Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | नौबतखाने में इबादत ― यतीन्द्र मिश्र Solutions Chapter 15
दिये गये गद्यांश पर अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
गद्यांश 1. शहनाई के इसी मंगलध्वनि के नायक विस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी
बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली
नमाज इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सजदे, इसी एक
सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज के बाद सजदे में
गिड़गिड़ाते हैं-'मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि
आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल जाएँ।' उनको यकीन है, कभी
खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर
उनकी ओर उछालेगा, फिर कहेगा, ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले
अपनी मुराद पूरी।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ खुदा से क्या माँगते हैं?
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ खुदा से अपनी शहनाई से अच्छे सुर की माँग करते हैं।
वे इस प्रकार का सुर चाहते हैं जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दें।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा
गया है?
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ 'भारतरल' की उपाधि प्राप्त भारत के महान शहनाई
वादक थे। वे गत 80 वर्षों से शहनाई बजाते रहे हैं। अभी तक उनके समान कोई
दूसरा शहनाई वादक नहीं है। शहनाई आनन्द-मंगल का वाद्य माना गया है। इसलिए
बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक माना गया है।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ किस सुर की तलाश में थे? उन्हें परमात्मा पर किस
चीज का विश्वास था?
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ एक ऐसे प्रभावशाली सुर की तलाश में थे, जिसे
सुनकर लोगों की आँखों से मोती के समान आँसू टपकने लगे। उसमें लोगों को
प्रफुल्ल करने की अद्भुत शक्ति हो।
बिस्मिल्ला खाँ को परमात्मा की वरदानी शक्ति पर विश्वास था। वे अपनी
कला को ईश्वर की देन मानते थे। भविष्य में भी खुदा से और मिलने की आशा
रखते थे।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ अपनी कला को किसकी देन मानते थे?
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ अपनी कला को खुदा की देन मानते थे।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ प्रभु के सच्चे भक्त थे-स्पष्ट करें।
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ को खुदा पर पूरा भरोसा था। वे अपनी सच्ची भावना
और श्रद्धा के साथ उनके द्वार पर सिर झुकाते थे। वे उनसे प्रार्थना करते थे कि
वे उन्हें सच्चा से सच्चा सुर प्रदान करें। उन्हें विश्वास था कि वे उनकी याचना
को टुकराएँगे नहीं।
गद्यांश 2. अक्सर कहते हैं-'क्या करे मियाँ, ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ.
गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मन्दिर यहाँ, यहाँ हमारे खानदान
की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है, हमारे नाना तो वहीं बालाजी मन्दिर में बड़े
प्रतिष्ठित शहनाईवाज रह चुके हैं। अब हम क्या करें, मरते दम तक न यह शहनाई
छूटेगी न काशीं जिस जमीन ने हमें तालीम दी, जहाँ से अदव पाई, वो कहाँ ओर
मिलेगा? शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए।'
प्रश्न-यह संवाद किसका है?
उत्तर―यह संवाद भारत के सबसे बड़े शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ का है।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ काशी को छोड़कर कहीं और क्यों नहीं जाना चाहते
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ को गंगा मैया, बाबा विश्वनाथ और बालाजी मन्दिर से
गहरा लगाव था। उनके पूर्वजों ने भी वहाँ शहनाई बजाई थी। बिस्मिल्ला खाँ उसी
धरती पर पैदा लिए और शहनाई बजाना सीखा। इसलिए वे उस प्यारी धरती को
छोड़कर कहीं अन्यत्र जाना नहीं चाहते थे।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ को काशी से कई पीढ़ियों का संबंध था-स्पष्ट करें।
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ के पूर्वज अर्थात् नाना और मामा की पीढ़ियों से बालाजी
के मन्दिर में शहनाई वादन का कार्य करते आये थे। उन्होंने भी वहाँ शहनाई बजायी।
इससे स्पष्ट होता है कि बिस्मिल्ला खाँ का काशी से कई पीढ़ियों का संबंध था।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ को काशी से क्या मिला?
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ को काशी से शहनाई वादन की शिक्षा मिली। उनकी
सामान्य शिक्षा-दीक्षा भी काशी में ही हुई। उन्हें भी शहनाई वादन का मौका मिला।
इसके साथ ही साथ काशी की जनता का प्यार मिला।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ काशी और शहनाई को जन्नत क्यों मानते हैं?
उत्तर―स्पष्टत: बिस्मिल्ला खाँ काशी और शहनाई को जन्नत मानते हैं। इसका
मूल कारण यह है कि काशी ने उन्हें शहनाई बजाने का मौका दिया। वहाँ गंगा
मैया की गोद में रहते थे। बालाजी तथा बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद मिला। वहीं
रहकर उन्हें शहनाई जगत में प्रतिष्ठा मिली। इसीलिए वे काशी और शहनाई को
जन्नत मानते थे।
गद्यांश 3. काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में आनंदकानन के नाम
से प्रतिष्ठित। काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य-विश्वनाथ हैं। काशी में बिस्मिल्ला
खाँ के हजारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं, विद्याधरी हैं,
बड़े रामदास जी हैं, मौजुद्दीन खाँ हैं व इन रसिकों से उपकृत होने वाला अपार
जन-समूह है। यह एक अलग काशी है जिसकी अलग तहजीब है, अपनी बोली
और अपने विशिष्ट लोग हैं। इनके अपने उत्सव हैं, अपना गम। अपना सेहरा बन्ना
और अपना नौहा। आप यहाँ संगीत को भक्ति से, भक्ति को किसी भी धर्म के
कलाकार से, कजरी को चैती से, विश्वनाथ को विशालाक्षी से, बिस्मिल्ला खाँ को
गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते।
प्रश्न-काशी को संस्कृति की पाठशाला क्यों कहा गया है?
उत्तर―काशी भारतीय शास्त्रों के ज्ञान का भंडार है। कला शिरोमणि काशी
में ही वास करते हैं। यह हनुमान और बाबा विश्वनाथ की नगरी है। यहाँ का इतिहास
बहुत पुराना है। यहाँ प्रकांड पंडितों, विद्वानों तथा कला-प्रेमियों का निवास स्थान
है। इसीलिए काशी को संस्कृति की पाठशाला कहा गया है।
प्रश्न-'यह एक अलग काशी है'-लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर―काशी की संस्कृति और महत्ता अलग है। यहाँ की तहजीब, बोली,
उत्सव आदि अलग ढंग के हैं। यहाँ विशिष्ट लोगों का संगम है।
प्रश्न-काशी में सब कुछ एकाकार कैसे हो गया?
उत्तर―लेखक के अनुसार, काशी में संगीत भक्ति से, भक्ति कलाकार से,
कजरी चैती से, विश्वनाथ विशालाक्षी से और बिस्मिल्ला खाँ गंगाद्वार से मिलकर
एक हो गये हैं। इन्हें अलग करके देखना संभव नहीं है।
गद्यांश 4. अकसर समारोहों एवं उत्सवों में दुनिया कहती है ये बिस्मिल्ला
खाँ हैं। बिस्मिल्ला खाँ का मतलब-बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई। शहनाई का
तात्पर्य-बिस्मिल्ला खाँ का हाथ। हाथ से आशय इतना भर कि बिस्मिल्ला खाँ की
फूँक और शहनाई की जादुई आवाज का असर हमारे सिर चढ़कर बोलने लगता
है। शहनाई में सरगम भरा है। खाँ साहब को ताल मालूम है, राग मालूम है। ऐसा
नहीं कि बेताले जाएंगे। शहनाई में सात सुर लेकर निकल पड़े। शहनाई में
परवरदिगार, गंगा मइया, उस्ताद की नसीहत लेकर उतर पड़े। दुनिया कहती-सुबहान
अल्लाह, तिस पर बिस्मिल्ला खाँ कहते हैं-अलहमदुलिल्लाह। छोटी-छोटी उपज से
मिलकर एक बड़ा आकार बनता है। शहनाई का करतब शुरू होने लगता है।
बिस्मिल्ला खाँ का संसार सुरीला होना शुरू हुआ। फूंक में अजान की तासीर उतरती
चली आई।
प्रश्न-दुनिया बिस्मिल्ला खाँ को किस प्रकार पहचानती है?
उत्तर―दुनिया विस्मिल्ला खाँ को उनकी शहनाई के कारण पहचानती है। जब
कोई शहनाई की अच्छी आवाज सुनते हैं तो वे खुश होकर कहते हैं-यह बिस्मिल्ला
खाँ है।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ सुरों के सिद्धहस्त कलाकार थे-सिद्ध करें।
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई में सरगम था, ताल था, राग था और संगीत
के सातों सुर थे। वे अपने उस्ताद की सीख पर शहनाई बजाते थे।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई में किसका असर था?
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई में उनके पूर्वजों का असर था।
प्रश्न-बिस्मिल्ला खाँ अपनी शहनाई की प्रशंसा सुनकर क्या कहते थे?
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ अपनी शहनाई की प्रशंसा सुनकर कहते थे, 'यह सब
ईश्वर की देन है।'
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न 1. शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है ?
[JAC 2011 (A); 2012 (A); 2014 (A); 2015 (A); 2018 (A)]
उत्तर―शहनाई की दुनिया में डुमराँव को दो कारणों से याद किया जाता है―
(1) डुमराँव प्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मभूमि है।
(2) यहाँ सोन नदी के किनारे वह नरकट घास मिलती है जिसकी रीड का
उपयोग शहनाई बजाने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 2. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा
गया है? [JAC 2009 (S); 2010 (A): 2014 (A); 2016 (A): 2018 (A)]
उत्तर―शहनाई मंगलध्वनि का वाद्य है। भारत में जितने भी शहनाईवादक हुए
हैं, उनमें बिस्मिल्ला खाँ का नाम सबसे ऊपर है। उनसे बढ़कर सुरीला शहनाईवादक
ओर कोई नहीं हुआ। इसलिए उन्हें शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है।
प्रश्न 3. सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है ? शहनाई को 'सुषिर वाद्यों में
शाह' की उपाधि क्यों दी गई होगी? [JAC 2016 (A)]
उत्तर―सुषिर-वाद्यों का अभिप्राय है-सुराख वाले वाद्य, जिन्हें फूंक मारकर
बजाया जाता है। ऐसे सभी छिद्र वाले वाद्यों में शहनाई सबसे अधिक मोहक और
सुरीली होती है। इसलिए उसे 'शाहे-नय' अर्थात् 'ऐसे सुषिर वाद्यों का शाह' कहा
गया।
प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए―
(क) 'फटा सुर न बखों । लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल ही
जाएगी।'
(ख) 'मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों
से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।'
उत्तर―(क) शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ खुदा से विनती करते हैं-हे खुदा।
तू मुझे कभी फट हुआ सुर न देना । शहनाई का बेसुरा स्वर न देना । लुगिया अगर
फटी रह गई तो कोई बात नहीं। आज यह फटी है तो कल सिल जाएगी। आज
गरीबी है तो कल समृद्धि भी आ जाएगी। परन्तु भूलकर भी बेसुरा राग न देना,
शहनाई की कला में कमी न रखना।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ खुदा से विनती करते हैं-हे खुदा ! तू मुझे ऐसा सच्चा
और मार्मिक सुर प्रदान कर जिसे सुनकर श्रोताओं की आँखों से आँसू ढुलक पड़ें।
जिसमें हृदय को गद्गद् करने की, तरल करने की करुणाई करने की शक्ति हो।
प्रश्न 5. काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित
करते थे? [JAC 2009 (A): 2011 (A); 2013 (A); 2015 (A); 2019 (A)]
उत्तर―काशी में पुरानी परंपराएँ लुप्त हो रही हैं। खान-पान की पुरानी चीजें
और विशेषताएँ नष्ट होती जा रही हैं। मलाई-बरफ वाले गायब हो गए हैं । कुलसुम
की छन्न करती संगीतात्मक कचौड़ी और देशी घी की जलेबी आज नहीं रही। न
ही आज संगीत, साहित्य और अदब का वैसा मान रह गया है। हिन्दुओं और
मुसलमानों का पहले जैसा मेलजोल भी नहीं रहा। अब गायकों के मन में संगतकारों
का वैसा सम्मान नहीं रहा। ये सब बातें बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करती हैं।
प्रश्न 6. बिस्मिल्ला खां मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
[JAC 2011 (A); 2014 (A)]
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ हिन्दुओं और मुसलमानों की मिली-जुली संस्कृति के
प्रतीक थे । वे स्वयं सच्चे मुसलमान थे। उनकी मुसलिम धर्म, उत्सवों और त्योहारों
में गहरी आस्था थी। वे मुहर्रम सच्ची श्रद्धा से मनाते थे। वे पाँचों समय नमाज
अदा करते थे। साथ ही वे जीवन-भर काशी विश्वनाथ और बालाजी के मंदिर में
शहनाई बजाते रहे। वे गंगा को मैया मानते रहे। वे काशी से बाहर रहते हुए भी
बालाजी के मंदिर की और मुँह करके प्रणाम किया करते थे। उनकी इसी सच्ची
भावना के कारण उन्हें हिन्दू-मुसलिम एकता का प्रतीक कहा गया।
प्रश्न 7. बिस्मिल्ल खाँ वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ वास्तविक अर्थों में सच्चे इंसान थे। उन्होंने कभी
धार्मिक कट्टरता, क्षुद्रता और तंगदिली नहीं दिखाई। उन्होंने काशी में रहकर काशी
की परम्पराओं को निभाया। मुसलमान होते हुए अपने धर्म की परम्पराओं को
निभाया। उन्होंने कभी खुदा से धन-समृद्धि नहीं माँगी। उन्होंने जब भी माँगा,
सच्चा सुर माँगा। वे जीवन-भर फटेहाल, सरल और सादे रहे। ऊँचे-से-ऊंचे
सम्मान पाकर भी वे सरल बने रहे।
प्रश्न 8.बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का
उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया ? [JAC 2017 (A)]
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ के संगीत-जीवन को निम्नलिखित लोगों ने समृद्ध किया-
रसूलनबाई, बतूलनवाई, मामूजान अलीबख्श खाँ, नाना, कुलसुम हलवाइन,
अभिनेत्री सुलोचना ।
रसूलनबाई और बतूलनवाई की गायिका ने उन्हें संगीत की ओर खींचा। उनके
द्वारा गाई तुमरी, टप्पे और दादरा सुनकर उनके मन में संगीत की ललक जागी ।
वे उनकी प्रारंभिक प्रेरिकाएँ थीं। बाद में वे अपने नाना को मधुर स्वर में शहनाई
बजाते देखते थे तो उनकी शहनाई को खोजा करते थे। मामूजान अलीबख्श जब
शहनाई बजाते-बजाते सम पर आते थे तो बिस्मिल्ला खाँ धड़ से एक पत्थर जमीन
में मारा करते थे। इस प्रकार उन्होंने संगीत में दाद देना सीखा।
बिस्मिल्ला खाँ कुलसुम की कचौड़ी तलने की कला में भी संगीत का आरोह-अवरोह
देखा करते थे। अभिनेत्री सुलोचना की फिल्मों ने भी उन्हें समृद्ध किया ।
प्रश्न 9. बिसिमल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने
आपको प्रभावित किया?
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं ने मुझे
प्रभावित किया―
धार्मिक सौहार्द―बिस्मिल्ला खाँ सच्चे मुसलमान थे। वे पाँचों समय नमाज
पढ़ते थे। मुहर्रम का उत्सव पूरे शौक और भाव से मनाते थे। फिर भी वे हिन्दुओं
की पवित्र नदी गंगा को मैया कहते थे। बाबा विश्वनाथ और बालाजी के मंदिर
में नित्य शहनाई बजाया करते थे। काशी के विश्वनाथ की कल्पना बिस्मिल्ला खाँ
की शहनाई के बिना नहीं हो सकती । उनका यह धार्मिक सौहार्द हमें सबसे अधि
क प्रभावित करता है।
प्रभु के प्रति आस्थावान―बिस्मिल्ला खाँ के हृदय में खुदा के प्रति सच्ची और
गहरी आस्था थी। वे नमाज पढ़ते हुए खुदा से सच्चे सुर की कामना करते थे।
वे अपनी शहनाई की प्रशंसा को भी खुदा को समर्पित कर देते थे।
सरलता और सादगी―बिस्मिल्ला खाँ को भारतरत्न प्राप्त हुआ। भारत के
अनेक विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधियाँ दीं। उन्हें अनेक सम्मान मिले। फिर
भी उन्हें गर्व और अभिमान छू नहीं गया। वे सरलता, सादगी और गरीबी की
जिन्दगी जीते रहे। यहाँ तक कि वे फटी पहने रहते थे। उन्होंने कभी बनाव-श्रृंगार
की ओर ध्यान नहीं दिया।
रसिक और विनोदी स्वभाव―बिस्मिल्ला खाँ बचपन से रसिक स्वभाव के
थे। वे रसूलनबाई और बतूलनवाई की गायिकी के रसिया थे। जवानी में वे कुलसुम
हलवाइन और सुलोचना के रसिया बने । वे जलेबी और कचौड़ी के भी शौकीन थे।
वे बात करने में कुशल थे। जब उनकी शिष्या ने भारतरत्न का हवाला देकर
उन्हें फटी तहमद न पहनने के लिए कहा तो फट से बोले-ई भारतरत्न शहनाईया
पर मिला है, लुगिया पर नहीं।
प्रश्न 10. मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ को मुहर्रम के उत्सव से गहरा लगाव था । मुहर्रम के
दस दिनों में वे किसी प्रकार का मंगलवाद्य नहीं बजाते थे। न ही कोई राग-रागिनी
बजाते थे। शहनाई भी नहीं बजाते थे। आठवें दिन दालमंडी से चलने वाले मुहर्रम
के जुलूस में पूरे उत्साह के साथ आठ किलोमीटर रोते हुए नौहा बजाते चलते थे।
प्रश्न 11. बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे। तर्क सहित उत्तर
दीजिए। [JAC 2010 (A)]
उत्तर―बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे। उन्होंने 80 वर्षों तक
लगातार शहनाई बजाई । उनसे बढ़कर शहनाई बजाने वाला भारत-भर में अन्य कोई
नहीं हुआ। फिर भी वे अंत तक खुदा से सच्चा सुर की माँग करते रहे। उन्हें अंत
तक लगा रहा कि शायद अब भी खुदा उन्हें कोई सच्चा सुर देगा जिसे पाकर वे
श्रोताओं की आँखों में आँसू ला देंगे। उन्होंने अपने को कभी पूर्ण नहीं माना । वे
अपने पर झल्लाते भी थे कि उन्हें अब तक शहनाई को सही ढंग से बजाना नहीं
आया। इससे पता चलता है कि वे सच्चे कला-उपासक थे। वे दो-चार राग उस्ताद
नहीं हो गए। उन्होंने जीवन-भर अभ्यास-साधना जारी रखी।
प्रश्न 12. सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को 'सुषिर वाद्यों
में शाह' की उपाधि क्यों दी गयी होगी?
उत्तर―सुषिर का अर्थ होता है सुराख। इसलिए सुराख वाले वाद्यों को 'सुषिर
वाद्य' कहा जाता है। इस प्रकार के वाद्य को फूंक कर बजाया जाता है। इस प्रकार
के वाद्यों में शहनाई सबसे अधिक मोहक और सुरीली होती है। इसीलिए शहनाई
को सुषिर वाद्यों का शाह कहा गया है।
प्रश्न 13. सिद्ध करें कि बिस्मिल्ला खाँ हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक
थे।
उत्तर―मुसलमान होकर भी विस्मिल्ला खाँ बालाजी और बाबा विश्वनाथ के
प्रति आस्था रखते थे। वे गंगा को भी हिन्दुओं की तरह मैया मानते थे। पवित्र नगरी
काशी उनके लिए भी हिन्दुओं के समान पवित्र धाम था। इस प्रकार बिस्मिल्ला
खाँ हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे।
प्रश्न 14. 'नौबतखाने में इबादत' पाठ से आपको क्या संदेश मिलता है?
अथवा, नौबतखाने में इबादत पाठ से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर―इस पाठ से हमें गायन-कला के साथ ही साथ धार्मिक सौहार्द,
कला-प्रेम और सादगी की प्रेरणा मिलती है। यह पाठ हमें प्रेरणा देती है कि हम
किसी भी धर्म को मानें, दूसरे धर्म का भी समान आदर करें। ईश्वर के सभी रूपों
के आगे नतमस्तक होना चाहिए।
कलाकार को कभी-भी अपनी कला को पूर्ण नहीं मानना चाहिए। कोई कला
कभी पूर्ण नहीं होती-आगे बढ़ते रहने का प्रयास करते रहना चाहिए। इस पाठ से
हमें सरलता और सादगी की भी प्रेरणा मिलती है।
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