Jharkhand Board Class 9TH History Notes | फ्रांसीसी क्रांति:
JAC Board Solution For Class 9TH (Social Science) History Chapter 1
1. फ्रांस की क्रांति ने कौन-कौन से तीन विचारों को प्रोत्साहित किया?
उत्तर― स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारा।
2. लुई सोलहवाँ जब 1774 में फ्रांस की राजगद्दी पर बैठा उस समय
उसकी आयु क्या थी? वह किस परिवार से संबंधित था?
उत्तर― लुई सोलहवाँ जब 1774 में फ्रांस की गद्दी पर बैठा उस समय उसकी
आयु 20 वर्ष थी। वह शासकों के बूर्वो वंश से संबंधित था।
3. लिने क्या है, इसे कब समाप्त किया गया?
उत्तर― फ्रांस की मुद्रा, जिसे 1794 में समाप्त कर दिया गया।
4. टाइद का क्या अर्थ है?
उत्तर― चर्च द्वारा वसूल किया जाने वाला कर टाइद कहलाता है। यह कर कृषि
उपज के दसवें हिस्से के बराबर होता था।
5. टाइल किसे कहते हैं?
उत्तर― सीधे राज्य को अदा किए जाने वाले कर को टाइल कहते हैं।
6. जीविका संकट किसे कहते हैं?
उत्तर― ऐसी चरम स्थिति जब जीवित रहने के न्यूनतम साधन भी खतरे में पड़ने
लगते हैं तब उसे जीविका संकट कहते हैं।
7. आधुनिक विश्व के निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले
तीन घटनाओं के नाम लिखें।
उत्तर―(क) फ्रांस की क्रांति, (ख) रूस की क्रांति, (ग) नाजीवाद का उदय
एवं अंत।
8. फ्रांसीसी क्रांति कब और कहाँ से शुरू हुई थी?
उत्तर― 14 जुलाई, 1789 की सुबह को पेरिस शहर में फ्रांस की क्रांति शुरू हुई
थी।
9. टाऊन हॉल के सामने कितने लोग इकट्ठे हुए थे, जिन्होंने जन सेना
के गठन करने का निर्णय लिया था?
उत्तर― लगभग 7000 आदमी एवं औरतें टाऊन हॉल के सामने इकट्ठे हुए थे
जिन्होंने जन सेना के गठित करने का निर्णय लिया।
10. प्रभावकारी पम्फलैट किसने लिखा, जिसे 'तृतीय एस्टेट' कहा गया?
उत्तर― अब्बे सीइयइस ने तीसरा वर्ग (थर्ड एस्टेट) क्या है, नामक पत्रिका लिखी
थी।
11. उस फ्रांसीसी कारागाह का नाम बताएँ, जिस पर लोगों ने धावा बोला
था। इसका क्या कारण था?
उत्तर― फ्रांस के सैकड़ों लोगों ने जेलखाने या किले पर हमला किया जो राजधानी
पेरिस में ही था। उसका नमा बेस्टील था। लोगो को आशा थी कि उन्हें
वहाँ पर एकत्र किया हुआ गोला-बारूद, हथियार आदि मिलेगा।
12. 'द गुइल्लोटाइन' शब्द का क्या आशय है?
उत्तर― गुइल्लोटाइन एक ऐसा उपकरण होता है जिसमें दो पोल (खम्भे) तथा
एक ब्लेड होता है जिसका प्रयोग किसी भी आदमी के सिर को धड़ से
अलग करने के लिए किया जाता है। इस यंत्र का नाम इसके आविष्कारक
डॉ० गुइल्लोटन के नाम पर ही रखा गया था।
13. फ्रांस में डिरेक्ट्री का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य क्या था?
उत्तर― जैकोबिन (सकार) के दिनों में जिस तरह एक ही व्यक्ति या कार्यकारिणी
सदस्य के हाथों में सत्ता का केन्द्रीयकरण हो गया था, उसे रोकना ही
फ्रांस में डिरेक्ट्री का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य था।
14. कन्वेन्शन शब्द का क्या आशय है?
उत्तर― नीरदलैंड्स में फ्रांस की सेनाओं की हार हुई। इसका उत्तरदायी क्रांतिकारियों
ने लुई को ठहराया और उसे उस पद से हटा दिया गया तथा कन्वेन्शन
की बैठक 20 सितम्बर 1792 ई० से शुरू हुई ताकि नया संविधान बनाया
जाय जिसमें राजतंत्र न हो।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. डिरेक्ट्री से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― रोब्सपियरे तथा उसके साथियों को मृत्युदंड देने के बाद देश में नया
संविधान लागू किया गया तथा देश का शासन पाँच डायरेक्टरों एक समिति
के हाथ में सौंप दिया गया। 1795 से 1799 ई० तक डायरेक्टरों ने फ्रांस पर
शासन किया परन्तु नेपोलियन के प्रभुत्व में आ जाने पर पहले उसने डायरेक्टरी के
एक काउंसल के रूप में कार्य किया परन्तु फिर 1804 ई० में डिरेक्ट्री को भंग
करके उसने अपने-आपको सम्राट घोषित कर दिया।
2. तीरे वर्ग (एस्टेट) की व्याख्या करें?
उत्तर― 1789 ई० में, जब फ्रांस की क्रांति आरम्भ हुई, फ्रांसीसी समाज
विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग और साधारण वर्ग में बँटा हुआ था। साधारण वर्ग जिसे
कोई भी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं थे, तीसरा वर्ग कहलाता था। इस वर्ग में किसान,
मजदूर, दस्तकार तथा मध्य वर्ग के लोग जैसे-अध्यापक, डॉक्टर, वकील, लेखक,
असैनिक अधिकारी आदि लोग सम्मिलित थे। इन सभी लोगों को कोई भी
राजनीतिक अधिकार प्राप्त न थे। इन्हीं लोगों ने फ्रांस की क्रांति में विशेषाधिकार
वर्ग का विरोध किया था।
3. लुई सोलहवाँ का परिचय दें और बताएँ कि उसकी फ्रांस की क्रांति
में क्या भूमिका थी?
उत्तर― लुई सोलहवाँ फ्रांस का एक निरंकुश शासक था। यह जिद्दी और बुद्धिहीन
व्यक्ति था। उसका चरित्र दुर्बल और स्वभाव अस्थिर था। वह सदा भोग-विलास
में डूबा रहता था। सरकारी अधिकारियों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं था। वह
सरकारी खजाने को व्यर्थ के कार्यों में लुटाता था। उसके गलत स्वभाव के कारण
ही फ्रांस की सरकार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। अंत में उसके
दोषी स्वभाव के कारण तथा चरित्र अच्छा न होने के कारण सन् 1792 में उसे
फाँसी दे दी गई।
4. रूसो का परिचय दें। उसकी फ्रांस की क्रांति में क्या भूमिका थी?
उत्तर― रूसो एक महान विचारक था। इसका प्रभाव फ्रांस की जनता पर अन्य
लेखकों तथा विचारकों की तुलना में सबसे अधिक पड़ा। उसकी पुस्तक
'सामाजिक समझौता' द्वारा लोगों को क्रांति के लिए प्रेरित करने वाले विचार मिले।
उसने लोगों के सामने एक ऐसे समाज की स्थापना का विचार रखा जिसमें उन्हें
स्वतंत्रता, समानता और न्याय की आशा थी। उसके इस नवीन विचारों ने क्रांतिकारी
विस्फोट को जन्म दिया।
5. वाल्टेयर का परिचय दें और बताएँ कि उसकी फ्रांस की क्रांति में क्या
भूमिका थी?
उत्तर― वाल्टेयर भी एक अन्य क्रांतिकारी लेखक था। उसने चर्च और राज्य की
बुराइयों को जनता के सामने कटु सत्य के रूप में रख दिया। उसका विश्वास था
कि प्राचीन प्रथाओं, अन्ध-विश्वासों तथा कट्टरताओं को उखाड़ फेंके बिना नवयुग
का आरंभ नहीं हो सकता अतः क्रांति आवश्यक है। इस प्रकार उसने क्रांति की
पृष्ठभूमि तैयार की।
6. नेपोलियन बोनापार्ट का परिचय दें। उसकी फ्रांस की क्रांति में क्या
भूमिका थी?
उत्तर― नेपोलियन फ्रांस का एक महान सेनापति था। उसने क्रांति के दिनों में फ्रांस
का मान काफी समय तक ऊँचा किए रखा और उसके नाम को चार चाँद लगा
दिए। एक समय ऐसा था कि यूरोप के सब देश उसके नाम से काँपते थे। मनुष्य
होने के नाते उसकी शक्तियाँ सीमित थी इसलिए अंत में उसे यूरोप की संगठित
शक्ति के सामने झुकना पड़ा। 1815 ई० में वाटरलू की लड़ाई की हार हुई और
उसे बन्दी बनाकर सेन्ट हेलेना के टापू में भेज दिया गया जहाँ 1821 ई० में उसकी
मृत्यु हो गई।
7. 4 अगस्त, 1789 की रात्रि में फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने जो घोषणा की
थी उसके प्रमुख बिन्दु को लिखें।
उत्तर― (क) 4 अगस्त, 1789 की रात्रि को फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने
सामन्तवादी व्यवस्था की एक घोषणा कर पूर्णतया समाप्त कर
दिया।
(ख) पादरी वर्ग के सदस्यों को अपने विशेषाधिकार त्यागने के लिए
विवश किया।
(ग) दसवाँ (टिथेस) भाग कर का उन्मूलन हो गया तथा चर्च के पास
जिन भूमियों का स्वामित्व था उनको छीन लिया गया।
(घ) इस घोषणा के परिणामस्वरूप फ्रांस की सरकार ने लगभग दो
अरब लीवर्स (फ्रांस का एक सिक्का) के बराबर की सम्पदा प्राप्त
की।
8. फ्रांस एक संवैधानिक राजतंत्र बन गया। कैसे?
उत्तर― (क) फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने 1791 में संविधान के ड्राफ्ट को पूरा
किया गया। इस (संविधान) का मुख्य उद्देश्य निरंकुश राजा की शक्तियों को
सीमित करना था।
(ख) राजनीतिक शक्तियों को किसी एक व्यक्ति के हाथ में केन्द्रित
करने की बजाय सरकार के विभिन्न अंग जैसे कि व्यवस्थापिका, कार्यकारिणी एवं
न्यायपालिका नामक विभिन्न संस्थाओं में बाँट दिया गया। इस कदम ने फ्रांस के
राज्य प्रमुख की स्थिति बिल्कुल ब्रिटेन के राजा या रानी जैसी ही हो गई।
9. फ्रांस की क्रांति से पूर्व पादरी वर्ग और कुलीन वर्ग के जीवन पर
प्रकाश डालें?
उत्तर― पादरी वर्ग– रोमन कैथोलिक चर्च के पादरी लोग बहुत धनी थे और
बड़ी-बड़ी जागीरों के मालिक थे। उन्हें बहुत से विशेषाधिकार प्राप्त थे। उनका
जीवन बहुत विलासी था। वे धर्म की आड़ में अनेक पाप, दुराचार और व्यभिचार
करते थे। चर्च के काम के लिए उन्होंने छोटे पादरी अथवा सेवक लगा रखे थे
जिन्हें बहुत कम वेतन देकर तथा अनुचित दबाव डालकर वे उनसे काम निकलवा
लेते थे। यह श्रेणी राजा के पक्ष में थी।
अभिजात या कुलीन वर्ग– इस श्रेणी में बड़े-बड़े भूमिपति तथा सरकारी
अधिकारी आदि शामिल थे। इन लोगों के पास अपनी जागीरें होती थी। उन्हें अपने
इलाके में शराबखाने, आटे की चक्की तथा तन्दूर खोलने का विशेषाधिकार प्राप्त
होता था। उन्हें शिकार करने का भी विशेष अधिकार प्राप्त था। यदि उनके पशु
किसानों की फसल या खेती को बरबाद कर देते थे तो किसान उनके विरुद्ध भी
कुछ नहीं कर सकते थे। यह श्रेणी भी राजा के पक्ष में थी।
10. वाटरलू की लड़ाई कब और क्यों हई थी?
उत्तर― जून 1815 ई० में वाटरलू में लड़ा गया युद्ध 'वाटरलू' के नाम से प्रसिद्ध
है। इस युद्ध में एक और इंग्लैंड और मित्र देश थे तथा दूसरी ओर फ्रांस के राजा
नेपोलियन बोनापार्ट के नेतृत्व में फ्रांस की सेनाएँ थीं। वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन
बोनापार्ट हार गया और उसे बन्दी बनाकर सेंट हेलेना के द्वीप में भेज दिया गया
जहाँ पर सन् 1821 में उसकी मृत्यु हो गई। यह फ्रांस के एक परमवीर योद्धा का
दुखद अंत था।
11. फ्रांस की क्रांति से पूर्व फ्रांस के किसानों की दशा का वर्णन करें।
उत्तर―फ्रांस की कुल जनसंख्या का लगभग 80% जनसाधारण किसान थें उनका
जीवन-स्तर बड़ा निम्न था। कुछ किसानों के अपनी भूम थी परन्तु अधिकांश किसान
भूमिहीन थे, जिन्हें कृषि-दास कहा जाता था। वे उच्च वर्ग की भूमि पर खेती करते
थे। लगान एवं अन्य कर देने के पश्चात् उसकी पास अपनी उपज का केवल 17%
ही शेष रह जाता था। इस आय से उन्हें पेटभर भोजन भी नहीं मिल पाता था। भूमिहीन
किसानों से बेगार ली जाती थी। उनकी दशा पशुओं से भी बुरी थी।
12. फ्रांस की क्रांति से पूर्व फ्रांस की आर्थिक दशा का वर्णन करें।
उत्तर― अनेक युद्धों में भाग लेने के कारण फ्रांस की आर्थिक दशा बहुत बिगड़
गई थी। वहाँ के सम्राटों-लुई 14वें, लुई 15वें एवं लुई 16वें के विलासी जीवन
ने देश की आर्थिक स्थिति को और अधिक बिगाड़ दिया था। कर प्रणाली भी
अच्छी नहीं थी। करों का भार जनता पर था और धनी लोग करों से मुक्त थे। जनता
से लिए गए करों की पूरी राशि भी सरकारी खजाने में जमा नहीं होती थी।
13. नेपोलियन का पतन क्यों हुआ?
उत्तर― पतन के कारण―
(क) 1798 ई० से लेकर 1815 ई० तक नेपोलियन ने लगभग 60 युद्ध
लड़े थे जिसमें लगभग 4,000,000 लोग मारे गए थे। इस पर लोग युद्ध से ऊब
चुके थे और हर हालत में नेपोलियन को समाप्त कर देना चाहते थे।
(ख) नेपोलियन अंतर्राष्ट्रीय युद्धों में उलझ गया और उसके पतन का
सबसे मुख्य कारण बन गया रूस पर आक्रमण। 1812 ई० में रूस पर आक्रमण
करके उसने अपने पतन का दरवाजा खोल दिया। रूस के साथ युद्ध में उसकी
सेनाओं की करारी हार हुई।
(ग) नेपोलियन का पतन वास्तव में 1815 ई० में वाटरलू के युद्ध में
हुआ। यह युद्ध नेपोलियन तथा अंग्रेजी सेनापति आर्क वैलजली के अधीन लड़ा गया।
इस युद्ध में हारने के पश्चात् उसे सेंट हेलेना नामक टापू में भेज दिया गया जहाँ
1821 ई० में उसकी मृत्यु हो गईं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. फ्रांस में क्रांति की शुरूआत किन परिस्थितियों में हुई? वर्णन को
उत्तर― फ्रांस की क्रांति के मुख्य कारण निम्नांकित थे–
(क) राजनीतिक कारण― फ्रांस में एकतंत्रीय, स्वेच्छा और निरंकुश
शासन था। राजा शासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था। फलतः शासन में
भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया था। राज्य की संपूर्ण आय पर राजा का निजी
अधिकार था। फ्रांस की सरकार निरंकुश होने के अलावा अव्यवस्थित भी थी। वहाँ
न्याय प्राप्त करना पत्थर पर दूब जमने की आशा करना था। देश में कानून की
एकरूपता का अभाव था। वहाँ के लोगों को किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं थी।
राजा की निरंकुशता के विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठा सकता था। भाषण, लेखन,
प्रकाशन आदि पर जबरदस्त प्रतिबंध था। इससे जनता में असंतोष भीतर-ही-भीतर
बढ़ता जा रहा था।
(ख) सामाजिक कारण―फ्रांस का समाज तीन वर्गों में बँटा था-पादरी
वर्ग, सामंत वर्ग और साधारण वर्ग। पादरियों एवं सामंतो को विशेष अधिकार प्रान्त
थे। चर्च एवं सामंतों के पास बड़ी-बड़ी जागीरें थीं। पर, उन्हें कोई कर देना नहीं
पड़ता था। किसान और मजदूर तीसरे वर्ग में आते थे। वे करो के बोझ से दबे हुए
थे। उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं था। उस समय फ्रांस का शासक लुई सोलहवाँ
बड़ा ही अयोग्य शासक था।
(ग) आर्थिक कारण―फ्रांस की आर्थिक व्यवस्था भी बड़ी ही दयनीय
थी। आय और व्यय का कोई बजट तैयार नहीं होता था और इसका न कोई ब्योरा
ही रखा जाता था। फ्रांस का व्यापारी वर्ग भी राजसत्ता से ऊब चुका था। एक
जगह से दूसरी जगह माल ले जाने के लिए बहुत तरह की चुंगी देनी पड़ती थी
फ्रांस की सेना भी तत्कालीन शासन से असंतुष्ट थी।
(घ) बौद्धिक कारण― फ्रांस की क्रांति में वहाँ दार्शनिकों का विशेष
हाथ रहा है। यदि फ्रांस में दार्शनिक नहीं होते तो वहाँ क्रांति भी नहीं होती। दार्शनिकों,
ने फ्रांस की दुर्बल एवं पीड़ित जनता की क्रांति का झंडा उठाने की प्रेरणा दी। इन
दार्शनिकों में मॉण्टेस्क्यू, वाल्टेयर, रूसो आदि प्रमुख थे। इन्हीं की प्रेरणा से फ्रांस
की जनता ने अत्याचारी शासन का अंत करने का निश्चय किया।
(ङ) तात्कालिक कारण- पेरिस में बास्तिल नामक एक बड़ा दुर्ग था
जो जेल के रूप में प्रयुक्त होता था। इसमें राजनीतिक कैदी रखे जाते थे। 14 जुलाई
1789 ई० को पेरिस की जनता ने बास्तिल के जेलखाने को तोड़ दिया और सभी
बंदियों को रिहा कर दिया। इसी के साथ फ्रांस की शांति का आरंभ हो गया।
2. फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रांति का फायदा मिला, कौन-से
समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रांति के नतीजों से समाज के किन
समूहों को निराशा हुई होगी?
उत्तर― फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रांति का फायदा मिला-
सर्वसाधारण श्रेणी के फ्रांस के सभी लोगों को क्रांति का लाभ रहा क्योंकि जब
उन्हें सभी प्रकार के कर पुरोहित श्रेणी और कुलीन श्रेणी को देने पड़ते थे, उन्हे
अधिकार नाम की कोई चीज प्राप्त नहीं थी। इस श्रेणी में गाँवों के किसान, शहर
के मजदूर और मध्य श्रेणी के लोग जैसे कर्मचारी, वकील, व्यापारी, चिकित्सकों
आदि लोग सम्मिलित थे। क्रांति के पश्चात् ऐसे लोगों को शोषण से मुक्ति मिली
और स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व के अधिकार प्राप्त हुए।
कौन से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए― उच्च वर्ग के लोग
जो प्रथम और द्वितीय वर्गों में आते थे, को अपनी शक्तियों से हाथ धोना पड़ता
क्योकि केवल इन्हीं लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त थे। ऐसे वर्गों में उच्च पादरी
सामंत और कुलीन लोग सम्मिलित थे। अब फ्रांस में समानता और बन्धुत्व के
आधार पर समाज का गठन किया गया।
क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी।
निःसन्देह जिन वर्गों के पास विशेषाधिकार थे उन्हीं को क्रांति के परिणामों
निराशा हो सकती थी। चर्च की संपत्ति को छीन लिया गया और उसे जनसाधारण
में बाँट दिया गया। ऐसे में पुरोहित श्रेणी को काफी निराशा हुई। इसी प्रकार जब
कुलीन श्रेणी के कर एकत्रित करने तथा खुलेआम शिकार करने के अधिकारों को
समाप्त कर दिया गया तो उन्हें भी क्राति के परिणामों से निराशा ही होने वाली
थी।
3. उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्रांति
कौन-सी विरासत छोड़ गई?
उत्तर― फ्रांस की क्रांति विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक
है। यूरोप के इतिहास पर इसका विशेष प्रभाव पड़ा। इसने संसार को स्वतंत्रता,
समानता और बन्धुत्व के तीन मुख्य विचार दिये जिनके कारण यह क्राति सदा के
लिए अमर हो गई। विश्व, विशेषकर यूरोप के इतिहास में इसका महत्व निम्नांकित
प्रभावों के कारण है–
(क) इसके कारण फ्रांस में सामंतवाद का अंत हुआ और देखते ही
देखते मध्य वर्ग के लोगों ने चर्च की जमीनें खरीद ली। उधर सरकार ने भी
भिजात वर्ग (अमीर वर्ग) की भूमियाँ हड़प लीं।
(ख) फ्रांस की क्रांति ने विशेषतः यूरोपीय देशों में तथा धीरे-धीरे विश्व
में लोकतंत्र के विचारों को पनपने में सहायता की। सरकार का उद्देश्य समस्त जनता
को सुखी बनाना हो गया न कि कुछ विशेष लोगों के अधिकारों का ध्यान रखना।
(ग) इस क्रांति ने संसार के लोगों में स्वतंत्रता की भावना कूट-कूट कर
भर दी और तत्पश्चात् जनता को अपनी प्रभुसत्ता का ज्ञान हुआ।
(घ) फ्रांस की क्रांति ने समानता के आधार पर अधिकार दिये जाने की
विचारधारा का प्रचार किया। इसके परिणामस्वरूप कानून की दृष्टि में अमीर-गरीब,
राजा-रंक आदि सबके अधिकार समान हो गए। शीघ्र ही वयस्क मताधिकार के
आधार पर बिना संपत्ति वाले लोगों, मजदूरों और किसानों आदि को भी राजनीतिक
अधिकार दिये जाने लगे।
(ङ) इस क्रांति ने बन्धुत्व के विचार को विश्व में फैलाया। इसी क्रांति
ने यह बताया कि देश के नव-निर्माण के लिये प्रेम, एकता और सहयोग आदि
सद्गुणों की अति आवश्यकता होती है।
(च) फ्रांस की क्रांति द्वारा विश्व में राष्ट्रीयता के विकास को प्रोत्साहन
मिला। फ्रांस की क्रांति से ही शिक्षा प्राप्त करके सभी देशों के शासक वर्ग ने अपनी
जनता का अधिक कल्याण करने के लिए प्रयल आरम्भ कर दिए और इस तरह
शासन में सुधार किया जाने लगा।
4. उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और
जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रांति से हुआ।
उत्तर― भारत में हम निम्नांकित छः मौलिक अधिकारों से लाभप्रद हो रहे हैं-
(क) समानता का अधिकार,
(ख) स्वतंत्रता का अधिकार,
(ग) शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार,
(घ) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार,
(ङ) शोषण के विरुद्ध अधिकार,
(च) संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
इन अधिकारों को निरीक्षण करें तो हमें आसानी से इस बात का ज्ञान हो
जाता है कि इनमें से बहुत से अधिकारों की उत्पत्ति का स्रोत फ्रांस की क्रांति ही
है–
(क) समानता का अधिकार― समानता का अधिकार फ्रांस की क्रांति
की ही देन है। फ्रांस के क्रांतिकारियों ने समानता के अधिकार को प्राप्त करने पर
बहुत जोर दिया क्योंकि वे अनेक प्रकार की समाज में व्याप्त असमानताओं से
अप्रसन्न थे। क्रांति के सफल होने पर एक ऐसे समाज की नींव पड़ी जो समानता
के नियमों पर आधारित थी पादरी और कुलीन वर्ग के सभी विशेषाधिकारों को
समाप्त कर दिया गया।
(ख) स्वतंत्रता का अधिकार : इस अधिकार की जननी भी फ्रांस की
क्रांति ही थी। इस क्रांति ने राजा के दैवी अधिकारों को समाप्त कर दिया और
जनसाधारण को सामन्तों और पादरी वर्ग द्वारा थोपे गए बहुत से बंधनों को
धाराशाही करके लोगों को मुक्ति दिलाई।
(ग) प्रजातंत्र की भावना को प्रोत्साहित करना : फ्रांस की क्रांति ने
फ्रांस के राजा और रानी को फाँसी पर चढ़ाकर देश में प्रजातंत्र की स्थापना की।
(घ) बन्धुत्व की विचारधारा को प्रोत्साहन देना : ऊँच-नीचे की सभी
दीवारों को तोड़ कर फ्रांस की क्रांति ने भाईचारे को प्रोत्साहित किया अब समाज
के सभी वर्गों-किसानों, मजदूर, कारीगरों, गरीबों, महिलाओं आदि के लिए अनेक
सुधार किये जाने लगे। ऐसी भावना के जागृत होने से सभी लोगों को विभिन्न
अधिकारों से लाभ उठाने के सुअवसर प्राप्त हो सके।
5. क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश
में नाना (अनेक) अंतर्विरोध थे?
उत्तर― इस कथन के विषय में विचारों के दो मत हैं कि क्या सार्वभौमिक
अधिकारों के संदश में अंतर्विरोध थे या नहीं।
बहुत से लेखक इस विचार के हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश,
की आलोचना नहीं की जा सकती। सम्भवतः नागरिक और मानव अधिकारों की
स्पष्ट घोषण करने का यह विश्व में पहला प्रयल था। इसमें मानव के तीन मौलिक
अधिकारों-स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व पर जोर दिया गया। यह विश्व की फ्रांस
की की क्रांति की महान देन है। लगभग सभी अधिकारों के प्रति यदि किसी को
कोई भ्रान्ति है तो वह अस्पष्ट है और तथ्यों से बहुत दूर है।
वास्तव में फ्रांस के क्रांतिकारियों की किसी और बात या घटना के लिये
तो आलोचना की जा सकती है कि उन्होंने रक्तपात में अपने हाथ रंगे परन्तु मानव
अधिकारों को इतिहास के रंगपटल पर रखकर उन्होंने प्रजातन्त्रीय धारणा को लाने
में बड़ा योगदान दिया और ऐसे में उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए।
मरा और केमली डेसमॉलिंस ने अवश्य हमें इन अधिकारों के प्रयोग में
सतर्क रहने की चेतावनी दी है। हर अधिकार सीमा रहित नहीं है। मेरा स्वतंत्रता का
अधिकार मुझे इस बात की आज्ञा नहीं देता कि मेरे मन में जो आए करता जाऊँ,
जब जी करें तो दूसरे की चीज उठा लूं या जब मन करे अगले के घर में घुस
जाऊँ। हर अधिकार की सीमा निश्चित है, उस सीमा को पार करने से विरोधाभास
हो सकते हैं। उसमें स्वतंत्रता के अधिकार की कोई गलती नहीं वह तो हमारी अपनी
गलती है कि हम किसी भी अच्छाई को बुराई में बदल दें। यदि अधिकारों का प्रयोग
करना हो तो हमें दूसरों के अधिकारों का भी ध्यान रखना है तब मानव अधिकारों
के संदेश में कोई विरोधाभास या प्रतिकूलता नहीं मिलेगी।
6. नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा ससकता है? वर्णन करें।
उत्तर― नेपोलियन का जन्म 1769 ई० में रोम सागर के द्वीप कोर्सिका की
राजधानी अजासियों में हुआ था। वह असाधारण प्रतिभा का स्वामी था। उसने
ब्रियनी और पेरिस के फौजी स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। सेना में भर्ती होकर वह
अपनी वीरता, असीम साहस और सैनिक योग्यता द्वारा उन्नति करता हुआ सेनापति
बन गया। उसने ब्रिटेन (1793 ई०), सार्जीनिया (1796 ई०) और आस्ट्रिया
(1797 ई०) के विरुद्ध विजय प्राप्त की। इसके शीघ्र ही पश्चात् वह डाइरेक्टरी
का प्रथम बना और थोड़े समय पश्चात् (1804 ई०) वह फ्रांस का सम्राट् बन
गया। नेपोलियन ने अपनी योग्यता तथा प्रशासकीय कुशलता के बल पर फ्रांस में
शांति और व्यवस्था स्थापित की। नेपोलियन की गिनती विश्व के महान सेनापतियों
में की जाती हैं वह बहुत परिश्रमी, इरादे का पक्का, तलवार का धनी और बहुत
वीर सैनिक था। जब पहली बार उसे इटली में फ्रांस की सेना का कमांडर बनाकर
भेजा गया तो उने अपनी मधुर वाणी से अपने सैनिकों में एक अद्भुत जोश भर
दि। बुरी दशाओं और संघर्षों का मुकाबला करने पर भी सधैनक उसके प्रति पूरी
वफादारी रखते थें इरादों का वह इतना पक्का था कि वह कहा करता था कि
असंभव शब्द मुखों के कोष में होता हैं 40 हजार सैनिकों के साथ आल्पस जैसे
कठिन एवं दुर्गम पहाड़ को पार करके उसने यह बात सिद्ध कर दी थी कि संसार
में कुछ भी असंभव नहीं है। नेपोलियन ने, जब वह सेंट हेलेना में कैद था, स्वयं
कहा था कि 'मेरा सच्चा गौरव इसमें नहीं है कि मैंने चालीस युद्ध जीते क्योंकि
वाटरलू की हार इन विजयें को कलंकित कर देगी परंतु जिसको कोई नहीं कर्लोकत
कर सकता तथा जो सदा रहेगा वह मेरा सिविल कोड है। आज भी फ्रांस, जर्मनी,
हॉलैंड, बेल्जियम, इटली और दक्षिणी अमेरिका के देशों में ये कानून कुछ परिवर्तनों
के साथ लागू है।
उसने प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा के साथ-सासथ तकनीकी एवं
व्यापारिक शिक्षा की व्यवस्था की। उसने अध्यापकों को राजकोष से वेतन देने की
पद्धति शुरू की।
उसने यातायात की सुविधा और व्यापार को विकास के लिए फ्रांस में
सड़कों का जाल बिछाया, नहरें बनवाई तथा पेरिस को एक अति सुंदर नगर बना
दिया। उसने 1800 ई० में 'फ्रांस के बैंक' की स्थापना की।
उसने सभी को योग्यता के आधार पर उन्नति करने के अवसर प्रदान किये।
वह निष्पक्ष होकर राज्य कर्मचारियों की नियुक्ति करता था। वह समाज में
रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और विशेष अधिकार नहीं पनपने देता था।
7. औलम्प दे गूज के घोषणा-पत्र में उल्लिखित मूलभूत अधिकार का
वर्णन करें।
उत्तर― ओलम्प दे गूज के घोषणा-पत्र में उल्लिखित मूलभूत अधिकार-
(क) औरत जन्मना स्वतत्रत है और अधिकारों में पुरुष के समान है।
(ख) सभी राजनीतिक संगठनों का लक्ष्य पुरुष एवं महिला के नैसर्गिक
अधिकारों को संरक्षित करना है। ये अधिकार है- स्वतंत्रता, संपत्ति, सुरक्षा और
सबसे बढ़कर शोषण के प्रतिरोध का अधिकार।
(ग) समग्र संप्रभुता का स्त्रोत राष्ट्र में निहित है जो पुरुषों एवं महिलाओं
के संघ के सिवाय कुछ नहीं है।
(घ) कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। सभ महिला
एवं पुरुष नागरिकों का या तो व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिनिधयों के माध्यम
से विधि-निर्माण में दखल होना चाहिए। यह सभी के लिए समान होना चाहिए। सभी
महिला एवं पुरुष नागरिक अपनी योग्यता एवं प्रतिभा के बल पर समान रूप से एवं
बिना किसी भेदभाव के हर तरह के सम्मान व सार्वजनिक पद के हकदार हैं।
(ङ) कोई भी महिला अपवाद नहीं है। वह विधिसम्मत प्रक्रिया द्वारा
अपराधी ठहरायी जा सकती है, गिरफ्तार और नजरबंद की जा सकती हैं पुरुषों की
तरह महिलाएं भी इस कठोर कानून का पालन करें।
8. 1791 में फ्रांस के संविधान की मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर― फ्रांस के 1791 के संविधान की मुख्य विशेषताएँ-
(क) फ्रांस के संविधान ने कानून बनाने संबंधी सभी शक्तियाँ नेशनल
एसेम्बली को दे दिया जिसके सदस्यों का अप्रत्यक्ष रूप से चयन होता था।
(ख) फ्रांस के नागरिकों ने निर्वाचक मण्डल या समूह के लिए मतदान
किया जिसने (निर्वाचक समूह ने) सभा का चुनाव किया। लेकिन यही सत्य है
कि सभी नागरिकों को मताधिकार नहीं दिया गया। केवल 25 वर्ष से ऊपर वाले
पुरुषों को ही मताधिकार मिला जो सरकार को एक मजदूर के तीन दिनों की
मजदूरी के समान कर दिया करते थे। उन्हें सक्रिय नागरिक का स्तर मिला। इसका
अर्थ था कि उन्हें मत देने का अधिकार मिल गया। फ्रांस के शेष सभी पुरुषों एवं
नारियों को निष्क्रिय नागरिक श्रेणी में रखा गया।
(ग) एक निर्वाचक कर्ता एवं राष्ट्रीय सभा का निर्वाचित सदस्य, वह
आदमी होता था जो सर्वाधिक कर भुगतानकर्ताओं की श्रेणी में आता था।
(घ) यह संविधान व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकारों की घोषणा के
साथ शुरू हुआ। अधिकार जैसे कि जीवन का अधिकार, भाषण की स्वतंत्रता,
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कानून के सामने समातना, स्वाभाविक एवं नागरिक को
देय माने गये जो जनम से ही हर व्यक्ति (मानव) से जुड़े हुए हैं और ये अधिकार
छीने नहीं जा सकते।
(ङ) इस संविधान ने घोषित किया कि यह राज्य का कर्तव्य है कि वह
प्रत्येक नागरिक के प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करे।
9. 'फ्रांस की एक डिरेक्ट्री का शासन' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर― फ्रांस की एक डिरेक्ट्री का शासन-
(क) डिरेक्ट्री का गठन : जैकोबिन सरकार के पतन ने फ्रांस के
अधिक सम्पत्तिवान मध्यम वर्गों को राजनीतिक सत्ता हथियाने की अनुमति दी। एक
नया संविधान लागू किया गया था जिसने फ्रांसीसी समाज के बिना संपत्ति वाले
सामाजिक वर्गों के लोगों को मताधिकार नहीं प्रदान किया।
(ख) नये संविधान ने दो निर्वाचित की जाने वाली विधान परिषदों की
व्यवस्था की। इन सभाओं ने चुनाव के बाद तब एक डिरेक्ट्री को नियुक्त किया।
इस डिरेक्ट्री ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यकारिणी के हाथों में शक्तियाँ केन्द्रित
न हों। जैसे कि जैकोबिन के अधीन राजनीतिक शक्तियाँ केन्द्रित होती थीं।
(ग) जो भी हो, इस डिरेक्ट्री के सदस्यों ने प्रायः विधायी परिषदों के
साथ झगड़ा किया, तब उसने इन्हें (अर्थात् निर्देशकों) पदों से अलग करने की
माँग की।
(घ) डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह नेपोलियन
बोनापार्ट के उत्थान के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
(ङ) सरकार के रूप में उपरलिखित परिवर्तनों के साथ आने वाली
शताब्दी में फ्रांस की क्रांति अपने आदर्शों-स्वतंत्रता, देश के कानून के सामने
समानता और भाईचारे की भावना से ओत-प्रोत फ्रांस तथा शेष यूरोप के लिए
राजनीतिक आंदोलनों को शुरू करने वाली प्रेरणा बनी रही।
10. 'फ्रांस में दासता का उन्मूलन' विषय पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर― दासता का उन्मूलन–
(क) फ्रांस में संपूर्ण 18वीं शताब्दी में दाता का बहुत ही थोड़ी
आलोचना हुई। फ्रांस की राष्ट्रीय असेम्बली ने लम्बे वाद-विवाद किये कि क्या
आदमी के अधिकारों का विस्तार फ्रांस के सभी उपनिवेशों के लोगों सहित विस्तृत
कर दिया जाये अथवा नहीं हमें याद रखना चाहिए कि उस समय इंग्लैंड के बाद
फ्रांस का औपनिवेशिक साम्राज्य विश्व में सर्वाधिक विस्तृत था।
(ख) व्यापारिक लोंगों जिनकी आमदनी दास व्यापार पर ही निर्भर थी,
से भारी विरोध होने के डर से राष्ट्रीय एसेम्बली ने कोई भी कानून पस नहीं किया।
(ग) सन् 1794 में फ्रांस की सभा ने एक कानून पास करके सभी
दासों को स्वतंत्र कर दिया। जो भी हो यह एक अल्पकालिक उपाय साबित हुआ।
दस वर्षों के बाद नेपोलियन बोनापार्ट ने दासता को दुबारा मान्यता दे दी।
(घ) फ्रांस के बागान मालिकों ने लोगों को दास बनाना अपना अधिकार
समझा तथा अपने आर्थिक स्वार्थों के लिए अफ्रीकी नीग्रो को गुलाम बनाए रखा।
(ङ) अंतत: 1848 में फ्रांस के उपनिवेशों से दासता को समाप्त कर
दिया गया।
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