Jharkhand Board Class 7TH Sanskrit Notes | भावे विद्यते देवः
JAC Board Solution For Class 7TH Sanskrit Chapter 10
पाठः― (शबर्याः आश्रमे लक्ष्मणेन सह रामस्य प्रवेश:)
अर्थ―शबरी के आश्रम में लक्ष्मण के साथ राम का प्रवेश ।
पाठः―शबरी – (सलक्ष्मणं रामं दृष्ट्वा पादयोः पतति) हे रघुनन्दन!
अर्थ― शबरी– (लक्ष्मण के साथ राम को देखकर चरणों में गिरती है।)
हे रघुनन्दन ।
पाठः―भवतः अनुपमदर्शनेन अद्य मम दीर्घकालेभ्यः कृतया प्रतीक्षया सह मम
जीवनम् अपि सफलं जातम् ।
(इति हर्षिताश्चणा चरणयुगलं सिञ्चति)
अर्थ― आपके अनुपम दर्शन से आज मेरी लम्बे समय से की गई प्रतीक्षा
के साथ मेरा जीवन भी सफल हो गया (इस प्रकार खुशी के आँसू
से युगल चरणों को सींचती है।)
पाठः―रामः ― (शबरी उत्थाप्य) मातः! उत्तिष्ठतु ! भवर्ती दृष्ट्वा आवाम्
अपि प्रसन्नौ स्व:।
अर्थ― राम― (शबरी को उठाकर) माता ! उठी। आपको देखकर हम
दोनों भी प्रसन्न हैं।
पाठः― शबरी – भगवन्! आगच्छताम् अस्मिन् शिलाखण्डस्थे आसने उपविशताम्
(उभौ उपविशतः शबरी पुनः पुनः पादयोः पतति।)
अर्थ― शबरी– भगवान् । आप दोनों आएँ पत्थर पर स्थित आसन पर बैठे।
(दोनों बैठते हैं, शबरी बार-बार चरणों में गिरती है।)
पाठ:―रामः – देवि ! अलम् अतिविनयेन।
अर्थ― राम– देवी। अत्यधिक विनय बेकार है।
पाठः― शबरी – (जलेन उभयोः चरणौ प्रक्षालयति) हे भक्तवत्सल!
अनेकजन्मार्जितेन अखण्डपुण्यफलेन भवतः देवदुर्लभ दर्शन प्राप्तम्।
अतः भवतः सान्निध्येन उत्पन्ना इयं मानवसुलभा मनोदशा।
(इति चरणयुग्म पूजयति)
अर्थ― शबरी– (जल से दोनों के चरणों को धोती है।) हे भक्तवत्सल!
अनेक जन्मों के अर्जित अखण्ड पुण्य फल से आपके देव-दुर्लभ
दर्शन प्राप्त हुए। इसलिए आपके सान्निध्य से उत्पन यह मानव के
द्वारा सुलभ मनोदशा है।
(इस प्रकार चरणों को पूजती है।)
पाठः―रामः – हे भद्दे। अस्मिन् निर्जने कानने भवती कथं तिष्ठति ?
अर्थ―राम–हे कल्याणी। इस सुनसान वन में आप कैसे रहती है?
पाठ:―शबरी- श्रीमन् । अहं गुरुणा महर्षिमतङ्गेन सह अस्मिन् वने
निवसामि स्म। गमनकाले सः मां बोधितवान् यत् सर्वशक्तिमान्
परमात्मा श्रीहरिः श्रीरामरूपेण पृथिव्याम् अवतरितः अस्ति। सः तव
आश्रमे आगमिष्यति। त्वं तावत् देह धारय।
अर्थ― शबरी– श्रीमान् । मैं गुरु महर्षि मतंग के साथ इस वन में रहती थी।
जाते समय उनहोंने मुझे बताया कि सर्वशक्तिमान परमात्मा श्रीहरि
श्रीराम रूप से धरती पर अवतरित हुए हैं। वे तुम्हारे आश्रम में
आएँगे। तुम तबतक देह धारण करो। अर्थात् अपने शरीर को बनाए
रखो।
पाठ:― रामः - परन्तु महर्षिः मतङ्गः कुत्र गतः?
अर्थ― राम– परन्तु महर्षि मतंग कहाँ गये?
पाठः―शबरी ― सः तु मुक्ति प्राप्तः। अतः अहं भवतः दर्शनस्य प्रतीक्षायाम्
अत्र निवसामि स्म। हे प्रभो! अहं तु निम्नजात्यां जाता अस्मि।
ज्ञानहीनता अपि अस्मि। न जानामि भक्तिः कथं क्रियते। अतः स्वयमेव
प्रसन्नो भवतु।
अर्थ― शबरी– वे तो मुक्ति को प्राप्त हुए। इसलिए मैं आपके दर्शन की
प्रतिक्षा में यहाँ रहती हूँ। हे प्रभु ! मैं तो निम्न जाति में जन्मी हूँ।
ज्ञान से हीन भी हूँ। मैं नहीं जानती हूँ कि भक्ति कैसे की जाती है?
इसलिए स्वयं प्रसन्न हों।
पाठ:― राम: – (सस्मितम्) मातः। भक्तिः न जातिम् अपेक्षते। ज्ञानं चापि न
पश्यति। केवलं श्रद्धां विश्वासं च अपेक्षते। श्रद्धा नाम गुरु वेदान्तवाक्येषु
विश्वासः इति।
अर्थ― राम– माता ! भक्ति जाति की अपेक्षा नहीं करती है। और ज्ञान को
भी नहीं देखती है। केवल श्रद्धा और विश्वास की अपेक्षा करती है।
श्रद्धा नाम गुरु वेदान्त वाक्यों में विश्वास ही है।
पाठ:―शबरी – अधुना आश्वसिताऽस्मिा भवते भोजनाय वन-सुलभं मधुरं
फलम् आनयामि। (फलम् आनयति। उच्छिष्ट कृत्वा भोजनार्थ रामाय
ददाति)
अर्थ― शबरी– अब मैं आश्वस्त हूँ। आपके भोजन के लिए वन में आसानी
से मिलने वाला मीठा फल लाती है। (फल लाती है।) जूठा कर
भोजन के लिए राम को देती है।
पाठ:― लक्ष्मणः-(सर्वं दृष्ट्वा. सक्रोधम्) एतत् किम् ? भवती उच्छिष्टं
फलं किमर्थ भगवते ददाति ?
अर्थ― लक्ष्मण– (सब कुछ देखकर : क्रोध के साथ) यह क्या ? आप
जूठा फल भगवान को किसलिए देती हैं?
पाठः― शबरी – शान्तं पापम्! शान्तं पापम्। हे सौमित्र! अहं तु मधुरं फलम्
अन्वेषयामि यत् रघुनन्दनाय रोचते। तिक्तम् अम्ल वा फलं मम
कोमलचित्ताय रघुनाथाय कष्टकर भविष्यति खलु।
अर्थ― शबरी-पाप को शान्त करें। पाप को शान्त करें। हे सुमित्रानंदन !
मैं तो मीठा फल लाऊँगी (लायी हूँ) । जो रघुनंदन को अच्छा लगता
है। तीखा या खट्टा फल मेरे कोमलचित वाले रघुनाथ को निश्चय
ही कष्टदायक होगा।
पाठ:― लक्ष्मणः– परन्तु..........।
अर्थ― लक्ष्मण– परन्तु...........।
पाठ:― रामः – (लक्ष्मणं मध्ये एवं अवरोध्य) हे लक्ष्मण! मा मैवम्।
अर्थ― राम– (लक्ष्मण को बीच में रोककर) हे लक्ष्मण ! ऐसा मत बोलो।
पाठ:― शबरी– प्रदत्तानि एतानि फलानि मह्यं बहु रोचते।
अर्थ― शबरी– दिये गये फल मुझे बहुत अच्छे लगते हैं।
पाठ:― लक्ष्मणः – परन्तु एतानि तु उच्छिष्टानि।
अर्थ― लक्ष्मण– परन्तु ये तो जूठे हैं।
पाठः― रामः – अनुज! एतानि अनन्य-प्रेम-श्रद्धा-भक्ति-मिश् रितानि न तु
उच्छिष्टानि।
अर्थ― राम– अनुज ! ये अत्यनत प्रेम-श्रद्धा और भक्ति से मिश्रित हैं न कि
जूठे हैं।
पाठः― लक्ष्मणः– किम् एषा न जानाति यत् उच्छिष्टानि फलानि न दातव्यानि।
अर्थ― लक्ष्मण– क्या यह नहीं जानतीं हैं कि जूठे फल नहीं देना चाहिए।
पाठः― रामः– सौमित्र! इयम् एव भक्तेः पराकाष्ठा। एतादृशाः एव ऋषयः
मुनयः भक्ताश्च जीवन्मुक्ताः कथ्यन्ते।
अर्थ― राम– सौमित्र ! यही भक्ति की पराकाष्ठा है। ऐसे ही ऋषि, मुनि
और भक्त जीवन से मुक्त कहे जाते हैं।
पाठः― शबरी– प्रभो! भवतः दर्शनेन पूजनेन सेवया च मम जीवनं सफल
जातम्। सम्प्रति आदिशतु भवान्, अग्निसमाधौ प्रवेष्टुम् इच्छामि। (इति
चरणयोः प्रणम्य तपोबलेन अग्निसमाधौ प्रविशति। ततः आकाशात्
आगते अलौकिक विमाने उपविश्य वैकुण्ठलोक प्रतिगच्छति।)
(उभौ निष्क्रामतः)
(नेपथ्ये स्तुतिः भवति)
नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय दैव्ये च तस्यै जनकात्मजायै।
नमोऽस्तु रुद्रेन्द्रयमानिलेभ्यो नमोऽस्तु चन्द्रार्कमरुद्गणेभ्यः ।।
अर्थ― शबरी– प्रभु! आपके दर्शन, पूजन और सेवा से मेरा जीवन सफल
हो गया। अब आप आदेश दें अग्नि समाधि में प्रवेश करना चाहती
हूँ।
(चरणों में प्रणाम कर तपोबल से अग्नि समाधि में प्रवेश करती हैं।
उसके बाद आकाश से आते हुए अलौकिक विमान पर बैठकर
वैकुण्ठ लोक की ओर चली जाती है।
(दोनों निकलते हैं)
(नेपथ्य से स्तुति होती है।)
राम, लक्ष्मण और देवी जनकपुत्री को नमस्कार है। रूद्र, इन्द्र, यम,
पवन, चन्द्र, सूर्य और रूद्र गणों को नमस्कार है।
अभ्यासः
प्रश्न संख्या 1 शब्दार्थ है।
2. अधोलिखिताना प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत―
(क) शबर्याः आश्रमे को प्रविशतः?
(ख) शबरी कस्य प्रतीक्षा करोति ?
(ग) शबरी कीदृशं फलं रामलक्ष्मणाय यच्छति ?
(घ) महर्षिमतगेन सह वने का निवसति स्म?
(ङ) का ज्ञानहीना असीत् ?
(च) लक्ष्मणस्य माता का आसीत् ?
उत्तर― (क) शबर्याः आश्रमे रामलक्ष्मणै प्रविशतः ।
(ख) शबरी रामस्य, प्रतीक्षा करोति ।
(ग) शबरी उच्छिष्टं फलं रामलक्ष्मणाय यच्छति ।
(घ) महर्षिमतङ्गेन सह वने शबरी निवसतिस्म।
(ङ) शबरी ज्ञानहीना असीत।
(च) लक्ष्मणस्य माता सुमित्रा आसीत्।
3. रेखांकित पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत ―
(क) शबरी जलेन उभयोः चरणौ प्रक्षालयति।
(ख) लक्ष्मणः सक्रोधम् पश्यति ।
(ग) रघुनंदाय फलं रोचते।
(घ) शबरी अग्नौ प्रवेष्टुम् इच्छति।
(ङ) महर्षिमतगः मुक्तिं प्राप्तः।
उत्तर―(क) शबरी केन उभयोः चरणौ प्रक्षालयति ?
(ख) क: सक्रोधम् पश्यति?
(ग) कस्मै फलं रोचते ?
(घ) शबरी कस्मिन/कत्र प्रवेष्टुम् इच्छति ?
(ङ) कः मुक्ति प्राप्तः?
4. अधोलिखितेषु यथापेक्षितं सन्धि विच्छेदं वा कुरुत ―
(क) निः + जनम् = ...............
(ख) भोजन + अर्थम् = ...............
(ग) ............... +............. = चन्द्रार्क:
(घ) ............... + ........... = आश्वसितोऽस्मि
(ङ) रुद्र + इन्द्र: = ...............
(च) जनक + आत्मजायै = ............
उत्तर―(क) निर्जनम्
(ख) भोजनाथर्म
(ग) चन्द्र + अर्कः
(घ) आश्वसितः + अस्मि
(ङ) रूदेन्द्रः
(च) जनकात्मजायै
5. मंजूषातः समुचितानि पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत―
फलानि अलम् पादयोः उच्छिष्टं सक्रोधम्
(क) शबरी पुनः पुनः ...........पतति।
(ख) शबरी फलम् ............कृत्वा रामाय ददाति।
(ग) लक्ष्मणः ..........… अवदत्।
(घ) ................... अतिविनयेन।
(ङ) प्रदत्तानि एतानि ................मह्यं बहु रोचते।
उत्तर―(क) पादयोः
(ख) उच्छिष्टं
(ग) सक्रोधम्
(घ) अलम
(ङ) फलानि
6. कोष्ठकेषु प्रवत्तेषु शस्त्रेषु समुचित विचलित भोमिया रिक्तस्थानानि
पूरयत―
(क) रामः सह वनं गच्छति । (लक्ष्मण)
(ख) ............... फलं रोचते। (राम)
(ग) शबरी ............फलानि आनपति। (रामलक्ष्मण)
(घ) स:............. कुप्यति। (तद्-स्त्री.)
(ङ) .................पुष्पकविमानम् अवतरति। (आकाश)
उत्तर― (क) लक्ष्मणेन
(ख) रामाय
(ग) रामलक्ष्मणाय
(घ) तस्यै
(ङ) आकाशात्
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