Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | छाया मत छूना ― गिरिजा कुमार 'माथुर' Solutions Chapter 7
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दिये गये गद्यांश पर अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
काव्यांश 1. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुंगध शेष रही, बीत गई यामिनि,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी ।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना। [JAC 2013 (A)]
प्रश्न-इसमें क्या संदेश है ?
उत्तर―इस पद्यांश में यह संदेश है कि मनुष्य को अपनी मधुर यादों में नहीं
जीना चाहिए । उन यादों में खोकर हमारे दुख बढ़ते ही हैं। हमारे पुराने घाव और
अभाव हरे हो जाते हैं।
प्रश्न-'छाया' किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?
उत्तर―यहाँ 'छाया' पुरानी मीठी यादों के लिए प्रयुक्त हुआ है।
प्रश्न-कवि ने छाया को छूने से क्यों मना किया है ?
उत्तर―कवि ने छाया छूने अर्थात् पुरानी मीठी यादों में जीने से इसलिए मना
किया है क्योंकि इससे हमारे अभाव फिर-से हरे हो जाते हैं। हमें पुराने लोग, पुराने
क्षण वापस मिलते तो नहीं; हाँ वे एक हूक-सी अवश्य छोड़ जाते हैं। हमें अपना
वर्तमान और अधिक खाली प्रतीत होने लगता है
काव्यांश 2. यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया ।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
प्रश्न-कवि यश, वैभव, मान और सरमाया को क्यों अस्वीकार कर रहा
है?
उत्तर―कवि के अनुसार यश, वैभव, मान और पूँजी गहरी संतुष्टि नहीं दे पाते ।
ये बाहरी सुख तो देते हैं, किन्तु मन को प्रसन्न नहीं करते।
प्रश्न-'दौड़ने का सांकेतिक अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि दौड़ना भरमाना
क्यों है?
उत्तर―'दौड़ने' का सांकेतिक अर्थ है-संसार के सुखों को पाने के लिए पागल
होना । यह दौड़ मनुष्य को उसके लक्ष्य से भटका देती है। इससे कोई गहरी संतुष्टि
नहीं मिल पाती।
प्रश्न-प्रभुता को मृगतृष्णा क्यों कहा गया है ?
उत्तर―प्रभुता अर्थात् बड़प्पन को मृगतृष्णा इसलिए कहा गया है क्योंकि इसमें
कोई सुख नहीं है। बड़े पद पर होने से मन को गहरी संतुष्टि नहीं मिलती।
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न 1. 'छाया मत छूना' कविता का संदेश क्या है ? [JAC 2014 (4)]
उत्तर― छाया मत छूना' कविता उद्देश्यपूर्ण है। यह पाठकों को जीवन की
सच्चाईयों और वास्तविकताओं में जीने की प्रेरणा देती है। कवि कहता है कि अतीत
की मीठी यादें कितनी भी सुहावनी और मनभावनी हों किन्तु वे दुख ही देती हैं।
इसलिए यादों में अपने वक्त को बरबाद नहीं करना चाहिए।
दूसरा संदेश यह है कि यश, वैभव, धन, मान, बड़प्पन सब छलावा है। इनमें
वास्तविक सुख नहीं है। वास्तव में हर सुख के पीछे एक दुख छिपा रहता है । अतः
हमें जीवन के यथार्थ पर अडिग रहना चाहिए। तीसरा संदेश यह है कि चाहे वर्तमान
जीवन में कितनी भी दुविधाएँ हाँ, असफलताएँ हों, फिर भी हमें अपने अभावों को
भूलकर अपने भविष्य को संवारना चाहिए।
प्रश्न 2. यह कविता आशावाद और यथार्थवाद पर आधारित है-सिद्ध कीजिए।
उत्तर―'छाया मत छूना' आशावाद पर आधारित है। कवि पुरानी यादों और
असफलताओं को याद करके अपने जीवन को नष्ट नहीं होने देना चाहता। वह स्पष्ट
शब्दों में कहता है―
जो न मिला भूल उसे कर भविष्य वरण ।
कवि छायाओं, सपनों, कल्पनाओं और अवास्तविकताओं को छोड़कर यथार्थ
सत्व में जीने की प्रेरणा देता है। वह कहता है―
जो है यथार्थ कठिन उस का तू कर पूजन ।
प्रश्न 3. 'हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है' में किस जीवन-सत्य
का बोध है?
उत्तर― इस पंक्ति का आशय यह है कि हर सुख में एक दुख छिपा रहता
है। इसलिए हमें सुख-दुख दोनों को स्वीकार करना चाहिए। हमें सुख पाने के लिए
दुख झेलने को भी तैयार रहना चाहिए।
प्रश्न 4. इस कविता में सुधियों का वर्णन किस प्रकार किया गया है?
उत्तर―कवि के अनुसार, सुधियाँ रंगबिरंगी और मनभावन होती हैं। उनमें
ऐसे-ऐसे मनमोहक दृश्य समाए हुए होते हैं कि चित्रों के साथ विभिन्न गंध भी
महकने लगती हैं। बीते हुए क्षण ऐसे सजीव हो उठते हैं कि वे वर्तमान जीवन का
अंग प्रतीत हाने लगते हैं। वे सचमुच 'जीवित क्षण' बन जाते हैं।
प्रश्न 5. कवि 'जीवित क्षण' को स्वीकार क्यों नहीं करता?
उत्तर―कवि के अनुसार, हमारी पुरानी यादें ही तरोताजा होकर सामने जीवित
क्षण के समान साकार हो उठती हैं। इसलिए वे जीवित क्षण अवास्तविक होते हैं,
काल्पनिक, मानसिक और भावनात्मक होते हैं। उन्हें याद करके हमारे दुख पुनः हरे हो
जाते हैं, घाव छिल जाते हैं। इसलिए कवि उन जीवित क्षणों को स्वीकार नहीं करता।
प्रश्न 6. कवि वैभव और यश को भी स्वीकार क्यों नहीं करता ?
उत्तर―कवि का मत है कि धन-वैभव और यश-मान भी झूठे हैं। इन्हें पाकर
मनुष्य का मन प्रसन्न नहीं होता। इसलिए इनके पीछे दौड़ना मिथ्या है। मनुष्य को
इन पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 7. 'जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया' का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―इस पंक्ति का भावार्थ है-मनुष्य यश-मान और सुख-वैभव के पीछे
जितना दौड़ता है, उतना भटकता है। इनमें मन को प्रसन्न करने की शक्ति नहीं है।
अत: जो मनुष्य इनके पीछे दौड़ता है, वह भ्रम में जीता है।
प्रश्न 8. इस कविता में प्रतीकों का कुशलतापूर्वक प्रयोग हुआ है-सिद्ध
कीजिए।
उत्तर―इस कविता का शीर्षक ही प्रतीकात्मक है। यहाँ 'छाया' पुरानी यादों
और भविष्यों के सपनों की प्रतीक है। 'चंद्रिका' सुख की, 'कृष्णा' दुख की प्रतीक
है। 'चाँद' सफलता और खुशी का प्रतीक है। 'फूल' मनचाही खुशी का प्रतीक
है। रस-बसंत' जीवन के सुहाने दिनों का प्रतीक है। इस प्रकार कवि ने प्रतीकों
का प्रचुर और सफतापूर्वक प्रयोग किया है।
प्रश्न 9. 'दुविधा-हत साहस है दिखता है पंथ नहीं' का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―इसका भावार्थ है–जब मनुष्य का मन दुविधाओं से भर जाता है, तब
उसे कोई रास्ता सूझता । उसका साहस भी समाप्त हो जाता है। अतः मनुष्य को
पहले अपनी दुविधाओं से निपटना चाहिए। किसी निर्णय तक पहुंचना चाहिए। तभी
उसमें साहस का प्रवेश हो सकता है।
प्रश्न 10. 'छाया मत छूना' कविता में कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन
की बात क्यों कही है? [JAC 2009; 2009 (S)]
उत्तर―कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि यही
सत्य है। मनुष्य को आखिरकार अपने वास्तविक सच का सामना करना पड़ता है।
उसे अपनी परिस्थितियों में जीना पड़ता है। भूली-बिसरी यादें या भविष्य के सपने
उसे दुखी ही करते हैं, किसी मंजिल पर नहीं ले जाते।
प्रश्न 11. 'छाया' शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ? कवि ने
उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ? [JAC 2015 (A)]
उत्तर―यहाँ 'छाया' शब्द अवास्तविकताओं के लिए प्रयुक्त हुआ है। ये छायाएँ
अतीत की भी हो सकती हैं और भविष्य की भी । ये छायाएं पुरानी मीठी यादों की
भी हो सकती है और मीठे सपनों की भी।
प्रश्न 12. 'मृगतृष्णा' किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ
में हुआ है? [JAC 2010 (A); 2011 (A): 2018 (A)]
उत्तर―गर्मी की चिलचिलाती धूप में दूर सड़क पर पानी की चमक दिखाई देती
है। हम वहाँ जाकर देखते हैं तो कुछ नहीं होता। प्रकृति के इस भ्रामक रूप को
'मृगतृष्णा' कहा जाता है।इस कविता में इसका अर्थ छलावे और भ्रम के लिए
किया गया है। कवि कहना चाहता है कि लोग प्रभुता अर्थात् बड़प्पन में सुख मानते
हैं। किन्तु बड़े होकर भी कोई सुख नहीं मिलता। अत: बड़प्पन का सुख दूर से
ही दिखाई देता है। यह वास्तविक सच नहीं है।
प्रश्न 13. 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले' यह भाव कविता की
किस पंक्ति में झलकता है? [JAC Sample Paper 2009]
उत्तर―निम्न पक्ति में―
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण ।
प्रश्न 14. छाया मत छूना कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट
कीजिए। [JAC 2015 (A)]
उत्तर―इस कविता में दुख के निनलिखित कारण बताए गए हैं―
(i) छाया अर्थात् बीती हुई मीठी यादें जिन्हें याद कर-करके हम अपने वर्तमान
को और अधिक दुखी कर लेते हैं
(ii) छाया अर्थात् भविष्य के सपने, जिनके पूरा न होने पर हम दुखी रहते हैं।
(iii) वर्तमान जीवन में उचित अवसर पर लाभ न मिलना । बसंत के समय
फूल का न खिलना या शरद्-रात में चाँद का न खिलना। आशय यह है कि उचित
अवसर पर सुख न मिलना ।
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