Jharkhand Board Class 8 Hindi Notes | अमरूद का पेड़
JAC Board Solution For Class 8TH Hindi Chapter 8
पाठ का सारांश : 'अमरूद का पेड़' पाठ ज्ञानरंजन लिखित है। इस
निबंध में लेखक ने घर की चाहारदिवारी (अहाते) में लगे अमरूद के पेड़
से अपने जुड़ाव एवं उसके कारण घर में उपजे आनंद एवं आशंकाओं का
हृदयग्राही मार्मिक वर्णन किया है।
लेखक ने बताया है कि किस प्रकार अमरूद के पेड़ के उपजने पर लोगों
ने अनहोनी की आशंका जाहिर कर लेखक की माँ को डरा दिया। लेखक
उसी पेड़ के नीचे गोष्ठियाँ लगाता है। अतः उसे उस पेड़ से भावनात्मक लगाव
हो गया है। इस निबंध में टूटते परिवार के दृश्य को भी खींचा गया है। अब
लोग न्यूक्लियर परिवार में विश्वास करने लगे हैं। अतः बुढ़ापा (माँ-बाप) अब
दंडनीय एकांत बन गया है। इस एकांत को बूढ़े माँ-बाप अमरूद उपजने के
अपशकुन का प्रतिफल मान कटवाना चाहते हैं। किन्तु नयी पीढ़ी (पोता) इन
बातों में दकियानूस नहीं है। वह इन सामाजिक कुरितियों को नहीं मानता है।
इस निबंध में लेखक ने अंध विश्वास की जड़ों पर कुठाराघात कर भविष्य
में इनके उन्मूलन की संभावना को बतलाया है।
लेखक परिचय : 'अमरूद का पेड़' ज्ञानरंजन की रचना है। इस निबंध
में लेखक का असफल प्रयास और अगली पीढ़ी द्वारा उस अंध विश्वास पर रोष
प्रकट करना भविष्य में ऐसी चीजों के उन्मूलन के प्रति आशा जगाता है।
ज्ञानरंजन का जन्म 21 नवम्बर, 1931 ई० को महाराष्ट्र के अकोला में
हुआ था। हिन्दी कहानीकारों में सातवें दशक के ये उभरते कलाकारों में
अग्रगण्य हैं। इनकी प्रमुख रचनाओं में प्रेस के इधर और उधर, यात्रा, सपना
नहीं, क्षणजीवी आदि प्रमुख हैं।
बहुचर्चित साहित्यिक पत्रिका 'पहल' का संपादन एवं प्रकाशन कार्य
इन्होंने सफलता पूर्वक किया है
अभ्यास प्रश्न
□ पाठ से:
1. लेखक को क्यों लगता है कि इन सब पिछड़े ख्यालों का हमारे
घर में गुजर नहीं हो सकेगा।
उत्तर―लेखक का परिवार पढ़ा लिखा था। वह सामाजिक कुरितियों,
मान्यताओं को नहीं मानता था। इसलिए कन्हैयालाल की पत्नी के टिप्पणी पर
उसने सोचा कि इस सब पिछड़े ख्यालातों का हमारे घर में गुजर नहीं। अर्थात्
मेरे घर वाले पिछड़े ख्यालों को न मानेंगे न भरोसा करेंगे। ऐसी दकियानुसी
सोच से हमारे घर में काई डरने वाला नहीं है। यह सब बेहूदी एवं फूहड़ बातें
हैं। इनमें कोई दम नहीं।
2. अमरूद के पेड़ की छाया किस प्रकार लेखक को उनके
भाई-बहनों के साथ जोड़ती है ?
उत्तर―अमरूद के पेड़ की छाया में बेंत की कुर्सियों पर बैठकर लेखक
और उसक तीन-चार भाई बहनों ने अपनो उम्र के फर्क को भूल, दोस्ताना हरकत
में बदल दिया। वहाँ बैठकर प्राय: नए-नए विषयों को कुरेदकर, कभी ताप उग्रता
के वशीभूत होकर भी बात-चीत उनके बीच मनोरंजन का अंग होतो जा रहा
था। अतः अमरूद का पेड़ भाईयों के बीच एकता का भाव पिरो रहा था।
3. लखक अपने घर वापस जाकर उदासी का अनुभव क्यों करता है ?
उत्तर―लेखक अपने घर वापस जाकर उदासी का अनुभव करने लगता
है। लेखक की माँ अमरूद के पेड़ को अशुभ मानकर कटवाना चाहती हैं।
तब लेखक को लगता है कि जब हम जिंदगी की बुलंदियों को छूने लगे हैं
तभी माँ को रूढ़ि और अशुभ के मिथ्या भय ने पराजित कर दिया। उसे दुःख
हुआ।
4. लेखक की माँ अमरूद के पेड़ के लगे रहने का क्या दुष्परिणाम
मानती थी?
उत्तर―लेखक की माँ अमरूद के पेड़ के लगे रहने के अपशकुन का
कारण अपने दिल में यह मान बैठी थीं कि बड़ी बहु की अलगाव भावना,
सबसे छोटे का निठल्लापन, खुद उनकी बीमारी और लोगों का धंधे से बिखर
जाना और कुछ नहीं है, बल्कि बहुत दिनों तक दरवाजे पर उसी अमरूद के
पेड़ के लगे रहने का दुष्परिणाम है।
5. लेखक को मिदु का क्षोभ क्यों अच्छा लगा?
उत्तर―लेखक ने जब माँ से अमरूद के पेड़ के बारे में पूछा तो माँ
ने उस पेड़ को अशुभ माना। ऐसा सुनकर मिदु के गुस्से को सहारा मिला।
वह इस बात से क्षुब्ध हो गया कि अमरूद का पेड़ भला अशुभ कैसे हो गया।
लेखक को यह अच्छा लगा कि हमारी आने वाली पीढ़ी इस तरह की
दकियानूसी बातों पर विश्वास करेगी ही नहीं।
6. आशय स्पष्ट करें– सूरज पिछवाड़े से पीपल के ऊपर आ रहा
है और जहाँ अमरूद का पेड़ था वहाँ धूप का एक चकत्ता तेजी से बड़ा
होता दीख पड़ा?
उत्तर―इन पंक्तियों का आशय यह है कि सूरज अर्थात् प्रकाश मिद्दु
के क्षोभ के रूप में पीपल अर्थात् अमरूद के पेड़ पर पड़े रहा था। धूप का
चकत्ता बड़ा हो रहा था। अर्थात् आने वाली पीढ़ियाँ इस तरह की दकियानूसी
बातों को तबज्जो देंगी ही नहीं।
□ पाठ से आगे:
1. पर्यावरण संरक्षण से संबंधित नारा लिखें।
उतर― (i) धरती माता करे पुकार
शुद्ध पर्यावरण की है दरकार।
(ii) यदि जल हम नहीं बचाएँगे, जिंदा कैसे रह पाएँगे।
2. अपने आस-पड़ोस पल रहे अंध-विश्वासों की एक सूची बनाइये
और इनके उन्मूलन के लिए कुछ सझाव बताएँ।
उत्तर― हमारे पास पड़ोस में डायन पका, झाड़-फूंक प्रथा, टोना टोटका
प्रथा जैसे अंधविश्वास घर फर गए हैं। इन। उन्मूलन हेतु सुझाव इस प्रकार
है―
(i) झारखंड में डायन प्रथा अधिनियम 2001 प्रभावी है। इसे सख्ती से
लागू कर इनपर नियंत्रण संभव है।
(ii) डायन एक कुप्रथा है. अंध विश्वास है। इस पर सामाजिक
जागरूकता फैलाकर नियंत्रण संभव है।
(iii) झाड़-फूंक के बारे में भी सामाजिक चेतना फैलाना जरूरी है।
□ अनुमान एवं कल्पना :
1. "यह बात आसानी से महसूस की जा सकती थी कि माँ में विराट
मातृत्व है और वह भविष्य के लिए प्रतीक्षा कर सकती है, उसी तरह जैसे
हर माँ अपनी संतान के लिए दीर्घ, प्रतीक्षा किया करती हैं और फिर भी
'उसको अपना स्वप्न अधूरा लगता है।" एक माँ अपने बच्चों के भविष्य
के लिए किस प्रकार के सपने सँजोती होगी?
उत्तर―माँ अपने बेटे को सुखी देखना चाहती है। समाज में सर्वोच्च
शिखर पर पहुँचा देखना चाहती है। इन सपनों में माँ बच्चों की परवरिश करती
है। किन्तु बच्चे जब सफल होते हैं तब वे अपनी पत्नी बच्चे के साथ परदेश
चले जाते हैं। माँ-बाप अकेले जीवन-यापन करने के लिए अभिशप्त हो जाते
है। तब उनका स्वप्न अधूरा लगने लगता है।
2. किसी के अहाते में फलदार वृक्ष और उन पर देर सारे फल
लगे हैं। उन फलो को देखकर बच्चों के मन में क्या क्या भाव उठते होंगे?
उन फलदार वृक्षों के मालिक फलों का क्या क्या करते होंगे? लिखिए।
उत्तर― हमें उन फलों को तोड़कर खाने की इच्छा होती है। माली से पिटाई
का डर भी लगता है। घर में गार्जियन से शिकायत का भी डर रहता है।
फलदार वृक्षों के मालिक फलों को पकाकर खाते होंगे। व्यापार करते
होंगे।
3. लेखक की मां का मन यह मान बैठा था कि घर की परेशानियों
का कारण उनके घर के दरवाजे पर लगे अमरूद के पेड़ का अशुभ
परिणाम था। यदि आप लेखक की जगह होते तो माँ के मन से यह अंध
विश्वास दूर करने के लिए क्या क्या करते।
उत्तर―हम माँ को अपने साथ ही रखते। उनकी सुविधा का ख्याल
रखते। उनके दुःख-सुख को समझते। तब वे इन दकियानूसी बातों पर भरोसा
नहीं करतीं।
★★★