Jharkhand Board Class 9TH Hindi Notes | मेरे बचपन के दिन ― महादेवी वर्मा
JAC Board Solution For Class 9TH Hindi Prose Chapter 7
7. मेरे बचपन के दिन ― महादेवी वर्मा
1. बचपन की स्मृतियों में एक विचित्र-सा आकर्षण होता हैं कभी-कभी
लगता है, जैसे सपने में सब देखा होगा। परिस्थितियों बहुत बदल
जाती है।
अपनी परिवार में मैं कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्न हुई। मेरे परिवार में
प्रायः दो सौ वर्ष तक कोई लड़की थी ही नहीं। सुना है, उसके पहले
लड़कियों को पैदा होते ही परमधाम भेज देते थे फिर मेरे बाबा ने बहुत
दुर्गा-पूजा की। हमारी कुल-देवी दुर्गा थी। मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी
खातिर हुई और मुझे वह सब सहना नहीं पड़ा जो अन्य लड़कियों को
सहना पड़ता है। परिवार में बाबा फारसी और उर्दू जानते थे पिता ने
अंग्रेजी पढ़ी थी। हिंदी का वातावरण नहीं था।
(क) पाठ और लेखिका का नाम लिखें।
उत्तर― पाठ का नाम मेरे बचपन के दिन।
लेखिका का नाम - महादेवी वर्मा।
(ख) बचपन की स्मृतियों में विचित्र आकर्षण होता है?
उत्तर― बचपन में की गई अटखेलियाँ, क्रीड़ाएँ बड़ी सहज, स्वाभाविक और
मनोरंजक होती है, उनमें कृत्रिमता या व्यावहारिका का लेशमात्र नहीं होता
है। अतः आगे चलकर बचपन की स्मृतियाँ यथार्थ-जीवन के समक्ष विचित्र
जान पड़ती है।
(ग) लेखिका के परिवार में दो सौ वर्ष तक कोई लड़की न होने का क्या
कारण था?
उत्तर― लेखिका के परिवार में लड़की के जन्म को अशुभ माना जाता था।
इसीलिए उसे पैदा होते ही मार दिया जाता था। यही कारण था कि लेखिका
के परिवार में दो सौ वर्ष तक कोई लड़की नहीं थी।
2. हिंदी का उस समय प्रचार-प्रसार था। मैं सन् 1917 में यहाँ आई थी।
उसके उपरांत गाँधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया और आनंद भवन
स्वतंत्रता के संघर्ष का केन्द्र हो गया। जहाँ-तहाँ हिंदी का भी प्रचार
चलता था। कवि-सम्मेलन होते थे तो क्रास्थवेट से मैडम हमको साथ
लेकर जाती थीं हम कविता सुनाते थे। कभी हरिऔध जी अध्यक्ष होते
थे, कभी श्रीधर पाठक होते थे, कभी रत्नाकर जी होते थे, कभी कोई
होता था। कब हमारा नाम पुकारा जाए, बेचैनी से सुनते रहते थे। मुझको
प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था। सौ से कम पदक नहीं मिले होंगे उसमें।
(क) 1917 में स्वतंत्रता-संग्राम का क्या स्वरूप था?
उत्तर― 1917 में स्वतंत्रता-संग्राम शुरू हो चुका था। गाँधी जी के नेतृत्व में
सत्याग्रह आरंभ हो गया था। जन-जागरण के लिए तथा हिंदी के
प्रचार-प्रसार के लिए कवि-सम्मेलन आरंभ हो चुके थे। इलाहाबाद का
आनंद भवन स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बन चुका था।
(ख) सन् 1917 के आस-पास होने वाली कवि-सम्मेलन की एक झलक
दें।
उत्तर― सन् 1917 के आस-पास इलाहाबाद में हिंदी के कवि-सम्मेलन हुआ करते
थे। उन दिनों सम्मेलनों की अध्यक्षता अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध',
श्रीधर पाठक, जगन्नाथ 'रलाकार' जैसे महान कवि किया करते थे।
लेखिकाओं में सुभद्रा कुमारी चौहान प्रसिद्ध हो चुकी थीं। महादेवी वर्मा भी
मंचों पर स्थान पाने लगी थीं।
(ग) महादेवी ने किस-किस की अध्यक्षता में कवि-सम्मेलन में भाग
लिया?
उत्तर― महादेवी जी ने हरिऔध, श्रीधर पाठक, जगन्नाथ दास रत्नाकार आदि की
अध्यक्षता में कवि-सम्मेलन में भाग लिया।
3. उसी बीच आनंद-भवन में बापू आए। हम लोग तब अपने जेब-खर्च
में से हमेशा एक-एक, दो-दो आने देश के लिए बचाते थे और जब
बापू आते थे तो वह पैसा उन्हें दे देते थे। उस दिन जब बापू के पास
मैं गई तो अपना कटरोरा भी लेती गई। मैने निकालकर बापू को
दिखाया। मैंने कहा, 'कविता सुनाने पर मुझको यह कटोरा मिला है।'
कहने गले, 'अचछा, दिखा तो मुझको।' मैंने कटोरा उनकी ओर बढ़ा
दिया तो उसे हाथ में लेकर बोले, 'तू देती है इसे?' अब मैं क्या
कहती? मैंने दे दिया और लौट आई। दुख यह हुआ कि कटोरा लेकर
कहते, कविता क्या है? पर कविता सुनाने को उन्होंने नहीं कहा।
लौटकर अब मैंने सुभद्रा जी से कहा कि कटोरा तो चला गया। सुभद्रा
जी ने कहा, 'और जाओ दिखाने!' फिरा बोलीं, 'देखो भाई, खीर तो
तुमको बनाने होगी। अब तुम चाहे पीतल की कटोरी में खिलाओ, चाहे
फूल के कटोरे में-फिर भी मुझे मन ही मन प्रसन्नता हो रही थी कि
पुरस्कार में मिला अपना कटोरा मैंने बापू को दे दिया।
(क) स्वतंत्रता-संग्राम में महादेवी किस प्रकार सहायता करती थीं ?
उत्तर― महादेवी स्वतंत्रत-संग्राम के सयम अपने जेब खर्च में से हमेशा एक-एक,
दो-दो आने देश के लिए बचाती थीं और 'बापू' के आने पर उन्हें दे देती
थीं।
(ख) महादेवी के पास चाँदी का कटोरा कहाँ से आया था?
उत्तर― महादेवी के पास चाँदी का कटोरा कवि-सम्मेलन के द्वारा आया, जो उन्हें
पुरस्कार रूप में मिला था।
(ग) सुभद्रा कुमारी ने महादेवी से चाँदी के कटोरे के संबंध में क्या चाहा
था?
उत्तर― सुभद्रा कुमारी ने महादेवी से चाँदी के कटोरे के संबंध में कहा कि तुम
मुझे इसमें खीर बनाकर खिलाना।
4. मैं जब विद्यापीठ आई, तब तक मेरे बचपन का वही क्रम चला जो
आज तक चलता आ रहा है। कभी-कभी बचपन के संस्कार ऐसे होते
हैं कि हम बड़े हो जाते हैं, तब तक चलते हैं। बचपन का एक और
भी संस्कार था कि हम जहाँ रहते थे वहाँ जवारा के नवाब रहते थे।
उनकी नवाबी छिन गई थी। वे बेचारे एक बैंगले में रहते थे। उसी
कंपाउंड में हम लोग रहते थे। बेगम साहिबा कहती थीं-'हमको ताई
कहो!' हमलोग उनको 'ताई साहिबा' कहते थे। उनके बच्चे हमारी माँ
को चाची जान कहते थे। हमारे जन्मदिन वहाँ मनाए जाते थे। उनके
जन्मदिन हमारे यहाँ मनाए जाते थे। उनका एक लड़का था। उसको
राखी बाँधने के लिए वे कहती थीं। बहनों को राखी बाँधनी चाहिए।
राखी के दिन सवेरे से उसको पानी भी नहीं देती थीं। कहती थीं राखी
के दिन बहनें राखी बाँध जाएँ तब तक तक भाई को निराहार रहना
चाहिए। बार-बार कहलाती थीं 'भाई भूखा बैठा है राखी बैंधवाने के
लिए।'
(क) बचपन के संस्कार कैसे होते हैं?
उत्तर― बचपन के संस्कार बहुत मजबूत एवं पक्के होते हैं। वे आजीवन चलते रहते
हैं। बड़े होने पर भी वे प्रभाव बनाए रखते हैं।
(ख) बचपन के किस संस्कार का यहाँ उल्लेख है?
उत्तर― यहाँ बचपन के सांप्रदायिक एकता के संस्कार का उल्लेख है। लेखिका
के पड़ोस में जवारा के नवाब रहते थे। उनकी नवाबी छिन गई थी। वे एक
बंगले में रहते थे। उनके यहाँ का वातावरण बहुत अच्छा था।
(ग) 'ताई साहिबा' कौन थी? उनका स्वभाव कैसा था ?
उत्तर― नवाब की बेगम को सभी लोग 'ताई साहिबा' कहते थे। वे यही चाहती
भी थी। उनका स्वभाव बहुत अच्छा था। लेखिका और ताई साहिबा के
बच्चों के जनमदिन मिलकर इकट्ठे मनाए जाते थे।
5. वह प्रोफेसर मनमोहन वर्मा आगे चलकर जम्मू यूनिवर्सिटी के वाइस
चांसलर रहे, गोरखपुर यूनिवर्सिटी के भी रहे। कहने का तात्पर्य यह
है कि मेरे छोटे भाई का नाम वही चला जो ताई साहिबा ने दिया।
उनके यहाँ भी हिंदी चलती थी, उर्दू भी चलती थी। यों, अपने घर में
वे अवधी बोलते थे। वातावरण ऐसा था उस समय कि हम लोग बहुत
निकट थे। आज की स्थिति देखकर लगता है, जैसे वह सपना ही था।
आज वह सपना खो गया।
शायद वह सपना सत्य हो जाता तो भार की कथा कुछ और होती।
(क) प्रोफेसर मनमोहन वर्मा कौन थे? उन्हें यह नाम किसने दिया था?
उत्तर― प्रोफेसर मनमोहन वर्मा महादेवी वर्मा के छोटे भाई थे। उन्हें यह नाम जवारा
के नवाब की बेगम साहिबा ने दिया था।
(ख) ताई साहिबा के घर की भाषा का उल्लेख करें।
उत्तर― ताई साहिबा के घर में हिंदी बोली जाती थी, उर्दू भी चलती थी। वैसे घर
में अवधी की ही प्रधानता थी।
(ग) 'शायद वह सपना सत्य हो जाता तो भारत की कथा कुछ और
होती'-लेखिका किस सपने की बात कर रही हैं और क्यों?
उत्तर― महादेवी ने सम्प्रदाय की संकीर्ण भावना से परे प्रेम, सौहार्द, मानवता का
जो वातावरण बचपन में देखा यह बाद में नहीं देख सकी। इसीलिए वे
बचपन के इस सपने को आज तक भुला न सकी। यदि यही सपना सच
हो जाता तो आज भार-विभाजन की जो पीड़ा भोग रहा है, वह न भोगता।
वहाँ द्वेष के वातावरण की जगह प्रेम का वातावरण होता।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. लेखिका के जन्म के पूर्व लड़कियों की दशा कैसी थी?
उत्तर― लेखिका के जन्म के पूर्व लड़कियों की दशा काफी शोचनीय थी। उस
समय लड़कियों के जन्म पर उनकी हत्या कर दी जाती थी व उन्हें 'परमधाम
भेज दिया जाता था। उस समय लड़कियों के प्रति सामाजिक नियम
काफी कठोर थे। उन्हें शिक्षा के समान तो क्या किंचित अवसर प्रदान भी
नहीं किए जाते थे। वह किसी प्रकार के कार्यों में स्वतंत्र होकर भाग नहीं
ले सकती थीं। उनके विकास के संबंध में सामाजिक विचार काफी संकीर्ण
थे।
2. लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं?
उत्तर― लड़कियों के जन्म के संबंध में आज परिस्थितियाँ काफी बदल चुकी हैं।
आज आज लड़कियों व लड़ाके में सामाजिक-पारिवारिक अंतर नहीं किया
जाता। उन्हें ज्ञान-प्राप्ति के समान अधिकार प्रदान किए जाते हैं। रोजगार
के उचित अवसर प्रदान किए जाते हैं। आज लड़कियाँ किसी भी कार्य में
लड़कों से पीछे नहीं वह उनके कंधे-से-कंधा मिलाकार समाज व देश
की प्रगति में सहयोग दे रही हैं। लेखिका का उपर्युक्त कथन इस बात को
प्रभावित करता है कि आज लड़की के जन्म पर उसकी हत्या न करके
उसके उज्जवल भविष्य के प्रयास के लिए हम उन्मुख होते हैं।
3. लेखिका उर्दू-फारसी क्यों नहीं सीख पाई ?
उत्तर― लेखिका के परिवार में उनके बाबा ही फारसी और उर्दू जानते थे। वे चाहते
थे कि लेखिका भी उर्दू-फारसी सीख ले। परन्तु लेखिका की न तो उसमें
रूचि थी और न ही उन्हें यह लगा कि वे इसे सीख पाएँगी। एक दिन
मौलवी साहब पढ़ाने आए तो वे चारपाई के नीचे छीपी। उसके बाद वे नहीं
आए। इस तरह लेखिका उर्दू-फारसी नहीं सीख पाई।
4. लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन-किन विशेषताओं का
उल्लेख किया है?
उत्तर― लेखिका की माता सुसंस्कृत एवं सभ्य विचारों से सम्पन्न महिला थीं जो
पूजा-पाठ एवं नैतिक आचार-विचार से संपन्न थीं। उन्होंने लेखिका को
भी नैतिक शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से 'पंचतंत्र' की कहानियाँ पढ़ने
हेतु प्रेरित किया। वे लेखिका को विदुषी बनाना चाहती थीं क्योंकि स्वयं
वे भी (लेखिका की माता) लेख लिखा करती थी। संगीत-विद्या का भी
उन्हें ज्ञान था क्योंकि वह मीरा के पद विशेष रूप से गाया करती थीं।
इसके उनकी संगीत के प्रति रुचि व ईश्वर प्रेम का पता चलता है। वे प्रातः
समय ईश्वर भक्ति के भजन गाया करती थीं। संध्या समय भी ईश्वर पूजा
के नाम पर मीरा के पद दोहराया करती थीं। अपनी माता से सीखते हुए
लेखिका ने भी ब्रज-भाषा में लिखना आरंभ किया।
5. जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने
आज के संदर्भ में स्वण जैसा क्यों कहा है?
उत्तर― जवारा के नवाज के साथ महादेवी वर्मा के पारिवारिक संबंध सगे-
संबंधियों से भी अधिक बढ़कर थे। जवारा की बेगम ने ही इनके भाई का
नामकरण भी किया। वह हर त्योहार पर उनके साथ घुलमिल जाती थी।
ऐसे आत्मीय संबंधों की आज के समय में कल्पना भी नहीं की जा सकती।
आजकल तो हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे के दुश्मन ही बने हुए हैं।
6. महादेवी वर्मा की काव्य-प्रेरणा क्या थी?
उत्तर― महादेवी वर्मा को कविता लिखने की प्रेरणा माँ से मिली। उनकी माता
धार्मिक भजन लिखा भी करती थी और गाया भी करती थीं। यहीं से उन्हें
ब्रज भाषा में लिखने की प्रेरणा मिली। जब वे क्रास्थवेट कॉलेज, इलाहाबाद
में भरती हुई तो वहाँ उनका परिचय प्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान
से हुआ। दोनों के साथ-साथ रहने से उनका काव्य लिखने का उत्सह
बढ़ता चला गया। वे कवि-सम्मेलनों में जाने लगीं। अपनी रचनाएँ
'स्त्री-दर्पण' नामक पत्रिका में भेजने लगीं।
7. महादेवी के छोटे भाई के जन्म के अवसर पर ताई साहिबा ने क्या
फरमाइश की?
उत्तर― महादेवी के यहाँ जब छोटा भाई हुआ, तो ताई साहिबा ने पिताजी से कहा,
"देवर साहब से कहो, वे मेरा नेग ठीक करके रखें। मैं शाम को आऊँगी।'
वे कपड़े-वपड़े लेकर आई। हमारी माँ को चे दुलहन कहती थीं कहने लगीं
"दुलहन, जिनके ताई-चाची नहीं होती हैं वो अपनी माँ के कपड़े पहनते
हैं, नहीं तो छह महीने तक चाची-ताई की पहनाती है। मैं इस बच्चे के लिए
कपड़े लाई हूँ। यह बड़ा सुंदर है।"
8. महादेवी किस सपनों के पूरा होने पर भारत की दशा बदलने की बात
कही है?
उत्तर― महादेवी हिन्दू-मुस्लिम एकता का सपना पूरा होने की बात करती है। न
केवल हिन्दू-मुसलमान, बल्कि वे किसी भी प्रकार के भेदभाव से रहित
जीवन जीना चाहती है। उनका विश्वास है कि यदि ऐसा हो जाए तो भारत
का नक्शा बदल सकता है। भरत हर दृष्टि से उन्नत, शांत और समृद्ध देश
बन सकता है।
9. महादेवी को बचपन की कौन सी घटना याद आती है? कटोरे को
देखकर सुभद्रा ने क्या फरमाइश की?
उत्तर― लेखिका महादेवी को बचपन की एक बार की घटना याद आती है कि
एक कविता पर उन्हें चाँदी का कटोरा मिला। बड़ा नक्काशीदार, सुंदर।
उस दिन सुभद्रा नहीं गई थीं। सुभद्रा प्रायः नहीं जाती थीं कवि-सम्मेलन
में। मैंने उनसे आकर कहा, 'देखो, यह मिला।
सुभद्रा ने कहा, ठीक है, अब तुम एक दिन खीर बनाओ और मुझको इस
कटोरे में खिलाओ।
10. लेखिका ने छात्रावास में मराठी किससे सीखी?
उत्तर― सुभद्रा जी छात्रावास छोड़कर चली गई। तब उनकी जगह एक मराठी
लड़की जेबुन्निसा महादेवी के कमरे में रहने लगी। वह कोल्हापुर से आई
थी। जेबुन्निसा लेखिका का बहुत-सा काम कर देती थी। वह उसकी डेस्क
साफ कर देती थी, किताबें ठीक से रख देती थी और इस तरह उन्हें कविता
के लिए कुछ और अवकाश मिल जाता था। जेबुन मराठी शब्दों से
मिली-जुली हिंदी बोलती थी। लेखिका भी उससे कुछ-कुछ मराठी सीखने
लगी थी। वहाँ एक उस्तानी जी थीं-जीनत बेगम।
जेबुन तब 'इकड़े-तिकड़े' या 'लोकर-लोकर' जैसे मराठी शब्दों को
मिलाकर कुछ कहती तो उस्तानी जी से टोके बिना न रहा जाता था-'वाह!
देसी कौवा, मराठी बोली।'
11. महादेवी के परिवार में कन्याओं के साथ कैसा व्यवहार होता था?
उत्तर― महादेवी के बाबा और माता-पिता कन्यायों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार
करते थे। बाबा ने तो कुल-देवी दुर्गा की आराधना करके महादेवी को
माँगा था। माता-पिता ने भी महादेवी को खूब पढ़ाया-लिखाया, संस्कार
दिए। परन्तु उनके पुरखों का कन्याओं के साथ व्यवहार ठीक नहीं था।
पिछले 200 वर्षों से उनके कुल में यह कुपरंपरा थी कि कन्या को जन्म
लेते ही मार दिया जाता था।
12. स्वतंत्रता-आंदोलन में कवि-सम्मेलनों का क्या योगदान था?
उत्तर― 1917 ई० के आसपास भारत में स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था। कांग्रेस
सारे देश को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार
कर रही थी। इसी सिलसिले में हिंदी के कवि-सम्मेलन आयोजित किए
जाते थे। हरिऔध, श्रीधर पाठक, रत्नाकर जैसे राष्ट्रीय कवि इन सम्मेलनों
की शोभा बढ़ाते थे। इन्हीं के प्रयासों से हिंदी भाषा और स्वदेश के प्रति
प्रेम जागा।
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