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 Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | पद ― सूरदास  Solutions Chapter 1

                      काव्य खण्ड                    [13 अंक]

―–――――――――――――――――――――
          काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

काव्यांश 1. ऊधौ, तुम अति बड़भागी।
                 अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
                 पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
                 ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
                 प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
                'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पामी।।

प्रश्न-कवि और कविता का नाम लिखें
उत्तर―कवि-सूरदास। कविता-पद।

प्रश्न-उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गयी है?
उत्तर―उद्धव के व्यवहार की तुलना पानी में रहने वाले कमल के पत्ते तथा
जल के घड़े में स्थित तेल की बूंदों से की गयी है।

प्रश्न-गोपियों ने उद्धव को भाग्यशाली क्यों कहा है?
अथवा, गोपियाँ उद्धव को बड़भागी क्यों मानती हैं? क्या वे वास्तव में
भाग्यशाली हैं ? अथवा, 'बड़भागी' शब्द का व्यंग्यार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर―वह उद्धव को भाग्यशाली मानते हुए कहती हैं कि तुम्हें कभी प्रेम-रस
चखने का मौका नहीं मिला। वह इसलिए भी उसे भाग्यवान मानती हैं कि कृष्ण
के साथ रहकर भी उद्धव को कभी विरह व्यथा सहने का मौका नहीं मिला।
वास्तव में, गोपियाँ उद्धव की 'बड़भागी' कहकर व्यंग्य कर रही हैं। जो व्यक्ति
श्रीकृष्ण के साथ रहकर भी प्रेम-रस से विभोर नहीं हुआ वह तो अभागा ही है।

प्रश्न-'पुरइन के पात' के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
अथवा, कमल के पत्ते की कौन-सी विशेषता बताई गयी है?
उत्तर―पुरइन के पात कमल के पत्ते को कहा जाता है। जल में रहने वाले
कमल के पत्ते जल में रहकर भी कभी जल से प्रभावित नहीं होते अर्थात् वे पानी
में नहीं भीगते हैं। इसके माध्यम से कवि ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो संसार
में रहकर भी प्रेम का अनुभव नहीं कर पाते।

प्रश्न-कौन स्वयं को अबला और भोरी कह रही है?
उत्तर―गोपियाँ स्वयं को अबला और भोरी कह रही हैं।

प्रश्न-भोली-भाली गोपियों और चींटियों में क्या समानता दर्शायी गयी
है ?
उत्तर―चीटियाँ गुड़ को देखकर अपने आप को अबला मानकर अंजाम की
चिन्ता किये बिना कृष्ण-प्रेम में गुड़ के साथ चींटियों के समान लिपटी मानती हैं।

काव्यांश 2. हमारैं हरि हारिल की लकरी।
                 मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
                 जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
                 सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।
                  सुतौ व्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
                  यह तो 'सूर' तिनहिं लै सौंपी, जिनके मन चकरी॥

प्रश्न-गोपियों की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर―प्रस्तुत काव्यांश में गोपियाँ अपने को हारिल पक्षी और कृष्ण को अपना
एकमात्र सहारा मानती हैं। कृष्ण के प्रति गोपियों के एकनिष्ठ प्रेम में डूबी गोपियों
को उद्धव की योग-साधना की बातें कड़वी ककड़ी के समान प्रतीत होती हैं।
गोपियाँ उद्धव को अपना उपदेश उन लोगों को देने को कहते हैं, जिनका मन भ्रमित
है। उद्धव के उपदेश को गोपियाँ बीमारी मानती हैं।

प्रश्न-गोपियाँ अपने को 'हारिल' और कृष्ण को हारिल की लकड़ी क्यों
मानती हैं?
अथवा, गोपियाँ अपने हरि की तुलना हारिल की लकड़ी से क्यों करती
हैं?
उत्तर―गोपियाँ अपने को हारिल पक्षी के समान मानती हैं। हारिल अपने पंजों
में कोई एक छोटी-सी लकड़ी या तिनका पकड़े रहता है। वही उसके जीवन का
सहारा है। गोपियाँ कृष्ण को हारिल की लकड़ी इसलिए मानती हैं कि कृष्ण ही
उनके जीवन का एकमात्र सहारा है।

प्रश्न-श्रीकृष्ण को गोपियाँ अपने जीवन में किस रूप से धारण कर रखी
थीं?
उत्तर―गोपियाँ श्रीकृष्ण को अपने जीवन में हारिल की लकड़ी के समान
धारण कर रखी थीं।

प्रश्न-गोपियाँ योग की तुलना किससे करती है?
उत्तर―गोपियाँ योग की तुलना कड़वी ककड़ी से करती हैं।

प्रश्न-गोपियों को उद्धव की योग-संबंधी बातें कैसी लगती थीं?
अथवा, करुई ककड़ी का उपागम किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर―गोपियों को उद्धव की योग-संबंधी बातें कड़वी ककड़ी के समान
प्रतीत होती थीं।

प्रश्न-गोपियों के अनुसार योग की आवश्यकता कैसे लोगों को है?
उत्तर―गोपियों के अनुसार योग की आवश्यकता वैसे लोगों को है जिनका
मन भ्रमित है अर्थात् स्थिर नहीं है। गोपियाँ तो मन, वचन और कर्म से कृष्ण के
प्रति समर्पित हैं।

काव्यांश 3. हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
                 समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए ।
                 इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रन्थ पढ़ाए ।
                 बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए ।
                 कधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलन धाए ।
                 अब अपने मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए ।
                 ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए ।
                 राज धरम तौ यहै 'सूर' जो प्रजा न जाहिं सताए ।

प्रश्न-गोपियों क्यों माना कि कृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर
ली है?
उत्तर―ब्रजवासी कृष्ण का गोपियों के साथ एकनिष्ठ संबंध था। लेकिन मधुरा
जाकर कृष्ण जब राजा बन गये तो गोपियों को ऐसा संदेह हुआ कि कृष्ण का हृदय
परिवर्तन हो गया है। उद्धव का ज्ञान-मार्गी संदेशा सुनकर गोपियाँ विचलित हो उठी।
गोपियों को ऐसा महसूस हुआ कि श्री कृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली
है। कृष्ण अब राजनीतिक छल-कपट और कुटिलता से काम लेने लगे हैं।

प्रश्न-गोपियों ने 'जानी बुद्धि बड़ी' से कवि ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर―गोपियों ने 'जाना बुद्धि बड़ी' में व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग किया
गया है। गोपियों को कृष्ण की बुद्धि का अंदाजा इसी से लगा कि उन्होंने युवतियों
को योग-साधना का संदेश दिया है। स्पष्टत: इससे गोपियाँ कृष्ण को बुद्धिमान
नहीं मानती हैं। गोपियों के अनुसार कोई मूर्ख व्यक्ति ही इस प्रकार का संदेश
भेज सकता है।

प्रश्न-कृष्ण ब्रज से जाते समय गोपियों का क्या ले गये थे? कृष्णा से क्या
पाना चाहती थी?
उत्तर―कृष्ण ब्रज से जाते समय गोपियों का हृदय चुराकर ले गये थे। गोपियाँ
कृष्ण द्वारा चुराये गये अपने मन को वापस पाना चाहती थी।

प्रश्न-गोपियों के अनुसार सच्चा राजधर्म किसे माना गया है?
उत्तर―गोपियों के अनुसार सच्चा राजधर्म राजा का प्रजावत्सल होना माना गया
है।

                पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

प्रश्न 1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है ?
                                                                         [JAC 2012 (A)]
उत्तर―गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में वक्रोक्ति है। वे दीखने में
प्रशंसा कर रही हैं किन्तु वास्तव में कहना चाह रही हैं कि तुम बड़े अभागे हो कि
प्रेम का अनुभव नहीं कर सके । न किसी के हो सके, न किसी को अपना बना सके ।
तुमने प्रेम का आनन्द जाना ही नहीं। यह तुम्हारा दुर्भाग्य है।

प्रश्न 2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है ?
                                                         [JAC 2015 (A)]
उत्तर―उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित से की गई है―
(क) कमल के पत्तों से, जो जल में रहकर भी उससे प्रभावित नहीं होते ।
(ख) जल में पड़ी तेल की बूंद से, जो जल में घुलती-मिलती नहीं ।
उद्धव भी इनके समान हैं । वे कृष्ण के संग रहकर भी उसके प्रेम से प्रभावित
नहीं हो सके।

प्रश्न 2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है ?
                                                         [JAC 2015 (A)]
उत्तर―उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित से की गई है―
(क) कमल के पत्तों से, जो जल में रहकर भी उससे प्रभावित नहीं होते ।
(ख) जल में पड़ी तेल की बूंद से, जो जल में घुलती-मिलती नहीं ।
उद्धव भी इनके समान हैं । वे कृष्ण के संग रहकर भी उसके प्रेम से प्रभावित
नहीं हो सके।

प्रश्न 3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने
दिए हैं?                                                               [JAC 2016 (A)]
उत्तर―गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए
हैं―
(क) उन्होंने कहा कि उनकी प्रेम-भावना उनके मन में ही रह गई है। वे न
तो कृष्ण से अपनी बात कह पाती हैं, न अन्य किसी से।

(ख) वे कृष्ण के आने की इंतजार में ही जी रही थीं, किन्तु कृष्ण ने स्वयं
न आकर योग-संदेश भिजवा दिया। इससे उनकी विरह-व्यथा और अधिक बढ़
गई है।

(ग) वे कृष्ण से रक्षा की गुहार लगाना चाह रही थीं, वहाँ से प्रेम का संदेश
चाह रही थीं। परन्तु वहीं से योग-संदेश की धारा को आया देखकर उनका दिल
टूट गया।

(घ) वे कृष्ण से अपेक्षा करती थीं कि वे उनके प्रेम की मर्यादा को रखेंगे।
वे उनके प्रेम का बदला प्रेम से देंगे। किन्तु उन्होंने योग-संदेश भेजकर प्रेम की
मर्यादा ही तोड़ डाली।

प्रश्न 4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में
घी का काम कैसे किया?
उत्तर―ब्रज की गोपियाँ इस प्रतीक्षा में बैठी थीं कि देर-सवेर कृष्ण उनसे
मिलने अवश्य आएँगे, या अपना प्रेम-संदेश भेजेंगे। इसी से वे तृप्त हो जाएँगी । इसी
आशा के बल पर वे वियोग की वेदना सह रही थीं। परन्तु ज्यों ही उनके पास कृष्ण
द्वारा भेजा गया योग-संदेश पहुँचा, वे तड़प उठीं। उनकी विरह-ज्वाला तीव्रता से
भड़क उठी। उन्हें लगा कि अब कृष्ण उनके पास नहीं आएंगे। वे योग-मंदेश में
ही भटकाकर उनसे अपना पीछा छुड़ा लेंगे। इस भय से उनकी विरहाग्नि भड़क उठी।

प्रश्न 5. 'मरजादा न लही' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात
की जा रही है?
उत्तर―प्रेम की यही मर्यादा है कि प्रेम और प्रेमिका दोनों प्रेम को निभाएँ । वे
प्रेम की सच्ची भावना को समझें और उसकी मर्यादा की रक्षा करें। परनु कृष्ण
ने गोपियों से प्रेम निभाने की बजाय उनके लिए नीरस योग-संदेश भेज दिया, जो कि
एक छलावा था, भटकाव था। इसी छल को गोपियों ने मर्यादा का उलंघन कहा है।

प्रश्न 6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार
अभिव्यक्त किया है?                   [JAC 2013 (A); 2017 (A)]
उत्तर―गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को निम्नलिखित युक्तियों से
व्यक्त किया है―
         वे स्वयं को कृष्ण रूपी गुड़ पर लिपटी हुई चींटी कहती हैं।
         वे स्वयं को हारिल पक्षी के समान कहती हैं जिसने कृष्ण-प्रेम रूपी लकड़ी
को दृढ़ता से थामा हुआ है।
          वे मन, वचन और कर्म से कृष्ण को मन में धारण किए हुए हैं।
          वे जागते-सोते, दिन-रात और यहाँ तक कि सपने में भी कृष्ण का नाम रटती
रहती हैं।
         वे कृष्ण से दूर ले जाने वाले योग-संदेश को सुनते ही व्यथित हो उठती हैं।

प्रश्न 7. गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात
कही है?                                    [JAC Sample Paper 2009]
उत्तर―गोपियों ने उद्धव को कहा है कि वे योग की शिक्षा ऐसे लोग को दें
जिनके मन स्थिर नहीं हैं। जिनके हृदयों में कृष्ण के प्रति सच्चा प्रेम नहीं है। जिनके
मन में भटकाव है, दुविधा है; भ्रम है और चक्कर हैं।

प्रश्न 8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति
दृष्टिकोण स्पष्ट करें।                                          [JAC 2016 (A)]
उत्तर―सूरदास के पठित पदों के आधार पर स्पष्ट है कि गोपियाँ योग-साध
ना को नीरस, व्यर्थ और अवांछित मानती हैं। उनके अनुसार योग-साधना प्रेम का
स्थान नहीं ले सकती । प्रेमजन योग-मार्ग द्वारा नहीं, प्रेमपूर्ण समर्पण के बल पर ही
ईश्वर को पा सकते हैं। उनके अनुसार, योग-साधना तो उनके प्रेम की दीवानगी
में बाधा है। यह उन्हें उनके कृष्ण से दूर ले जाती है। इसलिए योग का नम सुनते
ही उनकी विरह-ज्वाला और अधिक भड़क उठती है। उन्हें योग-साधना एक बला
प्रतीत होती है। उन्हीं के शब्दों में―
                 सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यों करुई ककरी।
           गोपियाँ प्रेम के बदले योग-संदेश भेजने को कृष्ण की मूर्खता या चालाकी
मानती हैं। कभी वे कृष्ण को बुद्ध बनाती हुई कहती हैं-'बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी,
जोग-सँदेस पठाए।' कभी वे आरोप लगाती हुई कहती हैं-'हरि हैं राजनीतिक पढ़ि
आए।'

प्रश्न 9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?   [JAC 2017 (A)]
उत्तर―गोपियों के अनुसार, राजा का धर्म यह होना चाहिए कि वह प्रजा को
अन्याय से बचाए । उन्हें सताए जाने से रोके ।

प्रश्न 10. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके
कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं ?
उत्तरगोपियों को लगा कि कृष्ण मथुरा में जाकर बदल गए हैं। वे अब
गोपियों से प्रम नहीं करते। इसलिए वे स्वयं उनसे मिलने नहीं आए। दूसरे, उन्हें लगा
कि अब कृष्ण राजा बनकर राजनीतिक चालें चलने लगे हैं। छल-कपट उनके स्वभाव
का अंग हो गया है। इसलिए वे वहाँ से अपना प्रेम-संदेश भेजने की बजाय योग-संदेश
भेज रहे हैं।
     इन परिवर्तनों को देखते हुए गोपियों को लगा कि अब उनका कृष्ण-प्रेम में
डूबा हुआ मन वापस उन्हें मिल पाएगा।

प्रश्न 11. गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को
परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए ?
                          [JAC 2009 (A); 2011(A); 2013 (A); 2015 (A)]
उत्तर―गोपियाँ वाक्चतुर हैं। वे बात बनाने में किसी को भी पछाड़ देती हैं।
यहाँ तक कि ज्ञानी उद्धव उनके सामने गूँगे होकर खड़े रह जाते हैं। कारण यह
है कि गोपियों के हृदय में कृष्ण-प्रेम का सच्चा ज्वार है। यही उमड़ाव, यही
जबरदस्त आवेग उद्धव की बोलती बंद कर देता है। सच्चे प्रेम में इतनी शक्ति है
कि बड़े-से-बड़े ज्ञानी भी उसके सामने घुटने टेक देता है

प्रश्न 12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख
विशेषताएँ बताइए?                                         [JAC 2016 (A)]
उत्तर―सूरदास के भ्रमरगीत की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं―
इनमें गोपियों का निर्मला कृष्ण-प्रेम प्रकट हुआ है। वे कृष्ण की दीवानी हैं।
उनका प्रेम अनन्य है, संपूर्ण है और अनूठा है।
         गोपियाँ गाँव की चंचल, अल्हड़ और वाक्चतुर बालाएँ हैं। वे चुपचाप आँसू
बहाने वाली नहीं अपितु अपने भोले-निश्छल तर्को से सामने वाले को परास्त करने
की क्षमता रखती हैं।
भ्रमरगीत में व्यंग्य, कटाक्ष, उलाहना, निराशा, प्रार्थना, गुहार आदि अनेक-अनेक
मनोभाव तीखे तेवरों के साथ प्रकट हुए हैं।
      इसमें योग और प्रेम मार्ग का द्वंद्व दिखाया गया है। प्रेम के सम्मुख
योग-साधना को तुच्छ दिखलाया गया है। इसमें कृष्ण के ज्ञानी मित्र उद्धव को
निरुत्तर, मौन और भौंचक्का-सा दिखाया गया है।
      ये पद संगीत की दृष्टि से बहुत मनोहारी हैं। हर पद पहले गाया गया है, फिर
लिखा गया है। ये शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं
इनमें ब्रजभाषा की कोमलता, मधुरता और सरसता के दर्शन होते हैं। श्रृंगार
रस के अनुरूप शब्द कोमल बन पड़े हैं।
    इनकी भाषा अलंकार-युक्त है। जो भी अलंकार आए हैं, वे सहज जन-जीवन
से आए हैं। उनका प्रयोग स्वभाविक है। कहीं-कहीं अलंकार न के बराबर हैं तो
भी सरसता में कोई कमी नहीं आई है। ऐसे अलंकारहीन पदों में सूरदास की रसमय
भावना ही आकर्षण का कारण है।
इन पदों में कृष्ण पर्दे के पीछे रहते हैं। गोपियाँ ऊधौ के सामने खुलकर अपन
उलाहना प्रकट करती हैं।

प्रश्न 13. गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप
अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर―गोपियाँ : ऊधौ ! यदि यह योग-संदेश इतना ही प्रभावशाली है तो कृष्ण
इसे कुब्जा को क्यों नहीं देते ? तुम यों करो, यह योग कुब्जा को जाकर दो।
        और बताओ! जिसकी जुबान पर मीठी खाँड का स्वाद चढ़ गया हो, वह योग
रूपी निबोरी क्यों खाएगा? फिर यह भी तो सोचो कि योग-मार्ग कठिन है। इसमें
कठिन साधना करनी पड़ती है। हम गोपियाँ कोमल शरीर वालो और मधुर मन वाली
हैं। हमसे यह कठोर साधना कैसे हो पाएगी। हमारे लिए यह मार्ग असंभव है।

प्रश्न 14.गोपियों ने यह क्या कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ि आए है?
क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नजर
आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―जब गोपियों ने देखा कि जिस कृष्ण की वे बहुत समय से प्रतीक्षा कर
रही थी, वे नहीं आए। उसकी जगह कृष्ण से दूर ले जाने वाला योग-संदेश आ गया
तो उन्हें इसमें कृष्ण को एक चाल नजर आई। वे इसे अपने साथ छल समझने लगीं।
इसीलिए उन्होंने आरोप लगाया कि―
                   हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
आज की राजनीति तो सिर से पैर तक छल-कपट से भरी हुई है। किसी को
किसी भी राजनेता के वादों पर विश्वास नहीं रह गया है। नेता बातों से नदियाँ,
पुल, सड़कें और न जाने क्या-क्या बनाते हैं किन्तु जनता लुटी-पिटी-सी नजर आती
है। आजादी के बाद से गरीबी हटाओ का नारा लग रहा है किन्तु तब से लेकर
आज तक गरीबों की कुल संख्या में वृद्धि ही हुई है। इसलिए गोपियों का यह कथन
समकालीन राजनीति पर खरा उतरता है।

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