Jharkhand Board Class 10 Economics Notes | उपभोक्ता अधिकार
JAC Board Solution For Class 10TH ( Social science ) Economics Chapter 5
(Consumer Rights)
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. 'जब उत्पादक थोड़े और शक्तिशाली होते हैं और उपभोक्ता
कम मात्रा में खरीददारी करते हैं और बिखरे हुए होते हैं, तो बाजार उचित
तरीके से कार्य नहीं करता है।' व्याख्या करें।
उत्तर―(i) अधिक पूँजीवाली, शक्तिशाली और समृद्ध कंपनियाँ विभिन्न
प्रकार से चालाकीपूर्वक बाजार को प्रभावित कर सकती हैं, जेसे मूल्य तथा
आपूर्ति पर नियंत्रण।
(ii) वे उपभोक्ताओं को गलत सूचना दे सकती हैं।
(iii) वे घटिया वस्तुएँ बेच सकती हैं।
प्रश्न 2. उपभोक्ता के किन्हीं तीन अधिकारों को बताइए और प्रत्येक
पर कुछ पंक्तियाँ लिखिए। [JAC 2011 (A)]
उत्तर―उपभोक्ता के तीन अधिकार हैं―
(i) वस्तु की गुणवत्ता की जाँच करने का ।
(ii) उत्पादन तिथि ज्ञात करने का।
(iii) तौल की जानकारी प्राप्त करने का।
प्रश्न 3. उपभोक्ता अधिकार के रूप में 'सुरक्षा के अधिकार' का
उल्लेख करें।
उत्तर―जब हम एक उपभोक्ता के रूप में बहुत-सी वस्तुओं और सेवाओं
का उपयोग करते हैं, तो हमें वस्तुओं के बाजारीकरण और सेवाओं की प्राप्ति के
खिलाफ सुरक्षित रहने का अधिकार होता है, क्योंकि ये जीवन और संपत्ति के
लिए खतरनाक होते हैं। उत्पादकों के लिए आवश्यक है कि वे सुरक्षा नियमों और
विनियमों का पालन करें। ऐसी बहुत सी वस्तुएँ और सेवाएँ हैं, जिन्हें हम खरीदते
हैं तो सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए
प्रेशर कुकर में एक सेफ्टी वाल्व होता है, जो यदि खराब हो तो भयंकर दुर्घटना
का कारण हो सकता है। सेफ्टी बाल्व के निर्माता को इसकी उच्च गुणवत्ता
सुनिश्चित करनी चाहिए।
प्रश्न 4. (i) उपभोक्ता अधिकार के रूप में 'चयन के अधिकार' का
उल्लेख करें।
(i) उपभोक्ता अधिकार के रूप में 'क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार'
के बारे में उल्लेख करें।
उत्तर―(i) उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं तथा
सेवाओं को पाने का अधिकार है। यदि एकल विक्रेता है तो उपभोक्ताओं को
अधिकार है कि उन्हें उचित मूल्य पर संतोषजनक गुणवत्ता भी मिले । यह अधि
कार हमें विश्वास दिलाता है कि कोई उत्पादक उपभोक्ता को किसी विशेष वस्तु
अथवा ब्रांड को खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकता ।
(ii) यह सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार है। अनुचित व्यापार कार्यों तथा शोषण
के विरुद्ध उपभोक्ता को क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार है। यदि एक उपभोक्ता
को कोई क्षति पहुँचाई जाती है तो क्षति की मात्रा के आधार पर उसे क्षतिपूर्ति पाने
का अधिकार होता है।
प्रश्न 5. उपभोक्ता अदालतें क्या होती हैं ? उनका महत्त्व क्या है?
उत्तर―भारत में उपभोक्ता आंदोलन ने विभिन्न संगठनों के निर्माण में पहल
की है जिन्हें सामान्यतया उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता संरक्षण परिषद् के नाम
से जाना जाता है। ये उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन करती हैं कि कैसे उपभोक्ता अदालत
में मुकदमा दर्ज कराएँ । बहुत से अवसरों पर ये उपभोक्ता अदालत में व्यक्ति विशेष
(उपभोक्ता) का प्रतिनिधित्व भी करती हैं। ये स्वयंसेवी संगठन जनता में जागरुकता
पैदा करने के लिए सरकार से वित्तीय सहयोग भी प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 6. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के निर्माण की जरूरत
क्यों पड़ी? [JAC 2012(A); 2013 (A)]
उत्तर―(i) त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित करने के लिए।
(ii) उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों तथा कर्तव्यों की जानकारी देना।
(iii) उपभोक्ताओं के शोषण को कम करना।
प्रश्न 7. मान लीजिए, आप शहद की एक बोतल और बिस्कुट का
एक पैकेट खरीदते हैं। खरीदते समय आप कौन-सा 'लोगो' या शब्द चिह्न
देखेंगे और क्यों? [NCERT]
उत्तर―उपभोक्ता को 'एगमार्क' का लोगो अवश्य देखना चाहिए। उत्पाद
पर लोगो के होने का अर्थ है कि यह अनुवीक्षित तथा प्रमाणित है तथा इसमें
मिलावट, घटिया किस्म अथवा मात्रा की कमी की कोई गुजाइंश नहीं है।
प्रश्न 8. उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं ?
[NCERT]
उत्तर―(i) उपभोक्ता दल बनाकर। (ii) उपभोक्ता आंदोलनों के द्वारा ।
(iii) उपभोक्ता सुरक्षा परिषदों को बनाकर ।
प्रश्न 9. दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत का
वर्णन करें । [JAC 2017(A)]
उत्तर―(i) एक कंपनी ने अपने उत्पाद को माता के दूध से बेहतर बताया
और वर्षा तक विश्व भर में बचा। परन्तु वर्षों के अंत में संघर्ष के पश्चात् उनको
स्वीकार करना पड़ा कि उनका दावा गलत था।
(ii) सिगरेट कंपिनयों को भी यह मनवाने के लिए कि सिगरेट से कैंसर होता
है, काफी समय लगा। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि गलत प्रचार के
द्वारा कंपनियाँ अपने उत्पाद बेचती हैं परन्तु अगर उपभोक्ता जागरूक है तो वह
इस प्रकार के गलत प्रचार के बहकावे में नहीं आ सकता । उपभोक्ता को अपने
अधिकारों के बारे में पता होगा तो कोई व्यवसायी उसका शोषण नहीं कर सकेगा।
अतः उपभोक्ता जागरूकता की आवश्यकता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. उपभोक्ता शोषण क्या है ? वे विभिन्न तरीके कौन-से हैं,
जिनके द्वारा उपभोक्ता का शोषण किया जा सकता है ?
उत्तर―यह एक स्थिति है जिसमें उत्पादक द्वारा उपभोक्ता का शोषण होता
है। यह शोषण निम्नलिखित तरीकों द्वारा किया जाता है―
(i) अधिक मूल्य–बाजार में कुछ वस्तएँ अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP)
के बिना होती हैं। इस स्थिति में व्यापारी बाजार में प्रचलित मूल्य से अधिक मूल्य
लेते हैं, इसका कारण है उपभोक्ता की अज्ञानता और अत्यावश्यकता ।
(ii) कम तोलना और कम मापना–अपनी चालाकी से कुछ व्यापारी इतना
अधिक नीचे गिर जाते हैं कि वे कम तोल तथा कम नाप कर उपभोक्ताओं को
धोखा देते हैं।
(iii) घटिया सामान―कुछ व्यापारी अथवा विक्रेता उपभोक्ताओं को घटिया
सामान बेचते हैं। आजकल बाजार नकली उत्पादों से भरा पड़ा है।
(iv) मिलावटी व अशुद्ध उत्पाद― अधिक लाभ कमाने के लोभ में महंँगे
खाद्य पदार्थों जैसे घी, तेल और मसालों में मिलावट की जाती है। इससे
उपभोक्ताओं को बहुत अधिक आर्थिक तथा स्वास्थ्य का नुकसान होता है। आपने
मिलावटी शराब पीकर लोगों के मरने के बारे में सुना होगा।
प्रश्न 2. भारत में उपभोक्ता संगठनों के प्रारंभ के लिए उत्तरदायी
कारक कौन-से हैं?
अथवा, भारत में उपभोगता आन्दोलन की शुरूआत किन कारणों से
हुई? इससे विकास के बारे में लिखें। [JAC 2014(A); 2016 (A)]
उत्तर―(i) भारत में 'सामाजिक बल' के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का
जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा
करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ ।
(ii) अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों व खाद्य
तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता
आंदोलन का उदय हुआ।
(iii) 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत् स्तर पर उपभोक्ता
अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शनी के आयोजन का कार्य करने
लगी थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ और राशन दुकानों
में होने वाले अनुचित कार्यों पर नजर रखने के लिए उपभोक्ता दल बनाया।
(iv) हाल में, भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है । ऐसा
इसलिए हुआ क्योंकि निजी व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं के शोषण के अनेक
मामले सामने आए। विभिन्न उपभोक्ता दलों की प्रक्रियाओं ने भारत सरकार को
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 पारित करने पर मजबूर किया जो कोपरा
(COPRA) नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 3. उपभोक्ता अधिकार के रूप में 'सूचना पाने के अधिकार' के
बारे में लिखें।
उत्तर―उपभोक्ताओं का वस्तु की गुणवत्ता, यात्रा, मूल्य, बैच संख्या, निर्माण
की तारीख, खराब होने की अंतिम तिथि और वस्तु बनाने वाले के पते के बारे
में जानने का अधिकार होता है। यह अधिकार उपभोक्ताओं को इसलिए दिया
गया है ताकि धोखा दिया जाए तो उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
कोई भी उत्पादक उत्पाद के बारे में सही तथा पूरी जानकारी दिए बिना उसे
बेच नहीं सकता। निर्माता का यह कर्तव्य होता है कि वह उपभोक्ता को उत्पाद
के बारे में पूरी जानकारी दे ।
प्रश्न 4. उस अधिनियम का नाम बताएँ जिसके अंतर्गत उपभोक्ता
अदालतों की स्थापना हुई। इन अदालतों का महत्व क्या है ?
उत्तर―उपभोक्ता आंदोलनों की स्थापना उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986
के अंतर्गत हुई।
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी तीन
स्तरीय प्राणाली है, जिसे उपभोक्ता अदालतें कहा जाता है।
(i) ये अदालतें व्यापारियों तथा निर्माताओं के विरुद्ध उपभोक्ताओं की
शिकायतों को सुनती हैं तथा उन्हें आवश्यक सहायता तथा क्षतिपूर्ति प्रदान करती
हैं। (ii) इन अदालतों को किसी भी शिकायत को तीन महीने में निपटाना होता
है। (iii) ये अदालतें उच्च नयायालय, जिला अदालतें तथा सर्वोच्च न्यायालयों का
भार कम कर देती हैं।
प्रश्न 5. उपभोक्ता अधिकार के रूप में 'प्रतिनिधित्व का अधिकार' का
उल्लेख करें
उत्तर―कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य
और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है। जिला
स्तर का न्यायालय 20 लाख तक के दावों से संबंधित मुकदमों पर विचार करता
है, राज्य स्तरीय अदालतें 20 लाख से एक करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर की
अदालतें एक करोड़ से ऊपर की दावेदारी संबंधित मुकदमों को देखती हैं। यदि
कोई मुकद्दमा जिला स्तर के न्यायालय में खारिज कर दिया जाता है, तो
उपभोक्ता राज्य स्तर के न्यायालय में और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर के न्यायालय
में भी अपील कर सकता है।
इस प्रकार अधिनियम ने उपभोक्ताओं के रूप में उपभोक्ता न्यायालय में
प्रतिनिधित्व का अधिकार देकर हमें समर्थ बनाया है।
प्रश्न 6. उपभोक्ता के किन्हीं चार कर्तव्यों का वर्णन करें।
अथवा, बाजार में जाने पर उपभोक्ता के रूप में अपने कुछ कर्त्तव्यों
का वर्णन करें।
उत्तर―(i) बाजार से सामान खरीदते समय उपभोक्ता उसकी गुणवत्ता,
लिखित मूल्य, गारंटी अथवा वारंटी, अवधि देखना न भूलें।
(ii) जहाँ तक संभव हो सके, उपभोक्ता वही माल खरीदे, जिस पर आई० एस० आई०
अथवा एगमार्क का शब्दचिह्न लगा हो ।
(iii) उपभोक्ता को खरीदे हुए सामान व सेवा की रसीद तथा वारंटी कार्ड आवश्य
लेना चाहिए ।
(iv) उपभोक्ता को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों की जानकारी होनी चाहिए।
(v) उपभोक्ता को अपने उपभोक्ता संगठन बनाने चाहिए ताकि वे इकट्ठे मिलकर
सरकार द्वारा बनाई गई विभिन्न समितियों तथा संस्थाओं के सामने उपभोक्ता
संरक्षण संबंधी अपनी माँगें रख सकें।
(vi) उसे इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि यदि वह ठगा जाता है तो उसे
कौन-सा तरीका अपनाना चाहिए।
प्रश्न 7. भारत में उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ क्या हैं ?
उत्तर―(i) उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली तथा समय-साध्य
साबित हो रही है।
(ii) कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। ये मुकद्दमे
अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने आदि में काफी समय लेते हैं।
(iii) अधिकांश खरीददारियों के समय रसीद नहीं दी जाती है। ऐसी स्थिति में प्रमाण
जुटाना आसान नहीं होता है ।
(iv) बाजार में अधिकांश खरीददारियाँ छोटी फुटकर दुकानों से होती हैं ।
(v) श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद, खासतौर
से असंगठित क्षेत्र में ये कमजोर हैं। इस प्रकार, बाजारों के कार्य करने के लिए
नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता।
प्रश्न 8. मानकीकरण क्या है? भारत में उत्पादों के मानकीकरण के
लिए उत्तरदायी किन्हीं दो ऐंजसियों के बारे में बताएँ।
उत्तर―उत्पादों के मानकीकरण के अंतर्गत सरकार उत्पादों के लिए न्यूनतम
मानक को बनाए रखने के लिए आग्रह करती है। यह वस्तुओं के उत्पादन,
वितरण तथा बिक्री के मानक, निर्धारित करती है। न्यूनतम मानक बनाए रखने के
लिए सरकार ने विभिन्न संस्थाओं की स्थापना की है।
(i) उत्पादों की मानकता के माध्यम से सरकार उपभोक्ताओं को वस्तुओं की
गुणवत्ता की कमी तथा वस्तुओं के विभिन्न मानकों से बचाना चाहती है।
(ii) वस्तुओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने दो एजेंसियों
की स्थापना की है।
(क) भारतीय मानक संस्थान (BIS)―बी० आई० एस० का प्रमुख
उत्तरदायित्व वैज्ञानिक आधार पर औद्योगिक व उपभोक्ता सामान के मानक
निर्धारित करना है। साथ ही यह उन वस्तुओं को प्रमाणित भी करता है जो निर्धारित
मापदंड पर खरे उतरते हैं।
(ख) एगमार्क (AGMARK)―एगमार्क खेती के उत्पाद कानून (1937)
जिसे 1986 में संशोधित किया गया है, के अंतर्गत कार्य करता है। यह स्कीम
भारत सरकार को कृषि मंत्रालय के अधीन मार्केटिंग एवं इंटेलिजेंस निदेशालय
(डी० एम० आई०) द्वारा संचालित होती है। शुद्ध मसाले जैसी वस्तुओं पर यह
चिह्न होता है।
प्रश्न 9. उपभोगताओं के कुछ अधिकारों को बताएँ और प्रत्येक
अधिकार पर कुछ पंक्तियाँ लिखें।
अथवा, उपभोक्ता सुरक्षा कानून, 1986 में रखे गए उपभोक्ताओं के
अधिकारों का वर्णन करें।
उत्तर―उपभोक्ता सुरक्षा कानून, 1986, उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा
के बहुत महत्त्वपूर्ण कानूनी उपाय है। जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं।
(क) सुरक्षा का अधिकार (Right to Safety)―उपभोक्ताओं को यह
अधिकार दिया गया है कि वह ऐसी सभी वसतुओं की बिक्री से अपना बचाव कर
सकें, जो उनके जीवन आदि की सम्पत्ति के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती हैं।
(ख) सूचना का अधिकार (Right to information)―उपभोक्ताओं
को यह अधिकार दिया गया है कि वह वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य की मात्रा
की गुणवत्ता के बारे में सूचना प्राप्त करे ।
(ग) चुनने का अधिकार (Right to Choose)―उपभोक्ताओं को यह
अधिकार है कि वह वस्तुओं तथा सेवाओं की किस्म तथा उचित मूल्य की
जानकारी रखे और यदि एक ही विक्रेता है, तो उपभोक्ता को पूर्ण अधिकार है कि
वह इच्छानुसार ठीक मूल्य पर सही वस्तु का चुनाव कर सके ।
(घ) सुनवाई का अधिकार (Right to be heard)―हर उपभोक्ता को
यह अधिकार है कि उपभोक्ता के हितों से जुड़ी विभिन्न संस्थाएँ उन्हें यह
आश्वासन दें कि उनकी समस्याओं पर पूरा ध्यान दिया जाएगा।
(ङ) शिकायतें निपटाने का अधिकार (Right to Seek Redressal)―
हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह जब उत्पादकों द्वारा शोषित हो अथवा
ठगा जाए तो उनकी शिकायत कर सके तथा हक में ठीक प्रकार से निपटारा हो ।
प्रश्न 10. बाजार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती
है ? कुछ उदाहरणों के द्वारा समझाएँ। [NCERT]
उत्तर―(i) कमजोर उपभोक्ता―नियमों तथा विनियमों के बिना उपभोक्ता
विक्रेताओं के विरुद्ध लड़ने के लिए बिना हथियारों के हो जाएँगे। कमजोर
नियमों तथा विनियमों के कारण निजी उपभोक्ता अपने आप को कमजोर स्थिति
में पाता है। खरीदी गई वस्तु या सेवा के बारे में जब भी कोई शिकायत होती है,
तो विक्रेता सारा उत्तरदायित्व क्रेता पर डालने का प्रयास करता है।
(ii) उपभोक्ताओं का शोषण―बाजार में उपभोक्ताओं का शोषण कई रूपों
में होता है। उदाहरणार्थं कभी-कभी व्यापारी अनुचित व्यापार करने लग जाते हैं,
जैसे दुकानदार उचित वजन से कम वजन तोलते हैं या व्यापारी उन शुल्कों को
जोड़ देते हैं, जिनका वर्णन पहले न किया गया हो या मिलावटी/दोषपूर्ण वस्तुएँ
बेची जाती हैं, ऐसी परिस्थितियों से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए नियमों और
विनियमों की आवश्यकता है।
(iii) अनुचित बाजार―जब उत्पादक थोड़े और शक्तिशाली होते हैं और
उपभोक्ता कम मात्रा में खरीददारी करते हैं और बिखरे हुए होते हैं, तो बाजार
उचित तरीके से कार्य नहीं करता है। विशेष रूप से यह स्थिति तब होती है, जब
इन वस्तुओं का उत्पादन बड़ी कंपनियाँ कर रही हों। अधिक पूँजीवाली,
शक्तिशाली और समृद्ध कंपनियाँ विभिन्न प्रकार से चालाकी पूर्वक बाजार को
प्रभावित कर सकती हैं।
(iv) गलत सूचना―उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए ये कंपनियाँ
समय-समय पर मीडिया और अन्य स्रोतों से गलत सूचना देते हैं।
प्रश्न 11. कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिनसे उपभोक्ताओं का
शोषण होता है। [NCERT]
उत्तर―(i) सीमित जानकारी―पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादकों तथा विक्रेताओं
को बाजार की माँग और पूर्ति के लिए वस्तुएँ और सेवाएँ उत्पादित करने की छूट
होती है। कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं होता। ऐसी स्थिति में उपभोक्ताओं को
उत्पाद के बारे में पूर्ण तथा सही जानकारी देना बहुत महत्तवपूर्ण होता है। उत्पादों
के विभिन्न पक्षों जैसे- मूल्य, गुणवत्ता, बनावट, प्रयोग की शर्तों आदि की जानकारी
न होने पर उपभोक्ता गलत चुनाव कर लेता है तथा धन गंवा बैठता है।
(ii) गलत जानकारी―कंपनियाँ उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए
विज्ञापनों पर बहुत अधिक धन खर्च करती हैं। वे उपभोक्ताओं को अपने उत्पादों
की जानकारी देना चाहती हैं जो कि वास्तव में झूठी जानकारी होती है।
(iii) सीमित प्रतिस्पर्धा―उद्योगों के विकासशील होने के कारण बाजार में
प्रतिस्पर्धा की कमी होती है, जो कि उपभोक्ताओं के शोषण का कारण बनती है।
(iv) उपभोक्ताओं में निरक्षरता तथा अज्ञानता―अधिकांश विकासशील
तथा अल्पविकसित अर्थ व्यवस्थाओं में निरक्षरता की दर बहुत अधिक होती है,
इसलिए उत्पादक उपभोक्ताओं को आसानी से ठग लेते हैं।
(v) कम विक्रेता―जब उत्पादक थोड़े और शक्तिशाली होते हैं तो बाजार
उचित तरीके से काम नहीं करते । यदि उत्पादक शक्तिशाली होते हैं तो वे मूल्य,
गुणवत्ता और आपूर्ति पर नियंत्रण कर सकते हैं।
प्रश्न 12. भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा
किन कानूनी मानदंडों को लागू करना चाहिए ? [NCERT]
उत्तर―(i) उपभोक्ता अदालतें―ये वे अदालतें हैं जिनकी स्थापना उपभोक्ता
सुरक्षा अधिनियम, 1986 के अंतर्गत जिला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ताओं
के हितों की रक्षा करने तथा उनके झगड़ों को निपटाने के लिए की थी। इनके
माध्यम से उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षण और उनकी शिकायतों को सरल, तीव्र
और कम खर्च में दूर किया जाता है ।
(ii) मानकीकरण : (1) उत्पादों के मानकीकरण के द्वारा सरकार उत्पादों
की गुणवत्ता में कमी तथा उत्पादों के विभिन्न मानकों से उपभोक्ताओं की सुरक्षा
करती है।
(2) भारत सरकार ने उत्पादों की गुणवत्ता तथा मानकता को निर्धारित करने के
लिए दो एजेंसियों की स्थापना की। (क) भारतीय मानक ब्यूरो (ख) एगमार्क।
(क) भारतीय मानक ब्यूरो वैज्ञानिक आधार पर औद्योगिक व उपभोक्ता
समान के मानक निर्धारित करता है। यह उन वस्तुओं को भी प्रमाणित करता है
जो निर्धारित मापदंड पर खरे उतरते हैं।
(ख) एगमार्क खेती के उत्पाद कानून (1937), जिसे 1986 में संशोधित
किया गया है, के अंतर्गत कार्य करता है। यह स्कीम भारत सरकार के कृषि
मंत्रालय के अधीन मार्केटिंग एवं इंटेलिजेंस निदेशालय (डी० एम० आई०) द्वारा
संचालित होती है। शहद, मसाले जैसी वस्तुओं पर यह चिह्न होता है ।
प्रश्न 13. भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की प्रगति की समीक्षा करें।
उत्तर―भारत में उपभोक्ता आन्दोलन 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप से
प्रारम्भ हुआ। 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाओं द्वारा बड़े स्तर पर
उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शनी का आयोजन
किया गया, उपभोक्ता दलों का निर्माण किया गया। यद्यपि उपभोक्ता दलों की
संख्या में भारी वृद्धि हुई है और 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम भी पारित
किया गया था फिर भी 700 से अधिक उपभोक्ता संगठनों में से केवल 20-25
ही पूर्णतया संगठित और मान्यता प्राप्त हैं । उपभोक्ता आन्दोलन की जड़े सुदृढ़
नहीं हुई हैं जिसके निम्नलिखित कारण हैं―
(i) उपभोक्ता शिकायत निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समयसाध्य
है । कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है।
(ii) अधिकतर उपभोक्ता खरीदारी करते समय रसीद नहीं लेते। कई बार
विक्रेता रसीद नहीं देते हैं क्योंकि अधिकांश वस्तुएँ छोटे और फुटकर देकानदारों
से खरीदी जाती हैं।
(iii) दोषयुक्त उत्पादों से पीड़ित उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति के मुद्दे पर
वर्तमान कानून स्पष्ट नहीं है।
(iv) उपभोक्ता ज्ञान का प्रसार बहुत कम है अत: उपभोक्ता को अपने अघिकारों
और उनकी सुरक्षा के उपाय के बारे में कुछ भी नहीं होता है । परिणामस्वरूप
क्षति के बावजूद उपभोक्ता कुछ नहीं करते हैं।
इस प्रकार भारत में उपभोक्ता आन्दोलन अभी भी कमजोर है। बाजार में
उपभोक्ताओं के बाबजूद उनका शोषण होता है। दुकानदार न केवल अधिक मूल्य,
पर वस्तुएँ बेचते हैं बल्कि नकली सामान भी बेचते हैं। साधारण उपभोक्ता के
पास इतना समय नहीं होता कि वह उपभोक्ता न्यायालय में जा कर प्रार्थना-पत्र
भी दे सके क्योंकि प्रत्येक उपभोक्ता या उसकका परिवार प्रतिदिन कई वस्तएँ या
सेवाएँ प्राप्त करता है।
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