Jharkhand Board Class 10 Civics Notes | जनसंघर्ष और आंदोलन
JAC Board Solution For Class 10TH ( Social science ) Civics Chapter 5
(Popular Struggles and Movements)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. दबाव-समूह क्या है ? उदाहरण दें।
उत्तर―दबाव समूह संगठन होते हैं, जो सरकार की नीतियों को प्रभावित
करने की कोशिश करते हैं। लेकिन राजनीतिक पार्टियों के समान दबाव-समूह का
लक्ष्य सत्ता पर प्रत्यक्ष नियंत्रण करने अथवा उसमें हिस्सेदारी करने का नहीं होता ।
दबाव समूह का निर्माण तब होता है, जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत
के लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एकजुट होते हैं ।
नेशनल स्टूडेंटस यूनियन, ऑल इंडिया सिक्ख स्टूडेंट फेडरेशन तथा
जमात-इ-इस्लामिक आदि ।
प्रश्न 2. जो संगठन विशिष्ट सामाजिक वर्ग जैसे मजदूर, कर्मचारी,
शिक्षक और वकील आदि के हितों को बढ़ावा देने की गतिविधियाँ चलाते
हैं उन्हें क्या कहते हैं? [NCERT]
उत्तर―विशेष-वर्ग हित समूह ।
प्रश्न 3. युक्तिपरक और नैतिक तर्क में क्या अंतर है ? [NCERT]
उत्तर―युक्तिपरक या समझदारी का तर्क लाभकर परिणामों पर जोर देता है,
जबकि नैतिक तर्क सत्त के बँटवारे के अंतभूत महत्त्व को बताता है।
प्रश्न 4. 'लोकतंत्र में किसी बड़े संघर्ष के पीछे कई विभिन्न प्रकार के
संगठन काम करते हैं।' दो उदाहरण देकर वर्णन करें।
उत्तर―(i) नेपाल में 'सेवेन पार्टी एलायस' (एस० पी० ए०) ने चार दिन के
बंद का आह्वान किया। इस गठबंधन में सात बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ थीं, जिनके
कुछ सदस्य संसद में थे। इस संघर्ष में नेपाली 'कम्यूनिस्ट पार्टी माओवादी' भी
शामिल हो गए जो कि संसदीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते थे।
इस संघर्ष में न केवल राजनीतिक पार्टियाँ बल्कि कई संगठन भी शामिल
हुए। इस आंदोलन में कई मजदूर संगठनों तथा उनके परिसंघों ने भाग लिया।
अन्य अनेक संगठनों मसलन मूलवासी लोगों के संगठन तथा शिक्षक, वकील और
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के समूह ने इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया ।
(ii) पानी के निजीकरण के खिलाफ बोलिविया में जो आंदोलन चला
उसका नेतृत्व किसी राजनीतिक दल ने नहीं किया। इस आंदोलन का नेतृत्व
'फडकोर' (FEDCOR) नामक संगठन ने किया। इस संगठन में इंजीनियर और
पर्यावरणवादी समेत स्थानीय कामकाजी लोग शामिल थे। इस संगठन को सिंचाई
पर निर्भर किसानों के एक संघ, कारखाना-मजदूरों के संगठन के परिसंघ, प्रश्न
कोचबंबा विश्वविद्यालय के क्षेत्रों तथा शहर में बढ़ती बेघर-बार बच्चों की
आबादी का समर्थन मिला। इस आंदोलन को 'सोशलिस्ट पार्टी' ने भी समर्थन
दिया। सन् 2006 में बोलिविया में सोशलिस्ट पार्टी को सत्ता हासिल हुई।
प्रश्न 5. आंदोलन की चार प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर―(i) आंदोलन चुनावी मुकाबले में सीधे भागीदारी करने की अपेक्षा
राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
(ii) आंदोलन ढीले-ढाले संगठन हैं।
(iii) उनका निर्णय लेने का ढंग अधिक अनौपचारिक तथा लचीला होता है।
(iv) ये जनता की स्वतः स्फूर्त भागीदारी पर निर्भर होते हैं न कि
दबाव-समूह पर।
प्रश्न 6. दबाव-समूहों (Pressure Groups) तथा राजनीतिक दलों
(Political parties) में अंतर स्पष्ट करें। [JAC 2011 (A); 2016 (A)]
उत्तर―
दबाव-समूह राजनीतिक पार्टियाँ
(1) ये चुनाव नहीं लड़ते। (1) ये चुनाव लड़ती हैं।
(2) इनका प्रत्यक्ष उद्देश्य राजनीतिक (2) इनका प्रत्यक्ष उद्देश्य राजनीतिक
सत्ता पर नियंत्रण करने का नहीं सत्ता पर नियंत्रण करने का होता
होता। है।
(3) दबाव-समूहों का निर्माण तब होता (3) सामूहिक पार्टियाँ समूह के कल्याण
है जब समान पेशे, हित, आकांक्षा के लिए कुछ नीतियाँ तथा कार्यक्रमों
अथवा मत के लोग एक समान पर समझौता करती हैं।
उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए
एकजुट होते हैं।
प्रश्न 7. वर्ग-विशेष के हितसमूहों तथा जन-सामान्य के हित समूहों में
क्या अंतर है?
उत्तर―
वर्ग-विशेषी हितसमूह जन-सामान्य के हित समूह
(1) इनका सरोकार समाज के किसी (1) सामान्य लोगों के हितों को बढ़ावा
वर्ग विशेष के हितों को बढ़ावा देते हैं।
देना होता है।
(2) मजदूर संगठन व्यावसायिक संघ (2) फेडेकोर, मानवाधिकार संगठन
और पेशेवर। बी०ए०एम०सी०ई०एफ० आदि ।
(3) ये वर्ग विशेषी होते हैं क्योंकि ये (3) ये सार्वजनिक होते हैं क्योंकि ये
समाज के किसी एक वर्ग विशेष समाज से संबंधित मामलों को
का प्रतिनिधित्व करते हैं। उठाते हैं।
(4) इनका मुख्य उद्देश्य अपने सदस्यों (4) इनका मुख्य उद्देश्य पूरे समाज
की बेहतरी और कल्याण करना का कल्याण करना होता है।
होता है, न कि पूरे समाज का ।
(5) ये किसी विशेष वर्ग के हितों को (5) ये समूह के हितों को बढ़ावा देते
बढ़ावा देते हैं। हैं।
प्रश्न 8.हितसमूहों तथा एक आंदोलन में अंतर स्पष्ट करें। [NCERT]
उत्तर―
हित समूह आंदोलन
(1) हित समूह मजबूत संगठन होते हैं। (1) आंदोलन एक कमजोर संगठन होते
हैं।
(2) इनका निर्णय अधिक औपचारिक (2) इनका निर्णय अधिक अनौपचारिक
तथा कम लचकदार होता है। तथा लचकदार होता है।
(3) ये अपने सदस्यों पर निर्भर होते (3) ये जनता की स्वतः स्फूर्ति भागीदारी
हैं। पर निर्भर होते हैं।
(4) उदाहरण : व्यापारिक संघ। (4) उदाहरण : शराब विरोधी आंदोलन।
प्रश्न 9 लोकतंत्र में वर्ग-विशेषी हित समूहों (Sectional inerest
groups) की भूमिका का उल्लेख करें।
उत्तर―(i) जब विभिन्न समूह सक्रिय हों तो कोई एक समूह समाज के
ऊपर प्रभुत्व कायम नहीं कर सकता। यदि कोई एक समूह सरकार के ऊपर
अपने हित में नीति बनाने के लिए दबाव डालता है तो दूसरा समूह इसके प्रतिकार
में दबाव डालेगा कि नीतियाँ उस तरह से न बनाई जाएँ। इससे परस्पर विरोधी
हितों के बीच सामंजस्य बैठाना तथा शक्ति संतुलन करना संभव होता है ।
(ii) अपने वर्ग के हितों के लिए काम करते हुए वे अन्यों को भी अपने माँगे
रखने के लिए प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 10. किसी खास मुद्दे पर आधारित आंदोलनों तथा बड़ी समयावधि
के आंदोलनों में अंतर स्पष्ट करें। [NCERT]
उत्तर―
खास मुद्दे पर आधारित आंदोलन बड़ी समयावधि के आंदोलन
(1) किसी खास मुद्दे पर केन्द्रित आंदोलन (1) बड़ी समयावधि के आंदोलन एक
एक सीमित समय-सीमा के भीतर व्यापक लक्ष्य को बहुत बड़ी
किसी एक लक्ष्य को पाना चाहते समयावधि में हासिल करना चाहते
(2) किसी खास मुद्दे पर केन्द्रित आंदोलन (2) बड़ी समयावधि आंदोलनों की
की सक्रियता बहुत कम होती है। सक्रियता बहुत अधिक होती है।
(3) नेपाल में उठे लोकतंत्र के आंदोलन (3) पर्यावरण के आंदोलन लंबे
का विशिष्ट उद्देश्य राजा को अपने समय-सीमा का उदाहरण है।
उद्देश्यों को वापस लेने के लिए
बाध्य करना खास मुद्दे पर केन्द्रित
आंदोलन का उदाहरण है।
प्रश्न 11. आंदोलनकारी समूह क्या है ? उदाहरण की सहायता से
समझाएँ।
उत्तर―जो समूह एक सीमित समय-सीमा में किसी एक लक्ष्य को तथा
बड़ी समय-सीमा में किसी एक व्यापक लक्ष्य को पाना चाहते हैं, आंदोलनकारी
समूह कहलाते हैं।
(i) नेपाल में उठे लोकतंत्र के आंदोलन का विशिष्ट उद्देश्य था–राजा को
अपने आदेशों को वापस लेने के लिए बाध्य करना । इन आदेशों के द्वारा राजा
के लोकतंत्र को समाप्त कर दिया था ।
(ii) भारत में नर्मदा बचाओ आंदोलन ऐसे ही आंदोलनों का अच्छा उदाहरण
है। नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे सरदार सरोवर बांध के कारण लोग विस्थापित
हुए। यह आंदोलन इसी खास मुद्दे को लेकर शुरू हुआ। इसका उद्देश्य बाँध को
बनने से रोकना था। धीरे-धीरे इस आंदोलन ने व्यापक रूप धारण कर लिया।
इसने सभी बड़े बाँधों और विकास के उस मॉडल पर सवाल उठाए, जिसमें बड़े
बाँधों को अनिवार्य साबित किया जाता है। ऐसे आंदोलनों में नेतृत्व बड़ा स्पष्ट
होता है और उनका संगठन भी होता है लेकिन ऐसे आंदोलन बहुत थोड़े समय
तक ही सक्रिय रह पाते हैं।
(iii) पर्यावरण के आंदोलन तथा महिला आंदोलन ठेठ ऐसे ही आंदोलनों के
उदाहरण हैं। ऐसे आंदोलनों के नियंत्रण अथवा दिशा-निर्देश के लिए कोई एक
संगठन नहीं होता। पर्यावरण आंदोलन के अंतर्गत अनेक संगठन तथा खास-खास
मुद्दे पर आधारित आंदोलन शामिल हैं । इन सबके संगठन अलग-अलग हैं, नेतृत्व
भी अलग है और नीतिगत मामलों पर आम तौर पर इनकी राय अलग-अलग
होती है। इसके बावजूद एक व्यापक उद्देश्य के ये साझीदार हैं और इनका
दृष्टिकोण एक जैसा है।
प्रश्न 12. दबाव-समूह तथा आंदोलन-राजनीति को किस तरह प्रभावित
करते हैं? [JAC 2010 (C); 2012(A); 2013 (A); 2015 (A)]
उत्तर―(i) जनता के मसले उठाकर-दबाव-समूह और आंदोलन अपने
लक्ष्य तथा गतिविधियों के लिए जनता का समर्थ और सहानुभूति हासिल करने
की कोशिश करते हैं। इसके लिए सूचना अभियान चलाना, बैठक आयोजित
करना अथवा अर्जी दायर करना जैसे तरीकों का सहारा लिया जाता है। ऐसे अधि
कतर समूह मीडिया को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं ताकि उनके मसलों
पर मीडिया ज्यादा ध्यान दे।
(ii) सरकारी काम-काज में भाग लेकर―ऐसे समूह अक्सर हड़ताल अथवा
सरकारी कामकाज में बाधा पहुँचाने जैसे उपायों का सहरा लेते हैं। मजदूर सगठन,
कर्मचारी संघ तथा अधिकतर आंदोलनकारी समूह अक्सर ऐसी युक्तियों का इस्तेमाल
करते हैं कि सरकार उनकी मांगों की तरफ ध्यान देने के लिए बाध्य हो।
(iii) राजनीतिक दलों पर प्रभाव―हालाँकि दबाव-समूह और आंदोलन
दलीय राजनीति में सीधे भाग नहीं लेते लेकिन वे राजनीतिक दलों पर असर
डालना चाहते हैं। अधिकतर आंदोलन किसी राजनतिक दल से सम्बद्ध नहीं होते।
(iv) राजनीतिक दल की एक शाखा―कुछ मामलों में दबाव-समूह
राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए गए होते हैं अथवा उनका नेतृत्व राजनीतिक दल
के नेता करते हैं। कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में
कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए भारत के अधिकतर मजदूर-संगठन और
छात्र-संगठन या तो बड़े राजनीतिक दलों द्वारा बनाए गए हैं अथवा उनकी संबद्धता
राजनीतिक दलों से है। ऐसे दबाव-समूहों के अधिकतर नेता किसी-न-किसी
राजनीतिक दल के कार्यकर्ता और नेता होते हैं।
(v) नए दल―कभी-कभी आंदोलन राजनीतिक दल का रूप ले लेते हैं।
उदाहरण के लिए 'विदेशी' लोगों के विरुद्ध छात्रों ने 'असम आंदोलन' चलाया
और जब इस आंदोलन की समाप्ति हुई तो इस आंदोलन ने 'असम गण परिषद'
का रूप ले लिया । सन् 1930 और 1940 के दशक में तमिलनाडु में समाज-सुधार
आंदोलन चले थे। डी० एम० के० और ए० आई० ए० डी० एम० के० जैसी बड़ी
पार्टियों की जड़ें इन समाज-सुधार आंदोलनों में ढूँढी जा सकती हैं।
प्रश्न 13. 'दबाव-समूहों, हित-समूहों तथा आंदोलनों के नकारात्मक
तथा सकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव होते हैं।' व्याख्या करें।
उत्तर―नकारात्मक प्रभाव―(i) ये किसी एक वर्ग के लोगों की रक्षा करते हैं।
(b) ये लोकतंत्र के मूलभूत ढाँचे को कमजोर करते हैं क्योंकि ये अक्सर
किसी एक वर्ग अथवा किसी एक मुद्दे पर काम करते हैं जबकि लोकतंत्र केवल
एक वर्ग के हितों की रक्षा नहीं करता बल्कि सभी के कल्याण को देखता है ।
(c) ऐसे समूह सत्ता का इस्तेमाल तो करना चाहता है लेकिन जिम्मेदारी से
बचना चाहते हैं। राजनीतिक दलों को चुनाव के समय जनता का सामना करना
पड़ता है लेकिन ये समूह जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होते ।
(d) संभव है कि दबाव-समूहों और आंदोलनों को जनता से समर्थन अथवा
धन न मिले । कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि दबाव-समूहों को बहुत कम
लोगों का समर्थन प्राप्त हो लेकिन उसके पास धन अधिक हो और इसके बूते
अपने संकुचित एजेंडे पर वे सार्वजनिक बहस का कारण जोड़ने में सफल हो
जाएँ।
(e) कभी-कभी ये दबाव समूह राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर देते हैं।
सकारात्मक प्रभाव―(a) दबाव समूहों और आंदोलनों के कारण लोकतंत्र
की जड़ें मजबूत हुई हैं। शासकों के ऊपर दबाव डालना लोकतंत्र में कोई
अहितकर गतिविधि नहीं बशर्ते इसका अवसर सबको प्राप्त हो।
(b) सरकारें अक्सर थोड़े से धनी और ताकतवर लोगों के अनुचित दबाव में
आ जाती हैं। जन-साधारण के हित-समूह तथा आंदोलन इस अनुचित दबाव के
प्रतिकार में उपयोगी भूमिका निभाते हैं और आम नागरिक की जरूरतों तथा
सरोकारों से सरकार को अवगत कराते हैं।
प्रश्न 14. दबाब-समूहों की गतिविधियां लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज
में कैसे उपयोगी होती है ?
उत्तर―(i) दबाब-समूहों की गतिविधियों से लोकतांत्रिक सरकार सुदृढ़ हुई
है क्योंकि इससे सरकार के ऊपर दबाव डालने का अवसर सबको समान रूप से
मिलता है।
(ii) जब कभी धनी और प्रभावशाली व्यक्ति या वर्ग सरकार पर दबाव
डालकर अपने हित में निती निर्माण करवाता है तो जन-साधारण दबाब-समूहों
के द्वारा सरकार के ऊपर दबाव डालकर ऐसी नीति अपनाने से रोक सकते हैं।
इस प्रकार दबाव-समूह जनहित की रक्षा के लिए उपयोगी भूमिका अदा करते हैं।
(iii) विभिन्न समूहों के होने के कारण कोई भी समूह सरकार पर अनुचित
दबाव नहीं डाल सकता । सरकार विभिन्न समूहों के हितों में एक संतुलन बनाने
में सफल होती है इससे प्रजातंत्र में सभी के हितों में एक सामंजस्य स्थापित हो
जाता है।
प्रश्न 15. दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी संबंधों का
स्वरूप कैसा होता है, वर्णन कीजिए। [JAC 2014(A); 2017(A)]
उत्तर―दबाव-समूह और आंदोलन दलीय राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से भाग
नहीं लेते हैं परन्तु समय-समय पर विभिन्न प्रश्नों और समस्याओं को सुलझाने
और अपने सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए राजनीतिक दलों में निम्नलिखित
प्रकार से संबंध रहते हैं―
दबाव-समूहों का राजनीतिक दलों द्वारा निर्माण होना―कई बार राजनीतिक
दलों द्वारा दबाब समूहों का निर्माण किया जाता है। ऐसे दबाव-समूह दल की
एक शाखा के रूप में काम करते हैं। जैसे-भारत में विद्यार्थी संगठन-अखिल
भारतीय विद्यार्थी परिषद् आदि दलों के भाग हैं और उनका नेतृत्व दल के नेता ही
करते हैं। इसी प्रकार मजदूर संगठन भी कांग्रेस और भारतीय कम्युनिष्ट दल से
संबंधित हैं।
आंदोलन का राजनीतिक दल का रूप धारन करना―कभी-कभी आंदोलन
राजनीतिक दल का रूप धारण कर लेते हैं। जैसे-असम में विदेशी लोगों के
विरुद्ध आंदोलन की समाप्ति पर 'असम गण परिषद्' का निर्माण हुआ। 1930
और 1940 के दशक में समाज-सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप डी.एम.के.
और ए. आई. ए. डी. एम. के जैसे दलों का निर्माण हुआ ।
दबाव-समूह, आंदोलन और राजनीतिक दलों में संवाद व परामर्श का
होना―साधारणतया दबाव-समूह, आंदोलन और राजनीतिक दलों में विरोधाभास
होता है फिर भी इनमें आपस में बातचीत और विचार-विमर्श चलता रहता है। इस
बातचीत में विभिन्न प्रश्न और समस्याओं का हल ढूँढने का प्रयत्न किया जाता
है। कई बार इन दबाव-समूहों में ही नए नेताओं का निर्माण होता है।
इस प्रकार दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के मध्य आपसी संबंधी कई
प्रकार का स्वरूप ग्रहण करते हैं।
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