Jharkhand Board Class 10 Civics Notes | लोकतंत्र की चुनौतियाँ
JAC Board Solution For Class 10TH ( Social science ) Civics Chapter 8
(Challenges to Democracy)
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लोकतंत्र के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं ? उदाहरण सहित
उल्लेख कीजिए। [JAC 2010 (C)]
उत्तर―लोकतंत्र के समक्ष निम्न तीन प्रकार की चुनौतियाँ हैं―
(i) बुनियादी आधार बनाने की चुनौतियाँ―जैसे वर्तमान गैर-लोकतांत्रिक
शासन व्यवस्था को गिराना, सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करना और एक
संप्रभु तथा कारगर शासन व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौति ।
(ii) लोकतांत्रिक व्यवस्था के विस्तार की चुनौती―इसमें लोकतांत्रिक
व्यवस्था के बुनियादी सिद्धांतों को सभी क्षेत्रों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न
संस्थाओं में लागू करना शामिल है। इसमें स्थानीय सरकारों को अधिक
अधिकार-सम्पन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को
व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित
भागीदारी सुनिश्चित करना भी शामिल है।
(iii) लोकतंत्र को मजबूत करना―इसमें संस्थाओं की कार्य-पद्धति को
सुधारना और उसे मजबूत करना है ताकि लोगों की भागीदारी और नियंत्रण में
वृद्धि हो सके।
प्रश्न 2. राजनीतिक सुधारों के लिए दिशा-निर्देशों का वर्णन कीजिए।
उत्तर―सुधारों के लिए दिशा-निर्देश निम्नलिखित हैं―
(i) कानून द्वारा सुधार किए जाएँ, परन्तु इसमें राजनीतिक कार्यकर्ता, दल,
आंदोलन और राजनीतिक रूप से सचेत नागरिकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
(ii) कानून द्वारा परिवर्तन या सुधार के प्रभावों पर नजर रखनी चाहिए, ताकि
उसके प्रभाव अनुकूल रहें।
(iii) दलों के कार्य का ढंग प्रजातांत्रिक होना चाहिए।
(iv) सुधारों के साथ-साथ उसे लागू करने का भी निर्णय होना चाहिए,
ताकि सुधार वास्तव में लागू किए जा सकें।
प्रश्न 3. लोकतांत्रिक देशों द्वारा सामना की जाने वाली आधारभूत
चुनौती क्या है ?
उत्तर―आजकल का समय लोकतंत्र का है, परन्तु संपूर्ण संसार के सभी देशों
में से एक चौथाई देशों में लोकतांत्रिक सरकार नहीं है। उन्हें आजकल कई
चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है तथा पहली चुनौती है आधारभूत चुनौती
तथा वह है लोकतंत्र का होना अथवा न होना । आधारभूत चुनौती में लोकतांत्रिक
सरकार की स्थापना तथा लोकतंत्र में परिवर्तन करना शामिल है। इसमें अलोकतांत्रिक
सरकारों को उखाड़ कर स्वायत्त शासन की स्थापना करना भी शामिल है।
प्रश्न 4. लोकतंत्र द्वारा सामना की जाने वाली विस्तार की चुनौती क्या है ?
उत्तर―आजकल लोकतंत्रों को विस्तार की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
समाज की अलग-अलग संस्थाओं तथा अलग-अलग सामाजिक समूहों में लोकतंत्र
के मूल सिद्धांतों को लागू किया जाए। इसमें स्थानीय सरकारों को शक्तियाँ दी जाएँ,
संघीय नियमों को संघ के हिस्से में लागू किया जाए तथा स्त्रियों, अल्पसंख्यकों तथा
पिछड़े वर्गों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करना भी शामिल है।
प्रश्न 5. लोकतंत्र में लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती क्या है ?
उत्तर―हरेक प्रकार के लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती का सामना
करना पड़ रहा है। इन्हें किसी न किसी प्रकार से मजबूत किया जाना चाहिए।
यह कार्य इस प्रकार करना चाहिए कि लोगो को पता चले कि लोकतंत्र से क्या
आशाएँ हैं। अलग में जनता की अलग-अलग आवश्यकताओं के कारण इस
चुनौती के अलग-अलग समाजों में अलग अलग अर्थ हैं। लोकतंत्र में जनता की
भागीदारी लोकतंत्र को मजबूती दे सकते हैं।
प्रश्न 6. जातिवाद का क्या अर्थ है ? इसके क्या परिणाम हैं ?
उत्तर―जाति शब्द को समाज के अलग-अलग वर्ग के लिए प्रयोग किया
जाता है। जाति एक अंतवैवाहिक समूह है जो अपने सदस्यों पर कुछ प्रतिबंध
रखता है इस अर्थ में जातिवाद यह कहता है कि हरेक जातीय समूह दुसरे से
अलग समुदाय है। इसलिए ही अलग-अलग जातीय समूह एक-दूसरे से अलग
हैं तथा उनके हित भी एक-दूसरे से अलग हैं। जाति व्यवस्था में समाज
अलग-अलग अंतर्वैवाहिक समूहों में हुआ था । इसलिए जातिवाद एक विचारधारा
है जो यह कहता है कि व्यक्ति की जाति और जातियों से उच्च है तथा इसकी
और जातियों पर सत्ता स्थापित होनी चाहिए। इसके परिणाम सामाजिक विभाजन
के रूप में सामने आते हैं। समाज अलग-अलग हिस्सों में बँट जाता है तथा इससे
समाज में तनाव तथा संघर्ष शुरू होता जाता है।
प्रश्न 7. क्षेत्रवाद का क्या अर्थ है ? इस समस्या को कैसे दूर किया जा
सकता है?
उत्तर―क्षेत्रवाद एक विचारधारा है जिसमें एक विशेष क्षेत्र के लोग इस बात
में विश्वास करने लग जाते हैं कि इसका केन्द्रीय सत्ता की तरफ से उत्थान नहीं
हो रहा है तथा उसकी उन्नति होनी चाहिए। इसलिए ही वह इस भेदभाव के
विरुद्ध संघर्ष शुरू कर देते हैं। झारखंड जैसे प्रदेश इस कारण ही निर्मित हुए थे।
यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है जोकि देश की एकता के लिए खतरा बन
सकती बन सकती है। इसके लिए सही क्षेत्रीय विकास की आवश्यकता है।
सरकार को प्लान बनाते समय सभी क्षेत्रों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शक्तियाँ
दी जानी चाहिए।
प्रश्न 8. भारत के मद्देनजर अनपढ़ता की समस्या क्या है ?
उत्तर―एक अनपढ़ व्यक्ति वह है जो लिख-पढ़ नहीं सकता है। भारत में
अनपढ़ता की समस्या बहुत बड़ी समस्या है। भारत में 2001 में 65 % जनसंख्या
साक्षर है। इसका अर्थ यह है कि देश की 1/3 जनसंख्या अनपढ़ है। अगर देश
की 1/3 जनसंख्या देश की उन्नति में अपना योगदान न दें सकेगी तो वह किस
प्रकार उन्नति करेगी। देश के कुछ भाग बहुत ही अधिक साक्षर हैं जैसे कि केरल,
परन्तु कुछ भाग, बिहार, बहुत ही कम साक्षर है। इसलिए दोनों ही प्रदेशों की
प्रगति में काफी अंतर है। इसलिए अनपढ़ता की समस्या को तेजी से खत्म करना
चाहिए।
प्रश्न 9. लोकतंत्र किन स्थितियों में सामाजिक विविधता को सँभालता
है और उनके बीच सामंजस्य बैठाता है?
उत्तर―लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ अनेक तरह के सामाजिक विभाजनों को
सँभालती है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ आमतौर पर अपने अंदर की प्रतिद्वंद्विताओं
को संभालने की प्रक्रिया विकसित कर लेती हैं। इससे किसी भी तरह के टकरावों
का विस्फोटक या हिंसक रूप लेने का अंदेशा कम हो जाता है। समाज में
विभिन्न समुदायों के बीच थोड़े-बहुत टकराव होते रहते हैं। इन टकरावों को पूरी
तरह से खत्म नहीं किया जा सकता परन्तु इन्हें कम करने के लिए प्रयास किये
जा सकते हैं जैसे कि एक-दूसरे का आदर करना तथा आपसी सामंजस्य स्थापित
करना आदि । इस काम के लिए लोकतंत्र सबसे अच्छा है । लोकतंत्र के लिय सह
जरूरी ह कि बहुमत के शासन का अर्थ, धर्म, नस्ल अथवा भाषायी आधार के
बहुसंख्यक समूह का शासन नहीं होना चाहिए बल्कि बहुमत के शासन का
मतलब होता है कि हर फैसले या चुनाव में अलग-अलग लोग और समूह
बहुमत का निर्माण कर सकते हैं या बहुमत में हो सकते हैं। इस तरह के बहुमत
वाली सरकार ही सामाजिक विविधता को सँभालती है और उनके बीच
सामंजस्य बैठाती है।
प्रश्न 10. भारत में लोकतंत्र के अधिकारों की चर्चा करें।
[JAC 2012 (A); 2016 (A)]
उत्तर―भारत में सुदृढ लोकतंत्र के निर्माण के लिए अनेक लोकतांत्रिक
अधिकार प्रदान किया जाना आवश्यक है―
(i) मौलिक अधिकार : लोकतंत्र में अपने नागरिकों को कुछ मौलिक
अधिकार, किसी भी धर्म को मानने का अधिकार, कोई भी कार्य करने का
अधिकार दिया जाए तो वह अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इससे निर्णय लेने
की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी पर भी असर पड़ेगा। इससे लोकतंत्र सुदृढ़ होगा।
(ii) शिक्षित जनता : लोग पढ़े-लिखे होने चाहिए ताकि वह देश तथा
संसार की समस्याओं को समझ सकें। उन्हें वोट देने के महत्त्व का पता होना
चाहिए। जो लोग इन बातों का ध्यान नहीं रखते हैं वह उन्हें प्राप्त मौलिक
अधिकारों को भी अच्छे ढंग से प्रयोग नहीं कर सकते हैं। इसलिए जनता
पढ़ी-लिखी होनी चाहिए ताकि लोकतंत्र को मजबूत किया जा सके।
(iii) आर्थिक समानता : अगर हम लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते हैं तो अधिक
आर्थिक असमानता से लोकतंत्र पर गलत प्रभाव पड़ता है।
(iv) प्रेस की स्वतंत्रता : लोकतंत्र को मजबूती देने के लिए प्रेस सरकार के
नियंत्रण से पूर्णतया स्वतंत्र होनी चाहिए। अगर प्रेस स्वतंत्र होगी तो वह सरकार
की गलत नीतियों का भंडाफोड़ तथा अच्छी नीतियों को जनता के सामने लाएगी।
इस प्रकार यह जनमत बनाकर लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लोकतंत्र की चुनौतियाँ' शब्द से क्या तात्पर्य है ? लोकतंत्र की
विभिन्न चुनौतियों के दो उदाहरण दें।
उत्तर―चुनौती के शाब्दिक अर्थ हैं- एक चुनौतीपूर्ण परिस्थिति जिसमें किसी
प्रकार की प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। लोकतंत्र में चुनौती का अर्थ है―एक
देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुनिश्चित बनाने के लिए आने वाली विभिन्न
मुश्किलें। चुनौती कोई समस्या नहीं है।
हम आमतौर पर पर उन्ही मुश्किलों को चुनौती कहते हैं जो महत्त्वपूर्ण तो
है, लेकिन जिन पर जीत भी हासिल की जा सकती है। अगर किसी मुश्किल के
भीतर ऐसी संभावना है कि उसे मुश्किल से छुटकारा मिल सके तो उसे हम
चुनौती कहते हैं। एक बार जब हम चुनौती से पार पा लेते हैं तो हम पहले की
अपेक्षा कुछ कदम आगे बढ़ जाते हैं।
प्रश्न 2. एक लोकतंत्र के लिए आवश्यक कुछ महत्त्वपूर्ण योग्यताओं
का वर्णन करें।
उत्तर―(i) लोगों द्वारा चुने गए शासक ही सारे प्रमुख फैसले लें।
(ii) चुनाव में लोगों को वर्तमान शासकों को बदलने और अपनी पसंद
जाहिर करने का पर्याप्त अवसर और विकल्प मिलना चाहिए।
(iii) ये विकल्प और अवसर हर किसी को बराबरी में उपलब्ध होने
चाहिए।
(iv) विकल्प चुनने के इस तरीके से ऐसी सरकार का गठन होना चाहिए
जो संविधान के बुनियादी नियमों और नागरिकों के अधिकारों को मानते हुए काम करे।
प्रश्न 3. लोकतंत्र की व्यापक चुनौतियों की चर्चा करें। [JAC 2014 (A)]
उत्तर―(i) मूलभूत चुनौतियाँ―गैर-लोकतांत्रिक देशों को लोकतांत्रिक व्यवस्था
की ओर जाने और लाकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए जरूरी बुनियादी
आधार बनाने की चुनौती है। इनमें मौजूदा गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को
गिराने, सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करने और एक संप्रभु तथा कारगार
शासन-व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौती है।
(ii) विस्तार की चुनौती : अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक व्यस्थाओं के
सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी
सिद्धांतों को सभी इलाकों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू
करना शामिल है। स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार-संपन्न बनाना, संघ की
सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना,
महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना आदि
ऐसी ही चुनौतियाँ हैं। इसका यह भी मतलब है कि कम से कम ही चीजें
लोकतांत्रिक नियंत्रण के बाहर रहनी चाहिए । भारत और दुनिया के सबसे पुराने
लोकतंत्रों में अमेरिका जैसे देशों के सामने भी यह चुनौती है ।
(iii) लोकतंत्र को मजबूत बनाना―तीसरी चुनौती लोकतंत्र को मजबूत
करने की है। हर लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने किसी न किसी रूप में यह
चुनौती ही है। इसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं और बरतावों को मजबूत बनाना
शामिल है। यह काम इस तरह से होना चाहिए कि लोग लोकतंत्र से जुड़ी अपनी
उम्मीदों को पूरा कर सकें। लेकिन अलग-अलग समाजों में आम आदमी की
लोकतंत्र अलग-अलग अपेक्षाएँ होती हैं इसलिए यह चुनौती दुनिया के अलग-अलग
हिस्सों में अलग अर्थ और अलग स्वरूप ले लेती । संक्षेप में कहें तो इसका
मतलब संस्थाओं की कार्य पद्धति को सुधारना और मजबूत करना होता है ताकि
लोगों की भागीदारी और नियंत्रण में वृद्धि हो। इसके लिए फैसला लेने की
प्रक्रिया पर अमीर और प्रभावशाली लोगों के नियंत्रण और प्रभाव को कम करने
की जरूरत होती है।
प्रश्न 4. किस प्रकार भारत में लोकतंत्र स्थिर रह सका है?
उत्तर―लोकतंत्र भारत में निन्नलिखिल कारणों के कारण स्थिर रह सका है―
(i) भारतीय संविधान ने देश में लोकतांत्रिक सरकार की व्यवस्था को
अपनाया है कि देश में सरकार हरेक 5 वर्ष के बाद जनता द्वारा ही चुनी
जाएगी। देश में चुनी हुई सरकार की प्रथा के कारण ही भारत में लोकतंत्र
स्थिर रह सका है।
(ii) भारत में नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं तथा संविधान
में यह लिखा है कि सरकार इन अधिकारों को वापिस नहीं ले सकती है। अगर
वह ऐसा करने का प्रयास करे तो नागरिक न्यायालय जाकर अनेक अधिकार
वापिस ले सकते हैं। इस कारण भी भारत में लोकतंत्र स्थिर रह सका है।
(iii) भारत एक ऐसा देश है जिसका मूल सिद्धांत लैंगिक समानता है अर्थात्
देश के सभी नागरिक कानून के सामने समान हैं। किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म,
जाति, लिंग, रंग इत्यादि किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा। लोग
कानून के दायरे में कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं। इस कारण भी लोकतंत्र स्थिर
रह सका है।
(iv) भारत में सरकार के चुनाव के लिए बालिगों को बोट देने का अधिकार
है। वह अपने प्रतिधियों का चुनाव करने को स्वतंत्र हैं। इसलिए ही राजनीतिक
दल जनता की तरफ जाते हैं तथा भारत में लोकतंत्र स्थिर रहता है ।
प्रश्न 5. लोकतंत्र को कैसे मजबूत किया जा सकता है ?
अथवा, लोकतंत्र की सफलता की किन्हीं चार आवश्यक शर्तों का
वर्णन करें। [JAC 2015 (A)]
उत्तर―लोकतंत्र को निम्नलिखित ढंगों से मजबूती प्रदान की जा जा सकती है―
(i) मौलिक अधिकार― लोकतंत्र को अपने नागरिकों को कुछ मौलिक
अधिकार, किसी भी धर्म को मानने का अधिकार, कोई भी कार्य करने का अधि
कार दिया जाए तो वह अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इससे निर्णय लेने की
प्रक्रिया में उनकी भागीदारी पर भी असर पड़ेगा। इससे लोकतंत्र सुदृढ़ होगा ।
(ii) शिक्षित जनता―लोग पढ़े-लिखे होने चाहिए ताकि वह देश तथा
संसार की समस्याओं को समझ सकें। उन्हें वोट देने के महत्त्व का पता होना
चाहिए। जो लोग इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं वह उन्हें प्राप्त मौलिक अधि
कारों को भी अच्छे ढंग से प्रयोग नहीं कर सकते हैं । इसलिए जनता पढ़ी-लिखी
होनी चाहिए ताकि लोकतंत्र को मजबूत किया जा सके।
(iii) आर्थिक समानता―अगर हम लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते हैं तो
अधिक आर्थिक असमानता से लोकतंत्र पर गलत प्रभाव पड़ता है।
(iv) प्रेस की स्वतंत्रता―लोकतंत्र को मजबूती देने के लिए प्रैस सरकार
के नियंत्रण से पूर्णतया स्वतंत्र होनी चाहिए। अगर प्रेस स्वतंत्र होगी तो वह
सरकार की गलत नीतियों का भंडाफोड़ तथा अच्छी नीतियों को जनता के सामने
लाएगी। इस प्रकार यह जनमत बनाकर लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करते हैं।
प्रश्न 6. लोकतंत्र को मजबूत करने में एक आम आदमी किस प्रकार
की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ?
उत्तर―लोकतंत्र हमेशा ही एक चीज को बहुत अधिक महत्त्व देता है तथा
वह हैं लोग अथवा जनता। लोकतंत्र में सरकार का चुनाव तथा शासन जनता द्वारा
किया जाता है। इसलिए ही एक आम आदमी लोकतंत्र को सुदृढ़ करने में
निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है―
(i) जनता को अनुशासित व्यवहार करना चाहिए। अगर वे नियंत्रित व्यवहार
करेंगे तथा अनुशासन में रहेंगे तो देश की कार्यप्रणाली आराम से चलेगी तथा
लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी।
(ii) आम जनता को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेना चाहिए। उन्हें मत
देने का अधिकार प्राप्त है तथा उन्हें इस अधिकार का प्रयोग सावधानी से करना
चाहिए। अगर वह किसी सक्षम नेता को अपना वोट देंगे तो देश निश्चय ही
तरक्की करेगा तथा इससे लोकतंत्र मजबूत होगा।
(iii) जनता को राजनीति के सिद्धांतों का पता होना चाहिए। यह ठीक
है कि लोगों की बहुत-सी समस्याएँ होती हैं जिन्हें समय-समय पर देखना
चाहिए। इसके लिए उन्हें सरकार को अपनी समस्याएँ बताने के लिए सही ढंग
का चुनाव करना चाहिए ताकि चाहिए ताकि सरकार के कार्य करने की प्रक्रिया
में कोई समस्या न आए ।
(v) लोग जनमत बनाने में सहायता कर सकते हैं। किसी सरकार के बदलने
तथा गठन करने में जनमत बहुत ही आवयश्क है। अगर सरकार गलत कार्य
करती है तो जनता उसे सत्ता से बाहर कर सकती है। परन्तु अगर सरकार
कल्याणकारी कार्य करती है तो जनता उल्हें सत्ता में रहने का एक और अवसर
प्रदान कर सकती है। इसलिए आम आदमी लोकतंत्र को मजबूर करने में
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
प्रश्न 7. लोकतंत्र को किस प्रकार राजनीतिक तौर पर सुधारा जा
सकता है?
अथवा, भारत में लोकतंत्र में राजनीतिक सुधारों की आवश्यकता है ?
[JAC 2017(A)]
उत्तर―लोकतंत्र को राजनीतिक तौर पर सुधारने के कोई विशेष नियम नहीं
परन्तु मार्गदर्शक नियम है जिसको राजनीतिक सुधार करते हुए ध्यान में रखना
चाहिए तथा वह हैं―
(i) लोकतंत्र में से कुछ अनावश्यक चीजें निकालने के लिए कुछ विधान
बनाने चाहिए। अगर कानून में ध्यानपूर्वक परिवर्तन किए जाएं तो इससे राजनीति
में गलत प्रक्रियाओं को धक्का पहुँचेगा तथा अच्छी प्रक्रियाएँ प्रेरित होंगी।
लोकतांत्रिक सुधारों को चेतन नागरिकों, राजनीतिक दलों तथा राजनीतिक कार्यकर्ताओं
द्वारा किया जाना चाहिए ।
(ii) कानून में परिवर्तन करते समय इस बात का ध्यान रखाना चाहिए कि
इसके क्या परिणाम होंगे कई बार कानून में परिवर्तन के गलत परिणाम भी हो
सकते है। इसलिए जनता लोकतांत्रिक सुधार करने का कार्य देने के लिए कानून
बनाए जाने चाहिए।
(iii) राजनीतिक प्रथाओं द्वारा ही लोकतांत्रिक सुधार किए जाने चाहिए।
इसलिए सुधारों का पूरा ध्यान लोकतांत्रिक प्रथाओं को मजबूती देने की तरफ होना
चाहिए। इसलिए आम आदमी की राजनीतिक भागीदारी अधिक बढ़ानी चाहिए ।
प्रश्न 8. विधिक-संवैधानिक बदलावों को ला देने भर से लोकतंत्र की
चुनौतियों को हल नहीं किया जा सकता। व्याख्या करें।
उत्तर―कानून बनाकर राजनीति को सुधारने की बात आकर्षण लग सकती
है। लेकिन यह एक स्थायी समाधान नहीं है क्योंकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को
कानूनों के माध्यम से चलाया जा सकता है, लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया जारी रहे
यह सरकार और राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है। इसे कानूनों के माध्यम से
जारी रखा जा सकता है । निश्चित रूप से लोकतांत्रिक सुधारों के मामले में कानून
की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सावधानी से बनाये गये कानून गलत
राजनीतिक आचरणों को हतोत्साहित और अच्छे कामकाज को प्रोत्साहित करेंगे।
पर विधिक-संवैधानिक बदलावों को ला देने भर से लोकतंत्र की चुनौतियों को
हल नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 9. लोकतंत्र को सबसे अच्छा व्यवस्था क्यों कहा जाता है।
[JAC 2012 (A); 2014 (A)]
उत्तर―लोकतंत्र को अन्य शासन-प्रणालियों से बेहतर बताया गया है क्योंकि
इस शासन व्यवस्था में कुछ ऐसे गुण पाये जाते हैं जो अन्य शासन व्यवस्था में
नहीं है।
(i) जनमत पर आधारित शासन―यह शासन जनता की सामान्य इच्छा के
अनुसार चलाया जाता है और प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा को ध्यान रखा जाता है।
(ii) समानता और स्वतंत्रता का पोषक―लोकतंत्र के अंतर्गत जाति, वंश,
रंग, धर्म, लिंग आदि का भेद-भाव नहीं किया जाता है। कानून के सामन सभी
नागरिक समान माने जाते हैं। सभी नागरिकों को अपने विचार, भाषण, सभा आदि
करने की छूट दी जाती है।
(iii) व्यक्ति की गरिमा में वृद्धि―इसमें सभी नागरिकों को समान माना
जाता है। सभी व्यक्ति गरिमा के साथ जीते हैं। उन्हें हेय दृष्टि से नहीं देखा
जाता, चाहे वे किसी जाति, धर्म, रंग, भाषा, पेशा आदि के हो।
(iv) यह टकरावों को टालने-सँभालने का तरीका देता है और इसमें
गलतियों को सुधारने की गुंजाइश होती है। लोकतंत्र में काफी विचार-विमर्श के
बाद ही निर्णय लिये जाते हैं जिससे गलतियों को सुधारने का अवसर प्राप्त होता
है। इससे टकराव भी टल जाता है।
प्रश्न 10. लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के किन्हीं चार कार्यों का वर्णन
कीजिए।
उत्तर―लोकतंत्र में राजनीतिक दल के कार्य एवं भूमिका निम्नलिखित हैं―
(i) राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं। ये चुनाव लोकतांत्रिक देशों में
राजनीतिक दलों द्वारा खड़े किये गये उम्मीदवारों के बीच लड़े जाते हैं।
(ii) राजनीतिक दल देश के कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाते हैं
क्योंकि विधायिका (जहाँ कानून पारित होते हैं) के सदस्य किसी-न-किसी.
राजनीतिक दल से संबंधित होते हैं।
(iii) चुनावों में बहुमत मिलने पर राजनीतिक दल सरकार गठन करते हैं।
(iv) चुनाव हारने वाले राजनीतिक दल विपक्ष की भूमिका निभाते हैं।
विपक्ष की सशक्त भूमिका के कारण सत्ता पक्ष निरंकुश नहीं हो पाता, जिससे
लोकतंत्र मजबूत होता है।
प्रश्न 11. बेल्जियम में सत्ता की साझेदारी की व्यवस्था के बारे में चर्चा
करें।
उत्तर―बेल्जियम में 59% जनता डच बोलती है। वहाँ फ्रेंच बोलने पर
प्रतिबंध है। वहाँ फ्रेंच भाषी को शक, अविश्वास एवं हेय दृष्टि से देखा जाता
है। यह प्रतिबंध गृह युद्ध का आसार बनाता है। डच एवं फ्रेंच भाषा की
विभिन्नता सामुदायिक विभाजन का आधार बन जाती है । सत्ता में भी डच जनता
का प्रतिनिधि ज्यादा है।
प्रश्न 12. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की
क्या स्थिति है?
उत्तर―भारत की विधायिकाओं में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही
कम है । लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या अभी कुल सदस्यों की दस
फीसदी तक भी नहीं पहुँची है। राज्यों की विधान सभाओं में उनका
प्रतिनिधित्व 5 फीसदी से भी कम है। इस मामले में भारत का नंबर दुनिया
के देशों में काफी नीचे है। भारत इस मामले में अफ्रीका और लातिन
अमेरिका के कई विकासशील देशों से भी पीछे है।
इस समस्या को सुलझाने का एक तरीका तो निर्वाचित संस्थाओं में
महिलाओं के लिए कानूनी रूप से एक उचित हिस्सा तय कर देना है। भारत में
पंचायती राज के अंतर्गत कुछ ऐसी ही व्यवस्था की गई है। स्थानीय सरकारों
यानी पंचायतों और नगरपालिकाओं में एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिए
आरक्षित कर दिए गए हैं । आज भारत के ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में
निर्वाचित महिलाओं की संख्या दस लाख से ज्यादा है।
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