Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | कवित्त-सवैया ― देव Solutions Chapter 4
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न 1. कवि ने 'श्रीब्रजदूलह' किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार
रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है ? (JAC 2012 (A), 2014(A) 2016 (A); 2018(A)]
उत्तर―कवि ने 'श्री ब्रजदूलह' ब्रज-दुलारे कृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। वे
सारे संसार में सबसे सुन्दर, सजीले, उज्ज्वल और महिमावान हैं। जैसे मंदिर में
'दीपक' सबसे उजला और प्रकाशमान होता है। उसके होने से मंदिर में प्रकाश फैल
जाता है। उसी प्रकार कृष्ण की उपस्थिति से ही सारे ब्रज-प्रदेश में आनन्द, उत्सव और
प्रकाश फैल जाता है। इसी कारण उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।
प्रश्न 2. पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें
अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है? [JAC 2010(C)]
उत्तर―अनुप्रास : (क) 'कटि किंकिनि के' में 'क' में आवृत्ति के कारण
अनुप्रास का सौन्दर्य है। (ख) 'पट पीत' में 'प' की आवृत्ति है । (ग) 'हिये हुलसे'
में 'ह' की आवृत्ति है।
रूपक : (क) मुखचंद-मुख रूपी चाद । (ख) जग-मंदिर दीपक-संसार
रूपी मंदिर के दीपक।
प्रश्न 3. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए―
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि के धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।।
उत्तर―इसमें ब्रज-दुलारे, नटवर-नटेश, कलाप्रेमी कृष्ण की सुन्दर रूप-छवि
प्रस्तुत की गई है। उनका रूप मनमोहक है । साँवले शरीर पर पीले वस्त्र और गले
में बनमाला है। पाँवों में पाजेब और कमर में घुँघरूदार आभूषण हैं। उनकी चाल
संगीतमय है।
अनुप्रास की छटा देखते ही बनती है। शब्द पायल की तरह झनकते प्रतीत होते
हैं। जैसे―
(क) 'पाँयन नूपुर मंजु बजैं' में आनुप्रासिकता है। इसका नाद-सौन्दर्य दर्शनीय है।
(ख) 'कटि किंकिनि के धुनि की' में 'क' ध्वनि और 'न' की झनकार मिल
गए-से प्रतीत होते हैं।
(ग) 'पट पीत' और 'हियै हुलसै बनमाल' में भी अनुप्रास है।
(घ) 'भाषा' कोमल, मधुर और संगीतमय है। सवैया छंद का माधुर्य मन
को प्रभावित करता है।
प्रश्न 4. कवि देव के पठित कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज
वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है।
[JAC 2013(A)]
उत्तर―वसंत के परंपरागत वर्णन में फूलों का खिलना, ठंडी हवाओं का चलना,
नायक-नायिका का परस्पर मिलना, झूले झुलाना, रूठना-मनाना आदि होता था।
परन्तु, इस कवित्त में वसंत को किसी नन्हें नवजात राजकुमार के समान दिखाया
गया है। इसलिए कवि ने शिशु को प्रसन्न करने वाले सारे सामान जुटाए हैं।
नवजात शिशु के लिए चाहिए-पालना, बिछौना, ढीले वस्त्र, लोरी, झुनझुना, झूले
झूलना, उसे बुरी नजर से बचाने का प्रबंध आदि । कवि ने इस कवित्त में वृक्षों को
पलना, पत्तों को बिछौना, फूलों को झिंगूला, वायु को सेविका, मोर और तोते को
झुनझुने, कोयल को ताली बजाकर गाने वाली, पराग-कण को नजर से बचाने का
सामान आदि दिखाया है। इस प्रकार यह वर्णन परंपरागत वसंत-वर्णन से भिन्न है।
प्रश्न 5. 'प्रातहि जगावत गुलाब घटकारी दै'-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर―इस पंक्ति का भाव है―स्वयं सवेरा वसंत रूपी शिशु को जगाने के लिए
गुलाब रूपी चुटकी बजाता है। आशय यह है कि वसंत ऋतु में प्रातःकाल गुलाब
के फूल खिल उठते हैं।
प्रश्न 6. चाँदनी रात की सुन्दरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है ?
[JAC 2015 (A): 2017 (A)]
उत्तर―कवि ने चाँदनी रात की सुन्दरता को निम्न रूपों में देखा है―
(क) आकाश में स्फटिक शिलाओं से बने मंदिर के रूप में।
(ख) दही से छलकते समुद्र के रूप में।
(ग) दूध की झाग से बने फर्श के रूप में।
(घ) स्वच्छ, शुभ्र दर्पण के रूप में।
प्रश्न 7. 'प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद'-इस पंक्ति का भाव
स्पष्ट करते हुए बताएं कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर―कवि कहना चाहता है कि राधिका की सुन्दरता और उज्ज्वलता अपरंपार
है। स्वयं चाँद भी उसके सामने इतना तुच्छ और छोटा है कि वह उसकी परछाई-सा
है। इसमें व्यतिरेक अलंकार है। व्यतिरेक में उपमान को उपमेय के सामने बहुत
हीन और तुच्छ दिखाया जाता है।
प्रश्न 8. तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की
उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है ?
[JAC 2009 (A)]
उत्तर―कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता दिखाने के लिए निम्नलिखित उपमानों
का प्रयोग किया है―
(क) स्फटिक शिला, (ख) सुधा मंदिर, (ग) उदधि दधि, (घ) दूध की
झाग से बना फर्श, (ङ) आरसी, (च) आभा तथा (छ) चन्द्रमा ।
प्रश्न 9. पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत
विशेषताएँ बताइए। [JAC 2015 (A)]
उत्तर―पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की निम्नलिखित विशेषताएँ
सामने आती हैं―
(क) कवि दरबारी कवि थे। उन्होंने अपने आश्रयदाताओं, उनके परिवार-जनों
तथा दरबारी समाज को प्रसन्न करने के लिए जगमगाते हुए सुन्दर चित्रण किए।
उन्होंने जीवन के दुखों के नहीं, अपितु वैभव-विलास और सौन्दर्य के चित्र खींचे ।
उनके सवैये में कृष्ण का दूल्हा-रूप है तो कवित्तों में वसंत और चाँदनी को भी
राजसी वैभव-विलास से भरा-पूरा दिखाया गया है।
(ख) देव में कल्पना-शक्ति का विलास देखने को मिलता है। वे नई-नई
कल्पनाएँ करते हैं। वृक्षों का पालना, पत्तों को बिछौना, फूलों को झिंगुला, वसंत
को बालक, चाँदनी रात को आकाश में बना 'सुधा-मंदिर' आदि कहना उनकी उर्वर
कल्पना शक्ति का परिचायक है।
(ग) देव ने सवैया और कवित्त छंदों का प्रयोग किया है। ये दोनों ही छंद
वर्णिक हैं। छंद की कसौटी पर देव खरे उतरते हैं।
(घ) देव की भाषा संगीत, प्रवाह और लय की दृष्टि से बहुत मनोरम है।
(ङ) देव अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि अलंकारों का सहज स्वाभाविक प्रयोग करते
हैं।
(च) उनकी भाषा में कोमल और मधुर शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 10. आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके
सौन्दर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर―आज पूर्णिमा की रात है। चारों ओर प्रकृति चाँदनी में नहाई-सी जान
पड़ती है। आकाश की नीलिमा बहुत साफ और उज्ज्वल प्रतीत हो रही है। तारे
भी मानो चाँदनी के हर्ष से हर्षित हैं । वातावरण बहुत मनोरम है। लोग अपनी छत
पर बैठकर पायोनिनोद कर रहे हैं और चाँद की और निहार रहे हैं।
■■