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 Jharkhand Board Class 10 History Notes |  भारत में राष्ट्रवाद  

 JAC Board Solution For Class 10TH ( Social science ) History  Chapter 3

                         (Nationalism in India)

प्रश्न 1. पहले विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में
किस प्रकार योगदान दिया? व्याख्या करें।
उत्तर―(i) युद्ध-व्यय की पूर्ति के लिए ब्रिटेन ने अपने उपनिवेशों पर
अतिरिक्त कर भार आरोपति किये, जिसके परिणामस्वरूप उपनिवेशों में विकट
आर्थिक एवं राजनीति स्थित उत्पन्न हुई। सरकार की आर्थिक नीतियों से वस्तुओं
की कीमतें अप्रत्याशित रूप से बढ़ गयीं।

(ii) भारी संख्या में भारतीय सैनिकों को युद्ध में झोंक दिया गया । गाँवों में
सिपाहियों को जबरन भर्ती किया गया।

(iii) उपर्युक्त परिस्थितियों के प्रति सरकार का रूख न सिर्फ उदासीन बल्कि
असहयोगात्मक रहा, जिसके परिणमस्वरूप लोगों में सरकार के प्रति असंतोष और
विद्रोह का भाव पनपा तथा लोग राष्ट्रवादी आंदोलन के लिए मजबूर हुए।

प्रश्न 2. भारतीयों में सामूहिक अपनेपन का भाव विकसित करने वाले
कारकों का उल्लेख करें।
अधवा, उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद
विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी ? कारण दें।
उत्तर―(i) उपनिवेशों में आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की परिघटना उपनिवेशवाद
विरोधी आंदोलन के साथ गहरे तौर पर जुड़ी हुई थी। भारत में भी आधुनिक
राष्ट्रवाद एवं सामूहिक अपनेपन के भाव का उदय इसी कारण हुआ।

(ii) औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ संघर्ष के दौरान लोगों में आपसी
एकता की भावना का संवार हुआ सभी जाति, वर्ग और संप्रदायों के लोग विदेशी
सत्ता के विरुद्ध संघर्ष के लिए एकजुट हुए।

(iii) उत्पीड़न और दमन के साझा भाव ने विभिन्न समूहों को एक-दूसरे से
बाँध दिया था। इस प्रकार औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लोग एक हुए तथा
उनमें राष्ट्रवाद के आदर्श का बोध जागृत हुआ ।

(iv) इसेन स्थानीय लोगों में राष्ट्रवादी और उदारवादी विचारों के आदान-प्रदान
के लिए एक अचछा प्लेटफार्म प्रदान किया। राष्ट्रवादी भावना के जागरण से
उपनिवेशों में किसी अन्य राष्ट्र की पराधीनता के विरुद्ध आन्दोलन की पृष्ठभूमि
तैयार हुई।
         इस प्रकार, उपनिवेश विरोधी आन्दोलन सभी उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के
विकास के लिए प्रजनन भूमि बना ।

प्रश्न 3. 'बहिष्कार' से क्या अभिप्राय है?
उत्तर―'बहिष्कार' विरोध का एक गाँधीवादी रूप है। बहिष्कार का अर्थ
है― किसी के साथ सम्पर्क रखने और जुड़ने से इन्कार करना, गतिविधियों में
हिस्सेदारी से स्वयं को अलग रखना तथा उसकी चीजों को खरीदने तथा इस्तेमाल
करने से इन्कार करना।

प्रश्न 4. सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब हैं?
उत्तर―(i) सत्याग्रह एक आधुनिक राजनीतिक दर्शन है जिसका प्रतिपादन
महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्षों में किया।

(ii) सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज
पर जोर दिया जाता है। इसका सीधा अर्थ यह था कि सच्चे उद्देश्यों के लिए
अन्यायी के खिलाफ किसी प्रकार के शारीरिक बल के प्रयोग की आवश्यकता
नहीं है।

(iii) प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता का सहारा लिये बिना, केवल
अहिंसा के बल पर अन्यायी की चेतना को जागृत कर उद्देश्य की प्राप्ति की जा
सकती है। अहिंसा, सत्याग्रह का मूल मंत्र था

(iv) अहिंसा के बल पर उत्पीड़क अथवा अन्यायी को सत्य को स्वीकार
करने के लिए विवश करना ही सत्याग्रह है, क्योंकि अन्ततः सत्य की ही विजय
होती है।

प्रश्न 5. जालियाँवाला बाग हत्याकांड पर संक्षिप्त निबंध लिखिए।
इसके क्या प्रभाव हुए?
अथवा, जलियाँवाला बाग हत्याकांड कब, कहाँ क्यों हुआ?
उत्तर―(i) 13 अप्रैल, 1919 को जालियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ। उस
दिन अमृतसर में बहुत सारे गाँव वाले सालाना बैसाखी मेले में शिरकत करने के
लिए जालियाँवाला बाग मैदान में जमा हुए थे।

(ii) लोग सरकार द्वारा लागू किये गये दमनकारी कानून 'रॉलेट एक्ट' का
विरोध प्रकट करने के लिए एकत्रित हुए। यह मैदान चारों तरफ से बंद था। शहर
से बाहर होने के कारण लोगों को यह पता नहीं था कि इलाके में मार्शल लॉ लागू
किया जा चुका है।

(iii) जनरल डायर हथियार बंद सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचा । सेन मैदन से
बाहर निकलने के सारे रास्तों को बंद कर दिया। इसके बाद उसके सिपाहियों ने
भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दीं। सैकड़ों लोग मारे गये।

(iv) प्रभाव―भारत के इतिास की यह सबसे दर्दनाक घटना था । इससे
भारत भर मे रोष की लहर फूट निकली। लोग सड़कों पर उत्तर गये और हड़तालें
होने लगीं। लोगों ने सरकारी इमारतों पर हमला किया और जगह-जगह पर लोगों
की पुलिस से भिड़न्त हुई। लोगों को आतंकित ओर अपमानित करने की मंशा
से सरकार ने इन विरोधों को निर्ममता से कुचला।

प्रश्न 6. खिलाफत आंदोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर―प्रथम विश्वयुद्ध में ऑटोमन तुर्की को भारी पराजय का मुंह देखना
पड़ा। अँग्रेजों ने यह घोषणा की कि, मुस्लिम जगत के आध्यात्मिक नेता
(खलीफा) का पद समाप्त कर दिया जायेगा। दुनिया भर के मुसलमानों ने इसका
तीव्र विरोध किया।
              भारत में खलीफा को बनाये रखने के लिए अली बंधुओं ने खिलाफत
समिति का गठन किया। 19 अक्टूबर, 1920 ई. को खलीफा पद की समाप्ति के
खिलाफ खिलाफत आन्दोलन की शुरुआत हुई।
    गाँधी जी ने इसे हिन्दू-मुसलमानों को एक मंच पर लाने का अवसर समझा
तथा 1920 ई. में काँग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में खिलाफ आंदोलन में
सहयोग करने की घोषणा की।

प्रश्न 7. असहयोग आंदोलन क्या था ?
अथवा, ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए गाँधी जी ने
असहयोग का रास्ता क्यों अपनाया ?
उत्तर―(i) प्रथम विश्वयुद्ध में महात्मा गाँधी के आह्वान पर भारतीय जनता ने
ब्रिटिश सरकार को तन-मन-धन से पर्याप्त सहायता की थी । युद्धकाल में ब्रिटिश
सरकार ने भारतीय जनता को लोकतंत्र की रक्षा का आश्वासन दिया था किन्तु
बाद में इसी सरकार ने रॉलट ऐक्ट जैसे काले कानून को भारतवर्ष में लागू कर
दिया।

(ii) निराशा की इसी दशा में सम्पूर्ण देश में असंतोष का वातावरण गरमा
गया। लोगों ने जगह-जगह पर हड़तालों के द्वारा अपने-अपने असंतोष की
अभिव्यक्ति और विरोधों का प्रदर्शन किया। सरकार ने इन विरोधों और हड़तालों
का क्रूरतापूर्वक दमन किया।

(iii) इसी समय 1919 ई. में जालियाँवाला बाग की लोमहर्षक और हृदयविदारक
घटना घटी।

(iv) महात्मा गाँधी ने इन स्थितियों का सूक्ष्मता एवं गम्भीरतापूर्वक आकलन
किया। इस आकलन ने उन्हें इस निष्कर्ष पर पहुँचाया कि यदि जनता किसी भी
कार्य में सरकार से सहयोग न करे तो सरकार नही चल सकती। जन असहयोग
के फलस्वरूप विवश होकर सरकार को जनता की मांगे माननी पड़ेगी ओर
स्वराज की स्थापना हो जायेगी। अतः गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन का नारा
बुलंद किया।

(v) गाँधी जी असहयोग आंदोलन को योजनाबद्ध तरीके से प्रारम्भ करना
चाहते थे। उनका विचार था कि सर्वप्रथम सरकार द्वारा दी गयी पदवियों को
लौटा दिया जाय तथा उसके बाद सरकारी नौकरियों तथा विदेशी वस्तुओं का
बहिष्कार कर दिया जाय ।

प्रश्न 8. असहयोग आन्दोलन में भारतीयों द्वारा अपनाए गये विभिन्न
तरीकों का उल्लेख करें।
उत्तर―(i) गाँधी जी असहयोग आंदोलन को योजनाबद्ध तरीके से प्रारम्भ
करना चाहते थे। उनका विचार था कि सर्वप्रथम सरकार द्वारा दी गयी पदवियों
को लौटा दिया जाय तथा इसके बाद सरकारी नौकरियों तथा विदेशी वस्तुओं का
बहिष्कार कर दिया जाय।

(ii) असहयोग आंदोलन का प्रारम्भ शहरी मध्यम वर्ग की हिस्सेदारी से प्रारंभ
हुआ। विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये, शिक्षकों ने तयागपत्र दे दिया,
वकीलों ने मुकदमें लड़ने बंद कर दिये तथा मद्रास के अतिरिक्त प्रायः सभी प्रांतों
में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया गया ।

(iii) विदेश वस्तुओं का बहिष्कार किया गया. शराब की दुकानों की
पिकेटिंग की गयी तथा विदेशी कपड़ों की होली जलायी गयी।

(iv) व्यापारियों ने विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इन्कार कर दिया। देश
में खादी का प्रचलन और उत्पदन बढ़ा।

(v) ग्रामीण इलाकों में जमींदारों को नाई-धोबी की सुविधाओं से वंचित
करने के लिए पंचायतों ने 'नाई-धोबी बंद' का फैसला किया।

प्रश्न 9.असहयोग आंदोलन असफल क्यों हुआ?
अथवा, अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असहयोग आंदोलन कहाँ तक
सफल रहा?
अथवा, 'बहिष्कार' से क्या अभिप्राय है ? गाँधी जी ने असहयोग
आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया?
उत्तर― 'बहिष्कार' विरोध का एक गाँधीवादी रूप है। बहिष्कार का अर्थ
है-किसी के साथ सम्पर्क रखने और जुड़ने से इन्कार करना, गतिविधियों में
हिस्सेदारी से स्वयं को अलग रखना तथा चीजों को खरीदने तथा इस्तेमाल करने
से इन्कार करना।
असहयोग आंदोलन की असफलता के कारण―
(i) योग्य नेतृत्व का अभाव―आंदोलन की शुरुआत गाँधी जी ने की तथा
शीघ्र ही यह आंदोलन देश के कोने-कोने में फैल गया। लोगों ने अति उत्साह
से इस आंदोलन में भाग लिया, लेकिन देश के अन्य भागों में योग्य नेतृत्व के
आव में वे सही दिशा से भटक गये।

(ii) आर्थिक कारण―विदेशी कपड़ों का बहिष्कार बड़े पैमाने पर किया
गया तथा लोगों को खादी का प्रयोग करने को प्रेरित किया गया। लेकिन खादी
का कपड़ा, मिलों में भारी पैमाने पर बनने वाले कपड़े की अपेक्षा काफी महँगा
था। गरीब इसे खरीद नहीं सकते थे। अतः जल्दी ही बहिष्कार की उमंग फीकी
की अपेक्षा काफी महँगा था। गरीब इसे खरीद नहीं सकते थे। अतः जल्दी ही
बहिष्कार की उमंग फीकी पड़ गयी।

(iii) वैकल्पिक व्यवस्था का अभाव―ब्रिटिश संस्थानों के बहिष्कार से
नयी समस्याएँ पैदा हुई। स्कूलों, कॉलेजों, अदालतों का बहिष्कार तो कर दिया
गया लेकिन वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की स्थापना नहीं हुई। इसके परणिामस्वरूप
शिक्षक और विद्यार्थी पुनः स्कूल में लौट गये तथा वकील दुबारा अदालतों में
दिखायी देने लगे।

(iv) हिंसा का मार्ग अपनाना―यद्यपि आंदोलन का प्रारंभ शांतिपूर्ण प्रदर्शनों
तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार से हुआ, लेकिन शीघ्र ही आंदोलन ने हिंसा का
मार्ग पकड़ लिया। हिंसा की चरम परिणति चौरी-चौरा कांड के रूप में हुई जब
उग्र आंदोलनकारियों ने एक थाने में आग लगा दी।

प्रश्न 10. कारण बताइए क्यों शहरों में असहयोग आन्दोलन धीमा पड़
गया?
उत्तर―(i) भारतीयों ने शुरू में बढ़-बढ़ कर स्कूल, कॉलेज, सरकारी
संस्थान एवं अदालतों का बहिष्कार तो किया पर उनके स्थान पर शिक्षा एवं
रोजगार की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं थीं। अत: शहरों में छात्र स्कूल-कॉलेजों
में और वकील अदालतों में लौट कर सरकारी व्यवस्था में सहयोग देने लगे। (ii)
भारतीय खादी के कपड़े विदेशी कपड़ों से महंगे होते थे। इस कारण से शहर के
गरीब पुनः विदेशी मिलों के कपड़े पहनने लगे।

 ◆ नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन

प्रश्न 1. साइमन कमीशन कब भारत आया था?
उत्तर―साइमन कमीशन 1928 में भारत आया था।

प्रश्न 2. साइमन कमीशन क्या था?भारत में उसका विरोध क्यों किया
गया?
अथवा, साइमन कमीशन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर―(i) 1927 ई. में ब्रिटेन की टोरी सरकार ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन
के जबाव में एक वैधानिक आयोग का गठन किया जिसे साइमन कमीशन के नाम
से जाना जता है। इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे।

(ii) इस आयोग का कार्य भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का
अध्ययन करना एवं तनुरूप सुझाव देना था। इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे।

(iii) भारत में इसका विरोध इसलिए किया गया कि इस आयोग में एक भी
भारतीय सदस्य नहीं था। सारे सदस्य अंग्रेज थे। 1928 में जब साइमन कमीशन
भरत पहुँचा तो उसका स्वागत 'साइमन कमीशन वापस जाओ' के नारों से किया
गया।

(iv) काँग्रेस और मुस्लिम लीग, सभी पार्टियों ने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।

(v) पंजाब में लाला लाजपत राय ने इस आयोग के विरुद्ध प्रदर्शन का नेतृत्व
किया। पुलिस ने उन पर इतनी लाठियाँ बरसायीं कि इस प्रकार से उनकी मृत्यु
हो गयी।

प्रश्न 3. डांडी यात्रा से आप क्या समझते हैं ? संक्षेप में लिखिए।
अथवा, डांडी मार्च अभूतपूर्व घटना साबित हुई, जिसने ब्रिटिश
साम्राज्य को हिला कर रख दिया। स्पष्ट करें।
अधवा, नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद
के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।
उत्तर―(i) गाँधी जी द्वारा अंग्रेजों द्वारा लगाये गये नमक कर के विरोध में
चलाया गया। आंदोलन नमक आंदोलन के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन
के अन्तर्गत गाँधी जी ने अपने गिने-चुने साथियों के साथ साबरमती आश्रम से
240 किमी दूर डांडी नामक तटीय कस्बे तक की पैदल यात्रा की। डांडी यात्रा
द्वारा ही गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की।

(ii) 6 अप्रैल को डांडी पहुँच कर गाँधी जीने समुद्र के पानी को उबाल कर
नमक बनाया था, और नमक कानून का उल्लंघन किया। डांडी यात्रा द्वारा ही
गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की।

(iii) स्वतंत्रता के लिए देश को एकजुट करने के लिए गाँधी जी ने नमक
को एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में देखा । नमक सर्वसाधारण के भोजन का
एक अनिवार्य हिस्सा था। अत: नमक कर को महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन
का सबसे दमनकारी पहलू बताया।

(iv) यद्यपि नमक आंदोलन का केन्द्रीय उद्देश्य नमक कानून का उल्लंघन
करना था, लेकिन इस आंदोलन ने अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय जनमानस में एक
राष्ट्रीय विरोध की भावना को जन्म दिया।

(v) नमक कानून तोड़कर गाँधीजी ने औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकर को अपने
सत्याग्रह के तरीके से जवाब दिया। इस आन्दोल के जरिये गाँधी जी ने समाज
के सभी तबकों को प्रभावित किया तथा उनहं उपनिवेशवाद क खिलाफ प्रतिरोध
के लिए प्रेरित कर दिया।
इस प्रकार, डांडी मार्च अभूतपूर्व घटना साबित हुई, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य
को हिला कर रख दिया।

प्रश्न 4. सविनय अवज्ञा आंदोलन क्या था? यह क्यों शुरू किया गया।
उत्तर―अत्यधिक महंगाई से उत्पन्न अराजक स्थिति के बीच अँग्रेजो धारा
नमक कानून लागू करने से जनता में आक्रोश व्याप्त था। गाँधी जी ने आन्दोलन
को हिंसात्मक होने से बचाने और सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से डांडी
यात्रा के द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत की। यह 1930 से 1934 ई०
तक चला। सविनय अवज्ञा आंदोलन गाँधीवादी प्रतिरोध का एक रूप था।
      सविनय अवज्ञा से गाँधी जी का अभिप्राय अंग्रेजों की शांतिपूर्वक अवज्ञा
करना अथवा उनके आदेशों की अवहेलना करना था। उनहोंने सविनय अवज्ञा
आंदोलन का प्रारंभ डांडी मार्च एवं नमक कानून का उल्लंघन कर किया।
     सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन से इस अर्ध में भिन्न था कि
जहाँ असहयोग आंदोलन में लोगों को अंग्रेजों के साथ सहयोग करने से मन
किया गया था वहीं सविनय अवज्ञा आन्दोलन में लोगों को औपनिवेशिक कानून
का उल्लंघन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया ।
 सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत देश के विभिन्न भागों में नमक कानून का
उल्लंघन किया गया, सरकारी नमक के कारखानों के सामने प्रदर्शन किया गया,
शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गयी, विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी
किसानों ने लगान तथा चौकीदारी कर चुकाने से इन्कार कर दिया, गाँवों में तैनात
कर्मचारी इस्तीफा देने लगे तथा लोगों ने लकड़ी तथा अन्य वनोत्पादों को बीनने
तथा मवेशियों को चराने के लिए आरक्षित वनों में फंसकर वन कानूनों का
उल्लंघन करना प्रारंभ कर दिया।
        इस प्रकार डांडी मार्च से शुरू हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन ने ब्रिटिश
साम्राज्य को हिला कर रख दिया ।

प्रश्न 5. सविनय अवज्ञा आंदोलन में विभिन्न वर्गों और समूहों ने क्यों
हिस्सा लिये।
उत्तर―विभिन्न वर्गों और समूहों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिसा लिया।
क्योंकि 'स्वराज' के मायने सभी के लिए अलग-अलग थे। जैसे-
(i) जयादातर व्यवसायी स्वराज को एक ऐसे युग के रूप में देखतेथे जहाँ
कारोबार पर औपनिवेशिक पाबंदियाँ नहीं होगी और व्यापार व उद्योग निर्वाध ढंग
से फल-पूल सकेंगे।

(ii) धनी किसानों के लिए स्वराज का अर्थ था, भारी लगान के खिलाफ
लड़ाई।

(iii) महिलाओं के लिए स्वराज का अर्थ था, भारतीय समाज में पुरुषों साथ
बराबरी और स्तरीय जीवन की प्राप्ति ।

(iv) गरीब किसानों के लिए स्वराज का अर्थ था, उनके पास स्वयं की
जमीन होगी, उन्हें जमीन का किराया नहीं देना होगा और बेगारनहीं करनी
पड़ेगी।

प्रश्न 6. राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए
थे? चर्चा कीजिए।
उत्तर―(i) राजनीतिक नेता भारत समाज में विभिन्न वर्गो-समुदायों का
प्रतिनिधित्व करते थे।

(ii) डॉ. भीमराव अम्बेदकर दलित वर्गों या दलितों का नेतृत्व करते थे
जबकि मुहम्मद अली जिन्ना भारत के मुस्लिम समुदायां का प्रतिनिधित्व करते थे।

(iii) ये नेतागण विशेष राजनीतिक अधिकारों और प्राीम निर्वाचन क्षेत्र
माँगकर अनुयायियों का जीवन स्तर ऊँचा उठाना चाहते थे।

(iv) गाँधी जी का मानना था कि पृथक निर्वाचन क्षेत्र भारत की एकता पर
प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

प्रश्न 7. पूना समझौता (पैक्ट) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर―(i) डॉ. अंबेदकर का मानना था कि दलित वर्ग की समस्याओं का
समाधान तथा उनकी सामाजिक अपंगता का निवारण केवल राजनीतिक सशक्तिकरण
के द्वारा ही किया जा सकता है। अतः उन्होंने दलितों के लिए पृथक निर्वाचन
क्षेत्र का जोर-शोर से समर्थन किया।

(ii) इस विषय पर गाँधी जी से उनका गंभीर विवाद हुआ। इसी बीच
सरकार ने अंबेदकर की बात मान ली। इसके विरोध में गाँधी जी ने आमरण
अनशन प्रारंभ कर दिया।

(iii) अन्य राष्ट्रवादी नेताओं की मध्यस्थता से गाँधी जी और अंबेदकर के
बीच सितंबर 1932 ई. में एक समझौता हुआ जिसे पून-पैक्ट के नाम से जाना
जाता है।

(iv) इन समझौते के अनुसार दलित वर्ग को प्रांतीय एंव केन्द्रीय विधायी
परिषदों में आरक्षित सीटें मिल गयीं।

(v) उनके लिए मतदान सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में ही होने की व्यवस्था की
गयी।

                                            ◆◆◆
और नया पुराने