलन : नयी सोवियत सरकार को
राष्ट्रीय संघर्ष कर रही औपनिवेशिक जनता का मित्र समझा जाने लगा। क्रांति के
बाद रूस यूरोप का ऐसा एकमात्र देश था, जिसने विदेशी शासन से सभी राष्ट्रों
की स्वाधीनता का खुलकर समर्थन किया। रूसी क्रांति के फलस्वरूप कई
उपनिवेशों के लोगों ने साम्राज्यवाद विरोधी जन आंदोलन को तीव्र कर दिया।
(ङ) सार्वभौमिकता तथा अंतर्राष्ट्रीयवाद : अनेक समस्याओं को
जिसे अबतक राष्ट्रीय समस्याएँ मानी जाती थी, अब उन्हें पूरी दुनिया की चिंता का
विषय समझी जाने लगी। सार्वभौमिकता और अंतर्राष्ट्रीय, जो आरंभ से ही
समाजवादी विचारधारा के मूल सिद्धांत रहे हैं. पूरी तरह साम्राज्यवाद के विरोधी
थे―
रुसी क्रांति ने स्वाधीनता के आंदोलनों को भी प्रभावित किया और इस
प्रभाव के कारण इन आंदोलनों ने अपने लक्ष्यों को और व्यापक बनाकर उसमें
जनाबद्ध आर्थिक विकास द्वारा समाजिकता और आर्थिक समानता लाने का
सिद्धांत भी शामिल कर लिया।
इस तरह से रूसी क्रांति का विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा। रूसी क्रांति के बारे
में लिखते हुए स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा है कि 'इसने मुझे राजनीति
के बारे में अधिक सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से सोचने के लिए बाध्य किया।'
10. 1917 की रूसी क्रांति के मुख्य कारणों की विवेचना करें।
उत्तर― रूसी क्रांति के निम्नांकित कारण हैं―
(क) जार का निरंकुश शासन― जारा की रूसी राजसत्ता आधुनिक युग
की आवश्यकताओं से एकदम मेल नहीं खाती थी। जार निकोलस द्वितीय स्वयं भी
राजाओं के दैवी अधिकारों में विश्वास करता था। निरंकुश तंत्र की रक्षा को वह
अपना परम कर्तव्य मानता था।
(ख) किसानों की दयनीय स्थिति― 1861 ई० में भू-दास प्रथा का
उन्मूलन हो चुका था, मगर इससे किसानों की दशा नहीं सुधरी। उनकी जोते अभी
भी बहुत छोटी-छोटी थी और उनको विकसित करने तक का पूँजी भी किसानों
के पास न थी। किसानों की जमीन की भूख रूसी समाज के असंतोष का एक
महत्वपूर्ण सामाजिक तथ्य था।
(ग) मजदूरों की हीन दशा― रूस में औद्योगिकरण का आरंभ देर से
हुआ। फिर भी इसकी गति अच्छी थी मगर निवेश के लिए आधी से अधिक पूँजी
विदेशों से आई। विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी आसानी से मुनाफा बटोरने में थी
और मजदूरों की दशा सुधारने की उन्हें कोई चिंता नहीं थी। मजदूरों को कोई भी
राजनीतिक अधिकार प्राप्त न थे। इनकी दशा बहुत ही हीन थी।
(घ) जार का रूसीकरण की नीति― यूरोप और एशिया की विभिन्न
जातियों को पराजित करके रूसी जारों ने विशाल साम्राज्य खड़ा किया था। इन
जीते हुए क्षेत्रों की जनता की संस्कृतियों का महत्व कम करने की कोशिश की।
रूस के साम्राज्यवादी प्रसार उसे टकरायों में भी उलझाया और होने वाले युद्धों ने
रूसी राजसत्ता के खोखलेपन को और उजागर किया।
(ङ) समाजवादी विचारधारा का प्रचार―औद्योगीकरण के आरंभ के
बाद जब मजदूरों के संगठन बने तो उन पर समाजवादी विचारधारों का प्रभाव था।
1883 ई० में मार्क्स के एक अनुयायी जूयार्जी प्लेखानोव ने 'रूसी सामाजिक
लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया।
(च) प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की हार― जार ने अपने साम्राज्यवादी
महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए रूस को प्रथम विश्वयुद्ध में झोंक दिया।
यह घातक सिद्ध हुआ और रूसी निरंकुशतंत्र का अंत हो गया। रूसी सेना बुरी
वरह हार रही थी। लाखों सैनिक मारे जा चुके थे। सैनिकों की दशा पर सरकार
का कोई ध्यान नहीं था। इन्हीं कारणों से रूस में क्रांति होना अनिवार्य हो गया।
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