Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | माता का आँचल ― शिवपूजन सहाय Solutions Chapter 1
प्रश्न 1. 'माता का आँचल' पाठ में बचपन की कैसी तस्वीर बनती है ?
उत्तर―'माता का आँचल' में लेखक ने अपने बचपन की मनोरम झाँकी प्रस्तुत
की है। लेखक ने बताया है कि किस प्रकार छुटपन में उसे अपने पिता और माता का
अपार स्नेह मिला। पिता ने भरपूर स्नेह दिया । वे आरंभ से अग्रज मित्र की भाँति रहे।
माँ ने उस पर असीम ममता लुटाई । उसने बचपन के संगी-साथियों के साथ मनचाही
शरारतें कीं, अठखेलियाँ की, मनोविनोद किया। वे नंगधडंग होकर खेले-कूदे और
मस्ती से भरपूर जीवन जिए। उनके लिए हर काम मानो एक क्रीड़ा थी।
प्रश्न 2.आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना
क्यों भूल जाता है ? [JAC 2011 (A); 2014 (A); 2016 (A)]
उत्तर―भोलानाथ को अपने साथियों के साथ खेलने में गहरा आनंद मिलता
है। वह साथियों को हुल्लडबाजी, शरारतें और मस्ती देखकर सब कुछ भूल जाता
है। उसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता है।
प्रश्न 3. इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण
है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते
हैं।
उत्तर―आज की ग्रामीण संस्कृति में अनेक परिवर्तन हो चुके हैं। आज कुओं
से सिंचाई होने की प्रथा प्रायः समाप्त हो गई है। उसकी जगह ट्यूबवैल आ गए
हैं। अब बैलों की जगह ट्रैक्टर आ गए हैं। आजकल पहले की तरह बूढ़े दूल्हे भी
नहीं दिखाई देते । आज धीरे-धीरे ग्रामीण अंचल मौज-मस्ती और आनंद मनाने की
चाल को भूलता जा रहा है। वहाँ भी भविष्य, प्रगति और पढ़ाई-लिखाई का भूत
सिर पर चढ़कर बोलने लगा है।
प्रश्न 4. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते
हैं। [JAC Sample Paper 2009; 2009 (S)]
उत्तर―बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को उनके साथ रहकर, उनकी
सिखाई हुई बातों में रुचि लेकर, उनके लिए खेल करके, उन्हें चूमकर, उनकी गोद
में या कंधे पर बैठकर प्रकट करते हैं।
प्रश्न 5.लेखक के पिता लेखक को प्यार से भोलानाथ कहकर क्यों बुलाते
थे?
उत्तर―लेखक के पिता शिवभक्त थे। वे अपने पुत्र में भगवान शिव के
अलमस्त रूप की झाँकी देखते थे। विशेष रूप से जब वह शिशु पूजा पर बैठता
था और चौड़े माथे पर तिलक-त्रिपुंड लगवाता था तो लंबी-लंबी जटाओं के बीच
में वह बम-भोला प्रतीत होता था। इसलिए उसके पिता उसे भोलानाथ कहकर
पुकारते थे।
प्रश्न 6. इस पाठ के आधार पर लेखक के पिता की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर―'माता का आँचल' के पिता भगवान के परमभक्त, परम स्नेही और भोले
स्वभाव के व्यक्ति थे। वे हर रोज सुबह-सबेरे उठकर शौचादि से निबटकर स्नान करते
थे और पूजा करने बैठ जाते थे। उसके बाद वे 'रामनामा' बही पर हजार बार राम
नाम लिखा करते थे। वे इससे उनके भक्त स्वभाव का परिचय मिलता है।
पिता स्वभाव से अत्यंत स्नेही तथा भोले थे। वे शिशुओं की लीला में शिशुओं
की भाँति सम्मिलित हो जाते थे। उनकी हँसी निर्दोष होती थी। उनके मन में अपने
पुत्र के प्रति असीम वात्सल्य था। वे माँ की भाँति बच्चे का भरण-पोषण करने
में भी कोई संकोच नहीं करते थे।
प्रश्न 7. इस पाठ के आधार पर पिता द्वारा पुत्र से लाड़ लड़ाने का दृश्य
प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर―लेखक के पिता अपने पुत्र (लेखक) से खूब लाड़ लड़ाते थे ।
कभी-कभी वे उसके साथ कुश्ती खेलने लगते थे। वे जान-बूझकर ढीले पड़ जाते
थे ताकि बच्चा कुश्ती में उनसे जीत जाए । प्रायः बच्चा पिता को जमीन पर गिराकर
उनकी छाती पर सवार हो जाता था तथा पिता की मूंछे उखाड़ने लगता था। उस
समय पिता उसके हाथों को मूंछों से हटाकर उन्हें चूम लेते थे। वे उसके गालों
को बार-बार चूमकर खट्टा-मीठा चुंबन करते थे । बच्चे को चुंबन देने में और पिता
की मूंछे उखाड़ने में बहुत मजा आता था।
प्रश्न 8. लेखक की माता बच्चे को किस युक्ति से खाना खिलाती थी?
उत्तर―लेखक की माता बाल-मनोविज्ञान का पूरा ध्यान रखती थी। वह
जानती थी कि बच्चे चिड़िया, कबूतर, मैना, तोता, हंस आदि के नामों से प्रभावित
होते हैं। इसलिए वह इनके नाम ले-लेकर बच्चे को खाना खिलाती थी। यद्यपि
बच्चे का पेट पहले ही भरा होता था, फिर भी वह माँ की काल्पनिक और लुभावनी
बातों में आकर ढेर सारा खाना खा जाता था।
प्रश्न 9. बच्चे प्रायः किन बातों से बहुत तंग होते हैं ?
उत्तर―बच्चे अलमस्त और फक्कड़ होते हैं। उन्हें पहनने और सजने-सँबरने
में कोई रुचि नहीं होती। इसलिए जब माताएँ उन्हें नहलाती हैं, धुलाती हैं, मालिश
करती हैं, सिर पर सरसों का तेल डालती हैं, काजल लगाती हैं, चोटी गूँथती हैं,
सिर पर फूलदार लटू बाँधती हैं, रंगीन कपड़े पहनाती हैं तो वे झल्ला जाते हैं।
वे इतना सजना-सँवरना नहीं चाहते। उन्हें अपने बालों में कंघी करवाना बहुत बड़ा
झंझट लगता है। अत: वे इन कामों में बहुत तंग होते हैं
प्रश्न 10. इस पाठ से आपको बाल-स्वभाव की कौन-सी जानकारी
मिलती है ?
उत्तर―इस पाठ से पता चलता है कि बच्चे अपने सुख-दुख को मन में नहीं
रखते । वे दुखी होते हैं तो उसे रो-चिल्लाकर प्रकट कर देते हैं। प्रसन्न होते हैं
तो हँसी-खुशी के माध्यम से व्यक्त कर देते हैं। इसलिए सिसकते-सिसकते एकदम
हँस पड़ना और खेलने लगना उनके लिए स्वाभाविक होता है। समझदार आदमी
बच्चों की इस क्रिया को अद्भुत मानता है, किन्तु वास्तव में यही स्वाभाविक है।
बच्चे कभी अपने मन पर बोझ नहीं रखते । वे अपने मन में तनाव नहीं रखते ।
इसलिए वे बातों को याद करके परेशान नहीं होते। जैसे ही उनके सामने कोई
रुचिकर प्रसंग आता है वे एकदम धूप में बारिश की तरह तरोताजा होकर
हँसने-खेलने लगते हैं।
प्रश्न 11. बच्चे के पिता बच्चों के खेल में क्यों आ जाते हैं ?
उत्तर―बच्चे के पिता बच्चों में गहरी रुचि लेते हैं। वे उन्हें प्रेम करते हैं।
इस कारण वे उनकी एक-एक क्रिया को बड़ी रुचि से देखते हैं । जब उनका खेल
पूरा होने लगता है तब वे अचानक वहाँ प्रकट हो जाते हैं। वे उनके खेल की सराहना
करने तथा अपना मनोरंजन करने के उद्देश्य से वहाँ पहुँचते हैं।
प्रश्न 12. गाँव के बच्चे प्रायः किस प्रकार के खेल करते थे?
उत्तर―गाँव के बच्चे प्रायः अपनी रुचि और आसपास के ग्रामीण वातावरण
के आधार पर खेल रचाया करते थे। बच्चों को मिठाई खाने में, शादी-ब्याह देखने
में, पिता के खेत-खलिहान में या माँ की रसोई में बहुत मजा आता है। इसलिए
वे हलवाई-हलवाई, घरौंदा बनाना, रसोई बनाना, शादी रचाना, खेत-खलिहान में
खेती करना आदि क्रीड़ाओं में रुचि लिया करते थे।
प्रश्न 13. पिता के आ जाने पर खेल खेलते सब बच्चे भाग क्यों जाते थे?
उत्तर―बच्चे खेल खेलते समय पूरी तरह मस्त होते हैं। वे मस्ती में
शत-प्रतिशत लीन हो जाना चाहते हैं। वे नहीं चाहते कि किसी की घूरती निगाहें
उनके खेल पर पड़ें। वे तो खेल के साथी चाहते हैं। वे अपनी काल्पनिक दुनिया
में किसी प्रकार को खलल, निर्देशात्मक दृष्टि या भाषणवाजी नहीं चाहते । पिता के
आते ही उन्हें उपदेश आदि का भय लगने लगता है। इसलिए वे खेल बंद करके
भाग जाते हैं।
प्रश्न 14. बच्चे बचपन में निर्दोष, निर्भय और मस्त होते हैं-सिद्ध
कीजिए।
उत्तर―बच्चे सचमुच भोलानाथ होते हैं। वे मन से निर्दोष होते हैं। उन्हें किसी
का अनावश्यक भय नहीं सताता । इस कारण वे बूढ़े को बूढ़ा और खूँसट को खूँसट
कह देते हैं। उन्हें ऐसी बातों के दुष्परिणाम का बोध बहुत बाद में होता है। यही
कारण है कि एक बूढ़ा वर उन बच्चों के पीछे पड़ गया। मूसन तिवारी तो स्कूल
में ही पहुँच गए।
प्रश्न 15. बूढ़े वर पर की गई टिप्पणियों के माध्यम से लेखक क्या संदेश
देना चाहता है?
उत्तर―लेखक बूढ़े वर पर की गई व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के माध्यम से कहना
चाहता है कि बुढ़ापे में विवाह करना घिनौना काम है। बूढ़ा वर बहुत भद्दा लगता
है। वृद्ध विवाह को रोका जाना चाहिए।
प्रश्न 16. लेखक को बचपन में अपने अध्यापक से खरी-खरी क्यों सुननी
पड़ी?
उत्तर―लेखक को बचपन में अपने अध्यापक से खरी-खरी बातें इसलिए सुननी
पड़ी क्योंकि उसने अपने साथियों के साथ मिलकर मूसन तिवारी नामक व्यक्ति को
सरेआम चिढ़ाया था। बैजू नामक लड़के ने खरमस्ती करते हुए मूसन तिवारी को
चिढ़ाया-बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा । अन्य बच्चे भी इस मजेदार बात
की खरमस्ती में आकर दोहराने लगे। परिणाम यह हुआ कि मूसन तिवारी अपमान
का बदला लेने के लिए उसके स्कूल में पहुँच गए और बच्चों को खूब डाँट लगवाई।
प्रश्न 17. बच्चे चिड़ियों, चूहों आदि निरीह प्राणियों के साथ क्रूरता क्यों
करते हैं?
उत्तर―बच्चे चिड़ियों, चूहों आदि निरीह प्राणियों के साथ क्रूरता नहीं करते।
वे उनके साथ खेल करना चाहते हैं। वे नहीं जानते कि उनकी शरारतों से चिड़ियों
या चूहों को दुख पहुँचेगा । वे वास्तव में कौतुहल का मजा लेना चाहते हैं-देखें कि
क्या होता है। यदि उनकी शरारतें हिंसा-भाव से होती तो गलत होती, परंतु वे शुद्ध
खेल होती हैं। इसलिए उन्हें समझाया सकता है किंतु क्रूर नहीं कहा जा सकता ।
प्रश्न 18. साँप निकलने पर लेखक ने क्या कल्पना की?
उत्तर―लेखक ने कल्पना की कि शायद साँप भगवान शिव का सौंप था जो
चूहे के बिल की रक्षा करने आया था।
प्रश्न 19. साँप से डरकर सब बच्चे कैसे भागे?
उत्तर―सौंप को क्रुद्ध रूप में सामने पाकर सब बच्चे बेतहाशा भागे। किसी
को कुछ न सूझा । कोई काँटों पर पाँव रखकर दौड़ा । कोई पलटा । किसी का सिर
फूटा, किसी के दाँत । कोई औंधा गिरा तो कोई चित्त । सबकी देह लहूलुहान हो
गई और पाँव छलनी हो गए।
प्रश्न 20. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने
पिता से अधिक जुझव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर
माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह जो सकती है।
उत्तर―यह बात सच है कि बच्चे (लेखक) को अपने पिता से अधिक लगाव
था। उसके पिता उसका लालन-पालन ही नहीं करते थे, उसके संग दोस्तों जैसा
व्यवहार भी करते थे। परन्तु विपदा के समय उसे लाड़ की जरूरत थी, अत्यधिक
ममता और माँ की गोदी की जरूरत थी। उसे अपनी माँ से जितनी कोमलता
मिल सकती थी, उतनी पिता से नहीं। यही कारण है कि संकट में बच्चे को माँ
या नानी याद आती है, बाप या नाना नहीं। माँ का लाड़ घाव को भरने वाले मरहम
का काम करता है।
प्रश्न 21. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री
आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है? [JAC 2015(A]
उत्तर―आज जमाना बदल चुका है। आज माता-पिता अपने बच्चों का बहुत
ध्यान रखते हैं। वे गली-मुहल्ले में बेफिक्र खेलने-घूमने की अनुमति नहीं देते। जब
से निठारी जैसे कांड होने लगे हैं, तब से बच्चे भी डरे-डरे रहने लगे हैं। अब न
तो हुल्लड़बाजी, शरारतें और तुकबंदियाँ रही हैं; न ही नंगधडंग घूमते रहने की
आजादी। अब तो बच्चे प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक्स के महँगे खिलौनों से खेलते
हैं। बरसात में बच्चे बाहर रह जाएँ तो आज माँ-बाप की जान निकल जाती है।
आज न कुएँ रहे, न रहट, न खेती का शौक । इसलिए आज का युग पहले की तुलना
में आधुनिक, बनावटी और रसहीन हो गया है।
प्रश्न 22. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को
छू गए हों?
[JAC 2018 (A)]
उत्तर―पाठ का सबसे रोमांचक प्रसंग वह है जब एक साँप सब बच्चों के पीछे
पड़ जाता है। तब वे बच्चे किस प्रकार गिरते-पड़ते भागते हैं और माँ की गोद में
छिपकर सहारा लेते हैं-यह प्रसंग पाठक के हृदय को भीतर तक हिला देता है।
इस पाठ में गुदगुदाने वाले प्रसंग भी अनेक हैं। विशेष रूप से बच्चे के पिता
का मित्रतापूर्वक बच्चों के खेल में शामिल होना मन को छू लेता है। जैसे ही बच्चे
भोज, शादी का खेल खेलते हैं, बच्चे का पिता बच्चा बनकर उनमें शामिल हो जाता
है। पिता का इस प्रकार बच्चा बन जाना बहुत सुखद अनुभव है जो सभी पाठकों
को गुदगुदा देता है।
प्रश्न 23. 'माता का आँचल' पाठ में माता-पिता का बच्चे के प्रति जो
वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
[JAC 2009 (A); 2011 (A); 2013 (A)]
उत्तर―'माता का आँचल' में माता-पिता के वात्सल्य का बहुत ही सरस और
मनमोहक वर्णन हुआ है। बच्चे के माता-पिता में मानो वात्सल्य की होड़ है। बच्चे
के पिता अपने बच्चे से माँ जैसा प्यार करते हैं। वे बच्चे को अपने साथ सुलाते
हैं, जगाते हैं, नहाते-धुलाते हैं और खाना भी खिलाते हैं। उन्हें यह सब करने में
बहुत आनंद मिलता है। वे कभी अपने बच्चे को डाँटते-फटकारते नहीं। वे माँ
यशोदा की तरह बच्चे को एक-एक क्रीड़ा में पूरी रुचि लेते हैं। वे उसके एक-एक
खेल को मानो भगवान भोलानाथ की लीला मानकर साथ देते हैं। इसलिए वे हँसकर
पूछते हैं । फिर कब भोज होगा भोलानाथ ?' 'इस साल की खेती कैसी रही
भोलानाथ ?' पिता बच्चे से हर संभव लाड करते हैं। उसके साथ खेलते हैं। उससे
जान-बूझकर हारते हैं। फिर उसे चूमते हैं, कंधे पर बिठाकर घूमते हैं। इन सारी
क्रियाओं में उन्हें बहुत आनंद मिलता है।
बच्चे की माता भी मानो ममता की मूर्ति है। उसे इस बात का बोध है कि
बच्चे का पेट तो महतारी के खिलाने से ही भरता है। उसका मन बच्चे को
खिलाने-पिलाने और पुचकारने-दुलराने के लिए तरसता है । वह बच्चों से लाड़ करने
में पारंगत है। वह भरपेट खाना खाए हुए बच्चे को भी अपनी वात्सल्य-कला से
रिझाकर ढेर सारा और भोजन करा देती है। यह उसकी ममता का ही प्रसाद है
कि बच्चा अपने पिता के संग रहने का अभ्यासी होने पर भी मां का आँचल खोजता
है। विपत्ति में उसे माँ की गोद ही अधिक सुरक्षित प्रतीत होती है। माँ का ममतालु
मन इतना भावुक है कि वह बच्चे को डर के मारे काँपता देखकर रोने ही लगती
है। उसकी यह सजल ममता पाठक को बहुत प्रभावित करती है।
प्रश्न 24. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन
की दुनिया से किस तरह भिन्न है ?
उत्तर―हमारा बचपन इस पाठ में वर्णित बचपन से पूरी तरह भिन्न है। हमें
अपने पिता का ऐसा लाड़ नहीं मिला। मेरे पिता प्रायः अपने काम में व्यस्त रहते
हैं। प्राय: वे रात को थककर ऑफिस से आते हैं। वे आते ही खा-पीकर सो जाते
हैं। वे मुझसे प्यार-भरी कुछ बातें जरूर करते हैं। मेरे लिए मिठाई, चाकलेट, खिलौने
भी ले आते हैं। कभी-कभी स्कूटर पर बिठाकर घुमा भी आते हैं, किंतु मेरे खेलों में
इस तरह रुचि नहीं लेते । वे हमें नंग-धडंग तो रहने ही नहीं देते । उन्हें मानो मुझे कपड़े
से ढकने और सजाने का बेहद शौक है। मुझे स्कूल भेजने का प्रबंध किया गया।
तीन साल के बाद मेरे जीवन से मस्ती गायब हो गई। मुझे मेरी मैडम, स्कूल-ड्रैस
और स्कूल के काम की चिंता सताने लगी। तब से लेकर आज तक में 90% अंक
लेने के चक्कर में अपनी मस्ती को अपने ही पाँवों के नीचे रौंदता चला आ रहा हूँ।
मुझे हो-हुल्लड़ करने का तो कभी मौका ही नहीं मिला। शायद मेरा बचपन बुढ़ापे
में आए? या शायद मैं अपने बच्चों या पोतों के साथ खेल कर सकूँ।
■■