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 Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | लखनवी अंदाज़ ― यशपाल  Solutions Chapter 12


                 दिये गये गद्यांश पर अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

गद्यांश 1. मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फँकार रही
थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना
नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नई कहानी के संबंध में सोच सकने और
खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए टिकट सेकंड क्लास का ही ले
लिया।

प्रश्न-(क) 'मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन' से क्या आशय है।
(ख) लेखक ट्रेन की कौन-सी क्लास में यात्रा कर रहा है और क्यों ?
(ग) 'ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी। ट्रेन के इस वर्णन
से लेखक ट्रेन की किस स्थिति की ओर संकेत कर रहा है?
(घ) ट्रेन में आराम से यात्रा करने के लिए किस क्लास में यात्रा करने की
राय लेखक दे रहा है तथा उस क्लास में यात्रा करने से क्या हानि है।
उत्तर―(क) जो साधारण ट्रेन प्रमुख नगर के आस-पास के क्षेत्रों में जाती
है उस ट्रेन को मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन कहते हैं । इस ट्रेन का लाभ प्रमुख नगर
में आस-पास से आने-जाने वाले दैनिक यात्री तथा अन्य लोग उठाते हैं।

(ख) लेखक ट्रेन की द्वितीय श्रेणी में यात्रा कर रहा है। द्वितीय श्रेणी के डिब्बे
में भीड़ नहीं होती तथा आराम से यात्रा की जा सकती है। इसमें बैठने के लिए
खिड़की के पास स्थान मिल जाता है, जिससे बाहर के दृश्य भी देखे जा सकते
हैं। वह एकांत में किसी कहानी का प्लाट भी सोचना चाहता है।

(ग) ट्रेन के इस वर्णन से लेखक इस ओर संकेत कर रहा है कि इस ट्रेन
में पुराने जमाने का भाप का इंजन लगा हुआ है। जो ट्रेन को चलाने से पहले
फूँकार-सी मारता रहता है। यह फूंकार उस में से भाप निकालने से होती है।

(घ) ट्रेन में आराम से यात्रा करने के लिए लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे
में यात्रा करने की सलाह दे रहा है। सेकंड क्लास में यात्रा करने की मुख्य हानि
यह है कि इस क्लास में यात्रा करने के लिए पैसे अधिक खर्च करने पड़ते हैं।

गद्यांश 2. गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली
समझकर, जरा दौड़कर उसमें चढ़ गए । अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था।
एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी
मार बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा
कूद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया ।
सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी
अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों।
        नवाब साहब ने संगीत के लिए उत्साह नहीं दिखाया। हमने भी उनके सामने
की बर्थ पर बैठकर आत्मसम्मान में आँखें चुरा लीं।

प्रश्न- (क) लेखक सेकंड क्लास डिब्बे में क्या सोचकर चढ़ा ?
(ख) लेखक के लिए कौन-सी स्थिति आशा के अनुकूल नहीं थी और क्यों ?
(ग) सेकंड क्लास के डिब्बे में बैठे सज्जन की स्थिति का वर्णन कीजिए।
(घ) लेखक के आने से पहले बैठे सज्जन की क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर―(क) लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में यह सोचकर चढ़ा था कि
डिब्बा पूरी तरह खाली होगा। उसमें कोई यात्री नहीं होगा। अतः वह आराम से
बैठकर नई कहानी के बारे में सोच सकेगा। साथ ही खिड़की के पास बैठकर
प्राकृतिक दृश्य भी देख सकेगा।

(ख) लेखक ने आशा की थी कि रेल के सेकंड क्लास में कोई यात्री नहीं
होगा । परन्तु उसकी इस आशा के विरुद्ध उसमें एक नवाबी स्वभाव वाले सफेदपोश
सम्जन सवार थे। लेखक ने सोचा था कि वह अकेले में आराम से नई कविता के
बारे में सोचेंगे। परन्तु उसकी वह सोच धरी-की-धरी रह गई।

(ग) सेकंड क्लास में बैठे सज्जन किसी लखनवी नवाब के समान सफेदपोश
थे। वे बड़े आराम से खाली डिब्बे में पालथी मारकर बैठे थे। उनके सामने की
बर्थ पर एक तौलिया बिछा था। उस पर दो ताजे-चिकने खीरे रखे थे।

(घ) जैसे ही लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा, लखनवी नवाब-से
सजन असुविधा महसूस करने लगे। ऐसे लगा मानो उनके एकांत में बाधा पड़
गई हो । वे मानो खीरा-खाने के संकोच में पड़ गए। उन्होंने लेखक के साथ संगति
करने का उत्साह नहीं दिखाया ।

गद्यांश 3. ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब
की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब
ने बिलकुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकंड
क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई
सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे। अकेले सफर का वक्त काटने के
लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ?
        हम कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। नवाब साहब कुछ देर
गाड़ी की खिड़की से बाहर देखकर स्थिति पर गौर करते रहे।
'ओह', नवाब साहब ने सहसा हमें संबोधन किया, 'आदाब-अर्ज', जनाब,
खीरे का शौक फरमाएँगे?
       नवाब साहब का सहसा भाव-परिवर्तन अच्छा नहीं लगा । भाँप लिया, आप
शराफत का गुमान बनाए रखने के लिए हमें भी मामूली लोगों की हरकत में लथेड़
लेना चाहते हैं। जवाब दिया, 'शुक्रिया, किबला शौक फरमाएँ ।'

प्रश्न- (क) इस गद्यांश में लेखकों के स्वभाव पर क्या टिप्पणी है?
(ख) लेखक ने नवाब साहब के बारे में क्या सोचा?
(ग) लेखक नवाबों के बारे में किस धारणा से ग्रस्त है?
(घ) लेखक ने भी नवाब की तरह सेकंड क्लास में यात्रा की, फिर भी उसने
नवाब के चरित्र में कमियाँ क्यों निकाली ?
उत्तर―(क) इस गद्यांश में लेखकों के स्वभाव पर टिप्पणी करते हुए कहा
गया है कि वे कल्पनाशील होते हैं। वे आसपास के जीवन में गहरी रुचि रखते हैं।
वे घट रही घटनाओं और मिलने वाले मनुष्यों का सूक्ष्मता से अध्ययन करते हैं।
वे सामने वाले की एक-एक मनोभावना पर गहरी नजर रखते हैं।

(ख) लेखक ने नवाब साहब के बारे में सोचा कि वे शायद इस डिब्बे में
अकेले यात्रा करना चाहते थे। उन्होंने सोचा होगा कि सेकंड क्लास का डिब्बा
खाली मिलेगा । इसीलिए उन्होंने किराया बचाने के लिए इस दर्जे का टिकट खरीद
लिया होगा। परन्तु अब वे नहीं चाहते कि कोई सफेदपोश उन्हें मंझले दर्जे में सफर
करता देखे। इसे वे अपनी शान में कमी मानते होंगे।

(ग) लेखक के मन में नवाबों के बारे में एक धारणा बन चुकी है। वह
सोचता है कि ये नवाब अपनी आन-बान-शान बघारने में लगे रहते हैं। ये स्वयं
को ऊँचे दर्जे का प्राणी मानते हैं। इसलिए ऊँचे दर्जे में यात्रा करते हैं। यदि कभी
मँझले दर्जे में यात्रा करते देख लिए जाएँ तो वे इसे अपनी शान में कमी मानते हैं।
इसलिए वे लोगों से नजर चुराते फिरते हैं।

(घ) लेखक ने भी नवाब की तरह सेकंड क्लास में यात्रा की। उसने स्वयं
को यह कहकर उचित माना कि वह खाली बैठकर कुछ सोचेगा और प्राकृतिक दृश्य
देखेगा। परन्तु नवाब को शान बघारने का दोषी माना । वास्तव में लेखक की पूर्वधारणा 
में खोट है।

गद्यांश 4. नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती
खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया।
खीरे की एक फांक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा । स्वाद के आनंद
में पलकें मुँद गई। मुँह में भर आए पानी का घूट गले से उतर गया। तब नवाब
साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों
को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते
गए।
    नवाब साहब ने खीरे की सब फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए
से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आँखों से हमारी ओर देख लिया,
मानो कह रहे हों-वह है खानदानी रईसों का तरीका।
नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए । हमें तसलीम
में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहजीब, नफासत और नजाकत ।
                                             [JAC 2009 (S): 2015 (A); 2018 (A)]
प्रश्न- (क) नवाब साहब ने खीरे का स्वाद किस प्रकार लिया ?
(ख) नवाब साहब ने खीरे को सूंघकर बाहर क्यों फेंक दिया ?
(ग) नवाब साहब किस कारण गर्व अनुभव कर रहे थे?
(घ) नवाब साहब की गुलाबी आँखें लेखक को क्या कह रही थीं ?
उत्तर―(क) नवाब साहब ने खीरे की कटी फांकों पर नमक-मिर्च बुरक कर
उन्हें प्यासी नजरों से देखा। वे उसके स्वाद और गंध की कल्पना में 'वाह' कह
उठे। फिर उसे होठों तक ले गए। उन्होंने एक-एक फाँक को सूंघा । स्वाद के
कारण उनकी पलकें मुँद गईं। मुँह में पानी भर आया। वे उस पानी को गटक गए।
खीरे को खिड़की के बारह फेंक दिया।

(ख) नवाब साहब अपनी नवाबी शान, खानदानी तहजीब, लखनवी नफासत
दिखाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने आम आदमियों की तरह खीरा खाया नहीं, बल्कि
उसकी गंध और स्वाद से ही पेट भर लिया। इसी से वे औरों से ऊँचे सिद्ध हो
सकते थे।

(ग) नवाब साहब इस बात पर गर्व अनुभव कर रहे थे कि वे खीरे की गंध
और स्वाद-कल्पना से ही संतुष्ट हो जाते हैं। अतः वे आम इनसान नहीं हैं। वे
कचर-कचर खाने वालों से ऊँचे हैं। उनकी जीवन-शैली बहुत ऊँची है।

(घ) नवाब साहब की गुलाबी आँखें लेखक को अपने खानदानी शौक और
रईसी जीवन-शैली का अहसास करा रही थीं। वे बताना चाह रही थीं कि उनकी
बात ही कुछ और है। वे सामान्य किस्म के आदमी नहीं हैं।

                            पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

प्रश्न 1. 'लखनवी अंदाज' पाठ में लेखक को नवाब साहब के किन
हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी
उत्सुक नहीं है?  [JAC 2011 (A); 2011 (C); 2013 (A); 2018 (A)]
उत्तर―लेखक को डिब्बे में आया देखकर नवाब साहब की आँखों में असंतोष
छा गया। ऐसे लगा मानो लेखक के आने से उनके एकांत में बाधा पड़ गई हो।
उन्होंने लेखक से कोई बातचीत नहीं की। उनकी तरफ देखा भी नहीं। वे खिड़की
के बाहर देखने का नाटक करने लगे। साथ ही डिब्बे की स्थिति पर गौर करने लगे।
इससे लेखक को पता चल गया कि नवाब साहब उनसे बातचीत करने को उत्सुक
नहीं हैं।

प्रश्न 2. नवाब साहब ने बहुत ही यल से खीरा काटा । नमक-मिर्च बुरका,
अंततः सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया
होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
                                                   [JAC 2009 (A); 2019 (A)]
उत्तर―नवाबों के मन में अपनी नवाबी की धाक जमाने की बात रहती है।
इसलिए समाज के तरीकों को ठुकराते हैं तथा नए-नए सूक्ष्म तरीके खोजते हैं, जिससे
अमीरी प्रकट हो। नवाब साहब अकेले में बैठे-बैठे खीरे खाने की तैयार कर रहे
थे। परन्तु लेखक को सामने देखकर उन्हें अपनी नवाबी दिखाने का अवसर मिल
गया। उन्होंने दुनिया की रीत से हटकर खीरे सूंघे और बाहर फेंक दिए । इस प्रकार
उन्होंने लेखक के मन पर अपनी अमीरी की धाक जमा दी।

प्रश्न 3. बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती
है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं? [JAC 2016 (A)]
उत्तर―हम यशपाल के विचारों से सहमत हैं। बिना घटना, बिना पात्र और
बिना विचार के कहानी नहीं लिखी जा सकती । कहानी का अर्थ ही है-'क्या हुआ'
उसे कहना । अतः जब घटना नहीं होगी तो यह कैसे पता चलेगा कि क्या हुआ?
बिना पात्रों के कुछ होगा कैसे, घटेगा कैसे ? कहानी में कोई-न-कोई विचार, बात
या उद्देश्य भी आवश्यक होता है।

प्रश्न 4.(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी का एक चित्र
प्रस्तुत किया गया है । इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
                                                                        [JAC 2011 (C)]
उत्तर―नवाब साहब बड़े आराम के साथ पालथी मारकर बैठे। उनके सामने
तौलिए पर कुछ ताजे-कच्चे खीरे रखे हैं। वे ऐसे बैठे हैं मानो दिन भर में उन्हें
एक यही महत्त्वपूर्ण काम करना है। धीरे-से उन्होंने तौलिए को उठाया, झाड़ा और
बिछाया। अब सीट के नीचे से पानी का लोटा उठाया । उस पानी से खिड़की के
बाहर करके खीरे धोए। धोए हुए खीरे तौलिए पर रखे। फिर एक खीरे को
उठाया । जेब से चाकू निकाला। चाकू से खीरे का सिर काटा । एक सिरे को चाकू
से गोदा। उसकी झाग निकाली। फिर बड़ी कलाकारी और कोमलता से खीरे को
छीला । तत्पश्चात् उसे काटकर उसकी फाँके बनाई । उन्हें एक-एक करके बड़े क्रम
से सजाकर तौलिए पर रखा । अब उस पर जीरा-नमक और लाल मिर्च की सुर्थी
बुरकी। अब ये खीरे खाने के लिए तैयार थे।

प्रश्न 5. क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है ? यदि हाँ तो
ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर―हाँ सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। प्रायः गाँधी, सुभाष,
विवेकानंद, मदन मोहन मालवीय आदि महापुरुष भी सनकी होते हैं। उन्हें एक चीज की
सनक सवार हो जाती है। वे उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। कौन नहीं जानता कि गाँधी
जी को अहिंसात्मक आंदोलन की सनक थी। आन्दोलन में जरा-सी भी हिंसा हुई तो वे
आंदोलन वापस ले लेते थे। विवेकानंद को ईश्वर को जानने की सनक थी । वे जिस
किसी संत-महात्मा से मिलते थे, उनसे पूछते-क्या आपने ईश्वर को देखा है। उनकी इसी
सनक ने उन्हें ज्ञानी बना दिया। वे रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आ गए। ऐसे अनेक
उदाहरण हो सकते हैं।

प्रश्न 6. 'लखनवी अंदाज' पाठ में क्या विचार व्यक्त किया गया है?
उत्तर―'लखनवी अंदाज' पाठ में लेखक ने लखनऊ के नवाबों के दिखावटी
अंदाज का वर्णन किया है। उन नवाबों के कार्य-कलापों का वास्तविकता से कोई
संबंध नहीं रहता। इसमें आज के समाज में दिखावटी व्याप्त दिखावटी संस्कृति पर
मधुर व्यंग्य है। इसके साथ ही साथ इस पाठ में यह सिद्ध करने का प्रयास किया
है कि बिना पात्रों और कध्य के कोई कहानी नहीं लिखी जा सकती, फिर भी एक
स्वतन्त्र रचना का निरूपण किया जा सकता है।

प्रश्न 7. 'नवाब साहब ने बहुत ही यल से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका,
अंततः सूंघ कर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया।' उन्होंने ऐसा क्यों किया
होगा? उनका ऐसा करना उनके किस स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर―नवाब लोगों के मन में नवाबी धाक जमाने की प्रवृत्ति रहती है। वे
सामान्य जीवन के पहलुओं को छोड़कर नये-नये सूक्ष्म तरीके खोजते हैं। वे अपनी
अमीरी और साहबी दिखाना चाहते हैं। वे अकेले बैठे-बैठे खीरा खाने की तैयारी
कर रहे थे। लेकिन लेखक को देखते उनकी साहबी जाग उठी। वे खाने का दिखावा
करने के लिए खीरे के प्रत्येक टुकड़े को सूंघ-सूंघकर खिड़की के बाहर फेंकते
गये। इस प्रकार नवाब साहब ने लेखक के सामने अपनी नवाबी स्वभाव का
प्रदर्शन कर लेखक को प्रभावित कर दिया।

प्रश्न 8. 'नवाब साहब खीर खाने की तैयारी और इस्तेमाल से थककर
लेट गये।' इसमें छिपा व्यंग्य स्पष्ट करें।
उत्तर―इसमें छिपा व्यंग्य है कि लखनवी नवाबों की सारी जिन्दगी नजाकत
और दिखावे में ही बीत जाती है। वे सुबह से शाम तक नवाबी शान में डूबे रहते
हैं। वे अपने नखरे भरे जीवन में अपनी वास्तविकता को भूल बैठते हैं। फलस्वरूप
उनका आर्थिक जीवन गर्त में चल जाता है। वे कुछ करना नहीं चाहते। वे केवल
कपोल कल्पनाओं में जीते हैं।

प्रश्न 9. लेखक को नवाब साहब के किस हाव-भाव से महसूस हुआ कि
वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है?
उत्तर―लेखक को अनायास डिब्बे में आया देख नवाब साहब ने अपना हुँह
फेर लिया। ऐसा आभास हुआ कि लेखक के आने से उन्हें कोई बाधा पड़ गयी
हो। लेखक को देखकर नवाब साहब खिड़की के बाहर देखने लगे। लेखक को
ऐसा महसूस हुआ कि वे लेखक से बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं
हैं।

 प्रश्न.10. 'बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा
सकती है'? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर―यशपाल के विचारानुसार बिना घटना, बिना पात्र और बिना विचार के
कहानी नहीं लिखी जा सकती। कहानी का अर्थ ही है, क्या हुआ? उसे कहना। अतः
बिना किसी घटना या पात्र के नई कहानी लिखना संभव नहीं है। कहानी में कोई
विचार, बात या उद्देश्य अवश्य होता है। अतः मैं लेखक के इस विचार से सहमत
हूँ।

प्रश्न 11. 'लखनवी अंदाज' नामक व्यंग्य का क्या संदेश है?
उत्तर―प्रस्तुत निबन्ध में लेखक का व्यंग्य का संदेश है कि जीवन में स्थूल
और सूक्ष्म दोनों का महत्व है। केवल गंध के सहारे किसी का पेट नहीं भर सकता।
जो लोग केवल गंध और काल्पनिक स्वाद के सहारे पेट भरने का दिखावा करते
हैं, वे ढोंगी हैं। इस व्यंग्य का और भी संदेश है कि कहानी के लिए कोई न कोई
घटना, पात्र और विचार अवश्य होना चाहिए। बिना घटना और पात्र के कहानी
लिखना निरर्थक है।

प्रश्न 12. 'लखनवी अंदाज' शीर्षक के औचित्य पर प्रकाश डालें।
उत्तर―'लखनवी अंदाज' शीर्षक लेख व्यंग्य प्रधान है। इसमें शान-बान और
दिखावे के नाम पर जीवन को सहजता के अस्वीकार का विरोध किया गया है।
लेखक ने कहना चाहा है कि लखनवी नदाब लोग खीरा खाने के नाम पर केवल
इसकी गंध और स्वाद लेते हैं। इसी में वे अपना बड़प्पन मानते हैं। परन्तु उनका
यह अंदाज स्वाभाविक तथा जीवन-विरोधी है। इस विरोध को दिखलाने के लिए
इस पाठ का शीर्षक 'लखनवी अंदाज' सर्वथा उचित है।

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